Tuesday 28 March 2023

पुदीना (Mint)- पुदीना को पाचन के लिए सबसे अच्छी घरेलू औषधि माना जाता है जो पित्त वाहिका तथा पाचन से संबंधित अन्य रसों को बढ़ाता है।पुदीना में तारपीन (terpenes) भी होता है जो कि पथरी को गलाने में सहायक माना जाता है।पुदीने की पत्तियों से बनी चाय गॉल ब्लेडर स्टोन से राहत दे सकती है।उपचार-पानी को गरम करें, इसमें ताजी या सूखी पुदीने के पत्तियों को उबालें।

: *नेचर 2 वेलनेस आपके लिए लेकर आये हैं चिलचिलाती गर्मी का आसान समाधान...*

*

*"नेचर्स ऊर्ज़ा (एनर्जाइज़र)"*
*एक त्वरित ऊर्जा सूत्र*
*जो मांसपेशियों की कोशिकाओं को रिचार्ज करने में मदद करता है,*
*थकान की सीमा में सुधार करता है,*
*शरीर की भड़काऊ प्रतिक्रिया को मजबूत करता है और*
*ऊर्जा का निर्माण करता है।*
*बीपी को नार्मल करता है।*

*हमारे अद्भुत "ऊर्ज़ा" एनर्जाइज़र फॉर्मूलेशन में अवयवों की भूमिका...*

*(1). स्टार्च मकई (डेक्सट्रोज और सुक्रोज)*
डेक्सट्रोज क्या है?
डेक्सट्रोज स्टार्च से बनी एक साधारण चीनी है। स्टार्च मकई, गेहूं, चावल और आलू सहित कई पौधों में पाया जाने वाला प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जटिल कार्बोहाइड्रेट है।
डेक्सट्रोज का सबसे आम स्रोत मकई स्टार्च है।

डेक्सट्रोज को डी-ग्लूकोज के नाम से भी जाना जाता है। 
डेक्सट्रोज आपके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाकर काम करता है।
ग्लूकोज कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाद्य पदार्थों में पाया जाता है, जैसे ब्रेड, अनाज, आलू, फल, पास्ता और चावल। ग्लूकोज ऊर्जा का एक स्रोत है, और आपके शरीर में सभी कोशिकाओं और अंगों को ठीक से काम करने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है।

डेक्सट्रोज का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट कैलोरी प्रदान करने के लिए भी किया जाता है जो बीमारी, आघात या अन्य चिकित्सीय स्थिति के कारण नहीं खा सकता है। यह कभी-कभी उन लोगों को दिया जाता है जो बहुत अधिक शराब पीने से बीमार हो जाते हैं।
*आहार अनुपूरक*
डेक्सट्रोज स्टार्च से बनी एक साधारण चीनी है।
स्टार्च मकई, गेहूं, चावल और आलू सहित कई पौधों में पाया जाने वाला प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला जटिल कार्बोहाइड्रेट है। डेक्सट्रोज का सबसे आम स्रोत मकई स्टार्च है।

डेक्सट्रोज, जब एक दवा के रूप में उपयोग किया जाता है, या तो मुंह से (मौखिक रूप से) या इंजेक्शन द्वारा दिया जाता है। डेक्सट्रोज को डी-ग्लूकोज के नाम से भी जाना जाता है।

डेक्सट्रोज आपके रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाकर काम करता है। ग्लूकोज कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाद्य पदार्थों में पाया जाता है, जैसे ब्रेड, अनाज, आलू, फल, पास्ता और चावल। ग्लूकोज ऊर्जा का एक स्रोत है, और आपके शरीर में सभी कोशिकाओं और अंगों को ठीक से काम करने के लिए ग्लूकोज की आवश्यकता होती है।

डेक्सट्रोज का उपयोग किसी ऐसे व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट कैलोरी प्रदान करने के लिए भी किया जाता है जो बीमारी, आघात या अन्य चिकित्सीय स्थिति के कारण नहीं खा सकता है। यह कभी-कभी उन लोगों को दिया जाता है जो बहुत अधिक शराब पीने से बीमार हो जाते हैं।

डेक्सट्रोज का उपयोग हाइपरक्लेमिया (आपके रक्त में पोटेशियम के उच्च स्तर) के इलाज के लिए भी किया जा सकता है।

*चेतावनी*
यदि आपको मकई से एलर्जी है, तो आपको डेक्सट्रोज से एलर्जी की प्रतिक्रिया हो सकती है। इसका इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें।

सुक्रोस खनिज लोहे का एक रूप है। आयरन विशेष रूप से रक्त में ऑक्सीजन के परिवहन के लिए शरीर में कई कार्यों लिए महत्वपूर्ण है। आयरन सुक्रोस इंजेक्शन गुर्दे की बीमारी के साथ लोगों में लोहे की कमी से एनीमिया के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
यह आमतौर पर लाल रक्त कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देने के लिए दिया जाता है।

3 बड़े चम्मच पूर्ण 15 ग्राम (लगभग) की एक खुराक कार्बोहाइड्रेट से 57.6 कैलोरी प्रदान करती है।

