मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह विवेक से अधिक मन की बात मानता है और मन जैसा चाहता है ज्यादातर मनुष्य वैसा ही करता है। विवेक का उपयोग न करने के कारण वह आगे- पीछे नहीं देखता और न यही सोचता है कि जो कुछ वह कर रहा है इसका परिणाम क्या होगा? मज़े मज़े मे वह मृत्यु को विस्मृत कर देता है और मनमानी करने मे लगा रहता है और इसका कोई ख्याल नहीं करता कि इसका जो दुष्परिणाम होगा वह मुझे ही भोगना होगा और जबतक भोग पूरा नही होगा तबतक छुटकारा भी नही होगा ।इस संबंध मे कहा गया है-
नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव। शनैरावर्त्यमानस्तु कर्तुमूलानि कृन्तति। ।
अधर्मेणैधते तावत्ततो भद्राणि पश्यति। ततः सपत्नां जयति समूलस्तु विनश्यति। ।( मनु स्मृति 4/172-174)
अर्थात, इस दुनिया मे किया गया अधर्म ( अशुभ कर्म) तत्काल फल नही देता जैसे बोई हुई पृथ्वी तत्काल फल नही देती ।वह कर्म क्रमशः पक कर कालान्तर मे कुकर्मी व्यक्ति की जड़ो तक को काट डालता है।
अधर्म करने वाला पहले तो बढता जाता है , फलता- फूलता है और सम्पन्न होता जाता है, नौकर - चाकर और धन - वैभव से युक्त हो जाता है ,अपने ईर्ष्यालु शत्रुओं और प्रतिद्वंदियों को जीत लेता है पर अन्ततः जड़ समेत नष्ट हो जाता है।
उपरोक्त श्लोक मे चेतावनी दी गई है कि किये हुए कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। यह फल रोग के रूप मे हो ,किसी संकट के रूप मे हो या किसी भयानक दुर्घटना के रूप मे , इसे भोगने से किसी भी प्रकार से बचा नहीं जा सकता है। इतना जानने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति दुराचरण करता है ,पाप कर्म करता है तो यह उसकी मर्ज़ी। ऐसे मतिमूढ को उपदेश देने से कोई लाभ नहीं होता क्योंकि ऐसा व्यक्ति सुनता सबकी है पर करता अपने मन की है।इसका कारण होता है अपने पुराने संस्कारों से प्रभावित और विवश होना ।
*26-09-2023-मंगलवार*
*🔴🌹🌺आज का रात्रि विचार🌺🌹🔴*
*🔴🌹🌺मीरा को लगा कि,जहर में कैसा नशा है,देख लूं,तो जहर को भी लगा कि,इसी बहाने कंठ में,कृष्ण प्रेम देख लूं,बिना रिश्ते के जो अजनबी,अपने से हो जाते हैं,कभी-कभी खून के रिश्तों से भी,वाकई में बड़े हो जाते हैं,*
*🔴🌹🌺कदम ऐसे चलो की निशान बन जाये,काम ऐसे करो की पहचान बन जाये,यूँ तो दुनिया में सभी जीते है,जियो तो ऐसे की मिसाल बन जाये,उम्र बड़ जाने से लोग बड़े नहीं हुआ करते,हर व्यक्ति जो अपनी ज़िम्मेदारी समझ ले,वह बड़ा हो जाता है*
*🔴🌹🌺परिवार हो या संगठन सफलता का राज है एक दूसरे के विचारों को सुनना और सम्मान देना,इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन.मूर्खता नहीं बल्कि ज्ञानी होने का भ्रम होता है*
*🔴🌹🌺ऊंचाई हासिल करने,के लिए,बाज बनें धोखेबाज,नहीं,गुस्सा बहुत चतुर होता है,ये हमेशा कमजोर पर ही निकलता है,अगर अपनो को गिराने मे जीत मिलती है तो आप से ज्यादा गिरा हुआ इंसान कोई हो नही सकता*
*🔴🌹🌺कुछ नहीं है आज मेरे शब्दों के गुलदस्ते में कभी कभी मेरी खामोशियां भी पढ़ लिया करो,नम्रता और सभ्यता बहुत उत्तम गुण हैं!परन्तु आत्म-सम्मान को खोकर,नम्रता आदि रखना, स्वयं को खो देने के समान है!*
*🔴🌹🌺एक नफरत है जिसको पल भर में महसूस कर लिया जाता है और,एक प्रेम है जिसका यकीन दिलाने के लिए सारी जिंदगी भी कम पड़ जाती है,मार्गदर्शन चाहे कोई भी करें,चलना आपको स्वयं पड़ेगा.*
*🔴🌹🌺जन्म के रिश्ते.ईश्वर का प्रसाद जैसे हैं लेकिन खुद के बनाये रिश्ते,आपकी पूँजी हैं दिल समुद्र जैसा रखना नदियां ख़ुद ही मिलने आयेगी,कुछ भी न समझना.गलत समझने से बेहतर होता है,सब अपने हैं.यही तो झूठे सपने हैं*
*🌹🌺‼️हनुमंत वंदना👏‼️ 🌺🌹*
*🌺अतुलित बलधामंहेमशैलाभदेहम्🌺*
*🌺दनुजवनकृशानुंज्ञानिनामग्रगण्यम्!🌺*
*🌺सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं🌺*
*🌺रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि🌺*
*🌻🌷🌞🙏शुभरात्रि🙏🌞🌷🌻*
*‼️🌹 ॐ श्री हनुमते नमः👏🌹‼️*
*‼️🌹ॐ श्री आंजनेय नमः 👏🌹‼️*
*प्रियजन आप एवं आपके परिवार पर श्री हनुमंत लाल जी की अनुकंपा सदैव बनी रहेजय श्री कृष्ण राधे राधे 👏👏जी*
