Monday 14 October 2024

रतन टाटा चाहते थे कि हर मध्यवर्गीय परिवार के पास अपनी एक कार हो. साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखना चाहते थे कि इस कार को खरीदने का बोझ मध्यवर्गीय परिवार की जेब पर भी भारी ना पड़े. इसके लिए रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था.

रतन टाटा चाहते थे कि हर मध्यवर्गीय परिवार के पास अपनी एक कार हो. साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखना चाहते थे कि इस कार को खरीदने का बोझ मध्यवर्गीय परिवार की जेब पर भी भारी ना पड़े. इसके लिए रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था.

एक आदमी था. वह अपनी लग्जरी कार से शहर की सड़कों को रोजाना नापता रहता था. इस दौरान उसने देखा कि अकसर एक परिवार स्कूटर पर सवार होकर एक साथ कहीं जाता है. स्कूटर में इतनी छोटी सी जगह में बच्चे माता-पिता के बीच किसी तरह से एडजस्ट हो पाते थे. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे उनकी हालत किसी सैंडविज जैसी हो. यह देखर उस आदमी के अंदर का इंसान जाग जाता था. वह सोचने लगता था कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही लेकिन एक कार होती. वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते. उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती. स्कूटर पर इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उस आदमी को एक छोटी कार बनाने की सोची. इसके बाद से वह सस्ती कार के सपने को जमीन पर उतारने में लग गया. निचले मध्य वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले इस व्यक्ति का नाम था रतन नवल टाटा.रतन टाटा ने अपने इस सपने को कई बार लोगों से साझा भी किया था.
  

अलविदा रतन टाटा: स्कूटर में बीवी-बच्चों संग भीगते मिडिल क्लास के लिए नैनो का सपना आप ही देख सकते थेरतन टाटा चाहते थे कि हर मध्यवर्गीय परिवार के पास अपनी एक कार हो. साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखना चाहते थे कि इस कार को खरीदने का बोझ मध्यवर्गीय परिवार की जेब पर भी भारी ना पड़े. इसके लिए रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था.

एक आदमी था. वह अपनी लग्जरी कार से शहर की सड़कों को रोजाना नापता रहता था. इस दौरान उसने देखा कि अकसर एक परिवार स्कूटर पर सवार होकर एक साथ कहीं जाता है. स्कूटर में इतनी छोटी सी जगह में बच्चे माता-पिता के बीच किसी तरह से एडजस्ट हो पाते थे. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे उनकी हालत किसी सैंडविज जैसी हो. यह देखर उस आदमी के अंदर का इंसान जाग जाता था. वह सोचने लगता था कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही लेकिन एक कार होती. वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते. उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती. स्कूटर पर इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उस आदमी को एक छोटी कार बनाने की सोची. इसके बाद से वह सस्ती कार के सपने को जमीन पर उतारने में लग गया. निचले मध्य वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले इस व्यक्ति का नाम था रतन नवल टाटा.रतन टाटा ने अपने इस सपने को कई बार लोगों से साझा भी किया था.

अपने इस सपने को लेकर ही रतन टाटा ने एक बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा था कि आर्किटेक्चर स्कूल से होने का फायदा यह था कि मैं खाली समय में डूडल बनाता था.उन्होंन लिखा था,''मैंने खाली समय में डूडल बनाते समय यह सोचता था कि मोटरसाइकिल ही अगर ज्यादा सुरक्षित हो जाए तो कैसा रहेगा. ऐसा सोचते-सोचते मैंने एक कार का डूडल बनाया, जो एक बग्घी जैसा दिखता था. उसमें दरवाजे तक नहीं थे. इसके बाद मैंने सोच लिया कि मुझे ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर टाटा नैनो अस्तित्व में आई, जो कि हमारे आम लोगों के लिए थी. हमारे लोगों का यहां मतलब देश की वैसी जनता से है, जो कार के सपने तो देखती है, लेकिन वह कार खरीदने में सक्षम नहीं है.'' रतन टाटा ने जिस कार का सपना देखा, उसे नाम दिया- टाटा नैनो. टाटा की यह कार लखटकिया के नाम से भी मशहूर हुई.

रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था. इस टीम ने टाटा 'एस'नाम से छोटा ट्रक बनाया था.यह छोटा ट्रक छोटा हाथी के नाम से काफी मशहूर हुआ. वाघ और उनकी टीम ने करीब पांच साल तक नैनो पर काम किया.

