Monday, 3 November 2025

प्रश्न : आप महाविद्यालय में प्राध्यापक थे, और आज भी आप शिक्षक हैं गुरु। आप हमारे विद्यालयों और महाविद्यालयों में किस तरह की शिक्षा प्रणाली लाना चाहेंगे ?

प्रश्न : आप महाविद्यालय में प्राध्यापक थे, और आज भी आप शिक्षक हैं गुरु। आप हमारे विद्यालयों और महाविद्यालयों में किस तरह की शिक्षा प्रणाली लाना चाहेंगे ?

ओशो :  मैं अध्यापक रहा हूं। और विश्वविद्यालय में मैंने पढ़ाना छोड़ दिया है क्योंकि मैं अपनी अंतरात्मा के विपरीत कुछ भी नहीं कर सकता। और तुम्हारी पूरी शिक्षा प्रणाली मनुष्य की सहायता करने के लिए नहीं है,  उसे पंगु बनाने के लिए है। तुम्हारी शिक्षा प्रणाली न्यस्त स्वार्थी को मजबूत करने के लिए बनी है।  मैं यह करने मैं असमर्थ था।  मैंने इसे करने से इनकार कर दिया।

वास्तविक शिक्षा विद्रोही होगी,  क्योंकि उसकी भविष्य की ओर होंगी,  अतीत की ओर नहीं।  प्रकृति ने तुम्हारे सिर में पीछे की और आंखें नहीं दी है।  अगर प्रकृति यही चाहती कि तुम पीछे की ओर देखते रहो तो उसने तुम्हें आगे की ओर देखने के लिए व्यर्थ ही आंखें दीं।

भारत की शिक्षा प्रणाली वही है,  जो अंग्रेज सरकार ने भारत के मन पर थोपी है।  उनका उददेश्य केवल क्लर्क और गुलाम पैदा करने का था।  और वही शिक्षा प्रणाली चलती है क्योंकि आज जो ताकत में हैं,  अब वे क्लर्क और गुलाम तैयार करना चाहते हैं। कोई नहीं चाहता कि सत्य बोला जाए।  भविष्य का निर्माण करने में किसी का रस नहीं है,   बल्कि सभी अतीत का शोषण करना चाहते हैं।

मैं चाहता हूं कि शिक्षा सरकार की अनुगामिनी न हो।  शिक्षा इस सड़े हुए समाज की परिपुष्टि न करे बल्कि मनुष्य के प्रति, विकासमान बच्चों के प्रति समर्पित हो।

मनुष्य का शरीर है,  लेकिन शिक्षा मनुष्य के शरीर के लिए कुछ नहीं करती।  जब कि हम जानते हैं कि मनुष्य का शरीर शक्तिशाली,  स्वस्थ और युवा बना रहने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।  लेकिन शरीर की किसी को फिक्र ही नहीं है।  शिक्षा में ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं है।

मनुष्य का मन है,  लेकिन शिक्षा सिर्फ इसकी फिकर करती है कि सत्ताधारीयों की सेवा करने के लिए मन को संस्कारित किया जाए,  ताकि वह वह उनकी खिदमत कर सके। यह मनुष्यता के खिलाफ है। मन को स्वच्छ,  पैना और बुद्धिमान बनाना चाहिए। लेकिन बुद्धिमान मन कोई नहीं चाहता।  प्रखर चेतना कोई नहीं चाहता।  ये खतरनाक बातें है।  क्योंकि वे किसी भी मूढ़ता के आगे सिर नहीं झुकाएंगे।  शिक्षा को इस अर्थ में विद्रोही होना चाहिए कि आदमी के पास अपने बल पर हां या ना कहने का ताकत होनी चाहिए।

ओशो,
फिर अमृत की बूंद पड़ी

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