Wednesday, 9 July 2025

बुद्ध घर लौटे। रवींद्रनाथ ने एक बहुत व्यंग्य—कथा लिखी है, एक व्यंग्य—गीत लिखा है। बुद्ध घर लौटे। यशोधरा नाराज थी। छोड़कर, भागकर चले गए थे। गुस्सा स्वाभाविक था। और बुद्ध इसीलिए घर लौटे कि उसको एक मौका मिल जाए। बारह वर्ष का लंबा क्रोध इकट्ठा है, वह निकाल ले। तो एक ऋण ऊपर है, वह भी छूट जाए।बुद्ध वापस लौटे। तो

बुद्ध घर लौटे। रवींद्रनाथ ने एक बहुत व्यंग्य—कथा लिखी है, एक व्यंग्य—गीत लिखा है। बुद्ध घर लौटे। यशोधरा नाराज थी। छोड़कर, भागकर चले गए थे। गुस्सा स्वाभाविक था। और बुद्ध इसीलिए घर लौटे कि उसको एक मौका मिल जाए। बारह वर्ष का लंबा क्रोध इकट्ठा है, वह निकाल ले। तो एक ऋण ऊपर है, वह भी छूट जाए।
बुद्ध वापस लौटे। तो रवींद्रनाथ ने अपने गीत में यशोधरा द्वारा बुद्ध से पुछवाया है; और बुद्ध को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। यशोधरा से पुछवाया है रवींद्रनाथ ने। यशोधरा ने बुद्ध को बहुत— बहुत उलाहने दिए और फिर कहा कि मैं तुमसे यह पूछती हूं कि तुमने जो घर से भागकर पाया, वह क्या घर में मौजूद नहीं था?
बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए। यह तो वे भी नहीं कह सकते कि घर में मौजूद नहीं था। और अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह सकते। अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह सकते। आज से बारह साल पहले यशोधरा ने अगर कहा होता कि तुम जिसे पाने जा रहे हो, क्या वह घर में मौजूद नहीं है? तो बुद्ध निश्चित कह सकते थे कि अगर मौजूद घर में होता, तो अब तक मिल गया होता। नहीं है, इसलिए मैं खोजने जा रहा हूं। लेकिन अब तो पाने के बाद बुद्ध को भी पता है कि जो पाया है, वह घर में भी पाया जा सकता था। तो बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए।

रवींद्रनाथ तो बुद्ध को मुश्किल में देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बात आगे नहीं चलाई। लेकिन मैं नहीं मानता हूं कि बुद्ध उत्तर नहीं दे सकते थे। वह रवींद्रनाथ बुद्ध को दिक्कत में डालना चाहते थे, इसलिए बात यहीं छोड़ दी उन्होंने। यशोधरा ने पूछा, और बुद्ध मुश्किल में पड़ गए। लेकिन निश्चित मैं जानता हूं कि अगर बुद्ध से ऐसा यशोधरा पूछती, तो बुद्ध क्या कहते!

बुद्ध ने निश्चित कहा होता कि मैं भलीभांति जानता हूं कि जिसे मैंने पाया, वह यहां भी पाया जा सकता है। लेकिन बिना दौड़े यह पता चलना मुश्किल था कि दौड़ व्यर्थ है। यह दौड़कर पता चला। दौड़—दौड़कर पता चला कि बेकार दौड़ रहे हैं। जिसे खोजने निकले थे, वह यहीं मौजूद है। लेकिन बिना दौड़े यह भी पता नहीं चलता। दौड़कर भी पता चल जाए, तो बहुत है। हम काफी दौड़ लिए, फिर भी कुछ पता नहीं चलता। एक चीज चूकती ही चली जाती है; जो हम हैं, जो भीतर है, जो यहां और अभी है, वह हमें पता नहीं चलता। निश्चल ध्यान योग का अर्थ है, दौड़ को छोड़ दें और कुछ घड़ी बिना दौड़ के हो जाएं; कुछ घड़ी, घड़ीभर, आधा घड़ी, बिना दौड़ के हो जाएं। ध्यान का इतना ही अर्थ है।

ओशो 
गीता दर्शन

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