डेक्सट्रोज (स्टार्च मकई) आसानी से आत्मसात होकर घुल जाता है और थकान को दूर करने के लिए ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
सुक्रोज से फ्रुक्टोज और ग्लूकोज प्रत्येक का एक अणु प्राप्त होता है।

*(2). जिंक सल्फेट*
ज़िंक से शरीर को कई फायदे मिलते हैं। जिंक की कमी होने पर इम्यूनिटी, थकान और वजन घटना शुरु हो जाता है।

जिंक जिसे हिंदी में जस्ता (Zinc) कहते हैं एक ऐसा खनिज या मिनरल है जो आपकी इम्यूनिटी को मजबूत (Strong Immunity) बनाता है।
हमारा शरीर जिंक नहीं बनाता इसके लिए हमें जिंक से भरपूर खाद्य पदार्थ (Foods For Zinc) या सप्लीमेंट का सेवन करना होता है।
दैनिक कार्यों को सुचारु रुप से करने के लिए जिंक जरूरी है।
जिंक से न सिर्फ शरीर स्वस्थ रहता है बल्कि ब्लड शुगर को कंट्रोल करने (Blood Sugar Level), हार्ट को हेल्दी बनाने (Heart) और स्किन और हेयर का ख्याल रखने के लिए भी ज़िंक जरूरी है।
शरीर में डीएनए (DNA) के निर्माण में भी ज़िंक अहम होता है।
आप डाइट में ऐसी चीजों को शामिल कर सकते हैं जिससे ज़िंक की कमी को आसानी से पूरा किया जा सकता है।

 एक सर्विंग से 3.2 ग्राम एलिमेंटल जिंक मिलेगा, जो दैनिक आहार आवश्यकताओं का आधा है।
 जिंक न्यूक्लोइक एसिड संश्लेषण घावों के उपचार और ऊर्जा के हस्तांतरण के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है।
 जिंक स्वाद संकाय में भी सुधार करता है और इस प्रकार स्वास्थ्य लाभ के दौरान भोजन की इच्छा को बढ़ाता है।

*(3). एस्कॉर्बिक एसिड (विटामिन-सी)*
एस्कॉर्बिक एसिड शुद्ध विटामिन सी है, जो शरीर के लिए फायदेमंद एक आवश्यक पोषक तत्व है।
यह त्वचा की मरम्मत और पोषण करने में मदद करता है।
यह त्वचा की मजबूती और एक एंटी-एजिंग है। स्वस्थ हड्डियों को बनाए रखना और विकसित करना।

 एक सर्विंग इस महत्वपूर्ण पानी में घुलनशील विटामिन का 15mg प्रदान करता है, जो दैनिक आहार एस्कॉर्बिक एसिड है जो तनाव और तनाव, वृद्धि और शरीर के गठन के खिलाफ समायोजित करने में मदद करता है और फागोसाइटोसिस में सुधार करता है जिससे संक्रमण के प्रतिरोध में वृद्धि होती है।

*

एक सर्विंग 15 ग्राम
दिन में एक या दो बार और जरूरत पड़ने पर कभी भी।


 *मधुमेह, शुगर या डायबिटीज का कंट्रोल...*
*कैसे करें..???*
➡️ डायबिटीज के मरीज हमेशा डबल टोन्ड दूध का प्रयोग करें।

➡️ कम कैलोरीयुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें जैसे  छिलके वाला भुना चना, परमल, अंकुरित अनाज, सूप, सलाद आदि का ज्यादा सेवन करें।

➡️ दही और छाछ का सेवन करने से ग्लूकोज का स्तर कम होता है और डायबिटीज नियंत्रण में रहता है।

➡️ मैथी दाना (दरदरा पिसा हुआ) एक या आधा चम्मच खाना खाने के 15-20 मिनट पहले लेने से शुगर कंट्रोल में रहती है व फायदा होता है।

➡️ रोटी के आटे को बिना चोकर निकाले प्रयोग में लाएं व इसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसमें सोयाबीन मिला सकते हैं।

➡️ घी व तेल का सेवन दिनभर में 4 चम्मच से ज्यादा न करें।

➡️ सभी सब्जियों को कम से कम तेल का प्रयोग करके पकाना चाहिए।
हरी पत्तेदार सब्जियों का ज्यादा सेवन करें।

➡️ मधुमेह रोगी को खाने से लगभग 1 घंटा पहले तेज गति से पैदल चलना चाहिए और साथ ही व्यायामऔर योगा भी करें।

➡️ सही समय पर इंसुलिन व दवाइयां लेते रहें।

➡️ नियमित रूप से चिकित्सक के पास जाकर चेकअप भी कराइए।

*मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए डाइट चार्ट-*
➡️ डायिबिटिक्स को अपने आहार में कुल कैलोरी का 40℅ कार्बोहाइड्रेटयुक्त पदार्थों से, 40℅ वसायुक्त पदार्थों से व 20℅ प्रोटीनयुक्त पदार्थों से लेना चाहिए।

➡️ यदि मधुमेह मरीज का वजन ज्यादा है तो उसे कुल कैलोरी का 60℅
 कार्बोहाइड्रेट से, 20 ℅ फैट से व 20℅ प्रोटीन से लेना चाहिए।
इसके साथ मधुमेह के मरीज को प्रोटीन अच्छी मात्रा में व उच्च गुणवत्ता वाला लेना चाहिए।
इसके लिए दूध, दही, पनीर, अंडा, मछली, सोयाबीन आदि का सेवन ज्यादा करना चाहिए।

