हरि प्रबोधिनी का व्रत सनातन धर्म के महान व्रत और पर्व में से एक है इस व्रत को देव उठनी या देव उठान एकादशी भी कहा जाता है अनेक स्थानों पर इसको जुठवन भी कहते
हैं यह महान पर व्रत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है।
कब हरि प्रबोधिनी का व्रत मनाया जाएगा
वर्ष 2025 में हरि प्रबोधिनी का व्रत 1 नवंबर शनिवार के दिन मनाया जाएगा जिसका कारण यह है कि यह सुबह 9:11 पर प्रारंभ हो रही है और 2 नवंबर को 7:03 पर समाप्त हो रहे हैं ऐसे में धर्म ग्रंथो से संबंध और लोक व्यवहार देखते हुए इसको 1 नवंबर के दिन ही मनाया जाएगा सनातन धर्म में मुहूर्त और तिथियां का वैज्ञानिक महत्व होता है इसमें देशकाल परिस्थितियों लोग व्यवहार और वैज्ञानिक गणनाओं को परख कर शुभ मुहूर्त में मनाया जाने का विधान है इसके लिए उदया तिथि आवश्यक नहीं होती है। जबकि सामान्य रूप से उदय तिथि में ही अधिकांश पर्व मनाया जाते हैं श्री कृष्ण जन्माष्टमी सहित कई ऐसे व्रत और पर्व है जहां पर यह लागू नहीं होता।
एकादशी व्रत का पारण
एकादशी व्रत का पारण इस वर्ष 2 नवंबर केदिन 1:11 दोपहर से दोपहर बाद 3: 23 के बीच किया जाएगा। आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी के पूर्व तक भगवान श्री हरि विष्णु योग माया में लीन रहते हैं इसलिए इन चार महीना को चातुर्मास या योग मास कहा जाता है।
हरि प्रबोधिनी के दिन पूजा पाठ कैसे करें
सुबह उठकर नित्य क्रिया करें शुद्ध चित्र से स्नान करें भगवान का ध्यान करें यह भगवान श्री हरि विष्णु का पर्व है इसलिए उनके मंत्रों को भी पढ़ें इसके पश्चात पूजा घर में या घर के पूर्व या उत्तरी भाग में मुंह पूर्व या उत्तर की तरफ करके चौकी पर पीले वस्त्र बिछा कर उस पर श्री हरि विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम रखें सामने जल्द से आचमन करें पीले रंग की माला और पीले फूल भगवान श्री हरि विष्णु को अर्पण करें पीला चंदन भी उन्हें लगे इसके पश्चात पीली मिठाई गणना और सिंघाड़ा एवं मौसमी फल फूल भी उन्हें अर्पित करके भोग लगा दें इसके बाद धूप दीप जलाकर भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना इच्छा अनुसार करें ओम श्री विष्णवे नमः या ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप सबसे अच्छा रहता है। अनेक स्थानों पर गाने का मंडप बनाकर वहां पर शालिग्राम के साथ तुलसी देवी का विवाह भी कराया जाता है।
हरि प्रबोधिनी व्रत कथा का वर्णन कहां कहां है
हरि प्रबोधिनी व्रत का वर्णन वेदों में नहीं मिलता है यह रामायण में भी नहीं मिलता है लेकिन यह महाभारत श्रीमद् भागवत गीता विष्णु पुराण ब्रह्म व्रत पुराण नारद पुराण पद्म पुराण उत्तराखंड भागवत पुराण में मिलता है भागवत पुराण के अनुसार नंद बाबा ने एकादशी का व्रत किया जिससे श्री हरि विष्णु की कृपा हुई और भगवान श्री कृष्णा मथुरा से नंद बाबा के घर पहुंच गए इसके अलावा एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री हरि विष्णु योग माया में लीन थे तब एक महा भयंकर तीनों लोकों को जीतने वाला मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ और भगवान श्री हरि विष्णु पर उसने आक्रमण कर दिया। इस पर भगवान श्री हरि विष्णु की माया से एकादशी देवी का जन्म हुआ जिन्होंने मुर नमक दैत्य को मार गिराया इसके प्रतीक कथा के रूप में 10 ज्ञान और 10 कर्म इंद्रीयां और एक मन कुल मिलाकर 11 इंद्रियों की अधिष्ठात्री देवी एकादशी देवी के नाम पर इसको एकादशी देवी का व्रत कहा गया जो इन्हीं 11 इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है उसे कोई नहीं हरा सकता है ।
