Saturday 1 July 2023

सदा जपिये हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ll हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ll और हमेशा खुश एवं स्वस्थ रहिए 🙏🙏जय श्री राधे राधे🙏🙏 जय श्री कृष्णा🙏🙏 सभी भक्तों के श्री चरण कमलों में कृष्ण दास का दंडवत प्रणाम.




🙏सदा मुस्कराते रहो 🙏

सदा जपिये हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ll हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ll और हमेशा खुश एवं स्वस्थ रहिए 🙏🙏
जय श्री राधे राधे🙏🙏 जय श्री कृष्णा🙏🙏 सभी भक्तों के श्री चरण कमलों में कृष्ण दास का दंडवत प्रणाम.

यशोमती-नन्दन, व्रज-वर-नागर, 
गोकुल-रंजन कान। 
गोपी-पराण-धन, मदन-मनोहर, 
कालिय-दमन-विधान॥1॥
अमल हरिनाम अमिय-विलास 
विपिन-पुरन्दर, नवीन नागर-वर, 
वंशी वदन सुवास॥2॥
ब्रज-जन-पालन, असूर-कुल-नाशन, 
नन्द-गोधन-रखवाला। 
गोविन्द माधव, नवनीत-तस्कर, 
सुन्दर नन्द-गोपाला॥3॥
यामुना-तट-चर, गोपी-वसन-हर 
रास-रसिक, कृपामय। 
श्रीराधा-वल्लभ, वृन्दावन-नटवर, 
भकतिविनोद आश्रय॥4॥

 Meaning

(1) भगवान्‌ कृष्ण मैया यशोदा के अत्यन्त प्रिय पुत्र हैं, ब्रजभूमि के दिवय प्रेमी हैं, गोकुल-वासियों को आकर्षित करने वाले कान्हा हैं, गोपियों के प्राणधन हैं, मदन (कामदेव) का मन हरने वाले तथा कलियनाग का दमन करने वाले हैं। 
(2) हरि के दोषरहित पवित्र नाम का उच्चारण या गायन, अत्यधिक अमृत आनन्द प्रदान करने वाली, मेरी ली है। भगवान्‌ कृष्ण, वृन्दावन के द्वादश वनों के अधिपति, उन वनों में विचरण करते हैं। उनके सौन्दर्य में सदैव अति नवीनता रहती है। वे मुरली बजाते हैं तथा अति सुन्दर वस्त्र पहनते हैं। 
(3) कृष्ण व्रजवासियों के पालन कर्त्ता तथा सम्पूर्ण असुर वंश का नाश करने वाले हैं, कृष्ण नन्द महाराज की गायों की रखवाली करने वाले तथा लक्ष्मी-पति हैं, माखन-चोर हैं, तथा नन्द महाराज के सुन्दर, आकर्षक गोपाल हैं। 
(4) कृष्ण यमुना तट पर विचरने वाले तथा गोपियों का चीर हरण करने वाले हैं। कृष्ण को अपने भक्तों से प्रेमलाप करना अति रुचिकर है। कृष्ण कृपामय हैं, राधारानी के प्रेमी हैं, वृन्दावन में सबसे कुशल नर्तक हैं तथा भक्तिविनोद ठाकुर जी के आश्रय हैं।

🙏सदा मुस्कराते रहो 🙏जय श्री राधे राधे 🙏🙏जय श्री कृष्णा 😘😘
*निष्काम भक्ति*  🌹🌹

गोपियां कहती हैं यदि मेरे लिए ठाकुर को थोड़ा सा भी श्रम उठाना पड़े तो हमारी भक्ति व्यर्थ है।

   इसीलिए भगवान से कुछ ना मांगो। ना मांगने से भगवान तुम्हारे ऋणी होंगे। गोपियों ने भगवान से कुछ नहीं मांगा था। उनकी भक्ति सर्वदा निष्काम रही है।

गोपी गीत मे भी वे भगवान से कहती हैं--" हम तो आपकी निशुल्क क्षुद्र दासियां हैं,  अर्थात निष्काम भाव से सेवा करने वाली दासियां हैं।"

