Thursday 20 April 2023

इतिहास स्वयं को स्वयं सुनाता है। इस बात में कोई शक नहीं। हर इमारत , हर पत्थर के उद्गम की शुरुआत की कहानी उसकी मौजूदगी में रहती है। जो हम मामूली , लिखते , देखते और महसूस करते हैं । इतिहास को अपने साथ कई चीजों को जोड़कर और साथ लेकर चलता है। आज हम आपको ऐसी ही किसी जगह के बारे में बता रहे हैं , जो मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में बसी हुई है। जब आप अमरकंटक के सफ़र पर होते हैं तो बीच में हरे - घने पेड़ आपको रास्ते में नज़र आते हैं। पहाड़िया के बीच सफ़र करते हुए जब ठंडी हवाएं आपके चहरे को छू कर गुजरेंगी तो उसका एहसास कुछ अलग ही होगा।

इतिहास स्वयं को स्वयं सुनाता है। इस बात में कोई शक नहीं। हर इमारत , हर पत्थर के उद्गम की शुरुआत की कहानी उसकी मौजूदगी में रहती है। जो हम मामूली , लिखते , देखते और महसूस करते हैं । इतिहास को अपने साथ कई चीजों को जोड़कर और साथ लेकर चलता है। आज हम आपको ऐसी ही किसी जगह के बारे में बता रहे हैं , जो मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में बसी हुई है। जब आप अमरकंटक के सफ़र पर होते हैं तो बीच में हरे - घने पेड़ आपको रास्ते में नज़र आते हैं। पहाड़िया के बीच सफ़र करते हुए जब  ठंडी हवाएं आपके चहरे को छू कर गुजरेंगी तो उसका एहसास कुछ अलग ही होगा।  मंदिर
अमरकंटक मंदिर घूमने के लिए प्रमुख स्थानों में से एक है। मध्य प्रदेश का जिला अनूपपुर और शहडोल की तहसील , पुष्पराजगढ़ में मेकल की आबादी के बीच बसा हुआ है । यह 1065 मीटर की ऊँचाई पर समाया है । पर्वतमाला और घने जंगल के बीच मंदिर की खूबसूरती का आकर्षण कुछ अलग – सा ही अनुभव होता है। यह छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा है। यह स्थान विंध्य , सतपुड़ा और पागलों के कार्यस्थल का मिलन स्थल है , जिसका दृश्य मन मोह लेने वाला होता है । अमरकंटक तीर्थराज के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है।   
जीवन की आप - धापी से दूर यह जगह आपके मन को शांत कर देती है। यहां की शाम को देखने में ऐसी लग रही है , मानो किसी ने आकाश में सिंदूर बिखेर दिया हो। घने जंगल और महकती हुई धरती , यहां सांसों में घुलती महसूस होती है ।  
अमरकंटक के बारे में कुछ रोचक बातें
आयुर्वेदिक दवाएं
अमरकंटक कई पाए जाने वाले आयुर्वेदिक विज्ञान के लिए भी प्रसिद्ध हैं। लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि पाए जाने वाले आयुर्वेदिक सिद्धांतों में जीवन देने की शक्ति है। लेकिन इस समय दो संयंत्र ऐसे हैं जो अब लुप्त होने के कगार पर हैं । वह गुलाबवाली और हैं काली मिर्च के पत्ते। गुलाबकावली घनी छांव में दलदली जगह और दावे में पानी बढ़ रहा है। यह अधिकतर सोनमुडा , कबीर चबूतरा , दुग्ध धारा और अमरकंटक के कुछ बिगिचों में उगता है । काली हल्दी का उपयोग मिरगी , गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार के लिए किया जाता है । है। 
यहां टिक और महुए के पेड़ काफी पाए जाते हैं। अमरकंटक का इतिहास लगभग छह हजार साल पुराना है , जब सूर्यवंशी शासक ने मन्धाता शहर की स्थापना की थी। 
मंदिर की वास्तुकला चेदि और विदर्भ राजवंश के काल की है। ऋग्वेद काल में चेदि वंश के लोग यामा और विंध्य के बीच बसे हुए थे।
 भगवान शंकर , कपिल , व्यास और भृगु ऋषि सहित कई महान ऋषि - मुनियों ने इस स्थान पर वर्षों तक तपस्या की है।
यहां के बायो रिजर्व को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है। यहां की खास बात यह है कि यहां घूमने के लिए किसी भी मौसम में आ सकता है ।
नर्मदा नदी दूसरी नदियों से अलग पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इसके बजाय यह बारीकियां दूर की ओर बह रही हैं , जो कि दीदी की कई चौकाने वाली बातें सोचती हैं ।
अमरकंटक में कलचुरी क्लाउन मंदिर का निर्माण कलचुरी नरेश कर्णदेव ने 1041-1073 ईवीं के दौरान ब्यौरा था। नर्मदा कुंड के पास दक्षिण में कलचुरी काल के मंदिरों का समूह है। वह हैं :-