अन्य कहानियां इसके अलावा जालंधर की कहानी भी इसके साथ आता है जालंधर में तीनों लोक जीत लिए उसकी पत्नी वृंदा परम सती थी जिसके कारण जालंधर को कोई मार नहीं सकता था भगवान शिव ने बहुत भयानक युद्ध किया हजारों वर्ष के युद्ध में भी उसको नहीं मार पाए तब भगवान श्री हरि विष्णु ने छल से जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के अस्तित्व का हरण किया और जालंधर मारा गया जब वृद्धा को इसका पता लगा तो उन्होंने भगवान श्री हरि विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया तब से काले रंग के शालिग्राम को ओपन विष्णु का रूप माना गया यह देवी बाद में वृद्धा ने अपना श्राप वापस ले लिया और जालंधर के सती हो गई।
पूजा पाठ कर्मकांड और ढोंग बड़ा है या शुद्ध मन से ईश्वर की पूजा इस बात का बड़ा सुंदर वर्णन श्री भागवत पुराण में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है एक बार एक राजा दैव योग से निधन हो गया और काम ढूंढते ढूंढते दूसरे राजा के पास पहुंचा। राजा ने उसे इस शर्त पर नौकरी दे दिया कि वह एकादशी के दिन उसे एक अन्य भी नहीं देंगे बाकी दिन जो इच्छा हुआ खाता रहेगा
इस तरह बहुत सारे दिन बीत गए और एकादशी का महान पर्व आ गया तब राजा ने अपनी शर्ट के अनुसार उसे केवल फलाहार दिया लेकिन नौकरी करने वाले राजा ने उनसे अनुनय किया तब दयालु राजा ने उसे अन्न दान कर दिया। लेकिन कारण पूछा कि ऐसा क्यों है क्या तुम एक दिन बिना अन्न के नहीं रह सकते राजा ने कहा है राजन मैं तो रह सकता हूं लेकिन हमारे साथ स्वयं भगवान श्री हरि विष्णु की भोजन करते हैं वह अन्य के बिना कैसे रहेंगे इस पर राजा को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने कहा कि मुझे भी भगवान का दर्शन कराओ।
इसके बाद वह राजा को लेकर नदी के किनारे गए और रोज की भांति पूजा पाठ करके आसान बेचकर भोग लगाकर भगवान का आवाहन किया लेकिन ईश्वर प्रकट नहीं हुए इसके बाद बार-बार पुकारने पर भी जब ईश्वर नहीं आए तब उन्होंने कहा ठीक है अगर आप नहीं आते तो मैं अपना बलिदान आपको कर रहा हूं ऐसा कह कर जैसे ही उन्होंने अपना सिर काटना चाहा तब श्री हरि विष्णु भगवान वहां प्रकट हो गए और राजा के देखते-देखते उसे अपने दिव्य विमान में बैठ कर बैकुंठ लोक ले गए।
इसका सीधा अर्थ बताकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि दुनिया भर के अंधविश्वास ढोंग पूजा पाठ तब तक व्यर्थ है जब तक व्यक्ति मन वचन और कम से पूरी तरह शुद्ध और अखंड भक्ति वाला ना हो यही एकादशी का संदेश भी है कि अपनी पांच ज्ञान और पांच कर्म इंद्रियों मन और चंचल चित्र पर नियंत्रण करके ही पूजा पाठ सफल किया जा सकता है।
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