इसी तरह कुरुक्षेत्र में जब गोपियां कन्हैया से मिलती हैं तो वहां भी कुछ नहीं मांगती। वे तो केवल इतनी इच्छा करती है कि संसार रूपी कुएं में गिरे हुए को उसमें से बाहर निकलने के लिए अवलंबन रूप में आपके चरण कमल हमारे हृदय में सदा बसे रहें।

    एक सखी उद्धव से पूछती है कि--" तुम किस का संदेश लेकर आए हो?   कृष्ण का?  वह तो यहां पर उपस्थित हैं।"

   लोग कहते हैं कृष्ण मथुरा गए हुए हैं। यह बात गलत है। मेरे ठाकुर जी हमेशा मेरे साथ ही हैं। उनके साथ हमारा 24 घंटों का सहयोग है।

गोपियों का प्रेम शुद्ध है। मैं जब भी भगवान का स्मरण करती हैं तो ठाकुर जी को प्रकट होना पड़ता ही है। गोपियों की निष्काम भक्ति में इतनी शक्ति है।

भगवान उद्धव से कहते हैं--" उद्धव मेरी गोपियां मुझ में तन्मय चित्र वाली हैं। गोपियों का आदर्श आंख के सामने रखो, और भगवान की भक्ति करो।

   सुदामा की निष्काम भक्ति को याद कर प्रभु की भक्ति करो। सुदामा की भक्ति भी निष्काम थी। 

तुम अपना सर्वस्व भगवान को अर्पण करो। ऐसा करने पर भगवान भी अपना सर्वस्व हमें देंगे।

   निष्काम भक्ति ही भगवान का विषय है।

निष्काम भक्ति ही श्रेष्ठ है। निष्काम भक्ति का श्रेष्ठ उदाहरण है -कान्हा के प्रति गोपियों की ममता।

गोपियां तो मुक्ति को की भी इच्छा नहीं रखती थी। कांहा का सुख ही अपना सुख है ऐसा गोपियां मानती थी।
  एक सखी ने उद्धव से कहा कि--" कृष्ण के वियोग में हमारी कैसी दशा है यह तो आपने देख ही लिया है। मथुरा जाकर कृष्ण से कहना कि यदि वे मथुरा में सुख  से रहते हैं तो उन्हें ब्रज आने की कोई जरूरत नहीं है। हम तो उन्हें खुश ही देखना चाहती हैं।

🌹जय राधे कृष्ण🌹

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*क्यों नही होती श्री बाँके बिहारी जी की मंगला आरती????*

*✍️एक बार कलकत्ता से बूढ़े ब्राह्मण श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए वृंदावन आये तो प्रभु से मिलने के बाद वहीं के हो गए।* 

*✍️उन्होंने मंदिर के गोस्वामी जी से सेवा मांगी तो स्वामी जी ने कहा - बाबा! इस उम्र में आप क्या सेवा कर पाओगे?*

*✍️बाबा ने बहुत विनती की तो स्वामी जी ने श्री बिहारी जी की चौखट पर रात की चौकीदारी की सेवा लगा दी और कहा - बाबा! आपको यह ध्यान रखना है कि कोई चोर चकुटा मंदिर में प्रवेश न कर पाए।*

*बाबा ने  बड़े भाव से सेवा स्वीकार की।*

*कई वर्ष बीत गये सेवा करते हुए।*

*✍️एक बार क्या देखते हैं कि बिहारी जी आधी रात को चल दिये सेवाकुंज की ओर, तो बाबा भी चल दिए उनके पीछे पीछे! सेवाकुंज के नजदीक पहुंचने पर बिहारी जी थक गए। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो बाबा भी उनके पीछे थे।* 

