मां की आदत है हर जगह खाली भूमि में कहीं कचूर, कहीं हल्दी, कहीं अदरक, कहीं अरबी, कहीं सुरन मिट्टी में दबा दिया करती हैं।
घर के अगवारे पिछवाड़े जगह जगह पर जिमिकंद के पौधे उगे मिलेंगे।
हमारी तरफ इसे कान कहते हैं जो शायद कांद का बिगड़ा रुप है। कहीं कहीं सुरन नाम से जाना जाता है।
हमारे सनातन धर्म में दीपावली के दिन सुरन की सब्ज़ी या चोखा खाना आवश्यक माना गया है। सुरन में कुछ ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमारे लिए बेहद जरूरी होते हैं चूंकि सुरन गर काटता है इसलिए लोग खास तौर पर बच्चे खाना नही पसंद करते हैं इसलिए दिपावली में खाना आवश्यक कर दिया गया ताकि इसी बहाने से ही सही हमारे शरीर में पोषक तत्व जा सके। हमारे पूर्वज बहुत अच्छे थे उन्होंने रीति रिवाज बहुत सोच समझ कर हमारे भले के लिए बनाए हैं इसलिए हमे रीति रिवाज का पालन अवश्य करना चाहिए।
मेरे घर पर सुरन का इस वर्ष बहुत स्वादिष्ट अचार बना है। सुरन की सब्ज़ी मेरे घर में सभी पसन्द करते हैं और दिपावली के दिन खटाई डालकर बनाया चोखा भी सभी बहुत शौक से खाते हैं। खटास पड़ने से ये गर कम काटता है।
हमे तो बनने के बाद गर कटेगा ये डर लगता है और मेरी मां तो अपने लगाए सुरन के पौधों की सुरक्षा करते करते थक जाती हैं जाने कब रात में आकर साही खोदकर कंद खा जाती है।
अब तो बाजार में हाइब्रिड जिमिकंद आ गए हैं जो गर कम काटते हैं इसलिए अब लोग देशी के बजाय हाइब्रिड को ज्यादा पसन्द करते हैं।
No comments:
Post a Comment