Friday, 11 July 2025

*अमरीका में वर्ल्ड पुलिस गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली रामपुर की उजाला का हुआ सम्मान और स्वागत*

*अमरीका में वर्ल्ड पुलिस गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली रामपुर की उजाला का हुआ सम्मान और स्वागत* 
रामपुर शहीद ए आज़म स्पोर्ट्स स्टेडियम में आज एसोसिएशन द्वारा सम्मान एवं स्वागत किया गया ।
जिसमें एसोसिएशन के सभी सम्मानित पदाधिकारी एवं सदस्य उपस्थित रहे इस अवसर पर आंसुओं से भीगी आंखों से उजाला ने कहा कि बहुत संघर्ष के बीच मेरा जीवन गुजरा है गरीबी क्या होती है मैंने अपनी आंखों से देखी है आज सभी समझ सकते हैं ग्रामीण क्षेत्र जहां मेरा घर है वहां से शहीदे आजम स्पोर्ट्स स्टेडियम के दूरी 13 किलोमीटर है मैं  रोज सुबह और शाम यह दूरी तय करती थी आज वर्ल्ड पुलिस गेम अमरीकन में गोल्ड मेटल हासिल करके मैंने स्वर्ण पदक तो जीता लेकिन मेरी मंजिल ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने की है 
मुझे विश्वास है कि  ओलंपिक मैराथन में अपने देश का नाम रोशन करूंगी।
 इस अवसर पर मुकेश पाठक ने निर्धन परिवारों की बच्चियों की सहायता करने का प्रण लिया साथ ही खिलाड़ियों को फाबा हनी पहुंचने का का निर्णय लिया।
वही वरिष्ठ हॉकी  खिलाड़ी *आरिफ खान ने हर एथलीट के लिए दुआओं के साथ-साथ आर्थिक मदद करने का भी एलान किया*
 *उजाला को  पांच हजार एक सो रुपए की राशि का चैक का उपहार दिया*। क्रीड़ा अधिकारी संतोष कुमार ने बच्चों की हौसला अफजाई की । और उजाला को प्रतीक चिन्ह और पगड़ी,शाल पहनाई।
साथ ही मुजाहिद अली  ने उजाला के प्रशिक्षक रणदीप सिंह को शाल पगड़ी और प्रतीक चिन्ह देकर स्वागत और सम्मान किया।
नासिर खान नितिन मेहरा ने भी उजाला के लिए सराहना करते हुए दुआएं की इस अवसर पर एथलेटिक्स एसोसिएशन के जिला सचिव फरहत अली खान ने सभी खिलाडियों और सम्मानित व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया अय्यूब खान सोलत अली खान फहीम कुरैशी यासीन खान मुस्कान कशिश रोशनी मशीयत फातिमा माही आंचल खेमपाल बाबू एवम् बड़ी संख्या खिलाड़ी उपस्थित रहे।

Thursday, 10 July 2025

सावन महीना और आदिदेव भगवान शिव माता पार्वती - डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि (एक पूर्ण प्रमाणिक वैज्ञानिक लेख)

सावन महीना और आदिदेव भगवान शिव  माता पार्वती - डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि (एक पूर्ण प्रमाणिक वैज्ञानिक लेख)
 भारतीय ग्रंथों के अनुसार मानव सभ्यता का उदय अब से लगभग 2 अरब वर्ष पहले हुआ था और भारतीय ऋषि मुनियों ने देश काल समय परिस्थिति ऋतु सौरमंडल और ब्रह्मांड सहित 200 खरब ब्रहमांडों के हिसाब से एक अद्भुत जीवन शैली का विकास किया। 
इसीलिए दुनिया की सारी सभ्यताएं पर्व त्यौहार उत्सव मिट गए लेकिन भारत की संस्कृति सभ्यता ज्यों की त्यों है दुनिया की कोई भी अन्य सभ्यता 2000 वर्ष से ज्यादा नहीं चली है ।यहां तक की नई इस्लामी सभ्यता भी विनाश होने के कगार पर है।