*उन्होंने बाबा से कहा कि, मैं बहुत थक गया हूँ आप मुझे सेवाकुंज तक तो पहुंचा दो।*

*बाबा श्री बांके बिहारी जी को अपने कंधों पर बैठाकर सेवाकुंज की चौखट पर ले गए।*

*प्रभु ने बाबा से कहा - मुझे यहीं उतार दो और मेरा इंतजार करो।*

*✍️बाबा के मन में आया कि प्रभु इतनी रात में सेवाकुंज में क्या करने आयें हैं? जानने की इच्छा से उन्होंने आले से झांक कर देखा तो उन्हें दिव्य प्रकाश नज़र आया। उस प्रकाश में उन्होंने श्री बिहारी जी को श्री राधा जी संग रास करते हुए देखा। बाबा की हालत पागलों जैसी हो गई और गिर कर बेहोश हो गए।*

*✍️सुबह बिहारी जी ने बाबा को पुकारा और बाबा से कहा - बाबा! मुझे मंदिर तक नहीं ले जाओगे।*

*बाबा ने बिहारी जी को सुबह चार बजे मंदिर में पहुंचाया और गोस्वामी जी से सारा वृत्तांत कहा।*

*✍️गोस्वामी जी मंगला आरती के लिए बिहारी जी को उठाने लगे तो बाबा ने उनके पांव पकड़ लिये और कहने लगे - मेरे गोविन्द अभी तो सोयें हैं!*

*✍️कहते हैं कि उसी दिन से साल में जन्माष्टमी को छोड़कर कभी भी श्री बांके बिहारी जी की मंगला आरती नहीं हुई और उसी दिन ही श्री बिहारी जी ने उस बाबा को अपने सेवाधाम में बुला लिया..!!*
   *🙏🏼🙏🙏🏿जय जय श्री राधे*🙏🏾🙏🏻🙏🏽


(((( धनि धनि श्रीवृन्दावन धाम ))))
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एक बार प्रयाग राज का कुम्भ योग था। चारों ओर से लोग प्रयाग-तीर्थ जाने के लिये उत्सुक हो रहे थे।

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श्रीनन्द महाराज तथा उनके गोष्ठ के भाई-बन्धु भी परस्पर परामर्श करने लगे कि हम भी चलकर प्रयाग-राज में स्नान-दान-पुण्य कर आवें ।
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किन्तु कन्हैया को यह कब मंज़ूर था। 
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प्रातः काल का समय था , श्रीनन्द बाबा वृद्ध गोपों के साथ अपनी बैठक के बाहर बैठे थे कि तभी सामने से एक भयानक काले रंग का घोड़ा सरपट भागता हुआ आया। 
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भयभीत हो उठे सब कि कंस का भेजा हुआ कोई असुर आ रहा है।
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वह घोड़ा आया और ज्ञान-गुदड़ी वाले स्थल की कोमल-कोमल रज में लोट-पोट होने लगा। 
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सबके देखते-देखते उसका रंग बदल गया, काले से गोरा, अति मनोहर रूपवान हो गया वह। 
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श्रीनन्दबाबा सब आश्चर्यचकित हो उठे। वह घोड़ा सबके सामने मस्तक झुका कर प्रणाम करने लगा। 
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श्रीनन्दमहाराज ने पूछा-' कौन है भाई तू ? कैसे आया और काले से गोरा कैसे हो गया ?
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वह घोड़ा एक सुन्दर रूपवान विभूषित महापुरुष रूप में प्रकट हो हाथ जाड़ कर बोला- हे ब्रजराज! मैं प्रयागराज हूँ। 
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विश्व के अच्छे बुरे सब लोग आकर मुझमें स्नान करते हैं और अपने पापों को मुझमें त्याग कर जाते हैं, जिससे मेरा रंग काला पड़ जाता है। 
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अतः मैं हर कुम्भ से पहले यहाँ श्रीवृन्दावन आकर इस परम पावन स्थल की धूलि में अभिषेक प्राप्त करता हूँ। मेरे समस्त पाप दूर हो जाते हैं। 
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निर्मल-शुद्ध होकर मैं यहाँ से आप ब्रजवासियों को प्रणाम कर चला जाता हूँ। अब मेरा प्रणाम स्वीकार करें।
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इतना कहते ही वहाँ न घोड़ा था न सुन्दर पुरुष। 
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श्रीकृष्ण बोले- बाबा! क्या विचार कर रहे हो? प्रयाग चलने का किस दिन मुहूर्त है ?
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नन्दबाबा और सब व्रजवासी एक स्वर में बोल उठे- अब कौन जायेगा प्रयागराज? प्रयागराज हमारे ब्रज की रज में स्नान कर पवित्र होता है, फिर हमारे लिये वहाँ क्या धरा है ? 
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सबने अपनी यात्रा स्थगित कर दी। ऐसी महिमा है श्रीब्रज रज व श्रीधाम वृन्दावन की।
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धनि धनि श्रीवृन्दावन धाम॥
जाकी महिमा बेद बखानत,
सब बिधि पूरण काम॥
आश करत हैं जाकी रज की,
ब्रह्मादिक सुर ग्राम॥
लाडिलीलाल जहाँ नित विहरत,
रतिपति छबि अभिराम॥
रसिकनको जीवन धन कहियत,
मंगल आठों याम॥
नारायण बिन कृपा जुगलवर,
छिन न मिलै विश्राम॥

