Wednesday 29 March 2023

भारत का प्राचीन इतिहास जब भी पढ़ा जाता है तो नदियों का जिक्र जरूर होता है, क्योंकि प्राचीन काल में भी कुछ नदियां जीवनदायक का काम करती थी और आज भी करती हैं

भारत का प्राचीन इतिहास जब भी पढ़ा जाता है तो नदियों का जिक्र जरूर होता है, क्योंकि प्राचीन काल में भी कुछ नदियां जीवनदायक का काम करती थी और आज भी करती हैं। 
गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी जैसी नदियों का पानी आज भी कई राज्यों और शहरों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इन नदियों के संरक्षण पर भी खासा ध्यान दिया जाता है। वैसे तो उत्तराखंड की धरती से दर्जनभर से अधिक नदियां निकलती हैं, लेकिन मंदाकिनी नदी एक ऐसी नदी है जो सामरिक महत्व के साथ-साथ पौराणिक कहानियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
*परंतुइस लेख में हम आपको मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल, इतिहास और पौराणिक कथाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे आप भी जरूर जानना चाहेंगे। आइए जानते हैं।*

मन्दाकिनी/मंदाकिनी नदी भारत के उत्तराखंड राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है। यह अलकनंदा नदी की एक उपनदी भी है। मंदाकिनी नदी उत्तराखंड के केदारनाथ के निकट से निलकती है। मंदाकिनी का स्रोत केदारनाथ के निकट चाराबाड़ी हिमनद है। सोनप्रयाग में मंदाकिनी नदी वासुकिगंगा नदी द्वारा जलपोषित होती है। रुद्रप्रयाग में यह नदी अलकनंदा नदी में मिल जाती है। इसके बाद अलकनन्दा नदी देवप्रयाग की ओर आगे बढ़ती है भागीरथी नदी से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। इसलिए देवप्रयाग को पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है।

भारत का जब भी प्राचीन और मध्यकाल इतिहास पढ़ा जाता है तो नदियों का जिक्र ज़रूर होता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक कई गांव और शहर नदियों के किनारे ही होते थे। नदियों के किनारे गांव और शहर का होना यह आज भी देखा जा सकता है।

गंगा, सरस्वती, कावेरी, ब्रह्मपुत्र और सतलुज आदि नदियां भारत की सबसे प्राचीन नदियों में शामिल हैं। भारत के कई हिस्सों में इन पवित्र नदियों की पूजा-पाठ भी होती है। एक तरह से ये सभी नदियां पवित्र मानी जाती हैं।
लेकिन अगर आपसे यह सवाल किया जाए कि क्या आप भारत में मौजूद श्रापित नदियों के बारे में जानते हैं तो फिर आपका जवाब क्या होगा?

*कर्मनाशा नदी (Karamnasa River)*

शायद आप इस नदी के बारे में आप जानते होंगे। अगर नहीं जानते हैं तो आपको बता दें कि बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य में बहने वाली यह एक प्रमुख नदी है। एक तरह से दोनों राज्यों को यह नदी अलग भी करती है। इन दोनों ही राज्यों के लोगों का मानना है कि जो इस नदी का पानी छूता है उसके बने काम चंद मिनटों में बिगड़ जाते हैं। कई लोगों का मानना है कि इस नदी का पानी श्रापित है इसलिए कोई भी इस नदी का पानी छूता नहीं है।

उत्‍तर प्रदेश की शापित नदी: नदियों से जीवन होता है, वे ना केवल पीने के लिए पानी देती हैं, बल्कि फसलों से लेकर तमाम उपयोगों के लिए जल देती हैं. इसलिए नदियों को लाइफलाइन कहा जाता है. लेकिन जिस भारत देश में नदियों को मां कहा जाता है और उनकी पूजा की जाती है. खास मौकों पर नदी में स्‍नान करना बहुत महत्‍वपूर्ण माना जाता है. नदियों पर ही कुंभ, महाकुंभ आयोजित किए जाते हैं. वहीं एक नदी ऐसी भी है, जिसे भयंकर शापित माना गया है. इस नदी को लेकर लोगों के मन में ऐसा खौफ है कि इसमें नहाना तो दूर लोग इसका पानी छूने से भी कतराते हैं. इस नदी के पानी को हाथ लगाना भी बहुत अशुभ माना जाता है. ये शापित नदी उत्‍तर प्रदेश में है और इसका नाम कर्मनाशा नदी है. 
बनते काम बिगाड़ देती है ये नदी 
उत्‍तर प्रदेश की इस कर्मनाशा नदी के पानी को लोग छूते तक नहीं हैं. इस नदी का नाम कर्म और नाशा दो शब्दों से मिलकर बना है. इसका शाब्दिक अर्थ ही निकलता है काम नष्‍ट करने वाली या बिगाड़ने वाली. माना जाता है कि कर्मनाशा नदी का पानी छूने मात्र से काम बिगड़ जाते हैं और अच्छे कर्म भी मिट्टी में मिल जाते हैं. इसलिए लोग इस नदी के पानी को छूते ही नहीं हैं. ना ही किसी भी काम में उपयोग में लाते हैं. यह नदी उत्‍तर प्रदेश और बिहार में बहती है लेकिन ज्‍यादातर हिस्‍सा यूपी में आता है. यूपी में यह सोनभद्र, चंदौली, वाराणसी और गाजीपुर से होकर बहती है और बक्सर के पास जाकर गंगा में मिल जाती है. 
नदी किनारे रहने वाले लोग फल खाकर गुजारते थे दिन  
कर्मनाशा नदी को ना छूने का खौफ लोगों में इस कदर है कि जब लंबे समय पहले यहां पानी का इंतजाम नहीं था, तब लोग यहां रहने से बचते थे और जो लोग यहां रहते भी थे वे फसल उगाने में इस पानी का उपयोग करने की बजाय फल खाकर गुजारा करना बेहतर समझते थे. 
ये है कर्मनाशा नदी की पौराणिक कथा
कर्मनाशा नदी के शापित होने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इसके अनुसार राजा हरिशचंद्र के पिता सत्यव्रत ने एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा जताई. लेकिन गुरु ने इनकार कर दिया. फिर राजा सत्‍यव्रत ने गुरु विश्वामित्र से भी यही आग्रह किया. वशिष्ठ से शत्रुता के कारण विश्वामित्र ने अपने तप के बल पर सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग में भेज दिया.
इसे देखकर इंद्रदेव क्रोधित हो गये और राजा का सिर नीचे की ओर करके धरती पर भेज दिया. विश्वामित्र ने अपने तप से राजा को स्वर्ग और धरती के बीच रोक दिया और फिर देवताओं से युद्ध किया. इस दौरान राजा सत्‍यव्रत आसमान में उल्‍टे लटके रहे, जिससे उनके मुंह से लार गिरने लगी. यही लार बहने से नदी बन गई. वहीं गुरु वशिष्‍ठ ने राजा सत्‍यव्रत को उनकी धृष्‍टता के कारण चांडाल होने का श्राप दे दिया. माना जाता है कि लार से नदी बनने और राजा को मिले श्राप के कारण इसे शापित माना गया और अब तक लोग इस नदी को शापित ही मानते हैं. 

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