➡️ इंसुलिन ले रहे डायबिटिक व्यक्ति एवं गोलियां ले रहे डायबिटिक व्यक्ति को खाना सही समय पर लेना चाहिए।
ऐसा न करने पर हायपोग्लाइसीमिया हो सकता है।
इसके कारण कमजोरी, अत्यधिक भूख लगना, पसीना आना, नजर से धुंधला या डबल दिखना, हृदयगति तेज होना, झटके आना एवं गंभीर स्थिति होने पर कोमा भी हो सकता है।
➡️ डायबिटिक व्यक्ति को हमेशा अपने साथ कोई मीठी चीज जैसे ग्लूकोज, शक्कर, चॉकलेट, मीठे बिस्किट रखना चाहिए।
➡️ यदि हायपोग्लाइसीमिया के लक्षण दिखें तो तुरंत इनका सेवन करना चाहिए।
➡️ एक सामान्य डायबिटिक व्यक्ति को ध्यान रखना चाहिए कि वे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाते रहें।
दो या ढाई घंटे में कुछ खाएं।
➡️ एक समय पर बहुत सारा खाना न खाएं।



: *कहीं आपके घर में रखा गुड़ मिलावटी तो नहीं?*
*जानिए कैसे करें शुद्ध और मिलावटी गुड़ की पहचान...* 

*खाने पीने की चीजों में मिलावट बहुत ही आम हो गया है.!*
*कौन सा खाद्य पदार्थ शुद्ध है और कौन मिलावटी है.?*
*इसकी जानकारी आपको खुद रखने की आवश्यकता है.!* 

*अभी तो फिलहाल यहां हम आपको गुड़ में की गई मिलावट की पहचान करने का तरीका बताएंगे...* 
  
अगर आप अधिक चीनी या मीठा पसंद करते हैं तो आपके लिए गुड़ एक अच्छा और हेल्दी विकल्प हो सकता है।
लेकिन आजकल बाजार में और यहाँ तक कि औरगैनिक खेती का गन्ने का गुड़ बोल बोल के बेचा जा रहा है और गुड़ के  भी इतने प्रकार और अलग अलग रंगों में उपलब्ध हैं कि उसमें हम धोखा खा जाते हैं।
अनजाने में हम मिलावटी और चीनी जितना हानिकारक गुड़ अपने साथ ले आते हैं, जो आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। अधिकतर गुड़ में रासायनिक पदार्थों की मिलावट की जाती है, जिसके कारण गुड़ का कलर बदल जाता है।
ऐसे में आप यह सोच कर परेशान होंगे कि कैसे आप असली गुड़ की पहचान कर सकते हैं और अपनी सेहत को बेहतर रख सकते हैं। 

*तो आइये यहां हम आपको शुद्ध और मिलावटी गुड़ की पहचान (Jaggery Adulteration) करने का तरीका बताते हैं...* 

*मिलावटी गुड़ किन किन रासायनों (केमिकल्स) का होता है मिश्रण?* 

दरअसल, गुड़ में सोडा और केमिकल मिला देने के कारण उसका रंग थोड़ा सा बदल जाता है, इसलिए अगर आपका गुड़ थोड़ा सफेद या थोड़ा पीला हो तो आपको समझ जाना चाहिए कि उसमें केमिकल की मिलावट की गई है।
जबकि असली गुड़ का रंग डार्क ब्राउन होता है।
इन केमिकल मिलावटों में कैल्शियम कार्बोनेट और सोडियम बाई कार्बोनेट होते हैं।
कैल्शियम कार्बोनेट का प्रयोग गुड़ का भार बढ़ाने के लिए किया जाता है जबकि दूसरे का प्रयोग उसकी अच्छी फिनिशिंग और पॉलिश लुक देने के लिए किया जाता है।
इतना जानिए कि जैसे ही फिनिशिंग लुक गोरा रंग रूप करने लगे खाने के चीजों में समझिए की जरूर रसायन डाला गया है!!!!!!!!!!!

*शुद्ध गुड़ का रंग कैसा होता है?* 

अगर आप काला या डार्क ब्राउन रंग का गुड़ देखते हैं तो आपको जान लेना चाहिए कि यही गुड़ ही असली गुड़ ही होता है। और यह केमिकल मुक्त और ऑर्गेनिक गुड़ होता है। जब गन्ने को उबाला जाता है तब उसमें से डार्क ब्राउन रंग निकलता है जिस कारण गुड़ का रंग डार्क ब्राउन हो जाता है।  

*शुद्ध गुड़ की पहचान कैसे करते हैं..??* 

1. गुड़ का स्वाद खाने में कड़वा या थोड़ा नमकीन नहीं होना चाहिए और अगर ऐसा होता है तो वह जरूर मिलावटी गुड़ ही है।

2. गुड़ में चीनी जैसे दाने नहीं होने चाहिए। ऐसे क्रिस्टल शामिल करने से गुड़ में और अधिक मिठास शामिल की जाती है।