सावन महीना हरा-भरा वनस्पतियों हरियालीजल और वर्षा का मौसम होता है स्वाभाविक रूप से इस मौसम में जीवाणु कीटाणु विषाणु रोगाणु  सांप बिच्छू विषैले जीव जंतु बहुत संख्या में होते हैं और आसानी से हर जगह छिप जाते हैं इसीलिए सावन में पत्तेदार हरी सब्जियां और साग  गुड़ खाने का निषेध है और मांस मछली खाना पूरी तरह से वर्जित है क्योंकि इसी महीने मछलियों के बीज विकसित होते हैं और यह मछलियों के प्रजनन का सर्वश्रेष्ठ समय होता है इसलिए सावन भर मछली खाने और मारने का भी निषेध है ।

इसीलिए पूरे सावन महीने भर भगवान शिव माता पार्वती का महीना माना जाता है और धर्म-कर्म कांवड़ यात्रा शिवजी का जलाभिषेक महारुद्राभिषेक चलता रहता है इस बार सावन महीना शुक्रवार को शुरू हो रहा है और 9 अगस्त को सोमवार के दिन ही समाप्त हो रहा है जो विस्मयकारी है सोमवार शुक्रवार वैसे भी भगवान शिव का दिन है और  इस बार केवल 4 सोमवार सावन में पड़ रहे हैं इसमें तमाम योग ग्रह नक्षत्रमिलकर इस सावन महीने को बहुत ही उत्तम बना दे रहे हैं इस बार  सावन महीने भर जमकर बारिश होगी और फसलें भी बहुत अच्छा होगी ।

भगवान शिव की पूजा-अर्चना केवल मन मात्र से करने से ही वह संतुष्ट हो जाते हैं इस बार पहले सोमवार को माया स्वरूप भगवान शिव दूसरे को महाकालेश्वर भगवान शिव तीसरे को अर्धनारीश्वर चौथे को तंत्र के ईश्वर और पशुओं को भोलेनाथ की पूजा की जाएगी जहां तक हो सके शुद्ध चित्त होकर मन मस्तिष्क का पूर्ण विकास करते हुए भौतिक व मानसिक अथवा आध्यात्मिक रुप से ही भगवान शिव भगवती पार्वती का जप तप करने से वह पूर्ण प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन शर्त इतनी ही है कि सावन माह व्रत करने के बाद मनुष्य अपने जीवन के पापकर्म अश्लील काम व्यभिचार गंदी आदतें और चोरी बेईमानी वास्तव में छोड़ दें नहीं तो उसे घोर कष्ट मिलता है शिवजी का व्रत करने और रुद्राक्ष धारण करने के बाद भी गलत काम करने वाले बहुत ही कष्ट पाते हैं ‌

ॐ नमः शिवाय अथवा भगवान शिव भगवती पार्वत्यै नमो नमः  या ऊं त्र्यंबक यजामहे सुगंधि पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बंधानाम   मृत्योर्मुक्षीय मामृताम  परम सिद्ध मंत्र का जाप करने से तमाम रोग शोक कष्टों से छुटकारा तो मिलता ही है अपनी पूजा तपस्या के अनुसार स्वप्न में अथवा साक्षात सामने ही भगवान शिव भगवती पार्वती का दर्शन होता है इसमें कोई संदेह नहीं है ।
जितना ही ज्यादा जटिलता और कर्मकांड बढ़ाया जाता है उतना ही पूजा पाठ का फल उतना ही कम होता जाता है इसलिए भगवान शिव की जय माता पार्वती की जय बोलते हुए सरल सात्विक रूप से करना चाहिए। 

