Friday 5 July 2024

मूर्ख महिलाओ की ओछी सोच…1)पुरुष हमारी तरक्की से जलते है इसीलिए वो हमें आगे बढ़ता नहीं देख सकते

मूर्ख महिलाओ की ओछी सोच…

1)पुरुष हमारी तरक्की से जलते है इसीलिए वो हमें आगे बढ़ता नहीं देख सकते
उत्तर–अगर पुरुष औरतो की तरक्की से जलते तो आज भी औरत घर में चूल्हा सुलगा रही होती,न की ऑफिस में कंप्यूटर चला रही होती औरत को हवाई जहाज हो या साइकिल चलाना,कंप्यूटर हो या कैलकुलेटर चलाना,तलवार हो या बन्दूक चलाना… सब मर्दों ने ही सिखाया है क्रिकेट का बैट पकड़ना और टेबल टेनिस हो या फुटबॉल खेलना या फिर शतरंग खेलना… सब कुछ पुरुषो ने सिखाया है…अगर पुरुष महिलाओ  की तरक्की से जलते तो क्या आज महिलाये ये सभी कार्य कर पाती???

2) दहेज़ लेना पुरुष प्रधान समाज का सूचक है

उत्तर– जब कोई नयी दुल्हन घर पर आती है तो उसको देखने आस पास का महिला मंडल आता है फिर सास कहती है–कुछ भी दहेज़ नहीं लायी…तब दूसरी महिला कहती है–अरे मेरी बहु तो 5 लाख दहेज़ लेकर आई थी और एक किलो सोना भी…. उसके बाद बाक़ी औरते लंबी लंबी फेंकना शुरू करती है..अरे मेरी तो 10 लाख ..मेरी तो इतना उतना ..इत्यादि..

ससुर को बहु से कोई समस्या नहीं,पति को पत्नी से कोई समस्या नहीं लेकिन ननद को भाभी से,सास को बहु से और देवरानी को जेठानी से या जेठानी को देवरानी से इसी बात की समस्या है की दहेज़ में जो उनको साडी मिली वो सस्ती थी..घटिया क्वालिटी की…

अरे वाह… अब भी क्या पुरुष दहेज़ मांगते है?? पूरी दुनिया गुनाह करे और अंत में दोष पुरुष के ऊपर मढ़ दिया जाता है ईमानदारी से बताये ये औरते की “जब इनके भाई या बेटे की शादी हुयी और इनको लाखो के गहने दहेज़ में मिले तब क्या इन औरतो ने विरोध किया था?? और आज कितनी औरते विरोध करती है???

3)शादी के बाद  लड़के तो माँ बाप की सुनते नहीं।

उत्तर– अगर शादी हो जाए और लड़का अगर माँ की सुने तो वो”माँ के पल्लू वाला” कहलाता है और अगर बीबी की सुने तो ” जोरू का गुलाम”

सच तो ये है की स्त्री की मानसिकता ये रहती है की हुकूमत तो सिर्फ मेरी चलनी चाहिए और इसी मानसिकता के साथ एक घर “नारी वर्चस्व” का कुरुक्षेत्र बन जाता है.. जहां उद्देश्य और कोई नहीं बल्कि अभागा लड़का होता है… जिसको हासिल करने के लिए या अपना गुलाम बनाने के लिए माँ और पत्नी रणक्षेत्र में कूद पड़ती है ।।
कई बार माँ की गलती होती है और बेटा माँ को समझाता है लेकिन माँ समझना ही नहीं चाहती।।बेटा सोचता है की अगर कुछ और दिन माँ के साथ रहा तो कही मेरी प्राणप्यारी आत्महत्या न कर ले ..कही मेरी माँ जेल न चली जाए..इसीलिए बेटा सभी की भलाई के लिए राम बनकर सीता को अपनी कैकेयी जैसी माँ से दूर कर देता है…तब समाज कहता है ” कितना पापी बेटा है,माँ को ही भूल गया”

और अगर पत्नी दुष्टा हो तब बेटा ये सोचता है की इसका त्याग कर देता हु..जैसे ही बेटा ये सोचता है वैसे ही पत्नी देवी 498a ठोंक देती है और पूरा परिवार अंदर..और अगर वो सभी की भलाई के लिए पत्नी को लेकर अलग हो जाए तो भी ऊँगली उसी पर उठेगी…

निष्कर्ष—मुर्ख औरतो की बातो को एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल दो…क्योंकि उन बातो में न सिर होता है और न पैर….

