Wednesday, 7 December 2022

अब पता चला कि भारत में खाद्यान्न की उपलब्धता, भुखमरी और कुपोषण पर आंकड़े जारी करने वाली संस्थाओं और देशों के स्वयं के पास न गेहूँ है और न ही शक्कर।

हवा हवाई बकवास।
... अब पता चला कि भारत में खाद्यान्न की उपलब्धता, भुखमरी और कुपोषण पर आंकड़े जारी करने वाली संस्थाओं और देशों के स्वयं के पास न गेहूँ है और न ही शक्कर।
 न उनके देशों में उगता है न ही वे उत्पादन करते हैं और हर छह माह में बड़ी बड़ी सारणियाँ जारी कर भयंकर चौधराहट छांटते फिरते हैं।
फिर इन सारणियों पर डिसकस करने वाले एक्सपर्ट, पत्रकार, पेनालिस्ट और बड़ी बिंदी लगाकर बकवास करने वाली मोहतरमाओं को तो यह भी पता नहीं कि गेहूँ के पौधे होते हैं या पेड़?
 और ये सब भारत की जनता के बड़े हितैषी बने फिरते हैं, हीनभावना का संचार करते हैं, किसानों को भड़काते हैं और हमारी सरकारों को सदैव डराते रहते हैं कि ऐसा करो वरना ये हो जाएगा।
 कितनी अजीब विडम्बना है कि मात्र चंद बयान देकर या कुछ पन्ने रंगकर ये दुनिया में बड़े ओपिनियन मेकर्स बनकर रह रहे थे।
ये लगभग ऐसा ही था कि किसी घर के बाहर बैठे भिखारी उसी घर से रोटी खाकर पनीर कोफ्ता पर ज्ञान दें, उसी को यह सलाह दें कि तुम्हारी रसोई में क्या क्या बनना चाहिए।
अब जब भारत ने गेहूँ, शक्कर इत्यादि पर नियंत्रण किया है, इन सबकी घिग्घी बन्ध गई है। अभी तो ऐसा बहुत कुछ है जिससे भारत #दुनिया_की_पूंगी बजा सकता है।
आगामी दस वर्ष अच्छे अच्छों की पन्नी उतरने का समय है। चाहे वे इतिहासकार हों, मजहबी आका हों, डेटा अनालिसिस्ट हों या दुनिया के पंच हों।
ये मोदिया खेल पहले करता है, हँसता बहुत बाद में है। वो भी कहीं अकेले में। कभी कभी हँसता ही नहीं और खेल पूरा होने के बाद ही पता चलता है।

No comments:

Post a Comment