Monday 20 March 2023

परतंत्र व्यक्ति प्रेम नहीं दे सकता। इसलिए जब तक स्त्रियां परतंत्र हैं, मैं निरंतर कहूंगी, कहे जाऊंगी कि दुनिया में प्रेम नहीं हो सकता। स्त्रियां परतंत्र हैं तो प्रेम असंभव है। क्योंकि दो स्वतंत्र व्यक्ति ही प्रेम का आदान-प्रदान कर सकते हैं। जिस स्त्री को तुम दहेज लेकर ले आए हो, जिस स्त्री को तुमने कभी देखा भी नहीं था और तुम्हारे मां-बाप ने तय कर दिया है और कोई पंडित-पुरोहितों ने जन्मकुंडली देख कर निर्णय लिया है; जिसका निर्णय तुम्हारे हृदय से नहीं आया; जिसका निर्णय उधार, बासा, दूसरों का है, ऐसी स्त्री को तुम घर ले आए हो। इसमें सुविधा तो बहुत है, इसमें झंझट कम है; इसमें घर-गृहस्थी ठीक से चलेगी।

परतंत्र व्यक्ति प्रेम नहीं दे सकता। इसलिए जब तक स्त्रियां परतंत्र हैं, मैं निरंतर कहूंगी, कहे जाऊंगी कि दुनिया में प्रेम नहीं हो सकता। स्त्रियां परतंत्र हैं तो प्रेम असंभव है। क्योंकि दो स्वतंत्र व्यक्ति ही प्रेम का आदान-प्रदान कर सकते हैं। जिस स्त्री को तुम दहेज लेकर ले आए हो, जिस स्त्री को तुमने कभी देखा भी नहीं था और तुम्हारे मां-बाप ने तय कर दिया है और कोई पंडित-पुरोहितों ने जन्मकुंडली देख कर निर्णय लिया है; जिसका निर्णय तुम्हारे हृदय से नहीं आया; जिसका निर्णय उधार, बासा, दूसरों का है, ऐसी स्त्री को तुम घर ले आए हो। इसमें सुविधा तो बहुत है, इसमें झंझट कम है; इसमें घर-गृहस्थी ठीक से चलेगी।

  लेकिन एक बात खयाल रखना, तुम्हारे जीवन में नृत्य का क्षण कभी भी न आ पाएगा; तुम्हारा प्रेम कभी समाधिस्थ न हो सकेगा। तुम इस प्रेम के मार्ग से परमात्मा को न जान सकोगे।

 एक स्वतंत्र व्यक्ति ही प्रेम दे सकता है। गुलाम सेवा कर सकता है, प्रेम नहीं दे सकता। मालिक सहानुभूति दे सकता है, प्रेम नहीं दे सकता। पति अगर मालिक है तो ज्यादा से ज्यादा दया कर सकता है। दया प्रेम है? कोई स्त्री दया नहीं चाहती। तुम जरा थोड़े हैरान होओगे, जहां प्रेम का सवाल हो वहां दया बड़ी बेहूदी और कुरूप है। कौन दया चाहता है? क्योंकि दया का अर्थ ही होता है कि मैं कीड़ा-मकोड़ा हूं और तुम आकाश के देवदूत हो। दया का अर्थ ही यह होता है कि मैं दयनीय हूं; तुम देने वाले हो, दाता हो, मैं भिखारी हूं। प्रेमी कभी दया से तृप्त नहीं होता। लेकिन मालिक दया दे सकता है, प्रेम कैसे देगा?

 और गुलाम सेवा कर सकता है, लेकिन सेवा प्रेम नहीं है। सेवा कर्तव्य है; करना चाहिए इसलिए करते हैं। पत्नी पति के पैर दबा रही है, क्योंकि पति परमात्मा है, पैर दबाने चाहिए; ऐसा शास्त्रों में कहा है। वह पैर दबा रही है शास्त्रों के कारण, अपने कारण नहीं। और जो पैर शास्त्रों के कारण दबाए जा रहे हैं वे न दबाए जाएं तो बेहतर। क्योंकि इन पैरों से कोई लगाव नहीं है, इन पैरों में कोई आस्था नहीं है, कोई श्रद्धा नहीं है, कोई प्रेम नहीं है। यह एक गुलामी का संबंध है। इन पैरों के साथ जंजीरें बंधी हैं। ये आकाश में उड़ते दो मुक्त पक्षी नहीं हैं; एक कारागृह में बंद हैं।

           🙏 शुभ रात्रि 🙏

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