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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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श्री गीताप्रेस सत्संग:
"""""""""" *श्री हरि:*""""""""
*{{8:54 मिनट का सत्संग}}*
*🙏आप भगवान के हो जाओ तो "दुनिया मात्र को" निहाल कर दोगे!🙏*
           *🏵️आप एक भगवान के हो जाओ,तो आपको देख कर लोग खुश होंगे!आपके द्वारा इतना उपकार होगा,जितना लखपति करोड़पति इतना उपकार नहीं कर सकते!*
           *एक आप भगवान के हो जाओ तो निहाल हो जाओ, और दुनिया मात्र को निहाल करने वालें बन जाओ और खर्चा कुछ लगे नहीं आपका! करना कुछ पड़ेगा नहीं! एक भगवान के हो जाओ बस!🏵️*

*🌻शांति चाहते हो आनन्द , सुख चाहते हो तो चौड़े पड़ा है माल :------*
           🙏"""👇"""🙏
  *""हे नाथ! मैं आपका हूं"!* 
      *आप अपनी तरफ से भगवान के हो जाओ, फिर  कहो कि महाराज  "आप कृपा करो"! आपका विश्वास,श्रद्धा दो!भगवान देने को तैयार है!*
         *हम सब भगवान के बालक हैं!हम भूल गए, भगवान थोडेही भूल जाएंगे! तो अपनापन से भगवान प्यार करेंगे! किसी गुण से नहीं! "हे नाथ! मैं आपका हूं" भगवान खुश हो जाएंगे! संसार में कोई ऐसा नहीं!🌻*
   *🌺केवल भगवान अपने हैं!दूसरो का भरोसा करके देख लिया इतने जन्मों में! कईयों का भरोसा किया, कुछ काम नहीं हुआ*
*एक भगवान के भरोसे हो जाओ,बस!*  *"रामजी को राख भरोसो भाई रे,जो कोई राखे राम भरो सो, कमी न राखे काई रे'!*
        *केवल विश्वास, भरोसा !जीव मात्र में सहारा लेने की एक भूख है!भगवान को भूल गए, अब जगह जगह सहारा लो! एक भगवान का लेलो! मौज हो जाएगी,सदा के लिए! असली जगह आ गए!संसार क्या निहाल करेगा?🌺*
      *🏵️भाव के भूखे है भगवान! प्रेम के भूखे है!* *प्रेम करो भगवान को बहुत प्यारा लगेगा!भक्त का भक्ति  पूर्वक बुलाने पर, कोई कैसा ही नीच हो?भक्ति होगी तो भगवान आ जाएगे घर पर! भगवान सेवा करेंगे,भगवान को सेवा करने में आनन्द आएगा!खुश हो जाएंगे!*
       
      *भगवान को मां- बाप,भाई नहीं मिलता!जो कोई बन जाय तो भगवान बहुत राजी हो जाय, भगवान के कमी की पूर्ति हो जाय! वो प्रभु हमारे हैं!*
        *भगवान के चरणों की शरण चले जाओ , असंतोष रह ही नहीं सकता!*🏵️