3. गुड़ में मिलावट चेक करना का सबसे बेस्ट तरीका यह है कि आप को एक छोटे से गुड़ के हिस्से को पानी में घोल कर देख लेना चाहिए, अगर उसकी तली में सफेद पाउडर सा जम जाता है तो इस का अर्थ होता है कि उस गुड़ को बनाते समय मिलावट की गई है।
अगर गुड़ से कुछ भी नीचे नहीं आता है तो इस का अर्थ है वह बिल्कुल प्योर और ऑर्गेनिक गुड़ है और सभी केमिकल्स आदि से मुक्त है। 

*चीनी के मुकाबले गुड़ ज्यादा हेल्‍दी या बेहतर क्‍यों होता है?* 

हालांकि आप को यह बात भी पता होनी चाहिए कि गुड़ में और चीनी में कैलोरीज़ की मात्रा तो एक समान ही होती है लेकिन गुड़ को फिर भी चीनी के मुकाबले अधिक हेल्दी इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें कुछ ऐसे पौष्टिक तत्त्व शामिल होते हैं जो अक्सर चीनी में नहीं पाए जाते हैं।
गुड़ में कैल्शियम, जिंक, आयरन, पोटेशियम, फॉस्फोरस और विटामिन बी पाए जाते हैं, जो आपको चीनी में नहीं मिलते हैं।
अगर आप का गुड़ ओरिजिनल और एकदम ऑर्गेनिक होगा केवल तब ही आप को यह सारे तत्त्व मिलेंगे।

यहां दी गई जानकारी से आप आसानी से असली और नकली गुड़ में अंतर पता कर सकते हैं।
अगर आप अपनी जेब से पैसे खर्च कर ही रहे हैं तो आपको समझदारी बरतनी चाहिए और अपनी खाने की चीजों की गुणवत्‍ता की जांच कर लेनी चाहिए, ताकि बाद में आप को किसी तरह का पछतावा न हो।


 *नवरात्रि स्पेशल*
*●●सेंधा नमक●●*
भारत से कैसे गायब कर दिया गया और मौत का सौदागर समुद्री नमक ले आये अंग्रेज़, उद्योगपति या बहुराष्ट्रीय कंपनियां..!
*सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है सेंधा नमक*
● आप सोच रहे होंगे की ये सेंधा नमक बनता कैसे है ??
आइये आज हम आपको बताते हैं कि नमक मुख्य कितने प्रकार होते हैं.!
एक होता है समुद्री नमक और दूसरा होता है सेंधा नमक (रॉक साल्ट).!
सेंधा नमक बनता नहीं है पहले से ही बना बनाया है..!
पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को ‘सेंधा नमक’ या ‘सैन्धव नमक’, लाहोरी नमक आदि आदि नाम से जाना जाता है जिसका मतलब है ‘सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ’।
वहाँ नमक के बड़े बड़े पहाड़ है सुरंगे है.!
वहाँ से ये नमक आता है.!
मोटे मोटे टुकड़ो मे होता है आजकल पीसा हुआ भी आने लगा है यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है।
इससे पाचक रस बढ़ते हैं। तों अंत में अब आप ये समुद्री नमक के चक्कर से बाहर निकलें, सच्चाई जानने के बाद।
काला नमक या सेंधा नमक प्रयोग ज़रूर करें क्यूंकि ये प्रकृति का बनाया हुआ है ईश्वर का बनाया हुआ है और सदैव याद रखे इंसान जरूर शैतान हो सकता है लेकिन भगवान कभी शैतान नहीं होता.!

● आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता।
आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है।
● भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था विदेशी कंपनियां भारत मे नमक के व्यापार मे आज़ादी के पहले से उतरी हुई है, उनके कहने पर ही भारत के अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक खिलाया जा रहा है।