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झरने का दौरा करने का सबसे अच्छा समय मानसून के मौसम के दौरान जून से सितंबर तक होता है, जब पानी का प्रवाह अपने चरम पर होता है, जिससे एक राजसी, शानदार दृश्य बनता है।

अंबोली झरना भारत में दक्षिण महाराष्ट्र के अंबोली हिल स्टेशन में स्थित है। भारत के पश्चिमी भाग की सह्याद्रि पहाड़ियों में स्थित, अंबोली समुद्र तल से 690 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, और इसे दुनिया के इको स्पॉट में से एक माना जाता है, क्योंकि यह वनस्पतियों और जीवों की असामान्य प्रजातियों का घर है। अंबोली झरना सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक है, जो अंबोली में पाया जा सकता है, और पूरे वर्ष कई पर्यटकों द्वारा इसका दौरा किया जाता है।

झरने का दौरा करने का सबसे अच्छा समय मानसून के मौसम के दौरान जून से सितंबर तक होता है, जब पानी का प्रवाह अपने चरम पर होता है, जिससे एक राजसी, शानदार दृश्य बनता है।

पर्यटक झरने तक पहुंचने के लिए इत्मीनान से टहल सकते हैं या ट्रैकिंग विकल्पों के साथ अधिक साहसिक मार्ग चुन सकते हैं। पश्चिमी घाट की पृष्ठभूमि में गिरते पानी का दृश्य वास्तव में देखने लायक है और फोटो खींचने के शानदार अवसर प्रदान करता है।

जबकि झरना एक सितारा आकर्षण है, अंबोली देखने के लिए और भी बहुत कुछ प्रदान करता है। यहां कुछ अन्य आकर्षण हैं, जिन्हें आप अपनी अंबोली झरना यात्रा में शामिल कर सकते हैं।

शिरगांवकर प्वाइंट:- यह दृष्टिकोण अंबोली की हरी-भरी घाटियों और घने जंगलों का मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।

महादेवगढ़ किला:- एक ऐतिहासिक किला जो आपको समय में पीछे ले जाता है, आसपास के परिदृश्य का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है।

हिरण्यकेशी मंदिर:- शांत वातावरण के बीच स्थित भगवान शिव को समर्पित एक पवित्र मंदिर।

अंबोली वन अभ्यारण्य:- वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों का घर और पक्षी देखने वालों के लिए स्वर्ग।

कवलेसाद प्वाइंट:- शानदार दृश्यों और ठंडी हवा के साथ एक और दृष्टिकोण।

दिल्ली से 150 किलोमीटर उत्तर में तराइन के मैदान में हुई इस महत्वपूर्ण लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी की सेनाएँ आमने-सामने थीं। यद्यपि आधुनिक स्रोतों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की सेना में 200,000 सैनिक थे, इतिहासकारों का मानना है कि उनकी सेना लगभग 50,000 सैनिकों की थी। दूसरी ओर, मुहम्मद गौरी की सेना का अनुमान 100,000 पुरुषों का था, लेकिन यह संख्या पृथ्वीराज की सेना से थोड़ी कम मानी जाती है।

#दिल्ली से 150 किलोमीटर उत्तर में तराइन के मैदान में हुई इस महत्वपूर्ण लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी की सेनाएँ आमने-सामने थीं। यद्यपि आधुनिक स्रोतों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की सेना में 200,000 सैनिक थे, इतिहासकारों का मानना है कि उनकी सेना लगभग 50,000 सैनिकों की थी। दूसरी ओर, मुहम्मद गौरी की सेना का अनुमान 100,000 पुरुषों का था, लेकिन यह संख्या पृथ्वीराज की सेना से थोड़ी कम मानी जाती है।
#TarainBattle #PrithvirajChauhan #MuhammadGhauri #RajputValor  