         *🌹भगवान के सेवा की भूख नहीं है!  वे सब तरह से पूर्ण है!वो  कृपा करके राजी होते हैं! भक्त का पालन करके राजी होते हैं!भगवान के वस्तु की गरज नहीं है!भाव की गरज है!*
    *"मेरे तो गिरधर गोपाल"ये भाव!"सो प्रिय जाके गति न आन की"!*
    *किसी के बहम हो कि मेरे को "गुरु नहीं मिले",अच्छे "संत नहीं मिले",अच्छा "संग नहीं मिला",शरीर "ठीक नहीं"है!ये सब बेठीक ही है! एक भगवान ठीक है!निहाल हो जाओगे!"वो हमारे हैं"!🌹*
  
*[{परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के मुखारविंद से"निहाल करने वाली बात"का सत्संग}]*
        नारायण!नारायण!

राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

प्रवचन दिनांक 8 अक्टूबर 1993 प्रातः 5:00 बजे ।

*विषय - समता, प्रेम, ज्ञान ।* 

प्रवचन के कुछ भाव, इस प्रवचन का ऑडियो कल रात्रि भिजवाया गया था । इन भावों को समझने के लिए इस प्रवचन को जरूर सुनना चाहिए ।

*हमारे परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी की वाणी बहुत विलक्षण है, दिव्य (परम वचन) है । श्री* *स्वामी जी महाराज जी की वाणी सुनने से हृदय में प्रकाश आता है, इसलिए* *प्रतिदिन जरूर सुननी चाहिए* ।

परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज जी कह रहे हैं कि कर्मयोग का स्वरूप समत्वं  योग उच्यते कहा । ऐसी भगवान् ने योग की परिभाषा दी । योग में केवल समता, समता वाला कोई नहीं है । पहले समता वाला होता है, फिर मैं साम्यवस्था में स्थित हो जाऊं ऐसा, फिर केवल समता ही रह जाता है । ज्ञान में केवल ज्ञान मात्र, जानने वाला कोई नहीं रहता । ऐसे भक्ति में भगवान् में स्थित हो जाए, फिर प्रेम होने के बाद केवल प्रेम रह जाता है, प्रेमी नहीं रहता है । प्रेम रहता है केवल । इन तीनों का भेद नहीं रहता है । एक परमात्म तत्त्व रह जाता है । उसको योगी लोग योग कहते हैं । ज्ञानी उसे ज्ञान कहते हैं । भक्त उसे प्रेम कहते हैं । उस प्रेम की वृद्धि के लिए एक से दो हो जाते हैं । भगवान् और श्री जी दो हो जाते हैं । इसमें एक हो कर दो हो जाते हैं । प्रेम में क्या होता है ? भगवान्   की प्रसन्नता से श्री जी की प्रसन्नता होती है । श्री जी की प्रसन्नता से भगवान् की प्रसन्नता होती है,  फिर भगवान् की प्रसन्नता से श्री जी की प्रसन्नता होती है । ऐसे श्री जी की प्रसन्नता से भगवान् की प्रसन्नता होती है । ऐसे वो प्रतिक्षण बढ़ती रहती है, अनंत काल तक । *वासुदेव: सर्वम्* । यहां भक्त और भगवान् दो नहीं रहते । ऐसे ज्ञानी और ज्ञान दो नहीं रहते । ऐसे योग में योगी और समता दो नहीं होते । करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहता । उसकी (परमात्म प्रेम) प्राप्ति नहीं करता, जब तक मनुष्य शरीर की सफलता पूरी नहीं होती । ब्रह्मलोक तक वापस आना पड़ता है और भगवान् कहते  हैं - मेरी प्राप्ति के बाद फिर पुनर्जन्म नहीं होता ।