● हुआ ये कि जब ग्लोबलाईज़ेशन के बाद बहुत सी विदेशी कंपनियो (अन्नपूर्णा,कैपटन कुक, अंकुर वगैरह) ने नमक बेचना शुरू किया तब ये सारा खेल शुरू हुआ.!
अब समझिए खेल क्या था.??
खेल ये था कि विदेशी कंपनियो को नमक बेचना है और बहुत मोटा लाभ कमाना है और लूट मचानी है तो पूरे भारत मे एक नई बात फैलाई गई कि आयोडीन युक्त नामक खाओ, आयोडीन युक्त नमक खाओ.!
आप सबको आयोडीन की कमी हो गई है। ये सेहत के लिए बहुत अच्छा है आदि आदि बातें पूरे देश मे प्रायोजित ढंग से फैलाई गई और जो नमक किसी जमाने मे 2 से 3 रूपये किलो मे बिकता था, उसकी जगह आयोडीन नमक के नाम पर सीधा भाव पहुँच गया 8 रूपये प्रति किलो और आज तो 20 रूपये को भी पार कर गया है।
● दुनिया के 56 देशों ने अतिरिक्त आओडीन युक्त नमक 40 साल पहले बैन कर दिया था।
अमेरिका मे नहीं है जर्मनी मे नहीं है फ्रांस मे नहीं, डेन्मार्क मे नहीं, बस यही बेचा जा रहा है।
डेन्मार्क की सरकार ने 1956 मे आयोडीन युक्त नमक बैन कर दिया बक्यों ??
उनकी सरकार ने कहा हमने मे आयोडीन युक्त नमक खिलाया।
1940 से 1956 तक अधिकांश लोग नपुंसक हो गए।
जनसंख्या इतनी कम हो गई कि देश के खत्म होने का खतरा हो गया।
उनके वैज्ञानिको ने कहा कि आयोडीन युक्त नमक बंद करवाओ तो उन्होने बैन लगाया और शुरू के दिनो मे जब हमारे देश मे ये आयोडीन का खेल शुरू हुआ इस देश के बेशर्म नेताओ ने कानून बना दिया कि बिना आओडीन युक्त नमक बिक नहीं सकता भारत मे.!
वो कुछ समय पूर्व किसी ने कोर्ट मे मुकदमा दाखिल किया और ये बैन हटाया गया।
● आज से कुछ वर्ष पहले कोई भी समुद्री नमक नहीं खाता था सब सेंधा नमक ही खाते थे।
● सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप और बहुत ही गंभीर बीमारियों पर नियन्त्रण रहता है क्योंकि ये अम्लीय नहीं ये क्षारीय यानी अल्कलाइन है।
क्षारीय चीज जब अमल मे मिलती है तो वो न्यूट्रल हो जाता है और रक्त अमलता खत्म होते ही शरीर के 48 रोग ठीक हो जाते हैं !
ये नामक शरीर मे पूरी तरह से घुलनशील है और सेंधा नमक की शुद्धता के कारण आप एक और बात से पहचान सकते हैं कि उपवास, व्रत मे सब सेंधा नमक ही खाते है।
तो आप सोचिए जो समुंदरी नमक आपके उपवास को अपवित्र कर सकता है वो आपके शरीर के लिए कैसे लाभकारी हो सकता है ??
सेंधा नमक शरीर मे 97 पोषक तत्वो की कमी को पूरा करता है !
इन पोषक तत्वो की कमी ना पूरी होने के कारण ही लकवे (paralysis) का अटैक आने का सबसे बढ़ा जोखिम होता है।
सेंधा नमक के बारे में आयुर्वेद में बोला गया है कि यह आपको इसलिये खाना चाहिए क्योंकि सेंधा नमक वात, पित्त और कफ को दूर करता है।
यह पाचन में सहायक होता है और साथ ही इसमें पोटैशियम और मैग्नीशियम पाया जाता है जो हृदय के लिए लाभकारी होता है।
यही नहीं आयुर्वेदिक औषधियों में जैसे लवण भाष्कर, पाचन चूर्ण आदि में भी प्रयोग किया जाता है।

*समुद्री नमक...*
● ये जो समुद्री नमक है आयुर्वेद के अनुसार ये तो अपने आप मे ही बहुत खतरनाक है क्योंकि कंपनियाँ इसमे अतिरिक्त आयोडीन डाल रही है। अब आयोडीन भी दो तरह का होता है एक तो भगवान का बनाया हुआ जो पहले से नमक मे होता है !
दूसरा होता है इंडस्ट्रियल आयोडीन !
ये बहुत ही खतरनाक है !
तो समुद्री नमक जो पहले से ही खतरनाक है उसमे कंपनिया अतिरिक्त इंडस्ट्रियल आयोडीन डाल को पूरे देश को बेच रही है !
जिससे बहुत सी गंभीर बीमरिया हम लोगो को आ रही है !
ये नमक मानव द्वारा फ़ैक्टरियों मे निर्मित है !
● आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप (हाई बीपी), डाइबिटीज़, आदि गंभीर बीमारियो का भी कारण बनता है।
इसका एक कारण ये है कि ये नमक अम्लीय (acidic) होता है ! जिससे रक्त अम्लता बढ़ती है और रक्त अमलता बढ्ने से ये सब 48 रोग आते है !
ये नमक पानी कभी पूरी तरह नहीं घुलता हीरे (diamond) की तरह चमकता रहता है इसी प्रकार शरीर के अंदर जाकर भी नहीं घुलता और अंत इसी प्रकार किडनी से भी नहीं निकल पाता और पथरी का भी कारण बनता है और ये नमक नपुंसकता और लकवा (paralysis) का बहुत बड़ा कारण है समुद्री नमक से सिर्फ शरीर को 4 पोषक तत्व मिलते है और बीमारिया जरूर साथ मे मिल जाती है !

● रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है।
इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है।
विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है।
जोड़ो का दर्द और गठिया, प्रोस्टेट आदि होती है।
आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है।
1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है।
यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है।
इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।

पांच हजार साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी भोजन में सेंधा नमक के ही इस्तेमाल की सलाह दी गई है।
भोजन में नमक व मसाले का प्रयोग भारत, नेपाल, चीन, बंगलादेश और पाकिस्तान में अधिक होता है।
आजकल बाजार में ज्यादातर समुद्री जल से तैयार नमक ही मिलता है।
जबकि 1960 के दशक में देश में लाहौरी नमक मिलता था।
यहां तक कि राशन की दुकानों पर भी इसी नमक का वितरण किया जाता था।
स्वाद के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता था।
समुद्री नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग होना चाहिए।
● आप इस अतिरिक्त आयोडीन युक्त समुद्री नमक खाना छोड़िए और उसकी जगह सेंधा नमक खाइये !!
सिर्फ आयोडीन के चक्कर में समुद्री नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि जैसा हमने ऊपर बताया आओडीन हर नमक मे होता है सेंधा नमक मे भी आओडीन होता है बस फर्क इतना है इस सेंधा नमक मे प्राकृतिक के द्वारा भगवान द्वारा बनाया आओडीन होता है इसके इलावा आओडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

अब आप सेंधा नमक लें, काला नमक लें या समुद्री नमक....
फैसला आपका क्योंकि जीवन भी आपका..!!