🔸 कर्ण मंदिर - यह तीन गर्भ वाला मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसमें प्रवेश के लिए पांच मठ है। यह मंदिर बंगाल और आसाम के मंदिरों की तरह दिखाई देता है।
🔸 पातालेश्वर मंदिर - इस मंदिर का आकार पिरामिड जैसा है। यह पंचरथ नागरी शैली में बना है । अमरकंटक का यह स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है। इसी थोड़ी ही दूर पर भद्र का भी उद्गम स्थल है। दोनों आगे बढ़कर एक दूसरे से मिल जाते हैं , इसलिए इन्हें ' सोन - भद्र ' भी कहा जाता है। पुत्र को ब्रह्माजी का मानस पुत्र भी कहा जाता है। यह नर्मदा नदी का उद्गम स्थल से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोन - भद्र 100 फीट की पहाड़ियों से झरने की तरह गिरती है। 
ऐसा माना जाता है कि सोनभद्र जलप्रपात से गिरने के बाद , यह पृथ्वी के अंदर ही 60 किलोमीटर दूर “ सोनबचरबार ” नामक स्थान पर फिर से दिखाई देता है और आगे गंगा में मिल जाता है ।  
अमरकंटक के पास यह प्रपात कपिल धारा से   1 किलोमीटर नीचे जाने पर मिलता है। इसकी लंबाई 10 काम है। कहा जाता है यहां दुर्वासा ऋषि ने तपस्या की भी थी। इस प्रपात को दुर्वासा धारा भी कहा जाता है | यहां पवित्र नर्मदा नदी का दूध सफेद दिखाई देता है है इसलिए इस प्रपात को ' दूधधारा ' कहा जाता है। किसी नदी के दूध की तरह होने से कई हैरान करने वाली बात लगती है। लेकिन दूधधारा धारा को प्रकृति के रूप में देखकर और भी अधिक यकिन हो जाता है ।  
यह मंदिर अमरकंटक – शहडोल सड़क पर 8 किलोमीटर की दूरी पर है। वैज्ञानिक से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति हुई है । यहां भगवान शिव का सुन्दर मन्दिर है। माना जाता है कि यहीं स्थित शिवलिंग स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था। पुराणों में इस स्थान को महारुद्र     मेरु ने भी कहा है । यहां भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ निवास किया था। indo-canadian mudar:
अमरकंटक का यह मंदिर नर्मदा कुंड से 1 किलोमीटर दूर सोनमुडा मार्ग पर स्थित है। यह घने घेरे से घिरा हुआ है। मंदिर का निर्माण सुकदेवानंद जी महाराज द्वारा घोषित किया गया । इस मंदिर का आंकड़ा श्रीयन्त्र जैसा है , इसका निर्माण भी विशेष मुहूर्त में किया गया। अमरकंटक के श्रीयंत्र  महामेरु मंदिर के द्वार , चौड़ाई , ऊंचाई 52 फुट है।
हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है । इस अवसर पर संपूर्ण अमरकंटक को समझा जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है । साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है , जिसमें दूर - दूर से भक्त आते हैं।

हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है । इस अवसर पर संपूर्ण अमरकंटक को समझा जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है । साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है , जिसमें दूर - दूर से भक्त आते हैं।
इस तरह पहुंचे _
हौजहाज से : मध्‍यप्रदेश में सबसे सम्‍मिलित एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है । यह 245 किलोमीटर दूर है। रायपुर और छत्तीसगढ़ 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या बुक की हुई गाड़ी से अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं।
सड़क से : अमरकंटक मध् ‍ यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की धूम से आरती करता है । यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन सड़क बिलासपुर है । जबलपुर 245 किमी , बिलासपुर 125 किमी , अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी ।  
रेल से :  यहां पहुंचने के लिए बिलासपुर रेल की सुविधा उपलब्ध है । अन् य रेलमार्ग पेदारा रोड और अनूपपुर से है।  