भगवान शिव के चरित्र और उनके स्वरूप को ध्यान से देखें तो सारा ब्रह्मांड उत्पन्न और नष्ट होने का परम रहस्य उनके शरीर में समाया हुआ है सिर पर घटाएं जटाओं पर चंद्रमा गंगा की धवल धार और गले में काल कराल नाग देवता वक्षस्थल पर गंगा गले में हलाहल विष हृदय में अमृत बाघंबर का वस्त्र चट्टान पर सीधे खड़े होने की मुद्रा ब्रह्मांड पैदा करनेवाले डमरू का निनाद और अल्फा बीटा गामा किरणों और लेसर तथा क्वासर और लेजर की शक्तियों से युक्त है उनका परम भयानक त्रिशूल और पाशुपतास्त्र सब कुछ परम रहस्य के केंद्र हैं उनके तीनों नेत्र इलेक्ट्रॉन प्रोटान न्यूट्रान और अल्फा बीटा गामा किरणों के संयुक्त रूप हैं । उनका पाशुपतास्त्र परम ब्रम्हांडीय महा बम है जो कुछ पलों में 200 खरब ब्रह्मांडो और 200 खरब प्रति महाब्रह्मांड  एक खरब ब्लैक होल्स नष्ट करने में समर्थ हैं तो उनका डमरू पल मात्र में ही माता भगवती की कृपा से इतने ही ब्रह्मांड करण और प्रति ब्रह्मांड ऊर्जा और प्रति उर्जा सबकुछ पैदा करने में सक्षम हैं भगवती माता पार्वती और माता काली ब्लैक होल्स और व्हाइट हाउस की प्रतीक हैं जो शिवजी की स्त्री अथवा परिणयात्मक परम शक्तियां हैं इन सब का विस्तृत वर्णन कभी फिर विस्तार से किया जाएगा ।  डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह मौसम विद ज्योतिर्विद न्यायविद

Wednesday, 9 July 2025

एक नगर में था। उस नगर के कलेक्टर ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं अपनी मां को भी चाहता हूं कि आपके सुनने के लिए लाऊं, लेकिन मेरी मां की उम्र नब्बे के करीब पहुंच गई, और आपकी बातों से मैं परिचित हूं, तो मैं डरता हूं कि इस बुढ़िया को लाना कि नहीं लाना? क्योंकि वह तो चौबीस घंटे माला जपती रहती है, राम-राम जपती रहती है।

मैं एक नगर में था। उस नगर के कलेक्टर ने मुझे फोन किया और कहा कि मैं अपनी मां को भी चाहता हूं कि आपके सुनने के लिए लाऊं, लेकिन मेरी मां की उम्र नब्बे के करीब पहुंच गई, और आपकी बातों से मैं परिचित हूं, तो मैं डरता हूं कि इस बुढ़िया को लाना कि नहीं लाना? क्योंकि वह तो चौबीस घंटे माला जपती रहती है, राम-राम जपती रहती है। सोती है तो भी हाथ में माला लिए ही सोती है। तीस वर्ष से यह क्रम चलता है, तो मैं डरता हूं इस बुढ़ापे में आपकी बातें सुन कर कहीं उसको आघात और चोट न लग जाए, कहीं वह विचलित न हो जाए व्यर्थ ही और अशांत न हो जाए, तो मैं लाऊं या न लाऊं? उसकी उम्र नब्बे वर्ष।

मैंने उनसे कहा, अगर उम्र कुछ कम होती तो मैं कहता, दुबारा आऊंगा तब ले आना। उम्र नब्बे वर्ष है इसलिए ले ही आना, क्योंकि दुबारा मिलना हो सके इसका कोई पक्का भरोसा नहीं। 

वे अपनी मां को लेकर आए। मैंने देखा उनकी मां माला लिए ही आई हुई थी। हाथ में माला वह चलती ही रहती है। बात सुनने के बाद वे चले गए, दूसरे दिन आए और मुझसे कहने लगे, मैं बहुत हैरान हो गया हूं। आपने तो ऐसी बातें कहीं कि मुझे लगा कि जैसे मेरी मां को जान कर ही आप कह रहे हैं। मुझे लगा मुझसे गलती हो गई जो मैं आपको बता कर अपनी मां को लाया। आप तो जैसे मेरी मां को ही सारी बातें कह रहे हों, ऐसा मुझे लगने लगा। और मैं बहुत डरा हुआ रहा। लौटते में कार में मैंने अपनी मां को पूछा कि तुम्हें चोट तो नहीं लगी, कुछ बुरा तो नहीं लगा? मेरी मां कहने लगी, बुरा? चोट? उन्होंने कहा, माला से कुछ भी नहीं होगा, मुझे बात बिलकुल ठीक लगी, तीस साल का मेरा अनुभव भी कहता है कि कुछ भी नहीं हुआ, मैं माला वहीं छोड़ आई। 

इतना साहस। तो मैंने उनसे कहा, तुम्हारी मां तुमसे ज्यादा जवान है। साहस व्यक्ति को युवा बनाता है। छोड़ने का हममें जरा भी साहस नहीं है। इसलिए हम अटके खड़े रह जाते हैं। और व्यर्थ बातें भी छोड़ने का साहस नहीं है, तब तो बहुत कठिनाई हो जाती है। 

शून्यता पा लेनी बहुत सरल है, साहस चाहिए। 

क्या करें शून्यता पाने को? 