घुरिद सेना को उनकी घुड़सवार तीरंदाजी की क्षमता का लाभ था, जिससे उनकी गतिशीलता राजपूत पैदल सेना पर भारी पड़ी। हालांकि, राजपूत सेना के पास बड़ी संख्या में हाथी थे जो उनकी ताकत का एक प्रमुख हिस्सा थे। पृथ्वीराज चौहान ने चौतरफा हमले के साथ जवाब दिया, जिससे घुरिद सेना को आश्चर्य हुआ। घुरिद सेना हाथ से हाथ की लड़ाई के लिए तैयार नहीं थी, जो राजपूतों की विशिष्ट युद्ध शैली थी। 

पीछे हटते हुए घुड़सवार तीरंदाजों का पीछा करते हुए, राजपूत सेना घुरिद मुख्य सेना तक पहुँच गई। घुरिद सेना ने पैदल सेना की लहरों का विरोध किया, लेकिन राजपूत घुड़सवार सेना ने उनके पक्षों को दबाना शुरू कर दिया। 
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मुहम्मद गौरी के लिए हाथ से हाथ की लड़ाई कठिन साबित हो रही थी। उनके किनारों पर दबाव का सामना करने में असमर्थ, घुरिद सेना ने अपना गठन तोड़ दिया और भाग गई। इस बीच, राजपूत हाथियों ने घुरिद बलों पर और अधिक दबाव डाला।

मुहम्मद गौरी ने युद्ध से भागकर अपने सैनिकों को इकट्ठा करने का प्रयास किया। इस प्रयास में वे वीर कमांडर गोविंद राय के पास पहुँचे। गोविंद राय ने मुहम्मद गौरी पर भाला फेंका, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके अंगरक्षकों ने उन्हें युद्ध के मैदान से दूर ले जाकर उनकी जान बचाई। अपने कमांडर को मैदान से हटते देख, घुरिद सेना का मनोबल टूट गया और वे भाग खड़े हुए। राजपूत सेना ने लगभग चालीस किलोमीटर तक उनका पीछा किया, लेकिन पृथ्वीराज चौहान बठिंडा के किले की घेराबंदी के लिए रुक गए, जो 1192 में गिर गया। 

इस लड़ाई में राजपूतों की रणनीतिक और सामरिक श्रेष्ठता स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जिससे उन्हें एक महत्वपूर्ण विजय प्राप्त हुई।

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जोधा अकबर" की कहानी झूठी निकली, सैकड़ो सालों से प्रचारित झूठ का खण्डन हुआ। अकबर की शादी "हरकू बाई" से हुई थी, जो मान सिंह की दासी थी - जयपुर के रिकॉर्ड।

"जोधा अकबर" की कहानी झूठी निकली, सैकड़ो सालों से प्रचारित झूठ का खण्डन हुआ। अकबर की शादी "हरकू बाई" से हुई थी, जो मान सिंह की दासी थी - जयपुर के रिकॉर्ड।
पुरातत्व विभाग भी यही मानता है कि जोधा एक झूठ है, जिस झूठ को वाम पन्थी इतिहासकारों ने और फिल्मी  दुनिया ने रचा है।

यह ऐतिहासिक षड़यन्त्र है। 

आइये, एक और ऐतिहासिक षड़यन्त्र से आप सभी को अवगत कराते हैं। अब कृपया ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ें। 

जब भी कोई राजपूत किसी मुगल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुगल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है। बताया जाता है कि कैसे जोधा ने अकबर से विवाह किया। परन्तु अकबर के काल के किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेमकथा का कोई वर्णन नहीं किया !

सभी इतिहासकारों ने अकबर की केवल 5 बेगमें बताई हैं।

1. सलीमा सुल्तान।

2. मरियम उद ज़मानी।

3. रज़िया बेगम।

4. कासिम बानू बेगम।

5. बीबी दौलत शाद।

अकबर ने स्वयं अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी, किसी रानी से विवाह का कोई उल्लेख नहीं किया। परन्तु राजपूतों को नीचा दिखाने के लिए कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृ'त्यु के लगभग 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बताकर एक झूठी अफवाह फैलाई और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेमकथा के झूठे किस्से शुरू किये गये, जबकि अकबरनामा और जहाँगीरनामा के अनुसार ऐसा कुछ नहीं था ! 

