Thursday, 8 May 2025

तमंचा जान- एक तवायफ़ ज़माना आज़ादी से तीस बरस पहले का था और जगह थी- लाहौर शहर की हीरा मंडी। सरदार बेगम नाम की मशहूर तवायफ़ के कोठे पे एक लड़की जन्मी- गुलज़ार बेगम। लड़की का बाप कौन था- मालूम ना था किंतु गुलज़ार के दुनिया में आने का जश्न मनाया गया। सात साल की उम्र में गुलज़ार को नामचीन उस्तादों के सुपुर्द कर दिया गया जिन्होंने गुलज़ार को मौसिकी और नाच के गुर सिखाए। पंद्रह साल की उम्र में गुलज़ार अब हीरा मंडी की रौनक बढ़ाने को तैयार थी।

तमंचा जान- एक तवायफ़ 

ज़माना आज़ादी से तीस बरस पहले का था और जगह थी- लाहौर शहर की हीरा मंडी। सरदार बेगम नाम की मशहूर तवायफ़ के कोठे पे एक लड़की जन्मी- गुलज़ार बेगम। लड़की का बाप कौन था- मालूम ना था किंतु गुलज़ार के दुनिया में आने का जश्न मनाया गया। सात साल की उम्र में गुलज़ार को नामचीन उस्तादों के सुपुर्द कर दिया गया जिन्होंने गुलज़ार को मौसिकी और नाच के गुर सिखाए। पंद्रह साल की उम्र में गुलज़ार अब हीरा मंडी की रौनक बढ़ाने को तैयार थी।

गुलजार बेगम की कमसिन अल्हड़ जवानी ख़ूबसूरती शोख़ी और सुरीली आवाज़ के चर्चे लाहौर के बाहर तक फैलने लगे। हीरा मंडी में और भी मशहूर नाचने गाने वाली थी जिनकी शोहरत चहुँओर थी। ऐसे में सरदार बेगम के चाहने वाले कभी कभी गुलज़ार का मुजरा देखने आया करते थे।

सरदार बेगम का एक मुरीद पंजाब का बड़ा डकैत था- एक दिन गुलज़ार बेगम के नाच गाने पे वो इतना फ़िदा हुआ कि उसने अपना तमंचा निकाल इस नाज़ुक कली की कमर पे खोंस दिया। तमंचे को कमर पे लगाये गुलज़ार ने ग़ज़ब समा बांधा।

सरदार बेगम अपनी इस लड़की को मार्केट में लांच करना चाहती थी किंतु हीरा मंडी में पहले से ही दो दो गुलज़ार बेगम नामक मशहूर कोठेवलियाँ थी। चुनांचे सरदार बेगम ने गुलज़ार को नया नाम दिया- तमंचा जान।

बाज़ार में नए आइटम की बू सूँघ तवायफ़ों के चहेते रईस नवाब आदि खींचे चले आए। बाज़ार में पहली बार कोई ऐसी शे आई थी जो कातिलाना अंदाज़ में नाचती गाती थी और बाक़ायदा तमंचा कमर पे रहता था। तमंचा जान के इस अंदाज़ ने समूचे हिन्द में धूम मचा दी।

एक प्रख्यात संगीत निर्देशक ग़ुलाम हैदर ने तमंचा जान के कोठे जाकर उसके रिकॉर्ड बनाये- बाज़ार में उतारे। पंजाबी गानों और टप्पो से लबरेज़ ये रिकॉर्ड दनादन बिकने लगे। यही नहीं- तमंचा जान ने और रिकॉर्डिंग स्टूडियो में भी अपने गायन के सुर बखेरे ।

देश आज़ाद हुआ- बँटवारा हुआ और तमंचा जान पाकिस्तान में बस गई। रेडियो पाकिस्तान में भी तमंचा जान ने अपनी प्रस्तुति दी। लंबी उम्र के बाद इस क़ातिलाना तवायफ़ का इंतक़ाल हुआ।

आज ऐसे गाने आते है- तमंचे पे डिस्को लेकिन तमंचा जान आज़ादी से पहले ही तमंचे पे मुजरा कर चुकी थी।

तस्वीर में तमंचा जान- पोस्टकर्ता की दिमाग़ी उपज से प्रेरित.

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