इन तीन सीढ़ियों के पहले कुछ भी नहीं किया जा सकता, एक बात। इन तीन सीढ़ियों के बाद बहुत कुछ किया जा सकता है। और बहुत सरल सी बात है, अगर चित्त के प्रति चित्त में चलती हुई जो विचार की धारा है, दिन-रात चल रही है, विचार और विचार और विचार, चित्त में विचारों की शृंखला चल रही है। जैसे रास्ते पर लोग चलते हैं, ऐसा ही चित्त में विचार चलते हैं। यह विचारों की भीड़ चल रही है चित्त में। इसके प्रति अगर कोई चुपचाप जागरूक हो जाए, साक्षी बन जाए, बस और कुछ भी न करे। लड़ने की जरूरत नहीं है, राम-राम जपने की जरूरत नहीं है। क्योंकि राम-राम जपना खुद ही अशांति का एक रूप है। एक आदमी राम-राम, राम-राम कर रहा है, यह आदमी बहुत अशांत है, और कुछ भी नहीं। क्योंकि शांत आदमी इस तरह की बकवास करता है, एक ही शब्द को लेकर दोहराता है बार-बार? यह आदमी अशांत ही नहीं है, पागल होने के करीब है। चूंकि हम निरंतर इस बात को मान बैठे हैं कि राम-राम जपना बड़ा अच्छा है। हम फिकर नहीं कर रहे। यही आदमी अगर एक कोने में बैठ कर कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी कहने लगे, तो हम चिंतित हो जाएंगे। यही आदमी अगर कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी कहने लगे, तो हम चिंतित हो जाएंगे। भागेंगे, कहेंगे कि चिकित्सा करवानी है, हमारे घर में एक व्यक्ति कुर्सी, कुर्सी, कुर्सी घंटे भर तक बैठ कर कहता रहता है। लेकिन राम-राम कहने में कोई फर्क है? एक ही बात कोई शब्द को लेकर दोहराना विक्षिप्त होने की शुरुआत है, स्वस्थ होने की नहीं। चित्त रुग्ण हो रहा है। न तो राम-राम की जरूरत है, जिसको आप जप कहते हैं, न मंत्रों की जरूरत है। चित्त को शांत करना है। और आप व्यर्थ की बातें दोहरा कर उसको अशांत कर रहे हैं शांत नहीं। 

कुछ मत दोहराइए, कोई भगवान का नाम नहीं है। कोई शब्द-मंत्र नहीं है। कुछ दोहराने की जरूरत नहीं है। फिर चुपचाप बैठ कर मन में जो अपने आप चल रहा है कृपा करके उसको ही देखिए, अपनी तरफ से और मत चलाइए। वैसे ही काफी चल रहा है अब आप और काहे को चलाने की कोशिश कर रहे हैं। जो मन में चल रहा है अपने आप, आप उसके किनारे बैठ कर चुपचाप देखते रहिए, बस साक्षी हो जाइए, जस्ट ए विटनेस, सिर्फ एक देखने वाले। बुरा चले तो भी निकालने की कोशिश मत करिए, क्योंकि निकालने की कोशिश में आप सक्रिय हो गए, फिर साक्षी न रहे। हटाने की कोशिश मत करिए किसी विचार को। किसी विचार को लाने की कोशिश भी मत करिए। क्योंकि दोनों हालत में आप कूद पड़े धारा में, बाहर खड़े न रहे। मन की धारा के किनारे तटस्थ तट पर बैठ जाइए और देखते रहिए, मन को चलने दीजिए, चुपचाप देखते रहिए। और कुछ भी मत करिए,सिर्फ देखना, सिर्फ दर्शन पर्याप्त है। आप थोड़े ही दिनों में पाएंगे कि देखते ही देखते मन की धारा क्षीण होने लगी, मन की नदी का पानी सूखने लगा। जैसा आपकी गांव की नदी का सूखा रह जाता है, वैसे ही मन का पानी धीरे-धीरे सूखने लगेगा। आप देखते रहिए, धीरे-धीरे अनुभव होने लगेगा आपको कि देखते ही देखते बिना कुछ किए मन की धारा क्षीण होने लगी है, और एक दिन आप चकित हो जाएंगे कि आप बैठे हैं और मन की धारा में कहीं कोई विचार नहीं है। जिस दिन भी यह अनुभव आपको हो जाएगा, उसी दिन आपको पता चल जाएगा कि दर्शन विचार की धारा को तोड़ने की विधि है। अ-दर्शन मर्ूच्छित भाव से विचार में पड़े रहना विचार को बढ़ाने की विधि है। हम मर्ूच्छित भाव से विचार में पड़े रहते हैं, विचार को देखते नहीं। बस इसके अतिरिक्त और कोई बंधन नहीं है विचार के। 

