शरद पूर्णिमा और ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि- डॉदिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि
समस्त भूमंडल में भारत सबसे अदभुत अनोखा और सबसे प्राचीन देश है इसके उत्तर में हिम मंडित हिमालय और पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर है तो इसके दक्षिण में हर नीली हिंद महासागर की लहरों से अधिक करता समुद्र का स्वर्ग कन्याकुमारी है इसके पश्चिम में दूर-दूर तक फैला हुआ त्याग बलिदान शुष्कता और विरानी का स्वर्ग राजस्थान है तो इसके पूर्व में असम चेहरा पूंजी और अरुणाचल की पहाड़ियां हैं जो वर्षा हरियाली और स्वच्छता का स्वर्ग है ऐसे दिव्या भारतवर्ष में हर महीने कोई ना कोई बडा महापर्व त्यौहार उत्सव और प्रत्येक दिन कोई ना कोई व्रत त्योहार कथा पूजन पड़ता ही रहता है जो संपूर्ण संसार में दुर्लभ ही नहीं असंभव है
शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी पूर्णिमा आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है और इस रात की पूर्णिमा सबसे स्वच्छ धवल उज्जवल और शांतिपूर्ण होती है जिसे वैज्ञानिक कारण है धरती के सबसे नजदीक इस समय चंद्रमा होता है और उसकी करने से अमृत वर्षा होती है जबकि धार्मिक कारण यह है कि इस दिन व्रत करने से सब मनोकामनाएं पूरी होती हैं जिसमें प्राचीन काल के एक सेठ साहूकार की कथा भी आती है अगला कारण यह है कि इसी दिन ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि पैदा हुए थे जो एक दस्यु थे और श्री राम नाम का जप करते-करते ब्रह्म ऋषि हो गए थे अगला धार्मिक कारण यह है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने बहुत छोटी अवस्था में महारास लीला वृंदावन के मधुबन में किया था जिसमें समग्र ब्रह्मांड आनंद विभोर हो उठा था और उनकी मुरली की तान से निकलने वाली क्लिम की ध्वनि ने समग्र ब्रह्मांड को झंकृत कर दिया था
प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े इस महान पर्व के दिन ठंडी गर्मी दिन रात बिल्कुल बराबर रहती है और बहुत ही सुंदर स्वच्छ वातावरण धरती आसमान और जल सभी का होता है वर्षा ऋतु बीत जाने से वायुमंडल पूरी तरह स्वच्छ होता है और अत्यंत ही चमकीली चंद्रमा की रश्मि अमृत के साथ धरती पर पड़ती हैं इसीलिए इस दिन स्वादिष्ट खीर पका कर खुले स्थान में ढक कर रखी जाती है और रात भर उसे पर अमृत वर्षा का कुछ अंश मिल जाता है जिसे खाने से शरीर के अनेक रोग बीमारियां और मानसिक तनाव तथा दहिक दैविक भौतिक ताप मिट जाते हैं यह धार्मिक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक सत्य है भारत के हर एक व्रत पर्व उत्सव हवन यज्ञ अनुष्ठान सब धर्म अध्यात्म विज्ञान दर्शन और प्रकृति पर्यावरण से जुड़े हुए हैं इसीलिए भारत की सभ्यता संस्कृत करोड़ों वर्ष चली और आज भी चल रहे हैं जबकि धरती की कोई भी सभ्यता 1000 वर्ष से अधिक नहीं चल पाई है और यह संस्कृति सभ्यता आगे भी अनंत काल तक चलती रहेगी क्योंकि कालांतर में पृथ्वी को बचाने और स्वयं मानव जाति के सुरक्षित रखने के लिए अंत में सभी को सनातन धर्म का पालन करना ही होगा
ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि ब्रह्मा के 10 मानस पुत्रों में थे जिनके बचपन का नाम सत्य प्रकाश शर्मा कहा जाता है कालांतर में इन्होंने डकैती का धंधा अपना लिया था देव योग से सप्त ऋषियों की दृष्टि इन पर पड़ी और उन्होंने वाल्मीकि के ज्ञान के चक्षु खोल दिए और वाल्मीकि ने उनके पैर पकड़ कर अपनी मुक्ति का मार्ग पूछा तो सप्त ऋषियों ने राम-राम जपने को कहा लेकिन जब वह ऐसा करने में सक्षम नहीं हुई तब उन्हें मरा मरा जपने को कहा और धीरे-धीरे मरा मरा कहते हुए वह राम नाम जपते हुए अपने समय के सबसे विद्वान और महान ब्रह्म ऋषि हो गए और फिर नारद जी के प्रभाव से उन्होंने ऐसी रामायण की रचना की जो सारे संसार में राम कथा का प्रमाणिक स्रोत बन गई और दुनिया की हर भाषा में राम कथा लिखी गई जिसमें वाल्मीकि आदि कवि के नाम से प्रख्यात हुए और सभी ने उन्हें से राम कथा का अंश ग्रहण किया स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए उनके वंदना की हैं यह बात और है कि देशकाल के प्रभाव से आज रामचरितमानस दुनिया में सबसे विख्यात पुस्तक हो चुकी है