भेद साधना में होता है, उस तत्व में सब एक हो जाते हैं । वहां मन, वाणी, बुद्धि नहीं पहुंचती है । वहां न स्वप्न है,  न जागृत है, न सुषुप्ति है ।  वहां कुछ कहना नहीं बनता । वो स्थिति सबको प्राप्त हो सकती है । भागवत में साफ कहा है - मनुष्य के कल्याण के लिए मैंने तीन योग बताएं हैं - कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग । जो संसार में आसक्त हैं, उनके लिए कर्मयोग है । जिनकी संसार में आसक्ति नहीं है, विरक्त हैं,  उनके लिए ज्ञानयोग है और जिनके संसार में न ज्यादा आसक्ति है, न ज्यादा विरक्तता है, उनके लिए भक्तियोग है ।  एक जानने की शक्ति है, एक मानने की शक्ति है, एक करने की शक्ति है । मानने की शक्ति परिवार में लगा दी । कुटुंब मेरा है । ज्ञान की शक्ति विद्या पढ़ने में लगा दी । अनंत शास्त्र हैं । उम्र थोड़ी है । इस वास्ते सार सार ले लेना है । उम्र भर पढ़ो तो संस्कृत व्याकरण का अंत नहीं आता । पढ़ते ही जाओ । निष्काम भाव हो, सेवा भाव हो, रुचि भी हो, वह कर्मयोग का अधिकारी है । इस वास्ते मनुष्य को चुनना चाहिए कि मैं किस योग का अधिकारी हूं । एक और बात - सुन सुन कर के चल देता है, तो निर्णय नहीं कर पाता कि वास्तव में मैं क्या चाहता हूं ? गंगा गए गंगादास । जमुना गए जमुनादास । शांति चाहते हैं तो अशांति का काम नहीं कर सकता । ज्ञान चाहते हैं तो अज्ञान का काम नहीं करेगा । भक्त भक्ति के विरूद्ध काम नहीं करेगा । 
कुछ नहीं चाहिए तो भगवान् की भक्ति करो । सब कुछ चाहिए तो भगवान् की भक्ति करो । कह हमें तो मुक्ति चाहिए, तो भगवान् की भक्ति करो । कैसा बढ़िया बात है ।
छोटे बच्चों को भगवान् राम की चित्रावली है, कृष्ण जी की चित्रावली है - जो गीता प्रेस से छपती हैं, वह दिखाओ । अपने घरों में पढ़ाओ । स्कूलों में महान कुसंग है, पतन है । 
दृश्य का असर ज्यादा है । जैसे महाभारत दिखाया है, उसमें विज्ञापन भर देते हैं, गाने भर देते हैं । तो आदमी बह जाता है । विधि पूर्वक नहीं है । संस्कृत पूरी नहीं जानते हैं । माता - बहनों को दीखाते हैं, तो वस्त्र पूरा नहीं दिखाते हैं । तो यह शास्त्र के विरुद्ध, मर्यादा विरुद्ध है । आजकल का संस्कार भर दिया । बोलने वाले जानते नहीं । सीता जी की चूड़ामणि नहीं जानते । अगर महाभारत में जैसी घटना है, उसे ठीक तरह से दिखाया जाए तो पढ़ने से ज्यादा असर पड़े । आजकल गुरु की भरमार है । गुरु मान, भेंट पूजा चाहते हैं । वो धन चाहते हैं, धन उनका इष्ट है और धन है आपके पास । तो वह पोता चेला हो गया । मान, बड़ाई,  सत्कार चाहता है, वह गुरु कैसे होगा ? गुरु होता है, जो केवल आपका कल्याण चाहता है । बनावटी गुरु से कल्याण कैसे होगा ? अपनी असली कल्याण की जिज्ञासा बढ़ाओ कि परमात्मा कैसे मिलें ? तो

