Monday 7 October 2024

मौन* की विशेषता है एक कवि ने क्या खूब वर्णन किया है।तू मौन रह तू मौन रह, तू मौन रह तू मौन रह…

*मौन* की विशेषता है एक कवि ने क्या खूब वर्णन किया है।
तू मौन रह तू मौन रह, तू मौन रह तू मौन रह…

मौन का ये अर्थ है कि शब्द सारे व्यर्थ हैं,
वेद सारे लील जाए, मौन यूँ समर्थ है।
चीख़ चीख़ शब्द उड़ें, शांत स्मित मौन है,
मौन की ही मार से शब्द सब स्तब्ध हैं।
शब्द सीमित हैं मगर, मौन तो विस्तार है,
श्रम ही श्रम है शब्द में, मौन में विश्राम है।
मौन में ही शक्ति है, मौन में ही भक्ति है,
ध्यान में भी मौन है, मौन में विरक्ति है।
प्रेम और करुणा के भाव सारे मौन हैं,
शांत रह तू मौन रह, शोर में आसक्ति है।

क्रोध में तो शोर है, विध्वंस में भी शोर है,
मन के विष में शोर है, तृष्णा में भी शोर है,
लालसा में शोर-शोर, वासना में शोर है,
डमरू डोले शिव का तो तांडव में शोर है,
खुल गया त्रिनेत्र तो संहार में भी शोर है।
गूढ़ जितने तत्व हैं, सब के सब वो मौन हैं,
चीखता है दर्प ही, विनय तो बस मौन है,
चीख़ है बलात् हठ में, समर्पण तो मौन है,
झूठ के हैं लाखों शब्द, सत्य शाश्वत मौन है,
शोर से निकल के रह, तू मौन रह तू मौन रह।

सूर्य चन्द्र मौन हैं, आकाश सारा मौन है,
धैर्य जो धारण करे यह धरा भी मौन है।
शब्द क्या पढ़े, जो मौन ही ना पढ़ सका,
पार्थ हो या बुद्ध हों, ज्ञान मौन में खिला,
मौन में ही प्रश्न था, मौन में उत्तर मिला।
मौन रह के हिम गला, मौन ही गंगा बही,
ज्ञान कृष्ण का लिये, मौन ही गीता चली।
मंदिर-मस्जिद शोर, शोर अर्चना-अज़ान हैं,
पथ दिखाती प्रेम का लौ दीये की मौन है,
मन की वीणा से झरे संगीत सारे मौन हैं।

मंजिलें तो शांत मौन, रास्ते भी मौन हैं,
क़िस्से हज़ार मगर, कहने वाला मौन है।
मौन मील की शिला, जो न पूछे क्यों चला,
मौन धूल का वो फूल, जो न जाने क्यों खिला,
दुख ना कर क्या गया, सुख ना कर क्या मिला।
हाँ, प्रश्न हैं डगर डगर, लड़ना है समर समर,
मौन रह प्रहार सह, मौन ही प्रतिकार कर,
भूल जा अगर मगर, सोच तुझको क्या है डर?
यात्रा ये मौन की है, अंत जिसका मौन है,
तू पथिक है चलता रह, मौन निर्झर सा तू बह।

तू मौन रह तू मौन रह, तू मौन रह तू मौन रह…🙏

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