कुछ चुगलखोर और ईर्ष्यालु स्वभाव के लोगों को दूसरों की निन्दा करने में बड़ा मजा आता है। मनोविज्ञान की दृष्टि से ऐसे लोग हीन भावना ( Inferiority Complex) से पीड़ित होते है और दूसरों की निन्दा करके वे उनको नीचा और स्वयं को ऊंचा सिद्ध करने की बेहूदी कोशिश करते हैं।निन्दा की परिभाषा एक विद्वान ने इस प्रकार की है - ' जो मिथ्या ज्ञान ,मिथ्या भाषण, झूठ मे आग्रह आदि क्रिया है जिससे गुण छोड़ कर उसके स्थान मे अवगुण लगाना होता है ,वह निन्दा कहलाती है। 'अर्थात जिस व्यक्ति मे जो दोष या अवगुण न हो उस अवगुण या दोष को उस व्यक्ति पर आरोपित करना निन्दा कहलाता है। इस तरह निन्दा झूठ पर आधारित होती है और निन्दा करने वाला झूठा होता है ।निन्दा करने से उस व्यक्ति का तो कुछ बिगड़ता नहीं जिसकी निन्दा की जा रही है पर समाज मे निन्दा करने वाले की प्रतिष्ठा नष्ट होती है और उसको अच्छा नही समझा जाता है। इस संबध मे आचार्य चाणक्य कहते हैं-
यदीच्छसि वशीकर्तुं जगदेकेन कर्मणा। परापवाद सस्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय। ।( चाणक्य नीति 14/14)
अर्थात, यदि इस संसार को एक ही कर्म के द्वारा वश मे करना चाहते हो तो दूसरों की निन्दा करने में लगी हुई अपनी वाणी को वश मे रखो ।
*🙏गीता श्लोक🙏*
*न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |*
*यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ||*
*अर्थात* – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं|
*🙏 प्रातः वन्दनम् 🙏*
*आपका दिन शुभ और मंगलमयपूर्ण हो ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।*
*दिन - मंगलवार, दिनांक -२६-०९-२०२३**🙏गीता श्लोक🙏*
*न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |*
*यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ||*
*अर्थात* – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं|
*🙏 प्रातः वन्दनम् 🙏*
*आपका दिन शुभ और मंगलमयपूर्ण हो ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।*
*दिन - मंगलवार, दिनांक -२६-०९-२०२३*
जब तक हम किसी नियम ,सिद्धांत अथवा सुझाव को आज़मा कर उसके परिणाम का अनुभव न कर लें तबतक हमें उसका समर्थन अथवा विरोध नहीं करना चाहिए। विरोध करने के लिए उचित तर्क ,युक्ति और प्रमाण का होना आवश्यक है वरना यह पूर्वाग्रह या दुराग्रह माना जाएगा।
जो जैसा है वह कैसा है यह जानना आवश्यक है और यह जान लेने पर उसे वैसा मानना वहम नहीं, ज्ञान है ।जो जैसा है उसे वैसा ही जानना ' ज्ञान' है और वैसा न जानना ' अज्ञान ' है ।इसका एक दूसरा पक्ष और भी है कि जो जैसा नहीं है उसे वैसा मानना 'भ्रम ' ( वहम) होता है तो इसी तरह जो जैसा है उसे वैसा न मानना भी भ्रम ( वहम ) ही माना जाएगा।
जब तक हम किसी नियम ,सिद्धांत अथवा सुझाव को आज़मा कर उसके परिणाम का अनुभव न कर लें तबतक हमें उसका समर्थन अथवा विरोध नहीं करना चाहिए। विरोध करने के लिए उचित तर्क ,युक्ति और प्रमाण का होना आवश्यक है वरना यह पूर्वाग्रह या दुराग्रह माना जाएगा।
जो जैसा है वह कैसा है यह जानना आवश्यक है और यह जान लेने पर उसे वैसा मानना वहम नहीं, ज्ञान है ।जो जैसा है उसे वैसा ही जानना ' ज्ञान' है और वैसा न जानना ' अज्ञान ' है ।इसका एक दूसरा पक्ष और भी है कि जो जैसा नहीं है उसे वैसा मानना 'भ्रम ' ( वहम) होता है तो इसी तरह जो जैसा है उसे वैसा न मानना भी भ्रम ( वहम ) ही माना जाएगा।
*🙏गीता श्लोक🙏*
*न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |*
*यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ||*
*अर्थात* – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं|
*🙏 प्रातः वन्दनम् 🙏*
*आपका दिन शुभ और मंगलमयपूर्ण हो ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।*
*दिन - मंगलवार, दिनांक -२६-०९-२०२३**🙏गीता श्लोक🙏*
*न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरियो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयु: |*
*यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेSवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ||*
*अर्थात* – अर्जुन कहते हैं कि मुझे तो यह भी नहीं पता कि क्या उचित है और क्या नहीं – हम उनसे जीतना चाहते हैं या उनके द्वारा जीते जाना चाहते हैं| धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हम कभी जीना नहीं चाहेंगे फिर भी वह सब युद्धभूमि में हमारे सामने खड़े हैं|
*🙏 प्रातः वन्दनम् 🙏*
*आपका दिन शुभ और मंगलमयपूर्ण हो ऐसी ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।*
*दिन - मंगलवार, दिनांक -२६-०९-२०२३*
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