18 वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर, उसको मान सिंह की बेटी होने का झूठा प्रचार शुरू किया गया। फिर 18 वीं सदी के अन्त में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब “एनैलिसिस एंड एंटीक्स ऑफ राजस्थान” में मरियम से हरखा बाई बनी, इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया और इस तरह यह झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया कि आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर यह झूठ, सत्य की तरह बैठ गया है तथा इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है ! जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह के प्रसङ्ग को सुनती या देखती हूँ, तो मन में कुछ अनुत्तरित प्रश्न कौंधने लगते हैं ! 

आन, बान और शान के लिए मर मिटने वाले, शूरवीरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ?

हजारों की संख्या में एक साथ अग्निकुण्ड में जौ'हर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती है ? जोधा और अकबर की प्रेमकथा पर केन्द्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक, मेरे मन की टीस को और अधिक बढ़ा देते हैं ! 

अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसङ्ग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई, तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी "अबुल फजल" के द्वारा लिखित  "अकबरनामा" निकाल कर पढ़ने के लिए ले आई, उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ गये । पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं मिला !

मेरी आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा को भाँपते हुए मेरे फ्रेंड ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थ  "तुजुक-ए-जहाँगीरी" को, जो जहाँगीर की आत्मकथा है, मुझे दिया ! इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहाँगीर ने अपनी माँ जोधाबाई का एक बार भी उल्लेख नहीं किया है ! 

हाँ, कुछ स्थानों पर हीर कुवँर और हरका बाई का उल्लेख अवश्य था। अब जोधाबाई के बारे में सभी ऐतिहासिक दावे झूठे लग रहे थे। कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात्  सच्चाई सामने आई कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई उल्लेख या नाम नहीं है ! 

इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई, जो बहुत चौकानें वाली है ! इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में "रुकमा" नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी, जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी। 

रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को "रुकमा-बिट्टी" के नाम से बुलाया जाता था। आमेर की महारानी ने "रुकमा बिट्टी" को "हीर कुवँर" नाम दिया। हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ, इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भाँति परिचित थी।

राजा भारमल उसे कभी हीर कुवँरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी पर्सियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुवँर का विवाह अकबर से करा दिया, जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया ! 

चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था, इसलिये ऐतिहासिक ग्रन्थों में हीर कुवँरनी को राजा भारमल की पुत्री बताया गया, जबकि वास्तव में वह कच्छवाह की राजकुमारी नहीं, बल्कि दासी-पुत्री थी !

एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।

#प्रेरकप्रसंग 

एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।

डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।

किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वह शांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं।

अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा।सभी उसको गालियां दे रहे थे।गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे।किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।

ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया. कड़क आवाज में पूछा, "किसने ट्रेन रोकी"।
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"।
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, अकारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ! ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।

उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- यहाँ से करीब एक फरलाँग की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं।आप चाहे तो चलकर देख सकते है।

गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी।नट-बोल्ट खुले हुए थे।अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे।वे उसकी और कौतूहलवश देखने लगे, मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..

गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- श्रीमान लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे।उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ।ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो।अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।

गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये. गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान ! आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते।अपना परिचय दीजिये।

शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- श्रीमान मैं भारतीय #इंजीनियर #मोक्षगुंडम_विश्वेश्वरैया...

जी हाँ ! वह असाधारण शख्स कोई और नही "डॉ विश्वेश्वरैया" थे।

#हिन्दी_साहीत्य_दर्पण..

#brvishwakarma ...

