Sunday, 5 February 2023

चतुराई चूल्हे पड़ी घूरे पड़ा अचार ।तुलसी राम भजन बिना चारो वर्ण चमार ।।*_


*आप बताइए शिक्षित कौन*




टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब एक बार वे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं। रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। *उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मंगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूंगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा।* 

पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ। टी एन शेषन उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कही फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। *उसने शेषन से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दुखी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।*

इस घटना के बाद टी.एन. शेषन को आजीवन यह ग्लानि रही कि *जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? शिक्षित कौन हुआ ? मैं या वो बालक ?*

*उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।*

*प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। जीवन तभी आनंददायक होता है जब आपकी शिक्षा से ज्ञान, संवेदना और बुद्धिमत्ता प्रकट हो।*

*सुविचार सप्रसंग कहानी के लिए
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_*चतुराई चूल्हे पड़ी घूरे पड़ा अचार ।तुलसी राम भजन बिना चारो वर्ण चमार ।।*_
_तुलसीदास जी महाराज इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि यदि मनुष्य का मस्तिष्क बहुत ही तीव्र हो अर्थात वह बहुत ही चतुर हो और उसका आचरण बहुत अच्छा हो परंतु भगवान श्रीराम से प्रेम ना हो तो उसकी चतुराई और उसका आचरण सब व्यर्थ ही है।_
_ऐसी चतुराई चूल्हे की आग में और ऐसा आचरण कचरे के गड्ढे में ही फेंकने के योग्य है ! भगवान राम से प्रेम के बिना चारों वर्ण सिर्फ चर्म से प्रेम करने वाले चर्मकार अर्थात चमार ही कहे जा सकते हैं *यहां चमार का अर्थ चर्म से प्रेम करने वाला अर्थात शरीर से प्रेम करने वाला* बाबा जी ने दर्शाया हैं।_
_हमारे जीवन मे सत्य वह पूंजी है,जिसे जितना व्यय करोगे,उतना ही जीवन आनन्दमय होगा, जबकि असत्य वह ऋण है, जिसे क्षणिक सुख के लिए आजीवन ब्याज सहित चुकाना होगा.।_
_जैसे उबलते पानी में कभी परछाई नहीं दिखती, ठीक उसी प्रकार परेशान मन से समाधान भी नहीं दिखते। शांत होकर देखिए सभी समस्याओं का हल मिल जायेगा.।_
_आज अपने प्रभु से  वैचारिक परिपक्वता और आचार संस्कार देने की अनुनय प्रार्थना के साथ।_
🪴 _*卐 जय दधिमथी माताजी 卐*_🪴
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[ *।श्रीहरिः।* 🌸🌸

             
वृन्दावन के वृक्षों की भी बड़ी विचित्र बात है:---

एक महात्मा ने अत्यन्त विश्वासपूर्ण स्वयं जाँच की हुई कई घटनाएँ  का वर्णन किया है।

एक पेड़ था, उसे काटने की तैयारी हुई। रात में एक मुसलमान दारोगा (Sub-Inspector)- को स्वप्न हुआ कि देखो, ‘मैं काशी में एक विद्वान् ब्राम्हण था, बहुत तपस्या करने पर मुझे व्रज में पेड़ होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। लोग कल मुझे काटने की तैयारी कर रहे हैं, तुम बचाओ। वह मुसलमान था, पर सब पता-ठिकाना- आदमी का नाम तक स्वप्न में बताया गया था। इसलिये उसे जाँचने की इच्छा हुई। जाँचने पर सब बातें ज्यों-की-त्यों मिलीं। उसे पहले कुछ भी इस विषय में ज्ञात नहीं था।

दूसरी घटना है- एक साधु जंगल में एक लता के नीचे शौच होने जाते थे। वहाँ कुछ आवाज आती, पर वे समझ नहीं पाते। फिर उनको या शायद उनके साथी को स्वप्न हुआ - ठीक याद नहीं; जिससे पता लगा कि उस लता के रूप में कहीं की एक स्त्री ने बड़ी भक्ति के फलस्वरुप जन्म धारण किया था। उसने बताया कि ‘तुम्हें स्त्री के पास जाकर शौच होने में लाज नहीं आती? प्रतिदिन तुम्हें चेतावनी देती हूँ, पर तुम समझते नहीं। देखो, व्रज की लता एवं वृक्षों के नीचे शौच मत जाया करो।’ भागवत में तो स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने यह बात कही है कि यहाँ के पेड़ प्रायः बड़े-बड़े ऋषि हैं, जो वृक्ष बनकर मेरा और श्रीबलरामजी का दर्शन करते हैं।

 व्रज में अब भी बहुतों को बहुत सुन्दर-सुन्दर अनुभव होते हैं। एक साधु थे। भगवान् के दर्शन के लिये सब जगह घूमे, पर कहीं कोई अनुभव नहीं हुआ। सोचा, अब अन्तिम जगह गिरिराज चलें! वहाँ किसी-न-किसी रूप में दर्शन देने की भगवान् अवश्य कृपा करेंगे। व्रज में आये। न जान, न पहचान। एकादशी का दिन था। फलाहार कहाँ मिले? एक बालक आया। बोला, ‘बाबाजी! मेरी माँ एकादशी करती है, ब्राम्हण जिमाने के लिये आपको बुला रही है!’ बाबाजी गये, बुढ़िया ने प्रसाद बड़े प्रेम से दिया। भरपेट खाकर फिर बोले-‘वह बालक कहाँ गया माई?’ बुढ़िया बोली-‘बालक कौन?’ वे बोले-‘जो हमें लाया था।’ बुढ़िया बोली-‘मेरा न तो कोई लड़का है, न मैंने किसी को भेजा था। आप आ गये। मैंने अतिथि समझकर आपका सत्कार कर दिया।’ ऐसी बहुत-सी घटनाएँ होती रहती हैं।

