Wednesday, 22 October 2025

डाला छठ का महापर्व -डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि

डाला छठ का महापर्व -डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि 
मूल रूप से बिहार और मिथिला से निकाल कर डाला छठ आज भारत का राष्ट्रीय पर बन गया है और देश के सबसे बड़े त्योहारों में से एक हो गया है इस दिन पूर्ण भारत देश नदी और जल कुंड के घाटों पर उम्र आता है यह ऋग्वेद कालीन पर्व है जो आज भी बिहार और मिथिला के लोगों ने सुरक्षित करके पूरे देश में फैला दिया है इसमें संपूर्ण सौरमंडल को प्रकाश ऊर्जा और जीवन देने वाले सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा उपासना की जाती है इस व्रत में चार दिन लगते हैं और चारों दिन का अपना-अपना महत्व होता है 

यह महान व्रत कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की तिथि को मनाया जाता है और चार दिन चलता है इसमें डूबते और उगते हुए सूर्य को अलग दिया जाता है जो जीवन की उत्पत्ति और निर्माण का प्रतीक भी है यह प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ा हुआ महान पर्व है जो हम भारतीय पर त्योहारों में पाया जाता है इसमें चार चरण होते हैं नहाए खाए पहले चरण है करना दूसरा चरण है डूबते हुए सूर्य को तीसरे दिन आर्ग देना तीसरा चरण है और चौथा चरण है सुबह के निकलते हुए सूर्य को अर्घ देना और व्रत का समापन करना यह व्रत दो दिन निर्जल रहकर किया जाता है और संसार के सबसे कठिन व्रत में से एक हैऋग्वेद काल के आर्य लोग प्रकृति में ईश्वर की सट्टा का आभास करते थे और सूर्य तो स्पष्ट रूप से धरती को प्रकाश ऊर्जा और जीवन देने वाला महान ईश्वरीय तत्व है इसलिए उसके अनुसार यह महापर्व मनाया जाता है 

वैसे तो इसका वर्णन किसी वेद पुराण और ग में नहीं है लेकिन संकेत से इसका साथ कारण के साथ जोड़ा जाता है जिन्होंने भगवान सूर्य की उपासना करके और दान पुण्य करके असीमित शक्तियां प्राप्त किया था और उनका कवच कुंडल कोई भी नहीं तोड़ सकता था द्रौपदी और पांडवों ने भी इस व्रत को किया था और इसकी कृपा से उन्हें अपना खोया राज्य मिला था उन्हें सूर्य देव ने एक अक्षय पात्र भी दिया था जब तक बनाने वाला उसमें का नहीं लेता था तब तक वह पात्र खाली नहीं होता था‌ इसके अलावा लोक गाथाओं में बहुत प्राचीन काल से चला चला आ रहा है जिसे मिटाने के लिए तुर्क मुगल और अंग्रेजों ने बहुत प्रयास किया लेकिन मिटा नहीं पाए 

इस बार इस व्रत कब प्रारंभ 25 अक्टूबर शनिवार को नहाए खाए के साथ प्रारंभ होगा 26 अक्टूबर रविवार के दिन लोहंडा या खरना के साथ दो दिवसीय निर्जल व्रत का आरंभ होगा जिसमें छठी मैया के गीत और उनका गुणगान करते हुए व्रत को रखा जाएगा‌ तीसरे दिन अर्थात 27 अक्टूबर को सोमवार के दिन डूबते हुए सूर्य को नदी जल कुंड और तालाबों में खड़े होकर लग दिया जाएगा और अंतिम दिन अर्थात चौथे दिन उगते हुए सूर्य को आगे देखकर इस महान व्रत का समापन किया जाएगा 27 को सूर्य देवता के डूबने का समय शाम के 5:40 पर है जबकि 28 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य के आगे देने का समय 6:30 पर है 


भारत के संस्कृति सभ्यता और इसकी लोक कथाएं अनंत हैं अर्थात हैं यह हमारे अंतर्मन में लाखों करोड़ों वर्षों से स्मृति के रूप में संचित है और सारे व्रत पर्व उसी के अनुसार मनाया जाता है यह प्रकृति पर्यावरण कब पर्व होता है जो हमारी आस्था धर्म संस्कृति के साथ-साथ हमारे अस्तित्व से भी जुड़ा होता है समय के अनुसार कुछ पर्व कभी पूरे देश में फैल जाते हैं तो कुछ पर्व का महत्व कम हो जाता है जैसे इस समय करवा चौथ और डाला छठ बहुत बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय पर्व बन चुका है इसी तरह गणपति पूजा भी राष्ट्रीय पर्व का रूप ले चुकी है जबकि गई व्रत सिमट गए हैं जैसे सावन के सप्तमी का होने वाला व्रत और ललई छठ का व्रत और माघ महीने की गणेश चौथ का व्रत जब डाला छठ आता है तो यह प्रतीत होता है कि पूरे भारत में बिहार के लोग ही हैं और सभी नदी घाट जल कुंड महान भीड़ में परिवर्तित होकर उमड़ पड़ता है

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