भारत ने हमेशा विविधता में एकता को बढ़ावा दिया है, जो भारत की मूल ताकत रही है। भारत में विभिन्न संप्रदाय, धर्म, नस्ल व भाषाई समूह मिलजुल कर रहते हैं किन्तु इतनी बड़ी संख्या होने के कारण कभी कभार थोड़ी बहुत खटपट हो जाती है। हालांकि, भारत ने सदैव से ही हिंसा के विचार की निंदा की है और इसे कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। देश ने बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में हाल ही में संपन्न रामनवमी समारोह के दौरान छिटपुट हिंसा के कुछ उदाहरण देखे, जिसे मुस्लिम देशों के संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन / ओ.आई.सी. द्वारा मुस्लिम विरोधी रंग दिया गया था, जिसमें भारत का कट्टर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान भी शामिल है।
अतीत में भी. ओ.आई.सी. ने भारत की अखंडता के खिलाफ काम करने वाले एक कुख्यात अलगाववादी और आतंकवादी यासीन मलिक के मामले में फैसले के भारत की आलोचना की है, जिसकी आतंकवादी गतिविधियों का दस्तावेजीकरण किया गया और अदालत में पेश किया गया। एक अन्य घटना में ओ.आई.सी. के महासचिव हिसैन ब्राहिम ताहा द्वारा 16 मार्च 2023 को आयोजित जम्मू-कश्मीर पर ओ.आई.सी. संपर्क समूह की मंत्रीस्तरीय बैठक में जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनके आत्मनिर्णय के अधिकार को साकार करने में ओ आई.सी. के निरंतर समर्थन की पुष्टि की गई थी। महासचिव ने ओ.आई.सी. के प्रयासों को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदय द्वारा जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। ओ.आई.सी. कश्मीर में कथित भारतीय अत्याचारों की आलोचना करते हुए पाकिस्तान के बयानों का भी समर्थन करता रहा है। कई बार इसने भारत के कट्टर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के लिए भारत के खिलाफ बोला है। रामनवमी के बाद के जुलूस की हिंसा की पृष्ठभूमि में इस्लामोफोबिया का वर्तमान आरोप, सूची में एक ओर है। ओ.आई.सी. इसे इस्लामोफोबिक आकार के साथ प्री.इंडिया. आउटलुक देने की भरसक कोशिश कर रहा है, भले ही अधिकतर भारतीय मुसलमान रामनवमी हिंसा को स्थानीय व स्थिति आधारित मुद्दे के रूप में ले रहे हैं।
भारतीय त्यौहार पारंपरिक रूप से प्रेम, करूणा और भाईचारे का प्रतीक हैं, जहाँ लोग अपने मतभेदों को साझा करते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जुलूसों/कार्यक्रमों के आयोजकों और इसमें शामिल समुदायों और आयोजकों को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि उनकी सभाएं / कार्यक्रम साम्प्रदायिक युद्ध स्थलों में न बदल जाएँ, जिनका लाभ उठाने वाले लोग उनका शोषण करें। शांतिपूर्ण जुलूस और धार्मिक गतिविधियों को सुनिश्चित करने के लिए अंतर- सांप्रदायिक विचार, विमर्श महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल सभी पक्ष आपसी सम्मान, समझ और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को बढ़ावा देने की दिशा में काम करें। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिंसा के लिए न तो मस्जिदों के आसपास के मुसलमान और न ही जुलूसों में शामिल श्रद्धालु जिम्मेदार हैं। बल्कि, यह विभाजनकारी ताकतें हैं जो अपने बहिष्करण और हिंसक राजनीतिक संदेश को फैलाने के लिए ऐसी सभाओं का फायदा उठाती है।
इसलिए यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि हिंसक धार्मिक सभाओं का भारत के नाज़ुक सामाजिक ताने-बाने पर सीधा प्रभाव पड़ता है और यह सभी समुदायों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसी घटनाओं को होने से रोकने के लिए मिलकर काम करें।
फरहत अली खान
एम. ए. गोल्ड मेडलिस्ट
Good and thanks Sir
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