Thursday 16 March 2023

31 जनवरी 1948 की रात,पुणे शहर की एक गली,गली में कई लोग बाहर ही चारपाई डाल कर सो रहे थे ...

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31 जनवरी 1948 की रात,
पुणे शहर की एक गली,
गली में कई लोग बाहर ही चारपाई डाल कर सो रहे थे ...

एक चारपाई पर सो रहे आदमी को
कुछ लोग जगाते हैं और ... उससे
पूछते हैं,

कांग्रेसी अहिंसावादी आतंकवादी:
नाम क्या है तेरा...
सोते हुए जगाया हुआ व्यक्ति ...
अमुक नाम बताता है ...
(चित्पावन ब्राह्मण)

अधखुली और नींद-भरी आँखों
से वह व्यक्ति अभी न उन्हें पहचान
पाया था,न ही कुछ समझ पाया था...

कि उस पर कांग्रेस के अहिंसावादी
आतंकवादी मिटटी का तेल छिडक
कर चारपाई समेत आग लगा देते हैं l

चित्पावन ब्राहमणों को चुन चुन कर...
लक्ष्य बना कर मारा गया l
घर, मकान, दूकान, फेक्ट्री, गोदाम...
सब जला दिए गयेl

महाराष्ट्र के हजारों-लाखों ब्राह्मण
के घर-मकान-दुकाने-स्टाल फूँक
दिए गए।

हजारों ब्राह्मणों का खून बहाया गया।

ब्राह्मण स्त्रियों के साथ दुष्कर्म किये
गए,मासूम नन्हें बच्चों को अनाथ करके
सडकों पर फेंक दिया गया,साथ ही वृद्ध
हो या किशोर,सबका नाम पूछ पूछ कर
चित्पावन ब्राह्मणों को चुन चुन कर
जीवित ही भस्म किया जा रहा था...

ब्राह्मणों की आहूति से सम्पूर्ण पुणे
शहर जल रहा थाl

31 जनवरी से लेकर 3 फरवरी 1948
तक जो दंगे हुए थे पुणे शहर में उनमें
सावरकर के भाई भी घायल हुए थे।

"ब्राह्मणों... यदि जान प्यारी हो,
तो गाँव छोड़कर भाग जाओ.." -

31 जनवरी 1948 को ऐसी घोषणाएँ
पश्चिम महाराष्ट्र के कई गाँवों में की गई
थीं,जो ब्राह्मण परिवार भाग सकते थे,
भाग निकले थे।

अगले दिन 1 फरवरी 1948 को कांग्रेसियों
द्वारा हिंसा-आगज़नी-लूटपाट का ऐसा नग्न
नृत्य किया गया कि इंसानियत पानी-पानी
हो गई।

★ऐसा इसलिए किया गया,
क्योंकि "हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे"
स्वयम एक चित्पावन ब्राह्मण थे।★★

पेशवा महाराज,वासुदेव बलवंत फडके,
सावरकर,तिलक,चाफेकर,गोडसे,आप्टे
आदि सब गौरे रंग तथा नीली आँखों वाले
चित्पावन ब्राह्मणों की श्रंखला में आते हैं,
जिन्होंने धर्म के स्थापना तथा संरक्ष्ण हेतु
समय समय पर कोई न कोई आन्दोलन
चलाये रखा,फिर चाहे वो मराठा भूमि से
संचालित होकर अयोध्या तक अवध,वाराणसी,
ग्वालियर,कानपूर आदि तक क्यों न पहुंचा हो ?

★पेशवा महाराज के शौर्य तथा कुशल
राजनितिक नेतृत्व से से तो सभी परिचित
हैं,1857 की क्रांति के बाद यदि कोई पहली
सशस्त्र क्रांति हुई तो वो भी एक चित्पावन
ब्राह्मण द्वारा ही की गई,जिसका नेतृत्व
किया वासुदेव बलवंत फडके ने...
जिन्होंने एक बार तो अंग्रेजों के कब्जे
से छुडा कर सम्पूर्ण पुणे शहर को अपने
कब्जे में ही ले लिया थाl★★

उसके बाद लोकमान्य तिलक हैं,महान
क्रांतिकारी चाफेकर बन्धुओं की कीर्ति
है,फिर सावरकर हैं जिन्हें कि वसुदेव
बलवंत फडके का अवतार भी माना
जाता है।

सावरकर ने भारत में सबसे पहले
विदेशी कपड़ों की होली जलाई,लन्दन
गये तो वहां विदेशी नौकरी स्वीकार नही
की क्योंकि ब्रिटेन के राजा के अधीन शपथ
लेना उन्हें स्वीकार नही था,कुछ दिन बाद
महान क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा जी से
मिले तो उन्हें न जाने 5 मिनट में कौन सा
मन्त्र दिया कि ढींगरा जी ने तुरंत कर्जन
वायली को गोली मारकर उसके कर्मों
का फल दे दिया।