श्रीकृष्ण-कृपा से असम्भव सम्भव हो जाता है। श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि सुनकर वृन्दावन के पत्थर पिघल जाते थे। आप तो फिर भी मनुष्य हैं। किसी दिन कृपा करके यदि एक हलकी-सी स्वप्न झाँकी उन्होंने दिखायी तो बस, पागल होकर जीवन भर रोते ही रह जायँगे।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!
[ 🌸🌸 *।श्रीहरिः।* 🌸🌸

             
वृन्दावन के वृक्षों की भी बड़ी विचित्र बात है:---

एक महात्मा ने अत्यन्त विश्वासपूर्ण स्वयं जाँच की हुई कई घटनाएँ  का वर्णन किया है।

एक पेड़ था, उसे काटने की तैयारी हुई। रात में एक मुसलमान दारोगा (Sub-Inspector)- को स्वप्न हुआ कि देखो, ‘मैं काशी में एक विद्वान् ब्राम्हण था, बहुत तपस्या करने पर मुझे व्रज में पेड़ होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। लोग कल मुझे काटने की तैयारी कर रहे हैं, तुम बचाओ। वह मुसलमान था, पर सब पता-ठिकाना- आदमी का नाम तक स्वप्न में बताया गया था। इसलिये उसे जाँचने की इच्छा हुई। जाँचने पर सब बातें ज्यों-की-त्यों मिलीं। उसे पहले कुछ भी इस विषय में ज्ञात नहीं था।

दूसरी घटना है- एक साधु जंगल में एक लता के नीचे शौच होने जाते थे। वहाँ कुछ आवाज आती, पर वे समझ नहीं पाते। फिर उनको या शायद उनके साथी को स्वप्न हुआ - ठीक याद नहीं; जिससे पता लगा कि उस लता के रूप में कहीं की एक स्त्री ने बड़ी भक्ति के फलस्वरुप जन्म धारण किया था। उसने बताया कि ‘तुम्हें स्त्री के पास जाकर शौच होने में लाज नहीं आती? प्रतिदिन तुम्हें चेतावनी देती हूँ, पर तुम समझते नहीं। देखो, व्रज की लता एवं वृक्षों के नीचे शौच मत जाया करो।’ भागवत में तो स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने यह बात कही है कि यहाँ के पेड़ प्रायः बड़े-बड़े ऋषि हैं, जो वृक्ष बनकर मेरा और श्रीबलरामजी का दर्शन करते हैं।

 व्रज में अब भी बहुतों को बहुत सुन्दर-सुन्दर अनुभव होते हैं। एक साधु थे। भगवान् के दर्शन के लिये सब जगह घूमे, पर कहीं कोई अनुभव नहीं हुआ। सोचा, अब अन्तिम जगह गिरिराज चलें! वहाँ किसी-न-किसी रूप में दर्शन देने की भगवान् अवश्य कृपा करेंगे। व्रज में आये। न जान, न पहचान। एकादशी का दिन था। फलाहार कहाँ मिले? एक बालक आया। बोला, ‘बाबाजी! मेरी माँ एकादशी करती है, ब्राम्हण जिमाने के लिये आपको बुला रही है!’ बाबाजी गये, बुढ़िया ने प्रसाद बड़े प्रेम से दिया। भरपेट खाकर फिर बोले-‘वह बालक कहाँ गया माई?’ बुढ़िया बोली-‘बालक कौन?’ वे बोले-‘जो हमें लाया था।’ बुढ़िया बोली-‘मेरा न तो कोई लड़का है, न मैंने किसी को भेजा था। आप आ गये। मैंने अतिथि समझकर आपका सत्कार कर दिया।’ ऐसी बहुत-सी घटनाएँ होती रहती हैं।

श्रीकृष्ण-कृपा से असम्भव सम्भव हो जाता है। श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि सुनकर वृन्दावन के पत्थर पिघल जाते थे। आप तो फिर भी मनुष्य हैं। किसी दिन कृपा करके यदि एक हलकी-सी स्वप्न झाँकी उन्होंने दिखायी तो बस, पागल होकर जीवन भर रोते ही रह जायँगे।

नारायण! नारायण!! नारायण!!!
[ *बुधवार,21/12/22*

*आज की प्रेरणादायक कहानी* 

*💐कर्मों का खेल*

*कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी तथा पिता वसुदेव को छुड़ाया!!!*
*तब माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "बेटा, तुम तो भगवान हो, तुम्हारे पास असीम शक्ति है, फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की ?"*
*भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "क्षमा करें आदरणीय माता जी, क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था!"*
*माता देवकी आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा, "बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है ? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?"*
*भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे!"*
*माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, "फिर महारानी कौशल्या कौन हैं ?"*
*भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है!"*
*अर्थात्, प्रत्येक प्राणी को इस भू मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भोगना ही पड़ता है!यहां तक कि देवी-देवता भी इससे अछूते नहीं हैं!*

*💐शिक्षा💐*
*दोस्तों,अहंकार के बंगले में कभी प्रवेश नहीं करना चाहिए और मनुष्यता की झोपड़ी में जाने से कभी संकोच नहीं करना चाहिए!!!*

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