: *दही का सही उपयोग कैसे करें...??*
*कभी भी आप दही को नमक के साथ मत खाइये।*

*दही को अगर खाना ही है तो हमेशा दही को मीठी चीज़ों के साथ खाना चाहिए, जैसे कि चीनी, गुड, मिश्री, बूरे आदि के साथ।*

*इस क्रिया को और बेहतर से समझने के लिए आपको बाज़ार जाकर किसी भी साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट की दूकान पर जाना है, और वहां से आपको एक लेंस खरीदना है, अब अगर आप दही में इस लेंस से देखेंगे तो आपको छोटे छोटे हजारों बैक्टीरिया नज़र आएंगे।*

*ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में आपको इधर उधर चलते फिरते नजर आएंगे।*

*ये बैक्टीरिया जीवित अवस्था में ही हमारे शरीर में जाने चाहिए, क्योंकि जब हम दही खाते हैं तो हमारे अंदर एंजाइम प्रोसेस अच्छे से चलता है।*

*हम दही केवल बैक्टीरिया के लिए खाते हैं।*

*दही को आयुर्वेद की भाषा में जीवाणुओं का घर माना जाता है, अगर एक कप दही में आप जीवाणुओं की गिनती करेंगे तो करोड़ों जीवाणु नजर आएंगे।*

*अगर आप मीठा दही खायेंगे तो ये बैक्टीरिया आपके लिए काफ़ी फायदेमंद साबित होंगे।*

*वहीं अगर आप दही में एक चुटकी नमक भी मिला लें तो एक मिनट में सारे बैक्टीरिया मर जायेंगे और उनकी लाश ही हमारे अंदर जाएगी जो कि किसी काम नहीं आएगी।*

*अगर आप 100 किलो दही में एक चुटकी नामक डालेंगे तो दही के सारे बैक्टीरियल गुण खत्म हो जायेंगे क्योंकि नमक में जो केमिकल्स है वह जीवाणुओं के दुश्मन है।*

*आयुर्वेद में कहा गया है कि दही में ऐसी चीज़ मिलाएं, जो कि जीवाणुओं को बढाये ना कि उन्हें मारे या खत्म करे।*

*दही को गुड़ के साथ खाइये, गुड़ डालते ही जीवाणुओं की संख्या मल्टीप्लाई हो जाती है और वह एक करोड़ से दो करोड़ हो जाते हैं, थोड़ी देर गुड़ मिला कर रख दीजिए।*

*बूरा डालकर भी दही में जीवाणुओं की ग्रोथ कई गुना ज्यादा हो जाती है।*

*मिश्री को अगर दही में डाला जाये तो ये सोने पर सुहागे का काम करेगी।*

*भगवान कृष्ण भी दही को मिश्री के साथ ही खाते थे।*

*पुराने समय के लोग अक्सर दही में गुड़ डाल कर दिया करते थे।*

ओडिशा और बंगाल में अभी भी मिस्टी दही सबका सर्वाधिक प्रिय व्यंजन माना जाता है।



*गर्मी का मौसम आ गया है...??*
सुबह हो या शाम या रात किसी भी समय आप और आपका परिवार आइसक्रीम खाना पसन्द करता है और दही की आइसक्रीम तो बहुत ही स्वादिष्ट होती है....

*क्या आप दही की आइस क्रीम खाना पसंद करेंगे...??*
आइये दही की आइसक्रीम बनाना शुरू करते है...

*आवश्यक सामग्री -*

दही - 1/2 कप (100 ग्राम)

चीनी - 1/4 कप (50 ग्राम)

क्रीम - 1/2 कप (100 ग्राम)

वनीला एसेन्स - 2 बूंद

काजू -  10 ( छोटे छोटे टुकड़े कर लीजिये)

बिस्किट - 4 (छोटे टुकड़े कर लीजिये)

*बनाने की विधि: -*
दही और चीनी को मिलाकर, मिक्सर में डालिये और चीनी घुलने तक दही को फेंट लीजिये।
क्रीम और वनीला एसेन्स डाल कर, एक बार फिर से सारी चीजों के मिक्स होने तक फैट लीजिये।

मिश्रण में कटे हुये काजू के टुकड़े डालकर मिलाइये।

किसी एअर टाइट कन्टेनर में बिस्किट के टुकड़े डालिये, मिश्रण डालिये और बचे हुये बिस्किट के टुकड़े डालकर आइसक्रीम को फ्रीजर में जमने के लिये रख दीजिये।

5- 6 घंटे में आइस क्रीम जम का तैयार हो जाती है।

आइसक्रीम कन्टेनर को फ्रीजर से निकालिये और ठंडी आइसक्रीम, रोज शरबत से सजा कर परोसिये और खाइये।