न्यूज no.2
टाटा मोटर्स के जमशेदपुर परिसर में एक ब्लड बैंक है (अन्य सभी प्लांट्स में भी ब्लड बैंक हैं)। यही नियम टाटा स्टील में भी लागू होता है। अगर आप एक यूनिट खून दान करते हैं, तो न केवल आपको उस दिन की छुट्टी मिलती है, बल्कि खून दान करने के 7 दिनों के भीतर आप एक अतिरिक्त छुट्टी भी ले सकते हैं।

कई कर्मचारी इसका उपयोग अपनी छुट्टियों को बढ़ाने के लिए करते हैं। इसलिए, छुट्टियों की कभी कमी नहीं होती...!!!

यह कहने की जरूरत नहीं है कि इस नीति के कारण टाटा कई मान-घंटे खो देता है।

एक बार, कंपनी के कर्मचारियों के साथ बातचीत के दौरान, एक वरिष्ठ अधिकारी ने रतन टाटा से एक सवाल पूछा, "लोग इस नीति का अनुचित लाभ उठाते हैं। इस कारण हमें कई मान-घंटे का नुकसान होता है। खून 24 घंटे के भीतर फिर से बन जाता है, यह तो आपको पता है। तो फिर खून दान करने के 7 दिनों के भीतर वह अतिरिक्त छुट्टी क्यों दी जाती है?"

रतन टाटा मुस्कुराए, जैसे कि वह हमेशा करते हैं। और फिर एक बेहद शांत उत्तर आया... "प्रोत्साहन वह चीज़ है जिसे मुझे आपको सिखाने की ज़रूरत नहीं है... कुछ लोग केवल इसलिए खून दान करते हैं क्योंकि वे ऐसा करना चाहते हैं। मान-घंटों की बात करें, तो हम इस नीति के कारण कुछ मान-घंटे खो सकते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उन लोगों के जीवन में कितने मान-घंटे जुड़ जाते हैं, जिन्हें जरूरत के समय वह खून मिलता है?

मानवता के भले के लिए मैं अपने कुछ मान-घंटे कुर्बान करने के लिए तैयार हूँ।"

साभार
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जिस ब्रिटेन ने हमपर कोई दो सौ साल राज किया, उस ब्रिटेन की दो बड़ी कार ब्रांड्स को खरीदकर हमको गौरवान्वित करने वाले रतन टाटा कोई आम शख्स नहीं थे। लालफीता शाही में न उलझे होते तो बहुत पहले उनके पास उनकी खुद की एयर लाइन होती और अमेरिका के एफ 16 उड़ा चुके टाटा अपनी एयर लाइन के बोईंग को उड़ा रहे होते। 
असल भारत रत्न रतन टाटा को विनम्र श्रद्धांजलि।🙏

"बचपन तो मेरा बहुत अच्छा था। लेकिन जब माता-पिता का तलाक हुआ तो हम भाईयों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी। उस ज़माने में तलाक आज की तरह कोई नॉर्मल बात नहीं थी।" कुछ साल पहले रतन टाटा जी ने एक इंटरव्यू में ये बातें कही थी। उस इंटरव्यू में रतन टाटा ने अपने जीवन की कई बातों पर रोशनी डाली थी। उन्होंने बताया था कि माता-पिता के तलाक के बाद उनकी दादी ने उनका बहुत ख्याल रखा। 

जब उनकी मां ने दूसरी शादी कर ली थी तब स्कूल के दूसरे बच्चे उनके बारे में तरह-तरह की बातें करते थे। कुछ लड़के छेड़ते थे। तो कुछ उकसाने की कोशिश करते थे। उन बातों पर रतन टाटा को बहुत गुस्सा आता था। लेकिन दादी उस वक्त उन्हें शांत रहने को कहती थी। दादी कहती थी कि किसी भी कीमत पर अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखनी है। उस इंटरव्यू में रतन टाटा ने पिता संग अपने रिश्तों पर भी बात की थी। 

रतन टाटा ने बताया था कि मैं वॉयलिन बजाना सीखना चाहता था। पिता कहते थे कि पियानो सीखो। मैं अमेरिका में पढ़ना चाहता था। पिता मुझे ब्रिटेन भेजना चाहते थे। मुझे आर्किटेक्ट बनना था। लेकिन पिता ज़िद करते थे कि मैं इंजीनियर ही बनूं। मगर बाद में दादी की मदद से मैं अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी पढ़ने गया। शुरू में मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था। लेकिन बाद में मैंने आर्किटेक्चर में डिग्री ली।
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