मकई_की_रोटी की जो थाली सामने दिख रही है वह सामान्य ताली नहीं है वह पटना के एक बड़े रेस्टोरेंट में परोसी जा रही है कीमत जानकर आप माथा पकड़ लीजिएगा एक मकई की रोटी साथ में सरसों की सांग भी

#मकई_की_रोटी की जो थाली सामने दिख रही है वह सामान्य ताली नहीं है वह पटना के एक बड़े रेस्टोरेंट में परोसी जा रही है कीमत जानकर आप माथा पकड़ लीजिएगा एक मकई की रोटी साथ में सरसों की सांग भी मसले प्याज और कीमत ₹650। आपको हमको यह कीमत ज्यादा लग सकती है पर जो लोग उसे रेस्टोरेंट के नियमित ग्राहक हैं उन्हें यह कीमत सामान्य लगती है क्योंकि वह सामान्य वर्ग के नहीं है वह शहर का अभिजात वर्ग है जो किसी भी कीमत को वहन करने की शक्ति रखता है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में मकई की रोटी मकई के सतुआ से बनाया जाता है मकई का सतुआ भुने हुए मकई को पीसकर बनाया जाता है। इस कारण से उसमें सोनधापन होता है। पर बड़े होटलों में जो मकई की रोटी पड़ोसी जा रही है वह कच्ची मक्का के आटे से तैयार की जाती है उसमें कई प्रकार के सीक्रेट मसाले मिलाए जाते हैं तथा मक्खन या घी के सहारे उसे पकाया जाता है सरसों का साग आपको भले नवंबर से जनवरी के महीने तक ही मिले पर शहरों में बड़े होटलों में यह सालों भर मिलता है कहां से आता है यह नहीं पता। खाने पीने की चीजों को बाजार में किस तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया है इसका छोटा सा उदाहरण देखिए जो आपके और हमारे घर में गेहूं होता है उसकी रोटी और बाजार में जो पैकेट बंद आता बिक रहा है उसकी रोटी में अंतर है बाजार की रोटी ज्यादा उजले रंग की होती है और खुल जाती है जबकि घर का उगा हुआ गेहूं की रोटी थोड़ी सी दूसरे कलर की होती है अपने घर की गेहूं होते हुए भी लोग बाजार का ही खरीद कर खा रहे हैं क्योंकि बाजार में प्रचलित प्रसारित कर दिया है कि उनके गेहूं में फाइबर है कुछ ऐसा ही खाने-पीने की अन्य चीजों पर भी लागू हो गया है खाने पीने की चीज है खेतों में ही उपजती है। आप जिन चीजों को छोड़ रहे हैं उन चीजों को बड़ी कंपनियां अपने मुट्ठी में कर रही है यही कारण है कि गाय के गोबर का गोइठा भी अब अमेजॉन जैसी कंपनियां बेच रही है। आपको नहीं पता की पूजा पाठ में कितनी सामग्रियों का इस्तेमाल होता है ऑनलाइन जाइए आपको कई सारी कंपनियां पूरे पूजा पाठ का सामान एक पैकेज पर आपके घर पहुंचा देंगी। खैर मकई के रोटी पर ही लौट आते हैं गर्मी के दिनों में मकई की रोटी खाना आसान नहीं यह काफी गर्म होता है जैसे ही मानसून की बारिश शुरू होती है मकई की रोटी और छोटी मछलियां खाने का बिहार में रिवाज रहा है जर की दिनों में इसके अंदर आलू भरकर खाया जाता है जबकि सरसों के साग के सीजन में साग और मकई की रोटी की धूम रहती है जिसके घर दूध दही की उपलब्धता है वह उसके साथ मकई की रोटी खाता है जो भुने हुए मकई का रोटी होता है वह पाव रोटी की तरह फूल जाता है जबकि कच्चे मकई का रोटी सामान्य रोटी की तरह ही होता है पर टेस्ट अलग होता है। 
अनूप 
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इतिहास का एक ऐसा सच जिसे देशवासियों से छुपाया गया