*सुझाव:*
आइसक्रीम में आप अपने मनपसन्द सूखे मेवे भी डाल सकते हैं या किसी फल के छोटे टुकड़े करके मिश्रण में डाले जा सकते है, जैसे सेब, पपीता, अनन्नास, चीकू इत्यादि।


 *अजीबोगरीब बीमारी... ट्रिकोटिलोमेनिया या हेयर पुलिंग डिसऑर्डर.!*
एम्स के डॉ. उमर अफरोज का कहना है कि कुछ व्यक्तियों को एहसास नहीं होता, लेकिन वे अपने बालों को तोड़ने या खींचने लगते हैं।
इस मेंटल हेल्थ सिंड्रोम को ट्रिकोटिलोमेनिया कहा जाता है। इसमें एक व्यक्ति भौहें, पलकें, स्कैल्प और शरीर के अन्य हिस्सों से बाल खींचने लगता है। यह एक गंभीर विकार है।
क्योंकि बिना किसी चिकनाई के शरीर के बालों को खींचने से गंभीर फोड़े और फफोले हो सकते हैं।
बालों के झड़ने का कारण ऐसा है कि कोई निश्चित दवा पहले से निर्धारित नहीं की जा सकती है। हर मामला विकार के स्तर पर निर्भर करता है। ट्राइकोटिलोमेनिया के लक्षणों को समझना जरूरी है। इसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों से बाल खींचने का प्रयास, शरीर से बाल खींचने के बाद खुशी और राहत महसूस होना, पैचेस में हेयर लॉस, निकाले हुए बाल खाना, खींचे गए बालों के साथ खेलना और सार्वजनिक रूप से पूछे जाने पर इस सिंड्रोम को स्वीकार नहीं करना।

*एलोपेशिया एरिटा एलोपेशिया में बालों का नुकसान शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है जिसमें स्कैल्प, भौहें और पलकें भी शामिल हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे और स्थिर रूप से बढ़ती है।*
डॉ. अप्रतिम गोयल का कहना है कि यह मुख्य रूप से तब होता है जब किसी के शरीर का इम्यून सिस्टम बालों के रोम पर हमला करता है।
इससे इसका झड़ना शुरू हो जाते हैं।

*कई मामलों में एलोपेशिया एरीटा भी कारण हो सकता है, क्योंकि यह ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स जैसे विटिलिगो, थायराइड के कारण भी हो सकता है।*

कीमोथैरेपी
बालों के झड़ने का बड़ा कारण कीमोथैरेपी भी है।
यह इलाज कैंसर के मरीजों को दिया जाता है।
शरीर में तेजी से बढ़ती कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए कीमोथैरेपी सबसे प्रभावी उपचारों में है।
लेकिन अधिकतर मामलों में यह पूरे शरीर के बालों के जड़ पर भी हमला करती है।
कुछ कीमो दवाएं भी इसका कारण बनती है।
ये दवाएं भौहों, पलकों को भी प्रभावित करती हैं।

अगर इन परेशानियों से मुक्ति प्राकृतिक चिकित्सा से चाहते हैं तो सम्पर्क करें...


●पित्त की पथरी●*
डॉक्टर्स कहते हैं के अगर को पित्त की पथरी निकाल दे तो वह एक करोड़ रुपये देंगे।
ये दावा सिर्फ लोगो का आयुर्वेद से लोगो को भटकाने के लिए हैं।
आज उनके लिए हैं ये पोस्ट, आशा करते हैं आपको फायदा होगा। और हम फिर से यही कहेंगे के जब भी आप ये प्रयोग करे तो किसी आयुर्वेद, होम्योपैथिक या एलोपैथिक डॉक्टर के संरक्षण में करे।
आयुर्वेद किसी का विरोध नहीं करता।
पित्त पथरी, पित्ताशय के अन्दर पित्त अवयवों के संघनन से बना हुआ रवाकृत जमाव होता है।
इन पथरियों का निर्माण पित्ताशय के अन्दर होता है लेकिन ये केंद्र से दूर रहते हुए पित्त मार्ग के अन्य भागों में भी पहुंच सकती है जैसे पुटीय नलिका, सामान्य पित्त नलिका, अग्न्याशयीय नलिका या एम्प्युला ऑफ वेटर।
पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति तीव्र कोलेसिसटाइटिस का कारण बन सकती है जो कि पित्ताशय में पित्त के अवरोधन के कारण होने वाली सूजन की अवस्था है और यह प्रायः आंत संबंधी सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले द्वीतियक संक्रमण का कारण भी बनता है, मुख्यतः एस्चीरिचिया कोली और बैक्टिरॉयड्स वर्गों में।
पित्त मार्ग के अन्य हिस्सों में पथरी की उपस्थिति के कारण पित्त नलिकाओं में अवरोध पैदा हो सकता है जोकि एसेन्डिंग कोलैनजाइटिस या पैन्क्रियेटाइटिस जैसी गंभीर अवस्थाओं तक पहुंच सकता है।
इन दोनों में से कोई भी अवस्था प्राणों के लिए घातक हो सकती है और इसलिए इन्हें चिकित्सीय आपातस्थिति के रूप में देखा जाता है।