जिस दिन भी आप द्रष्टा होने में समर्थ हो जाते हैं उसी दिन विचार विलीन हो जाते हैं। और तब जो शेष रह जाता है वह है शांति, वह है निर्विकल्प दशा, वह है समाधि, वह है ध्यान, और भी कोई नाम, जिसको जो मर्जी हो दे सकता है। वह है चित्त की निर्विकार स्थिति। उस दशा में ही जाना जाता है जीवन, उस दशा में ही पहचाना जाता है सत्य, उस दशा में ही मिलन हो जाता है उससे जिसे भक्त भगवान कहते हैं, ज्ञानी आत्मा कहते हैं, विचारशील लोग सत्य कहते हैं। सत्य की उपलब्धि ही मुक्ति है। उसको जानते ही व्यक्ति के जीवन में फिर कोई बंधन, कोई दुख, कोई मृत्यु नहीं रह जाती। 
इस दिशा में थोड़ा प्रयोग करें और देखें। क्योंकि इस दिशा में तो प्रयोग करके देखा ही जा सकता है। यह दिशा तो सिर्फ अनुभव की दिशा है। इसमें कोई और आपके साथ कोई सहयोग नहीं कर सकता। कोई आपको पकड़ कर समाधि में नहीं ले जा सकता। आपको ही श्रम करना होगा। 

और मैं कहता हूं, अत्यंत सरल है समाधि को उपलब्ध करना, अगर पहले की सीढ़ियां चढ़ने का साहस आपमें हो। 
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प्रगति के मूक निर्माता: दाऊदी बोहरा किस तरह भारत के विकास को आकार देते