वाल्मीकि के बारे में कहा जाता है
** उल्टा नाम जपत जग जाना
वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना**
उन्हें आदि कवि इसलिए माना जाता है की वेद उपनिषद को छोड़कर लौकिक भाषा का पहला चांद उन्हीं ने लिखा था एक बार काम क्रीड़ा करते हुए क्राउन पक्षी को बहेलिया द्वारा मारे जाते हुए देखकर उन्होंने शोक से विह्वल होकर ब्रह्मा जी की प्रेरणा से अनायास ही विश्व का पहला श्लोक रच दिया
* मां निषाद प्रतिष्ठांत्वमगम: शाश्वती समा।
* यत्क्रोंच मिथुनादे कमवधी काममोहितं।
अर्थात है क्रौंच पक्षी को मारने वाले बहेलिया तो इस धरती पर कभी भी सम्मान नहीं प्राप्त कर सकेगा क्योंकि तुमने काम क्रीड़ा में मगन क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया है और इतिहास साक्षी है कि तब से आज तक बहेलिया कहीं किसी भी समझ में प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं हो सका है ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि उच्च कोर्ट के महान तपस्वी और ऋषि थे और बहुत ही सादे ढंग से जीवन व्यतीत करते थे उनके आश्रम में हजारों तपस्वी और बटुक रहा करते थे जब सीता मां को वनवास हुआ तो भगवान श्री राम ने सीता मां को धरती पर रखने का सबसे सुरक्षित स्थान वाल्मीकि का आश्रम ही पाया और वाल्मीकि की प्रेरणा और माता सीता के प्रयास से उनके पुत्र लव और कुश तत्कालीन पृथ्वी के सबसे बड़े महान योद्धा हुए जिन्होंने रावण वध करने वाले बड़े-बड़े ब्यूरो हनुमान अंगद सुग्रीव विभीषण जामवंत नल नील लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न को धराशाई कर दिया था वाल्मीकि जी इतने शुद्ध निष्कपट और सरल हृदय के थे कि उन्होंने सीता की शुद्धता को स्वयं अपनी शपथ देकर प्रमाणित किया था इसी से उनके महान चरित्र और गुना को समझा जा सकता है
शरद पूर्णिमा केवल भारत के इतिहास का ही नहीं सारी धरती के इतिहास का सबसे स्वच्छ और शुद्ध दिन होता है और इसी दिन ब्रह्म ऋषि वाल्मीकि के उत्पन्न होने से इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है इस पूर्णिमा का व्रत धाम दर्शन अध्यात्म प्रकृति पर्यावरण से जुदा होने के कारण अद्भुत अद्वितीय है और यह दिखाता है कि भारत के लोग उसे समय प्रकृति पर्यावरण विज्ञान धाम दर्शन में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चुके थे जब सारी दुनिया मनुष्य बनने की ओर प्रयास कर रही थी सतयुग और त्रेता में ब्राह्मणों का काम पठन-पाठन जब तक करना था और क्षत्रियों का काम अपने बाहु बल से देश धर्म सभ्यता संस्कृति और ब्राह्मण सहित वैश्य और शूद्र की रक्षा करके सभ्यता का बचाव करना था वैश्य व्यापार करके देश को धन-धन से भर रहे थे तो शुद्ध लोग सब की सेवा करते हुए अखंड और विराट भारत का निर्माण करने में योगदान दे रहे थे ध्यान रहे यह नियम द्वापर और कलयुग में धीरे-धीरे समाप्त होता गया क्योंकि पाप सत्य अन्य कलयुग के प्रभाव से लगातार बढ़ता चला जा रहा है ध्यान रहे या चारों वर्ण जन्म से नहीं कम से आधारित हैं और इसकी गलत व्याख्या करके वर्तमान में दलित अनुसूचित जाति और जनजाति के नेता स्वयं अनुचित लाभ लेने के लिए अपने वर्ग की जनता को इसकी गलत व्याख्या कर रहे हैं जबकि बिल्कुल स्पष्ट कहा गया है सभी लोग जन्म से शुद्र होते हैं और कर्म सेवा द्विज अर्थात ब्राह्मण और क्षत्रिय होते हैं ** जन्मना जायते शूद्र:कर्मणा द्विज उच्यते**और यही सत्य है आज भी कम से एक दलित जज कलेक्टर मंत्री सांसद विधायक बन रहा है यही नियम उसे समय भी था यह दर्शन नहीं होता तो तमाम शूद्र और दलित ब्रह्म ऋषि नहीं बन पाए और द्रोणाचार्य भारद्वाज परशुराम जैसे लोग महानतम योद्धा नहीं बन पाए और वाल्मीकि तथा विश्वामित्र जैसे महानतम सम्राट ब्रह्म ऋषि नहीं बन सकते थे रविदास दादू मलूक दास शबरी काग भूसुंडी मतंग ऋषि जैसे अनगिनत शुद्ध कभी भी सम्राट क्षत्रिय और ब्राह्मणों के पूज्य नहीं हो सकते थे
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