Friday 6 September 2024

पाँच तोला अफीम की पुड़िया जेब में रखी। रामपुर नरेश को एक पत्र उर्दू में लिखा और नरेश जब थिएटर में जा रहे थे तब अलाउद्दीन ख़ाँ उनके मोटरगाड़ी के सामने लेट गये। नवाब ने उनको बुलाया। उन्होंने पत्र दिया। पत्र में लिखा था,

पाँच तोला अफीम की पुड़िया जेब में रखी। रामपुर नरेश को एक पत्र उर्दू में लिखा और नरेश जब थिएटर में जा रहे थे तब अलाउद्दीन ख़ाँ उनके मोटरगाड़ी के सामने लेट गये। नवाब ने उनको बुलाया। उन्होंने पत्र दिया। पत्र में लिखा था, 
'मैं बंगाल का लड़का हूँ। संगीत के लिए भटक रहा हूँ। लेकिन प्यास अभी बुझी नहीं है। वजीर ख़ाँ के पास सीखने के लिए ढाई साल से कोशिश कर रहा हूँ। अगर वे मुझे नहीं सिखाएँगे तो मेरे पास अफ़ीम है वह खा कर मैं प्राण त्याग दूँगा।' नवाब साहब ने उस्ताद जी की जेबें टटोलवायीं। उसमें से अफ़ीम की पुड़िया निकली तब उनकी उस्ताद जी को लेकर जिज्ञासा बढ़ी। थिएटर न जाकर वे अपने बंगले में लौट आए। फिर नवाब ने सवाल पूछा : 'कुछ जानते हो ?' अलाउद्दीन ने तो बरसों से भटकते हुए प्रायः सारे वाद्य सीख लिये थे। उन्होंने कहा : 'हाँ, सब कुछ थोड़ा-थोड़ा आता है।' नवाब ने पूछा: 'क्या आता है ?' तो बोले : 'सरोद, दिलरुबा, सितार, वायलिन, शहनाई, तबला, हार्मोनियम, फ्लूट, क्लेरीओनेट', क़रीब दस वाद्यों के नाम बता दिये। नवाब को आश्चर्य हुआ। लगा कि यह आदमी पागल है, फिर भी बातें करने में मज़ा आ रहा था इसलिए उन्होंने उनके पास जितने वाद्य थे सारे मँगवा लिये। मेरे उस्ताद ने तो वे सारे वाद्य उत्तम तरीके से बजा कर दिखा दिया। तब नवाब ने पूछा : 'अगर मैं गाऊँ तो मेरे साथ बजा सकते हो ?' उस्ताद ने वह भी वायलिन में बजा कर दिखा दिया। नवाब ने फिर से सवाल पूछा : 'और क्या आता है ?' उन्होंने कहा: नोटेशन' । अब 'नोटेशन' का ज्ञान तो नवाब को भी नहीं था। नवाब गाने लगे और उस्ताद उसके नोटेशन लिखने लगे। यह देख कर तो नवाब बिल्कुल दंग रह गये। उस वक़्त अलाउद्दीन ख़ाँ की उम्र २८ साल की थी। नवाब ने तुरन्त भीतर से एक थाल में १४०० रूपये नगद, दूसरे थाल में साफ़ा और पोशाक मँगवा कर वजीर ख़ाँ साहबादा बुलवा कर अलाउद्दीन ख़ाँ की ओर से उनके चरणों में रख दिया और उनको शिष्य बनाने की विनती की। 
गुरु महमद वजीर खाँ साहब तानसेन के सीधे वारिस थे। तानसेन के वंश की दो शाखाएँ थीं। एक शाखा पुत्र की। पुत्र का नाम बिलास ख़ाँ. जिनकी तोड़ी बिलासखाँनी तोड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। रबाबी यानी रुदबीन। रुद्रबीन तानसेन का साज था। उस कारण उनका रबाबी घराना कहलाया। उन्होंने ध्रुपद धमार गाया। दूसरी शाखा उनकी पुत्री की। उनका नाम सरस्वती था। जोधपुर के राज परिवार के राजपूत नौबत खाँ के साथ उनका विवाह हुआ था। मुस्लिम के साथ विवाह किया इसलिए उनका नाम हुसैनी हुआ। उनका ख़ानदान बीनकार खानदान कहा गया। उस घराने के सीधे वंशज थे वज़ीर ख़ाँ साहब। 
(लाभुबेन महेता की किताब 'कला और कलाकार' से)

तस्वीर - अलाउद्दीन ख़ाँ साहब अपने शिष्य पंडित रवि शंकर के साथ।

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