परमात्मा मिल जायेंगे, गुरु मिल जायेंगे। असली गुरु को भी आप ही मानोगे, तो खुद ही तो गुरु हैं । तो क्या करें ? अपने जहां से मिले वहां से ले लो । कल्याण हो जाए ।
कल्याण चाहने वाला असली समाज सेवा कर सकता है । मान, बड़ाई चाहता है वह असली समाज सेवा नहीं कर सकता । असली कल्याण चाहने वाला सेवा करता है । स्वार्थ क्या है ? परमार्थ क्या है ? जानता ही नहीं । नाशवान का महत्व है, वह सेवा कैसे करेगा ? मान बड़ाई के लिए करेगा । 
प्रश्न - राम को माने कि कृष्ण को माने ?
स्वामी जी - पांच ईश्वर कोटि के देवता हैं । राम, कृष्ण, गोरी, शंकर, गणेश (सूर्य) इनमें से किसी भी एक में लग जाओ । कल्याण में एक बात और एक राम-राम में लग जाओ । खाते पीते राम-राम । रात दिन करके देखो, विलक्षणता आ जाएगी । क्या चाहते हो पता चल जाएगा ! गुरु मिल जाएगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!!

👏👏

*आईये गहराई से समझें आयुर्वेद को..!*

*Ayurved at a glance...!*

*ऐलोपैथी में देखा होगा डॉक्टर कहते है ये ये गोली इस इस समय लेना।*

*फिर आप पूछते हो कोई परहेज, तो 99% डॉक्टर कहते हैं सब खाओ।*

*पर जब आप वैद्य ( नेचुरोपेथी ) के पास जाते हो तो वो औषधि के साथ साथ ढेर सारी निषेधाज्ञा ( परहेज- प्रिकोसन ) भी दे देता है।*

*यह लो वह न लो,*
*वह तब लेना,*
*खाने के पहले लेना,*
*खाने के बाद लेना।*

*यह अंतर क्यों.?*

*क्योंकि वैद्य खाई हुई चीजों के प्रभाव को गहराई से समझता है।*

*वैद्य आपको भोजन के साथ फल लेने को मना करेगा। क्यों ?*

*क्योंकि वैद्य को पता है कि पेट में भोजन को एसिड पचाता है और फल बेसिक ( अल्कलिक- क्षारीय ) होते हैं।*

*यदि भोजन के साथ फल लोगे तो फलों का बेस पेट के एसिड से लड़ जायेगा और भोजन पचेगा नहीं सड़ेगा।*

*आप कहोगे अजीब पागल है, भोजन न हो तो फल खाके पेट भरते हैं लोग, फल कैसे मना कर सकता है कोई।*

*तो यह सत्य है कि भोजन न मिलने पर भुख लगने पर फल खा कर क्षुदा ( भुख ) मिटाई जा सकती है।*

*पर भोजन के साथ फल लेना मूर्खता है।*

*मात्र केला भोजन के साथ ले सकते हैं शेष कोई फल नहीं।*
*क्यों.? क्योंकि फल का क्षार पेट के एसिड को मार देगा तो भोजन गलेगा, पचेगा कैसे.?*

*और जब भूंख लगने पर मात्र फल ले रहे हो तब ?*

*तब फलों का बेस पेट के एसिड को नही मारेगा क्या ?*

*हाँ फलों का रस पेट के एसिड को मार देगा और फिर भी फल पच जाएंगे क्योंकि फलों में पचाने को कुछ होता ही नहीं है ये पहले ही पचे पचाये होते हैं।*

*समझे श्रीमान*

*इनको छोटे कणों में तोड़ने को कोई एसिड की आवश्यकता नहीं।*

*भोजन जब पचता है तो उससे रस बनता है जो देह निर्माण में लगता है और भोजन जब अग्नि (एसिड) की कमी से सड़ता है तो उससे वायु बनती है और आम बनती है जो जोड़ों में फसकर रोग बनाती है।*

*तो वैद्य भोजन के साथ फल निषेध कराकर आम बनना और वायु बनना रोकता है।*

*तो समझ गए मात्र फल खाने हों तो भोजन के रूप में तो खा सकते हो पर भोजन के साथ खाये तो गड़बड़ है।*

