Monday 15 May 2023

एक थे अग्रवाल सेठ ! नगरसेठ गंगाराम अग्रवाल !

: एक थे अग्रवाल सेठ ! नगरसेठ गंगाराम अग्रवाल !

वो इतने बड़े धन्नासेठ थे कि लाहौर का हाईकोर्ट, लाहौर का सबसे बड़ा अस्पताल, लाहौर का आर्ट्स कॉलेज, लाहौर का म्यूजियम, लाहौर का सबसे बड़ा कॉलेज एचिसन कॉलेज और केवल लाहौर नहीं बल्कि पाकिस्तान में मानसिक रोगियों का सबसे बड़ा अस्पताल फाउंटेन हॉउस भी धन्नासेठ गंगाराम ने अपने धन से ही बनवाया था। उनके द्वारा बनवाए गए उपरोक्त संस्थानों का भरपूर लाभ लाहौर समेत पाकिस्तान वाले पंजाब अर्थात आधे से अधिक पाकिस्तान के नागरिक आज भी ले रहे हैं। गंगाराम तो बिचारे 1926 में ही मर गए थे। लेकिन 1947 में जब भारत विभाजित हुआ तो लाहौर के शांतिप्रिय सेक्युलर समाज ने गंगाराम को उनकी मौत के 21 बरस बाद भी बख्शा नहीं। पाकिस्तान बनते ही सेक्युलर समाज की भीड़ ने लाहौर के मॉल रोड पर लगी हुई गंगाराम की मूर्ति को घेर कर उस पर अंधाधुंध लाठियां बरसाते हुए मूर्ति को बुरी तरह क्षत विक्षत कर दिया। लेकिन उस भीड़ की गंगा जमुनी तहजीब और सेक्युलरिज्म की आग फिर भी ठंढी नहीं हुई तो उसने गंगाराम की मूर्ति पर जमकर कालिख पोती और मूर्ति को फ़टे पुराने जूतों की माला पहना कर अपने सेक्युलरिज्म की आग को भीड़ ने ठंढा किया।
1947 के धार्मिक दंगों के दौरान घटी उपरोक्त घटना का जिक्र उर्दू के मशहूर साहित्यकार सआदत हसन मंटो ने अपनी बहुचर्चित लघुकथा "गारलैंड" में कुछ इस तरह किया है... "हुजूम ने रुख़ बदला और सर गंगाराम के बुत पर पिल पड़ा। लाठीयां बरसाई गईं, ईंटें और पत्थर फेंके 
गए। एक ने मुँह पर तारकोल मल दिया। दूसरे ने 
बहुत से पुराने जूते जमा किए और उन का हार बना कर 
बुत के गले में डाल दिया। तब तक वहां पुलिस आ गई और गोलियां चलना शुरू हुईं। बुत को जूतों का हार पहनाने वाला जखम हो गया। चुनांचे मरहम 
पट्टी के लिए उसे सर गंगाराम हस्पताल भेज दिया गया।"

केवल गंगाराम ही नहीं, लाहौर में अपनी पत्नी के नाम से पाकिस्तान का सबसे बड़ा चेस्ट हॉस्पिटल, गुलाब देवी चेस्ट हॉस्पिटल बनवाने वाले लाला लाजपत राय की मूर्ति के साथ भी यही व्यवहार किया गया और उसे उखाड़ कर फेंक दिया गया। हालांकि लाला जी की मृत्यु  19 साल पहले 1926 में ही हो चुकी थी।
तथाकथित "गंगा जमुनी" तहजीब और सेक्युलरिज्म का लौंडा डांस करने वाले रविशकुमार समेत पूरी लुटियन मीडिया का कोई सेक्युलर लौंडा डांसर क्योंकि आपको धन्नासेठ गंगाराम औऱ लाला लाजपत राय जी की उपरोक्त कहानी कभी नहीं सुनाएगा बताएगा। इसलिए आवश्यक है कि इस कहानी को हम आप जन जन तक पहुंचाएं और उन्हें बताएं कि अपनी "गंगा जमुनी" तहजीब और "सेक्युलरिज्म" की भयानक आग से बंगाल को जलाकर राख करने पर उतारू शांतिप्रिय सेक्युलर नागरिक कितने अहसानफरामोश कितने कमीने, कितने कृतघ्न और कितने जहरीले होते हैं।
अंत में यह उल्लेख अवश्य कर दूं कि दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल भी लाहौर के उन्हीं धन्नासेठ गंगाराम ने ही बनवाया था।

