कहानी "चंचल मगरमच्छ और भेड़िया"
पहाड़ी के उस पार एक बड़ा तालाब था । उस तालाब में चंचल नाम का एक मगरमच्छ रहता था । वह अपने नाम के मुताबिक काफी खुले विचार और आजाद ख्याल का था, एक दिन अचानक तालाब का पानी सूखने लगा यह देखकर मगर चिंतित होने लगा कुछ सोचने के बाद उसने तालाब को छोड़ने का निश्चय किया और उसी समय मगरमच्छ तैरते-तैरते छोटी सी नदी में आ पहुंचा। उसने देखा नदी में छोटी-छोटी मछलियां निडर होकर उछल कूद कर रही थी उस नदी में अभी तक कोई मगरमच्छ नहीं था। चंचल मगर यहां आकर बहुत खुश था लेकिन नदी में रहने वाली मछलियों ने जब उस भयंकर मगरमच्छ को देखा तो डर गई उस नदी का आसपास भेड़-बकरियां और गाय आदि रहती थी क्योंकि उन्हें नदी के किनारे हरि और नर्म घास खाने को मिलती थी। अब वह भी चंचल मगरमच्छ के आते ही भयभीत हो गई। गाय, भैंस, लोमड़ी आदि ने आपस में बैठकर एक दिन विचार-विमर्श किया सभी ने मगरमच्छ के बारे में आशंका जताई लेकिन गाय ने अपना तर्क दिया, मैं मानती हूं कि मगरमच्छ खुले विचारों वाला है लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह हमें नुकसान पहुंचाएगा। इस पर चतुर लोमड़ी बोली अरे गाय बुआ मगरमच्छ की जाति का क्या भरोसा, कब मन ललचा जाए और हममें से किसी को अपना शिकार बना ले। अब तो नदी के किनारे से दूर रहने में ही हम सबकी भलाई है। लोमड़ी की बात पर सभी ने सहमति जताई और उस दिन से सब सतर्क रहने लगे। अब तो वह नदी के किनारे आने से पहले सौ बार सोचे थे, लेकिन बकरी को अभी तक चंचल मगरमच्छ के आने की खबर नहीं थी वह अपने बच्चों के साथ आराम से घास चर रही थी उसे इस तरह बेफिक्र होकर घास चरते देख भेड़ चिल्लाई, बकरी दीदी क्या आपको अपनी जान प्यारी नहीं है, क्यों क्या हुआ बकरी ने आश्चर्य से पूछा, अगर अपनी जान की सलामती चाहती हो तो अपने बच्चों को लेकर यहां से चली जाओ। भेड़ ने कहा लेकिन क्यों? मैं किसी की फसल तो बर्बाद नहीं कर रही हूं जो घास में चर रही हूं, उस पर तो सभी का अधिकार है फिर तुम मुझे इस तरह भगाने को क्यों कह रही हो। इस पर भेड़ ने उसे समझाया दीदी शायद तुम्हें अभी मालूम नहीं है कि इस नदी में एक भयंकर मगरमच्छ आया है, अच्छा बकरी के चेहरे पर एकदम डर के भाग गए तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, और बकरी अपने बच्चों समेत वहां से भाग गई। तभी वहां चंचल मगरमच्छ आ गया, उसे देखते ही गाय, भैंस, बकरी, लोमड़ी भाग गए। मछली जो पानी में मस्ती से तैर रही थी उसे देखते ही इधर-उधर भागने लगी। यह देखकर चंचल मगरमच्छ ने मछलियों से पूछा, क्या बात है मछली बेटा ? भाग क्यों रही हो।' मछलियों ने कोई जवाब नहीं दिया, तो मगरमच्छ पुन: बोला 'क्या तुम मुझसे डर रहे हो?मै तुम्हे कुछ नहीं कहूँगा। मैं अन्य मगरमच्छों की तरह नहीं हूँ। मैं शाकाहारी हूं। सिर्फ घास खाता हूं। मैं तुम सबको मित्र बनाना चाहता हूं। तुम लोगों को मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। शुरू शुरू में तो मछलियों को मगरमच्छ की बात पर यकीन नहीं हुआ लेकिन काफी दिन बीत जाने के बाद मगरमच्छ ने उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया तो मछली उनकी बात पर विश्वास करने लगी अब अनेकों मछलिया चंचल मगरमच्छ के आगे पीछे खेलती रहती थी। यह देखकर भेड़-बकरियों गाय-भैंसों आदि ने अब धीरे-धीरे मगरमच्छ से डरना छोड़ दिया। और भीड़ के साथ तो मगरमच्छ की दोस्ती भी हो गई। एक दिन भेड़ ने बातों-बातों में कहा, भाई मगर अब यहां घास नहीं बची मैंने सुना है नदी के उस पार अच्छी घास है मगर, तुम मुझे और मेरे बच्चों को अपनी पीठ पर बिठाकर नदी के उस पार ले चलो तो हम वहां पेट भरकर घास चर सकते हैं।
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