*रसीले फल नहीं लेने भोजन के साथ।*

*मेरा निजी अनुभव है भोजन के बाद अंगूर खाता था तो वायु बनती थी।*

*एक दो आम या केला खाओगे तो नहीं बनेगी।*

*तरबूज में सबसे अधिक रस होता है। इसे भोजन के साथ लोगे तो राम ही मालिक है आपका।*

*मुझे इस फल से बड़ा डर लगता है।*

*भोजन के तीन घण्टे बाद तरबूज खाओ तो उत्तम, क्षारीय है अतः आपके रक्त में भरे एसिड को नष्ट करता है,जिससे आंतरिक ठंडक आती है।*

*तो वैद्य क्यों मना कर रहा है ?*

*जिससे आपके उदर का एसिड व्यर्थ नष्ट न हो, वायु न बढ़े।*

*आपको वायु जनित रोग हो रखा है और आप इस प्रकार से वायु बनाये जा रहे हो तो दी गयी औषधि कहाँ लाभ दिखा पायेगी।*

*औषधि प्रभाव डालेगी, पर गलत आहार से बढ़े दोष से व्यर्थ हो जायेगी।जितनी वायु औषधि से कम होगी उतनी गलत आहार से बन जायेगी।*

*फिर कहोगे हमें तो कोई लाभ नहीं हुआ।*

*एक और उदाहरण लो*

*मैंने बताया कि गिलोय का काढ़ा बीपी कम करता है,और बताया प्रातः और सांय लेना खाली पेट ही लेना।*

*पर आप लेने लगे भोजन के पहले या बाद तो क्या होगा?*

*गिलोय कफ भी कम करती है और पित्त यानि एसिड भी कम करती है।*

*पेट में भोजन एसिड पचाता है अगर गिलोय भोजन के साथ लोगे तो गिलोय पेट के एसिड को नष्ट कर देगी फिर भोजन कौन पचायेगा।*

*तब भोजन पचेगा नहीं सड़ेगा। सड़ेगा तो वायु बनेगी गन्दा रस बनेगा और गिलोय प्रातः खाली पेट लोगे तो - तब उसका रस रक्त से पित्त यानि एसिड हटा कर आपका बीपी कम कर देगा।*
*कफ बढ़ा हुआ है तो उसे भी कम कर देगा जिससे जुकाम आदि नहीं रहेगा।*

*ज्वर रक्त में पित्त या कफ बढ़े होने से होते हैं और गिलोय दोनों को कम कर देती है इसलिए गिलोय ज्वर में लाभ देती है, थोड़ी मात्रा बढ़ानी होगी बस।*

*यही गिलोय भोजन के साथ लोगे तो पाचन बिगाड़ के कोई लाभ न देगी।*

*तो आयुर्वेद में क्या, कब, कितना लेना है, क्या नहीं लेना है, यह बड़ा महत्वपूर्ण है।*

*ऐलोपैथी वाले जानते ही नही कि वात, पित्त, कफ कुछ होता है अतः वो इस विषय पर कुछ बोल ही नहीं पाते अतः कहते है सब खाओ।*

*अगले को जुकाम हो रखा है और डॉक्टर ने बोला है सब खाओ तो वो सब खा रहा है और दोनों टाइम दही और चावल पेले जा रहा है और गोली खाके भी उसका जुकाम नहीं जा रहा।*

*ठीक कहाँ से होगा पहले विरुद्ध आहार तो बन्द करो।*

*पहले के डॉक्टर आयुर्वेद का कहना मानने वाले लोगों के बच्चे थे।*

*अतः उनमे थोड़ी आयुर्वेदिक बुद्धि थी कि यह खाना है, यह नही।*

*अब के डॉक्टर उन लोगों के बच्चे हैं जो आयुर्वेद के निर्देशों से बहुत दूर के माँ बाप से बने है अतः आज के डॉक्टर खाने में कोई परहेज बताते ही नही  क्योंकि उन्हें खुद नहीं पता कि क्या कब खाना है कब नही।*

*तो मित्रों ये हैं प्रकृति के प्राकृतिक सिद्धांत.!*

    *🪷🪷।। शुभ वंदन ।।🪷🪷*

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
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