Friday 21 July 2023

कुछ ऐसे शब्द जिनको हमने कई बार सुना किंतु उनके अर्थ नही जानते, आइए जाने वो शब्द एवम उनके अर्थ।🚩🔱

🕉️🚩कुछ ऐसे शब्द जिनको हमने कई बार सुना किंतु उनके अर्थ नही जानते, आइए जाने वो शब्द एवम उनके अर्थ।🚩🔱

सामान्य ज्ञान  विशिष्ट शब्दों का अर्थ इस प्रकार समझना चाहिए ।

🚩पंचोपचार – गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने को ‘पंचोपचार’ कहते हैं।

पंचामृत – दूध ,दही , घृत, मधु { शहद ] तथा शक्कर इनके मिश्रण को ‘पंचामृत’ कहते हैं।

 पंचगव्य – गाय के दूध ,घृत , मूत्र तथा गोबर इन्हें सम्मिलित रूप में ‘पंचगव्य’ कहते हैं।

🚩 षोडशोपचार – आवाहन् , आसन , पाध्य , अर्घ्य ,
आचमन , स्नान , वस्त्र , अलंकार , सुगंध , पुष्प , धूप ,
दीप , नैवैध्य , ,अक्षत , ताम्बुल तथा दक्षिणा इन
सबके द्वारा पूजन करने की विधि को ‘षोडशोपचार’
कहते हैं।

🚩 दशोपचार – पाध्य ,अर्घ्य ,आचमनीय , मधुपक्र , आचमन , गंध , पुष्प ,धूप , दीप तथा नैवैध्य द्वारा पूजन करने की विधि को ‘दशोपचार’ कहते हैं।

🪷 त्रिधातु –सोना , चांदी और लोहा कुछ आचार्य सोना ,चांदी , तांबा इनके मिश्रण को भी ‘त्रिधातु’ कहते हैं।

🪷 पंचधातु – सोना , चांदी , लोहा ,तांबा और जस्ता।

 अष्टधातु – सोना , चांदी, लोहा ,तांबा , जस्ता , रांगा ,कांसा और पारा।

 नैवैध्य –खीर , मिष्ठानआदि मीठी वस्तुये।

 नवग्रह –सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि , राहु और केतु।

 नवरत्न – माणिक्य , मोती ,मूंगा ,पन्ना ,पुखराज , हीरा ,नीलम , गोमेद , और वैदूर्य।

 अष्टगंध – अगर , तगर , गोरोचन , केसर ,कस्तूरी ,,श्वेत चन्दन , लाल चन्दन और सिन्दूर देव पूजन 

 अगर , लाल चन्दन ,हल्दी , कुमकुम , गोरोचन , जटामासी ,शिलाजीत और कपूर [ देवी पूजन हेतु]

 गंधत्रय – सिन्दूर , हल्दी , कुमकुम।

 पञ्चांग – किसी वनस्पति के पुष्प , पत्र ,फल , छाल ,और जड़।

 दशांश – दसवां भाग।

 भोजपत्र – एक वृक्ष की छाल
मन्त्र प्रयोग के लिए भोजपत्र का ऐसा टुकडा लेना चाहिए ,जो कटा-फटा न हो।

 मन्त्र धारण –किसी भी मन्त्र
को स्त्री पुरुष दोनों ही कंठ में धारण कर सकते हैं ,परन्तु यदि भुजा में धारण करना चाहें तो पुरुषको अपनी दायीं भुजा में और स्त्री को बायीं भुजा में धारण करना चाहिए।

 मुद्राएँ –हाथों की अँगुलियों को किसी विशेष स्तिथि में लेने कि क्रिया को‘मुद्रा’ कहा जाता है। मुद्राएँ अनेक प्रकार की होती हैं।

 स्नान –यह दो प्रकार का होता है।बाह्य तथा आतंरिक,बाह्य स्नान जल से तथा आन्तरिक स्नान जप द्वारा होता है।

 तर्पण –नदी , सरोवर ,आदि के जल में घुटनों तक पानी में खड़े होकर ,हाथ की अंजुली द्वारा जल गिराने की क्रिया को ‘तर्पण’ कहा जाता है। जहाँ नदी , सरोवर आदि न हो ,वहां किसी पात्र में पानी भरकर भी ‘तर्पण’ की क्रिया संपन्न कर ली जाती है।

 आचमन – हाथ में जल लेकर उसे अपने मुंह में डालने की क्रिया को आचमन कहते हैं।

 करन्यास –अंगूठा , अंगुली , करतल तथा करपृष्ठ पर मन्त्र जपने को ‘करन्यास’ कहा जाता है।

 हृद्याविन्यास –ह्रदय आदि अंगों को स्पर्श करते हुएमंत्रोच्चारण को ‘हृदय्विन्यास’ कहते हैं।

 अंगन्यास – ह्रदय ,शिर , शिखा , कवच , नेत्र एवं करतल – इन 6 अंगों से मन्त्र का न्यास करने की क्रिया को ‘अंगन्यास’ कहते हैं।

 अर्घ्य – शंख , अंजलि आदि द्वारा जल छोड़ने को अर्घ्य देना कहा जाता है घड़ा या कलश में पानी भरकर रखने को अर्घ्य-स्थापन कहते हैं।अर्घ्य पात्र में दूध ,तिल , कुशा के टुकड़े , सरसों , जौ , पुष्प , चावल एवं कुमकुम इन सबको डाला जाता है।

 पंचायतन पूजा – इसमें पांच देवताओं – विष्णु , गणेश ,सूर्य , शक्ति तथा शिव का पूजनकिया जाता है।

 काण्डानुसमय – एक देवता के पूजाकाण्ड को समाप्त कर ,अन्य देवता की पूजा करने को ‘काण्डानुसमय’ कहते हैं।

 उद्धर्तन – उबटन।

 अभिषेक – मन्त्रोच्चारण करते हुए शंख से सुगन्धित जल छोड़ने को ‘अभिषेक’ कहते हैं।

 उत्तरीय – वस्त्र।

 उपवीत – यज्ञोपवीत [ जनेऊ]।

 समिधा – जिन लकड़ियों को अग्नि में प्रज्जवलित कर होम किया जाता है उन्हें समिधा कहते हैं।समिधा के लिए आक ,पलाश , खदिर , अपामार्ग , पीपल ,उदुम्बर ,शमी , कुषा तथा आम कीलकड़ियों को ग्राह्य माना गया है।

 प्रणव –ॐ।

 मन्त्र ऋषि – जिस व्यक्ति ने सर्वप्रथम शिवजी के मुख से मन्त्र सुनकर उसे विधिवत सिद्ध किया था ,वह उस मंत्र का ऋषि कहलाता है। उस ऋषि को मन्त्र का आदि गुरु मानकर श्रद्धापूर्वक उसका मस्तक में न्यास किया जाता है।

 छन्द – मंत्र को सर्वतोभावेन आच्छादित करने की विधि को ‘छन्द’ कहते हैं।यह अक्षरों अथवा पदों से बनताहै। मंत्र का उच्चारण चूँकि मुख से होता है अतः छन्द का मुख से न्यास किया जाता है।🚩 सांदीपनि गुरुकुल स्वाध्याय केंद्र उज्जैन 8602666380/6260144580🙏🪷

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