*प्रगति के मूक निर्माता: दाऊदी बोहरा किस तरह भारत के विकास को आकार देते हैं*                                                                                       भारत की विविधता की निरंतर विकसित होती कहानी में, शिया मुसलमानों का एक संप्रदाय, दाऊदी बोहरा समुदाय; एक शांत लेकिन उल्लेखनीय अध्याय लिखता है। उनकी कहानी सुर्खियों में नहीं, बल्कि स्थानीय बाजारों की धड़कनों में, परिवार द्वारा संचालित उद्यमों की लचीलापन में, और उनके विश्वास और उनके वित्त दोनों को निर्देशित करने वाले गहरे नैतिक कोड में लिखी गई है। हालाँकि उनकी संख्या कम है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने में उनका योगदान गहरा और स्थायी दोनों है। मुंबई, सूरत, चेन्नई, इंदौर और उससे आगे के शहरों में फैले दाऊदी बोहरा व्यापार में अपनी ईमानदारी, काम में अनुशासन और आचरण में गरिमा के लिए व्यापक रूप से पहचाने जाते हैं। बोहरा परिवारों की पीढ़ियों ने लाभ से परे उद्देश्य की भावना के साथ व्यवसायों का पोषण किया है। चाहे वह संकरी गली में एक छोटी सी दुकान हो या दुनिया भर में माल भेजने वाला कोई एक्सपोर्ट हाउस, उनके उद्यम विनम्रता और उत्कृष्टता के एक दुर्लभ मिश्रण से प्रेरित होते हैं। ईमानदारी के लिए समुदाय के गहरे सम्मान का मतलब है कि सौदे सिर्फ़ हस्ताक्षरों से नहीं, बल्कि भरोसे से होते हैं; एक ऐसी मुद्रा जिसका वे सोने से भी ज़्यादा महत्व रखते हैं। उनके आर्थिक दर्शन के मूल में एक गहरा आध्यात्मिक सिद्धांत निहित है: सिर्फ़ अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के कल्याण के लिए कमाना। यह नैतिकता उनके परोपकारी प्रयासों में झलकती है, जो उनके व्यवसाय में दिखाई जाने वाली देखभाल को दर्शाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, भूख से राहत; ये दान के कभी-कभार किए जाने वाले कार्य नहीं हैं, बल्कि निरंतर प्रतिबद्धताएँ हैं, जिन्हें अक्सर चुपचाप और लगातार किया जाता है। मुंबई में सैफी अस्पताल, जिसे समुदाय द्वारा बनाया और समर्थित किया गया है, हर साल हज़ारों लोगों की सेवा करता है, जो धार्मिक और आर्थिक सीमाओं को पार करते हुए देखभाल प्रदान करता है। शायद उनके समुदाय-संचालित विकास का सबसे शक्तिशाली उदाहरण दक्षिण मुंबई में भिंडी बाज़ार पुनर्विकास परियोजना है। सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट की अगुवाई में, यह परियोजना एक सदी पुराने, भीड़भाड़ वाले इलाके को एक आधुनिक, सुरक्षित और समावेशी स्थान में बदल रही है। 3,000 से ज़्यादा परिवारों और एक हज़ार से ज़्यादा छोटे व्यवसायों को बिना किसी लागत के सम्मान के साथ पुनर्वासित किया जा रहा है। यह सिर्फ़ रियल एस्टेट नहीं है; यह सपनों का नवीनीकरण है। कई परिवार जो पीढ़ियों से ढहती इमारतों में रह रहे हैं, उनके लिए यह पहली बार है जब वे ऐसे घर में कदम रखेंगे जो सुरक्षित, स्वच्छ और उम्मीदों से भरा हुआ लगता है।
दाऊदी बोहरा समुदाय को जो चीज़ वाकई असाधारण बनाती है, वह है धर्म को ज़िम्मेदारी से अलग करने से उनका चुपचाप इनकार। सामुदायिक देखभाल की व्यवस्था के ज़रिए चलने वाली उनकी रसोई सुनिश्चित करती है कि कोई भी भूखा न सोए। उनके व्यवसाय जाति, धर्म या पृष्ठभूमि की बाधाओं को पार करते हुए सभी क्षेत्रों के लोगों को रोज़गार देते हैं। उनका विकास कार्य अक्सर सुदूर आदिवासी इलाकों तक पहुँचता है, जहाँ जल संरक्षण, पोषण अभियान और कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम न सिर्फ़ आजीविका, बल्कि सम्मान भी बहाल कर रहे हैं।
एक ऐसी दुनिया में जो अक्सर शोर को पुरस्कृत करती है, दाऊदी बोहरा मौन के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध हैं; लगातार काम करने, सार्थक देने और नैतिक जीवन जीने का मौन। वे श्रेय या प्रशंसा की तलाश नहीं करते, लेकिन उनका प्रभाव उन लोगों के जीवन में दिखाई देता है जिन्हें वे ऊपर उठाते हैं, जिन शहरों को वे आकार देते हैं और जिन मूल्यों को वे संरक्षित करते हैं। उनकी सफलता कोई अलग-थलग जीत नहीं है, बल्कि भारत के विकास और करुणा के बड़े ताने-बाने में बुना गया एक धागा है।
जैसे-जैसे भारत आर्थिक विकास की अपनी यात्रा में आगे बढ़ रहा है, दाऊदी बोहरा समुदाय हमें याद दिलाता है कि सच्ची प्रगति केवल संख्या या बुनियादी ढांचे में नहीं बल्कि ईमानदारी, करुणा और उद्देश्य की साझा भावना में मापी जाती है। उनके जीवन के तरीके में, व्यवसाय पूजा बन जाता है, सेवा शक्ति बन जाती है, और समुदाय एक साथ उठने और कभी किसी को पीछे न छोड़ने का सामूहिक वादा बन जाता है।
फरहत अली खान
एम ए गोल्ड मेडलिस्ट