1. Gallbladder (पित्त की थेली) की पत्थरी निकालने का प्राकृतिक उपचार:-
आज बहुत से लोग इस से परेशान हैं, और डॉक्टर भी इस के आगे फेल हैं।कृपया शेयर करते रहिये।
पहले 5 दिन रोजाना 4 ग्लास एप्पल जूस (डिब्बे वाला नहीं) और 4 या 5 सेव खायें।
छटे दिन डिनर ना लें...
इस छटे दिन शाम 6 बजे एक चम्मच ''सेधा नमक'' (मैग्नेश्यिम सल्फेट), 1 ग्लास गर्म पानी के साथ लें...
शाम 8 बजे फिर एक बार एक चम्मच ''सेंधा नमक'' (मैग्नेश्यिम सल्फेट), 1 ग्लास गर्म पानी के साथ लें..
रात 10 बजे आधा कप जैतून (Olive) या तिल (sesame) का तेल - आधा कप ताजा नीम्बू रस में अच्छे से मिला कर पीयें.....
सुबह स्टूल में आपको हरे रंग के पत्थर मिलेंगे...
नोट: पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन न करें।

2. सेब का जूस और सेब का सिरका (Apple juice and Apple cider vinegar)-
सेब में पित्त की पथरी को गलाने का गुण होता है, लेकिन इसे जूस के रूप में सेब के सिरके के साथ लेने पर यह ज्यादा असरकारी होता है।
सेब में मौजूद मैलिक एसिड (mallic acid) पथरी को गलाने में मदद करता है तथा सेब का सिरका लिवर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बनने देता, जो पथरी बनने के लिए जिम्मेदार होता है।
यह घोल न केवल पथरी को गलाता है बल्कि दोबारा बनने से भी रोकता है और दर्द से भी राहत देता है।
उपचार के लिए-
एक गिलास सेब के जूस में, एक चम्मच सेब का सिरका मिलाएं।
इस जूस को रोजाना दिन भर में दो बार पीएं।

3. नाशपाती का जूस (Pear juice)-
नाशपाती के आकार की पित्त की थैली को नाशपाती द्वारा ही साफ किया जाना संभव है।
नाशपाती में मौजूद पैक्टिन (pectene) कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) को बनने और जमने से रोकता है।
यूं भी नाशपाती गुणों की खान है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।
उपचार-
एक गिलास गरम पानी में, एक गिलास नाशपाती का जूस और दो चम्मच शहद मिलाकर पीएं।
इस जूस को एक दिन में तीन बार पीना चाहिए।

4. चुकंदर, खीरा और गाजर का जूस (Beetroot, Cucumber and carrot juice)-
जूस थेरेपी को पित्त की थैली के इलाज के लिए घरेलू उपचारों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है।
चुकंदर न केवल शरीर का मजबूती देता है बल्कि गॉल ब्लेडर को साफ भी करता है साथ ही लिवर के कोलोन (colon) को भी साफ करता है।
खीरा में मौजूद ज्यादा पानी की मात्रा लिवर और गॉल ब्लेडर दोनों को डिटॉक्सीफाई (detoxify) करती है।
गाजर में भी विटामिन सी और उच्च पोषक तत्व (high nutrient) होने के कारण यही गुण होते हैं।
उपचार-
एक चुकंदर, एक खीरा और चार गाजर को लेकर जूस तैयार करें।
इस जूस को प्रतिदिन दो बार पीना है।
जूस में प्रत्येक सामग्री की मात्रा बराबर होनी चाहिए, इसलिए सब्जी या फल के साइज के हिसाब से मात्रा घटाई या बढ़ाई जा सकती है।

5. पुदीना (Mint)- पुदीना को पाचन के लिए सबसे अच्छी घरेलू औषधि माना जाता है जो पित्त वाहिका तथा पाचन से संबंधित अन्य रसों को बढ़ाता है।
पुदीना में तारपीन (terpenes) भी होता है जो कि पथरी को गलाने में सहायक माना जाता है।
पुदीने की पत्तियों से बनी चाय गॉल ब्लेडर स्टोन से राहत दे सकती है।उपचार-
पानी को गरम करें, इसमें ताजी या सूखी पुदीने के पत्तियों को उबालें।
हल्का गुनगुना रहने पर पानी को छानकर इसमें शहद मिलाएं और पी लें। इस चाय को दिन में दो बार पीया जा सकता है।

6. खान-पान और दिनचर्या में बदलाव 
रोजाना 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं, चाहे प्यास न भी लगी हो।
वसायुक्त या तेज मसाले वाले खाने से बचें।
प्रतिदिन कॉफी जरूर पीएं।
बहुत ज्यादा भी नहीं लेकिन दिन में एक से दो कप काफी हैं।
कॉफी भी पित्त वाहिका को बढ़ाती है जिससे पित्त की थैली में पथरी नहीं होती।
अपने खाने में विटामिन सी की मात्रा बढाएं।
दिनभर में जितना ज्यादा संभव हो विटामिन सी से भरपूर चीजें खाएं।
हल्दी, सौंठ, काली मिर्च और हींग को खाने में जरूर शामिल करें।


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