Friday, 2 December 2022

समानता के सिद्धांत की धज्जियां उड़ाता...... हमारा कानून....... कहां तक जायज*?👉 *समानता के सिद्धांत की धज्जियां*

👉 *समानता के सिद्धांत की धज्जियां उड़ाता...... हमारा कानून....... कहां तक जायज*?

👉 *समानता के सिद्धांत की धज्जियां*
👉 *क्या यह लज्जा की बात नहीं कि कानून की निगाह में सभी मत - मजब एक जैसे नहीं है*.. ❓
👉 *इससे तो लगभग सभी अवगत हैं कि इमामो को वेतन मिलता है! यह मिलना भी चाहिए, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह सरकारी कोष से मिलना चाहिए.. ❓ पिछले दिनों जब केंद्रीय सूचना आयुक्त ने यह कहा कि करदाताओं के पैसे से इमामो को वेतन देना संविधान की भावना का उल्लंघन है, तब देश इससे अवगत हुआ कि  उल्लंघन के लिए सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला उत्तरदाई है! सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन की एक याचिका पर वक्फ बोर्ड को यह आदेश दिया था कि जो मस्जिद उनके द्वारा संचालित की जाती हैं, उनके इमामो को वे वेतन दें! इसके बाद कई राज्यों के वकफ बोर्डों ने ऐसा करना शुरू कर दिया! कुछ पहले से कर रहे थे! इसमें कोई हर्ज नहीं, लेकिन समस्या यह है कि दिल्ली सरकार दिल्ली वक्फ बोर्ड को प्रतिवर्ष करीब ₹62 करोड़ रुपए का अनुदान देती है! दिल्ली वक्फ बोर्ड की अपनी स्रोतों से वार्षिक आय लगभग  3 करोड़ 60 लाख रुपए ही है*!!
👉 *दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधीन 180 से अधिक मस्जिदें हैं! जनवरी 2019 में इन मस्जिदों के इमामो और मुंअज्जीनो यानी अजान देने वालों के वेतन में वृद्धि की घोषणा करते हुए कहा गया कि अगले म मांह से उन्हें क्रमशः 18 और ₹16 हजार रुपए मासिक दिए जाएंगे! दिल्ली में इसके अलावा 2 हजार से अधिक मस्जिदें ऐसी हैं, जिन पर वक्त बोर्ड का सीधा नियंत्रण नहीं है! फिर भी जनवरी 2019 में ही दिल्ली वक्फ बोर्ड ने इन सभी मस्जिदों के इमाम और मस्जिदों की क्रमशः 14 और 12 हजार रुपए वेतन देने की घोषणा की! उक्त घोषणा दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह खान ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में कई! इस घोषणा पर केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार वक्त बोर्ड के फैसलों के साथ है! स्पष्ट है कि करीब 3:30 करोड़ सालाना आय वाला दिल्ली वक्फ बोर्ड इतनी अधिक मस्जिदों के इमाम और मस्जिदों को वेतन देने में इसलिए समर्थ है, क्योंकि उसे दिल्ली सरकार अच्छा - खासा वित्तीय अनुदान देती है! दिल्ली की तरह हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, आदि राज्यों के भी वक्फ बोर्ड अपनी मस्जिदों के इमाममो को वेतन देते हैं! यह पता नहीं कि वह कितना वेतन देते हैं.. ❓ यह भी ज्ञात नहीं कि राज्य सरकार ने उन्हें अनुदान देती हैं या नहीं.. ❓ करदाताओं के पैसे से इमामो को वेतन देने का मामला इसलिए सामने आया, क्योंकि सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने इस आशय की एक अर्जी लगाई थी कि क्या दिल्ली सरकारी इमामो को वेतन देती है.. ❓ दिल्ली सरकार के संबंधित विभागों ने इसका जवाब देने में आनाकानी करना ही बेहतर समझा!! इसी कारण यह मामला सूचना आयोग के पास पहुंचा! इसकी जड़ में सुप्रीम कोर्ट का आदेश निकला! समझना कठिन है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले के जरिए समानता के सिद्धांत को धता कैसे बताया जा सकता है*... ❓
