Wednesday, 1 March 2023

आजकल तो सब ओर क्रिकेट का ही जोर हैै; पर दो-तीन दशक पूर्व ऐसा नहीं था। तब हाकी, फुटबाल, वालीबाल आदि अधिक खेले जाते थे। हाकी में तो लम्बे समय तक भारत विश्व विजेता रहा।भारतीय हाकी की शैली को विश्व भर में विख्यात करने में कुँवर दिग्विजय सिंह ‘बाबू’ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

2 फरवरी/जन्म-दिवस

हाकी को समर्पित के.डी.सिंह ‘बाबू’

आजकल तो सब ओर क्रिकेट का ही जोर हैै; पर दो-तीन दशक पूर्व ऐसा नहीं था। तब हाकी, फुटबाल, वालीबाल आदि अधिक खेले जाते थे। हाकी में तो लम्बे समय तक भारत विश्व विजेता रहा।भारतीय हाकी की शैली को विश्व भर में विख्यात करने में कुँवर दिग्विजय सिंह ‘बाबू’ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

‘बाबू’ का जन्म 2 फरवरी, 1922 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी नगर में हुआ था। उनके पिता रायबहादुर ठाकुर रघुनाथ सिंह प्रसिद्ध वकील, साहित्यकार एवं समाजसेवी थे। वे टेनिस और बैडमिण्टन के अच्छे खिलाड़ी थे; पर बाबू को हाकी का शौक था। उन्होंने खेल जीवन का प्रारम्भ जिले के प्रसिद्ध महादेवा मेले से किया। 

वे प्रायः हाफ लाइन पर खेलते थे; पर उनके प्रशिक्षक चौधरी मुश्फिक साहब ने 1938 में दिल्ली में हुई प्रतियोगिता में उन्हें अगली पंक्ति (फारवर्ड लाइन) में खेलने को कहा। इसमें बाबू ने विपक्षी दल के ओलम्पिक में खेल चुके प्रसिद्ध खिलाड़ी मुहम्मद हुसैन को चकमा देकर अनेक गोल किये। इससे उनकी प्रसिद्धि रातोंरात बढ़ गयी।

बाबू के बड़े भाई भूपेन्द्र सिंह ‘रमेश’, नरेश ‘राजा’ और कुँवर सुखदेव सिंह ‘मोहन’ भी हाकी के अच्छे खिलाड़ी थे, जो राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलते थे। ह१की जगत में ध्यानचन्द और रूपसिंह को लोग जानते हैं। इन दोनों भाइयों ने वैश्विक प्रतियोगिताओं में कई बार भारत का प्रतिनिधित्व किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ओलम्पिक खेल स्थगित हो गये, अन्यथा बाबू और मोहन की जोड़ी भी इसी श्रेणी में थी।

1947 में बाबू श्रीलंका, इंग्लैण्ड, पूर्वी अफ्रीका, केन्या, युगाण्डा, और टांगानिका गये। इस दौरे में मेजर ध्यानचन्द दल के कप्तान थे। दल ने कुल मिलाकर 200 गोल किये, जिसमें से सर्वाधिक 60 गोल बाबू ने ही किये थे। 1948 में वे ओलम्पिक में जाने वाले भार ।
। इस प्रकार के भाव पूर्ण संदेश के लेखक एवं भेजने वाले महावीर सिंघल मो 9897230196

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