एक वक्त था जब नेहरू जी ने बनारस के हर मंदिर को बड़ी चादर से ढकवा दिया था ताकि सऊदी किंग शाह सऊद की नजर मन्दिरों पर न पड़े।
पुजारियों को सख्त चेतावनी दी गयी थी कि मंदिर के घंटे घड़ियाल की आवाज़ नहीं आनी चाहिए।
जब सउदी अरब के बादशाह "शाह सऊद" प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निमंत्रण पर भारत आए थे तो शाह दिल्ली से वाराणसी भी आए..
काशी में जिन जिन रास्तों से "शाह सऊद" को गुजरना था, उन सभी रास्तों में पड़ने वाली मंदिर और मूर्तियों को परदे से ढक दिया गया था...!
शाह सऊद जितने दिन वाराणसी में रहे उतने दिनों तक बनारस के सभी सरकारी इमारतों पर "कलमा तैय्यबा" लिखे हुए झंडे लगाए गए थे....
और तब नजीर बनारसी ने हिंदुओं का मजाक बनाते हुए लिखा था..
"अदना सा ग़ुलाम उनका, गुज़रा था बनारस से॥
मुँह अपना छुपाते थे, काशी के सनम-खाने॥"
और जिन लोगों के पिछलग्गू होकर आज तुम उस धर्मात्मा पर अधर्म और धर्म के विनाश का आरोप लगा रहे हो जिसने सऊदी अरब में मंदिर बनवा दिया... बंग्लादेश में काली मंदिर का जीर्णोद्धार करा रहा है...
आक्रांताओं की सत्ता तो कभी गयी ही नहीं थी किसी न किसी रूप में वह हमेशा मौजूद थी जो हमारे धार्मिक मान्यताओं, मन्दिरों पर रोक लगाती रही थी...
पर अब *Modi Hai To Mumkin Hai*
तुम ढंक कर रखते थे मंदिर हम दुनिया इस तरह से दिखाते हैं🚩
No comments:
Post a Comment