यह जगह प्रकृति प्रेम से लेकर इतिहासकारों के लिए भरपूर है। आपको यहां जुलाई में हुई बारिश से यहां के जलप्रपात भर जाते हैं। हवाएं और भी तेज _ के लिए कल्याणकारी आश्रम , अनाथ आश्रम , अरण्डी जीवन जीने वाले आश्रम सहित कई निजी होटल भी हैं। अक्टूबर से मार्च के महीने में यहां आने पर आपको यहां की कुछ अलग ही खूबसूरती नजर आएगी। जून - और सांसें गहरी महसूस होती हैं । वैसे तो आप यहां सालों में कभी - कभी भी आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच यहां का नजारा बेहद अलग और अतुलनीय होता है।हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है । इस अवसर पर संपूर्ण अमरकंटक को समझा जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है । साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है , जिसमें दूर - दूर से भक्त आते हैं।
इस तरह पहुंचे _
हौजहाज से : मध्‍यप्रदेश में सबसे सम्‍मिलित एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है । यह 245 किलोमीटर दूर है। रायपुर और छत्तीसगढ़ 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या बुक की हुई गाड़ी से अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं।
सड़क से : अमरकंटक मध् ‍ यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की धूम से आरती करता है । यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन सड़क बिलासपुर है । जबलपुर 245 किमी , बिलासपुर 125 किमी , अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी ।  
रेल से :  यहां पहुंचने के लिए बिलासपुर रेल की सुविधा उपलब्ध है । अन् य रेलमार्ग पेदारा रोड और अनूपपुर से है।  
यह जगह प्रकृति प्रेम से लेकर इतिहासकारों के लिए भरपूर है। आपको यहां जुलाई में हुई बारिश से यहां के जलप्रपात भर जाते हैं। हवाएं और भी तेज _ के लिए कल्याणकारी आश्रम , अनाथ आश्रम , अरण्डी जीवन जीने वाले आश्रम सहित कई निजी होटल भी हैं। अक्टूबर से मार्च के महीने में यहां आने पर आपको यहां की कुछ अलग ही खूबसूरती नजर आएगी। जून - और सांसें गहरी महसूस होती हैं । वैसे तो आप यहां सालों में कभी - कभी भी आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच यहां का नजारा बेहद अलग और अतुलनीय होता है।हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है । इस अवसर पर संपूर्ण अमरकंटक को समझा जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है । साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है , जिसमें दूर - दूर से भक्त आते हैं।
इस तरह पहुंचे _
हौजहाज से : मध्‍यप्रदेश में सबसे सम्‍मिलित एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है । यह 245 किलोमीटर दूर है। रायपुर और छत्तीसगढ़ 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या बुक की हुई गाड़ी से अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं।
सड़क से : अमरकंटक मध् ‍ यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की धूम से आरती करता है । यहां आने के लिए सबसे बेहतरीन सड़क बिलासपुर है । जबलपुर 245 किमी , बिलासपुर 125 किमी , अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी ।  
रेल से :  यहां पहुंचने के लिए बिलासपुर रेल की सुविधा उपलब्ध है । अन् य रेलमार्ग पेदारा रोड और अनूपपुर से है।  
यह जगह प्रकृति प्रेम से लेकर इतिहासकारों के लिए भरपूर है। आपको यहां जुलाई में हुई बारिश से यहां के जलप्रपात भर जाते हैं। हवाएं और भी तेज _ के लिए कल्याणकारी आश्रम , अनाथ आश्रम , अरण्डी जीवन जीने वाले आश्रम सहित कई निजी होटल भी हैं। अक्टूबर से मार्च के महीने में यहां आने पर आपको यहां की कुछ अलग ही खूबसूरती नजर आएगी। जून - और सांसें गहरी महसूस होती हैं । वैसे तो आप यहां सालों में कभी - कभी भी आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच यहां का नजारा बेहद अलग और अतुलनीय होता है।

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