*_रिश्तों की ऑनलाइन डिलीवरी मिलेगी ?_*
*_एक युवक को अपने पिता के साथ बैंक जाना पड़ा क्योंकि उन्हें कुछ पैसे ट्रांसफर करने थे। बैंक में जाने के बाद वहां थोड़ा समय लग गया। बैंक में जब घंटा भर बीत गया तो युवक अपने आप को रोक नहीं पाया। वह अपने पिता के पास गया और बोला: पिताजी, आप अपने अकाउंट पर इंटरनेट बैंकिंग सेवाएं क्यों नहीं शुरू करवा लेते ?_*
*_पिता ने पूछा: और मुझे ऐसा क्यों करना चाहिए ?_*
*_बेटा बोला: यदि आप ऐसा कर लेते हैं तो आपको पैसे ट्रांसफर करने जैसे कामों के लिए बैंक में घंटों नहीं बैठना पड़ेगा। इसके बाद, आप अपनी खरीदारी भी ऑनलाइन कर सकते हैं। सब कुछ बहुत आसान हो जाएगा !_*
*_बेटा अपने पिता को इंटरनेट बैंकिंग के फायदे दिखाने को लेकर बहुत उत्साहित था ।_*
*_पिता ने पूछा: अगर मैं ऐसा करता हूं, तो मुझे घर से बाहर कदम नहीं रखना पड़ेगा ?_*
*_युवक ने बड़े उत्साहित होकर कहा: हां, बिलकुल। आपको कहीं नहीं जाना पड़ेगा। आपके मोबाइल पर बटन दबाकर आर्डर देने की देर है, और आपके घर पर सामान हाज़िर होगा। बेटे ने अपने पिता को बताया कि कैसे अब किराने का सामान भी घर पर पहुंचाया जा रहा है और कैसे अमेज़न जैसी कंपनियां इंसान की ज़रूरत का हर सामन घर पहुंचा देती हैं! ये सब सुनने के बाद पिता ने जो जवाब दिया उससे बेटे की जुबान पर ताला लग गया ।_*
*_उसके पिता ने कहा: आज, जब से मैंने इस बैंक में प्रवेश किया है, मैं अपने चार दोस्तों से मिल चूका हूं। पैसे ट्रांसफर करवाने के दौरान मैंने बैंक के कर्मचारियों के साथ थोड़ी देर बात की और वो अब मुझे अच्छी तरह से जानते हैं। तुम्हारे जाने के बाद, मैं बिलकुल अकेला हूं। और मुझे इसी तरह की कंपनी की जरूरत है। मुझे तैयार होकर बैंक आना अच्छा लगता है। समय की दिक्कत तुम्हारी पीढ़ी को होगी, मेरे पास पर्याप्त समय है। मुझे चीज़ों की नहीं, मानवीय स्पर्श की ज़रूरत महसूस होती है ।_*
*_जवाब सुनकर युवक को झटका लगा ।_*
*_पिता में आगे कहा: दो साल पहले मेरी तबीयत खराब हो गई थी। जिस दुकानदार से मैं फल ख़रीदता हूँ,_ _उसे पता चला तो वह मुझसे मिलने आया और मेरे हालचाल पूछ कर गया। तुम्हारी माँ कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक के दौरान गिर पड़ी थी। तो जिस व्यक्ति से मैं किराने का सामान लेता हूँ उसने देखा तो वह तुरंत अपनी कार में तुम्हारी मां को घर छोड़कर गया। तो बेटा, अगर मैं सब कुछ ऑनलाइन लूंगा, तो क्या मेरे पास इस तरह का 'मानवीय' स्पर्श होगा ?_*_ 
*_बेटा कुछ बोलता इससे पहले पिता ने कहा: मैं नहीं चाहता कि सब कुछ मुझ तक पहुंचाया जाए और इसके लिए मैं अपने आप को सिर्फ बेज़ुबान, बिना भावनाओं वाले कंप्यूटर से बातचीत करने के लिए सीमित और मजबूर कर लूँ ।_* *_जिससे मैं कुछ खरीदता हूँ, वो मेरे लिए सिर्फ एक 'विक्रेता' नहीं, उससे मेरे मानवीय संबंध बनते हैं। और ये रिश्ते ही हमें इंसान बनाते हैं, हमारी मानवीय ज़रूरतों को पूरा करते हैं, हमें ज़िंदा महसूस करवाते हैं ।_*
*_अंत में पिता ने पूछा: क्या कोई कंपनी रिश्ते भी ऑनलाइन डिलीवर करती है ?_*
*_तो बात का सार ये है कि टेक्नोलॉजी से ज़िंदगी सुविधाजनक तो की जा सकती है_ _लेकिन उसके सहारे गुजारी नहीं जा सकती। इंसान सामाजिक प्राणी है ।_ _उपकरणों के साथ कम और लोगों के साथ अधिक समय बिताएं ।_*

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