बुद्ध घर लौटे। रवींद्रनाथ ने एक बहुत व्यंग्य—कथा लिखी है, एक व्यंग्य—गीत लिखा है। बुद्ध घर लौटे। यशोधरा नाराज थी। छोड़कर, भागकर चले गए थे। गुस्सा स्वाभाविक था। और बुद्ध इसीलिए घर लौटे कि उसको एक मौका मिल जाए। बारह वर्ष का लंबा क्रोध इकट्ठा है, वह निकाल ले। तो एक ऋण ऊपर है, वह भी छूट जाए।बुद्ध वापस लौटे। तो

बुद्ध घर लौटे। रवींद्रनाथ ने एक बहुत व्यंग्य—कथा लिखी है, एक व्यंग्य—गीत लिखा है। बुद्ध घर लौटे। यशोधरा नाराज थी। छोड़कर, भागकर चले गए थे। गुस्सा स्वाभाविक था। और बुद्ध इसीलिए घर लौटे कि उसको एक मौका मिल जाए। बारह वर्ष का लंबा क्रोध इकट्ठा है, वह निकाल ले। तो एक ऋण ऊपर है, वह भी छूट जाए।
बुद्ध वापस लौटे। तो रवींद्रनाथ ने अपने गीत में यशोधरा द्वारा बुद्ध से पुछवाया है; और बुद्ध को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। यशोधरा से पुछवाया है रवींद्रनाथ ने। यशोधरा ने बुद्ध को बहुत— बहुत उलाहने दिए और फिर कहा कि मैं तुमसे यह पूछती हूं कि तुमने जो घर से भागकर पाया, वह क्या घर में मौजूद नहीं था?
बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए। यह तो वे भी नहीं कह सकते कि घर में मौजूद नहीं था। और अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह सकते। अब पाकर तो बिलकुल ही नहीं कह सकते। आज से बारह साल पहले यशोधरा ने अगर कहा होता कि तुम जिसे पाने जा रहे हो, क्या वह घर में मौजूद नहीं है? तो बुद्ध निश्चित कह सकते थे कि अगर मौजूद घर में होता, तो अब तक मिल गया होता। नहीं है, इसलिए मैं खोजने जा रहा हूं। लेकिन अब तो पाने के बाद बुद्ध को भी पता है कि जो पाया है, वह घर में भी पाया जा सकता था। तो बुद्ध बड़ी मुश्किल में पड़ गए।

रवींद्रनाथ तो बुद्ध को मुश्किल में देखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बात आगे नहीं चलाई। लेकिन मैं नहीं मानता हूं कि बुद्ध उत्तर नहीं दे सकते थे। वह रवींद्रनाथ बुद्ध को दिक्कत में डालना चाहते थे, इसलिए बात यहीं छोड़ दी उन्होंने। यशोधरा ने पूछा, और बुद्ध मुश्किल में पड़ गए। लेकिन निश्चित मैं जानता हूं कि अगर बुद्ध से ऐसा यशोधरा पूछती, तो बुद्ध क्या कहते!

बुद्ध ने निश्चित कहा होता कि मैं भलीभांति जानता हूं कि जिसे मैंने पाया, वह यहां भी पाया जा सकता है। लेकिन बिना दौड़े यह पता चलना मुश्किल था कि दौड़ व्यर्थ है। यह दौड़कर पता चला। दौड़—दौड़कर पता चला कि बेकार दौड़ रहे हैं। जिसे खोजने निकले थे, वह यहीं मौजूद है। लेकिन बिना दौड़े यह भी पता नहीं चलता। दौड़कर भी पता चल जाए, तो बहुत है। हम काफी दौड़ लिए, फिर भी कुछ पता नहीं चलता। एक चीज चूकती ही चली जाती है; जो हम हैं, जो भीतर है, जो यहां और अभी है, वह हमें पता नहीं चलता। निश्चल ध्यान योग का अर्थ है, दौड़ को छोड़ दें और कुछ घड़ी बिना दौड़ के हो जाएं; कुछ घड़ी, घड़ीभर, आधा घड़ी, बिना दौड़ के हो जाएं। ध्यान का इतना ही अर्थ है।

ओशो 
गीता दर्शन