इतिहास का एक ऐसा सच जिसे देशवासियों से छुपाया गया 
एक बार औरंगजेब के दरबार में एक शिकारी जंगल से पकड़कर एक
बड़ा भारी शेर लाया !
लोहे के पिंजरे में बंदशेर बार-बार दहाड़ रहा था !
बादशाह कहता था... इससे बड़ा भयानक शेर दूसरा नहीं मिल सकता !
दरबारियों ने हाँ में हाँ मिलायी..
किन्तु वहाँ मौजूद #राजा_जसवंत_सिंह जी ने कहा -
इससे भी अधिक शक्तिशाली शेरमेरे पास है ! क्रूर एवं अधर्मी #औरंगजेब
को बड़ा क्रोध हुआ !
उसने कहा तुम अपने शेर को इससे लड़ने को छोडो..
यदि तुम्हारा शेर हार गया तो तुम्हारा सर काट लिया जायेगा ...... !
दुसरे दिन किले के मैदान में दो शेरों का मुकाबला देखनेबहुत बड़ी भीड़
इकट्ठी हो गयी !
औरंगजेब #बादशाह भी ठीक समय पर आकर अपने सिंहासन पर बैठगया !
राजा जसवंत सिंह अपने दस वर्ष के पुत्र #राजकुमार_पृथ्वी_सिंह के साथ आये !
उन्हें देखकर बादशाह ने पूछा--आपका शेर कहाँ है ?
जसवंत सिंह बोले- मैं अपना शेर अपने साथ लाया हूँ !
आप केवल लडाई की आज्ञा दीजिये ! बादशाह की आज्ञा से जंगली शेर को लोहे के बड़े पिंजड़े में छोड़ दिया गया ! जसवंत सिंह ने अपने
पुत्र को उस पिंजड़े में घुस जाने को कहा !
बादशाह एवं वहां के लोग हक्के-बक्के रह गए !
किन्तु दस वर्ष का निर्भीक बालक पृथ्वी सिंह पिता को प्रणाम करके
हँसते-हँसते शेर के पिंजड़े में घुस गया !
शेर ने पृथ्वी सिंह की ओर देखा !
उस तेजस्वी बालक के नेत्रों में देखते ही एक बार तो वह पूंछ दबाकर पीछे
हट गया.. लेकिन मुस्लिम सैनिकों द्वारा भाले की नोक से उकसाए जाने
पर शेर क्रोध में दहाड़ मारकर पृथ्वी सिंह पर टूट पड़ा !
वार बचा कर वीर बालक एक ओर हटा और अपनी तलवार खींच ली !
पुत्र को तलवार निकालते हुए देखकर जसवंत सिंह ने पुकारा -बेटा, तू
यह क्या करता है ?
शेर के पास तलवार है क्या जो तू उस पर तलवार चलाएगा ?
यह हमारे हिन्दू-धर्म की शिक्षाओं के विपरीत है और धर्मयुद्ध
नहीं है ! पिता की बात सुनकर पृथ्वी सिंह ने तलवार
फेंक दी और निहत्था ही शेर पर टूट पड़ा !
अंतहीन से दिखनेवाले एक लम्बे संघर्ष के बाद आख़िरकार उस छोटे से बालक ने शेरका जबड़ा पकड़कर फाड़ दिया और फिर पूरे शरीर को चीर दो टुकड़े कर फेंक दिया !
भीड़ उस वीर बालक पृथ्वी सिंहकी जय-जयकार करने लगी !
अपने.. और शेर के खून से लथपथ पृथ्वी सिंह जब पिंजड़े से
बाहर निकला तो पिता ने दौड़कर अपने पुत्र को छाती से लगा लिया !
तो ऐसे थे हमारे पूर्वजों के कारनामे..
जिनके मुख-मंडल वीरता के ओज़ से ओतप्रोत रहते थे !
और आज हम क्या बना रहे हैं अपनी संतति को..
सारेगामा लिट्ल चैंप्स के नचनिये.. ?
आज समय फिर से मुड़ कर इतिहास के उसी औरंगजेबी काल की ओर ताक रहा है.. हमें चेतावनी देता हुआ सा.. कि ज़रुरत है कि हिन्दू अपने बच्चों को फिर से वही हिन्दू संस्कार दें..
ताकि बक्त पड़ने पर वो शेर से भी भिड़ जाये.. न कि “सुवरों”की तरह चिड़ियाघर के पालतू शेर के आगे भी हाथ पैर
जोड़ें.. !