सावरकर के व्यक्तित्व को ब्रिटिश
साम्राज्य भांप चुका था,अत: उन्हें
गिरफ्तार करके भारत लाया जा
रहा था पानी के जहाज़ द्वारा जिसमे
से वो मर्सिलेस के समुद्र में कूद गये
तथा ब्रिटिश चैनल पार करने वाले
पहले भारतीय भी बने,बाद में
सावरकर को दो आजीवन
कारावास की सज़ा सुनाई गई l

यह सब इसलिए था क्यूंकि अंग्रेजों को
भय था कि कहीं लोकमान्य तिलक के
बाद वीर सावरकर कहीं तिलक के
उत्तराधिकारी न बन जाएँ,भारत की
स्वतन्त्रता हेतु।

इसी लिए शीघ्र ही अंग्रेजों के पिठलग्गु
विक्रम गोखले के चेले गांधी को भी गोखले
का उत्तराधिकारी बना कर देश की जनता
को धोखे में रखने का कार्य आरम्भ किया।

दो आजीवन कारावास की सज़ा की
पूर्णता के बाद सावरकर ने अखिल
भारत हिन्दू महासभा की राष्ट्रीय
अध्यक्षता स्वीकार की तथा हिंदुत्व
तथा राष्ट्रवाद की विचारधारा को
जन-जन तक पहुँचाया।

उसके बाद हुतात्मा पंडित नथुराम
गोडसे जी का शौर्य आता है,गोडसे
जी ने दुरात्मा मोहनदास करमचन्द
ग़ाज़ी का वध क्यों किया उससे
सम्बन्धित समस्त तथ्यों कल के
लेख में देख सकते हो।

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★★★★★★★★★★★★★★★★★★

हुतात्मा पंडित नथुराम गोडसे के छोटे
भाई गोपाल जी गोडसे भी गांधी वध में
जेल में रहे,बाहर निकल कर जब उनसे
पूछा गया तो उन्होंने पुरुषार्थ और
शालीनता के अनूठे संगम के साथ कहा:
"गाँधी जब जब पैदा होगा तब तब मारुगा"।

यह शब्द गोपाल गोडसे जी के थे जब
जेल से छुट कर आये थे।

तत्कालीन दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक की
और से किसी भी दंगापीड़ित को किसी
भी प्रकार की सहायता आदि उपलब्ध
न करवाई गई... न तन से,न मन से,
न ही धन से,
बल्कि आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर
ने तो नेहरु तथा पटेल को पत्र लिख कर यह
तक कह डाला कि हमारा हिन्दू महासभा से
कोई लेना देना नही,तथा सावरकर से भी मात्र
वैचारिक सम्बन्ध है,उससे अधिक और कुछ नही l

आरएसएस प्रमुख श्री गोलवलकर ने इससे
भी अधिक बढ़-चढ़ कर अपनी पुस्तक विचार-नवनीत में यहाँ तक लिख दिया कि नाथूराम
गोडसे मानसिक विक्षिप्त था।

अभी 25 नवम्बर 2014 को गोडसे फिल्म
का MUSIC LAUNCH का कार्यक्रम
हुआ था उसमे हिमानी सावरकर जी भी
आई थीं,जो लोग हिमानी सावरकर जी
को नही जानते,मैं उन्हें बता दूं कि वह
वीर सावरकर जी की पुत्रवधू हैं तथा
गोपाल जी गोडसे जी की पुत्री हैं,
अर्थात नथुराम गोडसे जी की
भतीजी भी हैं l

हिमानी जी ने अपने उद्बोधन में बताया
कि उनका जीवन किस प्रकार बीता,विशेष
कर बचपन...वह मात्र 10 महीने की थीं
जब गोडसे जी, करकरे जी,पाहवा जी
आदि ने गांधी वध किया।

उसके बाद पुणे दंगों की त्रासदी ने पूरे
परिवार पर चौतरफा प्रहार किया।

स्कूल में बहुत ही मुश्किल से प्रवेश मिला,
प्रवेश मिला तो ... आमतौर पर भारत में
5 वर्ष का बच्चा प्रथम कक्षा में बैठता है।

एक 5 वर्ष की बच्ची की सहेलियों के
माता-पिता अपनी बच्चियों को कहते
थे कि हिमानी गोडसे (सावरकर) से
दूर रहना... उसके पिता ने गांधी जी
की हत्या की है।