  👉 *निसंदेह किसी संस्था- समूह को इमामो और मुंअजिंजीनो के भरण पोषण की चिंता करनी ही चाहिए!! ऐसी ही चिंता पुजारियों, पादरियों, आदि की भी करनी चाहिए! यह उम्मीद की जाती है कि किसी ने किसी संस्था समूह की ओर से यह चिंता की जा रही होगी, लेकिन क्या इन संस्थाओं- समूह और राज्य सरकारों से अनुदान भी मिलता है.. ❓ चर्च, गुरुद्वारों, मस्जिदों, को चंदे चढ़ावे के रूप में जो भी धन मिलता है! वे उसे अपनी तरह खर्च करने को स्वतंत्र है! आश्चर्य है कि ऐसी स्वतंत्रता देश के तमाम मंदिरों अथवा उनका नियमन करने वाले न्याशो को नहीं है.! क्योंकि उन पर राज्य सरकारों का नियंत्रण है! यह नियंत्रण अंग्रेजों के जमाने से ही चला आ रहा है! यह एक देश- दो विधान का सटीक उदाहरण है कि चर्च, गुरुद्वारों, और मस्जिदों के संचालन का अधिकार तो इन समुदायों के पास हो, लेकिन मंदिरों के मामले में यह अधिकार राज्य सरकारों ने अपने पास ले रखा हो !! स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम का अस्तित्व में होना समानता और पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत का नग्न उल्लंघन है*
👉 *यह कानून मंदिरों के संचालन का अधिकार राज्य सरकारों को देता है! गिनती करना कठिन है कि राज्यों में कितने मंदिरों को चंदे और चढ़ावे में मिला धन राज्य सरकारें हड़प जाती है, लेकिन यह राशि लाखों करोड़ों रुपए में है! क्या यह लज्जा की बात नहीं कि कानून की निगाह में सभी मत- मजहब एक जैसे नहीं.. ❓ एक तरह से हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम के रूप में अनुच्छेद 370  सरीका कानून अस्तित्व में है! दुर्भाग्य से यह इकलौता ऐसा कानून नहीं! जैसे यह कानून विभिन्न मदावलमबियों में भेदभाव करता है! वैसे ही कुछ अन्य कानून भी हैं! एक तो वक्फ बोर्ड अधिनियम 1955 ही है! यह वक्फ बोर्डों को असीमित अधिकार प्रदान करता है! वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को अपनी घोषित कर सकते हैं! इसी कारण दिल्ली वक्फ बोर्ड ने राजधानी के अनेक मंदिरों को भी अपनी संपत्ति घोषित कर रखा है! इनमें से कुछ मंदिर ऐसे हैं, जो वक्फ बोर्ड अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले के हैं!! वक्फ बोर्ड अधिनियम वक्फ बोड़ों को जैसे अधिकार देता है, वैसे अधिकार तो सरकारों को भी नहीं है, क्योंकि वह किसी जमीन पर अपना दावा करने के साथ इस की सार्वजनिक घोषणा करती है! वक्फ को ऐसा करने की आवश्यकता नहीं! एक तरह से वक्फ बोर्ड सरकार से भी अधिक शक्तियों से लैस समानांतर सरकार है! इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है! इसी तरह धर्मस्थल अधिनियम को भी चुनौती दी गई है! यह दोनों कानून इस धारणा को ध्वस्त करने वाले हैं कि भारतीय संविधान की दृष्टि में सभी बराबर हैं*!!
👉 *स्वतंत्र पत्रकार की कलम से यदि मेरी ✍️लेखनी से किसी के दिल को आघात लगे तो मैं हृदय से क्षमा चाहता हूं*

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