संभवत: इन 2 पंक्तियों का मर्म हम
न समझ पाएं... परन्तु बचपन बिना
सहपाठियों के भी बीते तो कैसा
बचपन रहा होगा...
मैं उसका वर्णन किन्ही शब्दों में नही
कर सकता, ऐसा असामाजिक,अशोभनीय,
अमर्यादित दुर्व्यवहार उस समय के लाखों
हिन्दू महासभाईयों के परिवारों तथा संतानों
के साथ हुआ l

आस पास के लोग... उन्हें कोई सम्मान
नही देते थे,हत्यारे परिवार जैसी संज्ञाओं
से सम्बोधित करते थे।

गांधी वध के बाद लगभग 20 वर्ष तक
एक ऐसा दौर चला कि लोगों ने हिन्दू
महासभा के कार्यकर्ता को ... या हिन्दू
महासभा के चित्पावन ब्राह्मणों को
नौकरी देना ही बंद कर दिया।

उनकी दुकानों से लोगों ने सामान लेना
बंद कर दिया l

चित्पावन भूरी आँखों वाले ब्राह्मणों
का पुणे में सामूहिक बहिष्कार कर
दिया गया था।

गोडसे जी के परिवार से जुड़े लोगो ने
50 वर्षों तक ये निर्वासन झेला।

सारे कार्य ये स्वयं किया करते थे।
एक अत्यंत ही तंग गली वाले मोहल्ले
में 50 वर्ष गुजारने वाले चितपावन
ब्राह्मणों को नमन।

अन्य राज्यों के हिन्दू महासभाईयों के
ऊपर भी विपत्तियाँ उत्पन्न की गईं...
जो बड़े व्यवसायी थे उनके पास न जाने
एक ही वर्ष में और कितने वर्षों तक
आयकर के छापे,विक्रय कर के छापे,
आदि न जाने क्या क्या डालकर उन्हें
प्रताड़ित किया गयाl

चुनावों के समय भी जो व्यवसायी,व्यापारी,
उद्योगपति आदि यदि हिन्दू महासभा के
प्रत्याशियों को चंदा देता था तो अगले दिन
वहां पर आयकर विभाग के छापे पड़ जाया
करते थे।

गांधी वध पुस्तक छापने वाले दिल्ली के
सूर्य भारती प्रकाशन के ऊपर भी न जाने
कितनी ही बार... आयकर, विक्रय कर,
आदि के छापे मार मार कर उन्हें प्रताड़ित
किया गया,ये उनका जीवट है कि वे आज
भी गांधी वध का प्रकाशन निर्विरोध कर
रहे हैं ... वे प्रसन्न हो जाते हैं जब उनके
कार्यालय में जाकर कोई उन्हें ...
"जय हिन्दू राष्ट्र" से सम्बोधित करता है l

हिन्दू महासभाईयों को उनके प्रकाशन
की पुस्तकों पर 40% छूट आज भी
प्राप्त होती हैl

आज भी हिन्दू महासभाईयों के साथ
भेदभाव जारी हैl

...और आज कई राष्ट्रवादी यह लांछन
लगाते नही थकते...
"कि हिन्दू महासभा ने आखिर
किया क्या है ?"

कई बार बताने का मन होता है ...
तो बता देते हैं कि क्या क्या किया है...

★साथ ही यह भी बता देते हैं कि
आर.एस.एस को जन्म भी दिया है।★

परन्तु कभी कभी ... परिस्थिति इतनी
दुखदायी हो जाती है कि ...
निशब्द रहना ही श्रेष्ठ लगता है।

विडम्बना है कि ... ये वही देश है...
जिसमे हिन्दू संगठन ... सावरकर
की राजनैतिक हत्या में नेहरु के
सहभागी भी बनते हैं और हिन्दू
राष्ट्रवाद की धार तथा विचारधारा
को कमजोर करते हैंl

आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि अपने
इतिहास को जानें,आवश्यक है कि अपने
पूर्वजों के इतिहास को भली भाँती पढें
और समझने का प्रयास करें....
तथा उनके द्वारा स्थापित किये गए
सिद्धांतों को जीवित रखेंl

जिस सनातन संस्कृति को जीवित
रखने के लिए और अखंड भारत की
सीमाओं की सीमाओं की रक्षा हेतु
हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य
और पराक्रम से अनेकों बार अपने
प्राणों तक की आहुति दी गयी हो,
उसे हम किस प्रकार आसानी से
भुलाते जा रहे हैं l

सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और
सुरक्षित रहेंगी ....जो सदैव संघर्षरत रहेंगे।

जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं
सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को
सुरक्षित बना पाएंगे।

जय हिंद🚩🚩

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