*इसका उत्तर है बिल्कुल नहीं 99% लोग तो कदापि नहीं रह सकते 1% लोग अपवाद हैं जो सारी दुनिया से लड़ने की ओर वास्तविक रुप से सादा जीवन उच्च विचार अपना सकते हैं वहीं रह सकते हैं*
*कारण इसका कारण है सब लोगों की जरूरतें आवश्यकता से अधिक हो जाना संयुक्त परिवार का टूट जाना सभी लोगों के द्वारा व्यक्तिगत चीजों की अधिक से अधिक मांग होना प्रदर्शन और दिखावा होना एवं भौतिकवाद की अंधी दौड़ में शामिल होना कमाई से अधिक खर्च का होना और अपनी आवश्यकताओं को जानबूझकर बढ़ाते जाना एक सीधा उदाहरण है पहले 25 से 50 सदस्य एक परिवार में रहते थे तो एक चूल्हा एक टॉर्च एक रेडियो में काम चल जाता था एक टीवी होता था और पुरुष और महिलाओं के लिए घर और बाहर व्यवस्था हो जाती थी और अधिकांश लोग 80 से 90% गांव में रहते थे और खेती बारी बाग बगीचे इतने अधिक थे कि 1020 तो छोड़ो भारत में 500 से 1000 लोग आज आने पर भी किसी को शौचालय से लेकर मूत्रालय और भोजन की समस्या नहीं होती थी*
*आज स्थितियां इतनी बदल चुकी हैं कि अच्छे से अच्छा घर किसी का गांव या नगर क्षेत्र में हो और उसके यहां 20-25 लोग आ जाएं तो हालत खराब हो जाएगी क्योंकि अच्छे से अच्छे घरों में 2 शौचालयसे अधिक होना मुश्किल है अधिकांश घरों में तो एक ही शौचालय होता है*
*यही हाल विवाह बारात एवं तिलक बरक्षा अन्य मांगलिक कामों में है लोग कहने को तो बड़े से बड़े होटल और मैरिज हाल बुक करा लेते हैं लेकिन उसमें भी हालत यह है कि चार या पांच से अधिक शौचालय इत्यादि नहीं होते अब सोचो अगर 500 बाराती हैं और 500 घर आती तो इन चीजों में कैसे लोग अपना निर्वाह कर पाएंगे इन्हीं सब कारणों से लोग नव्या 10:00 बजे रात तक वापस आ जाते हैं दो-तीन घंटे का धूम धड़ाका फिर सब कुछ शांत कोई उल्लास आनंद उमंग नहीं ना कोई किसी को जानता है ना कोई परिचय खड़े-खड़े जानवरों की तरह खाए अगर नहीं भी खाए तो कोई पूछने वाला भी नहीं है*
*चाहे निम्न वर्ग हो या मध्यमवर्गीय उच्च वर्ग सभी लोग विवश हैं चोरी बेईमानी घूसखोरी भ्रष्टाचार लालफीताशाही और चापलूसी मक्खन बाजी करने के लिए क्योंकि उनकी आवश्यकता है बहुत अधिक है कमाने वाले कम हैं घरों में तारतम नहीं है एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं*
*मान लो किसी का छोटा परिवार है 5 सदस्य हैं अगर निम्न वर्ग है तो उसे नगर क्षेत्र में कम से कम एक विश्वा मकान चाहिए आजकल एक विश्वा मकान बनाने की कीमत कम से कम ₹5000000 है 2000000 रुपए कम से कम जमीन का और 3000000 रूपए मकान बनाने का वह भी ज्यादा से ज्यादा चार पांच कमरों का एक छोटा सा मकान अब सोचो निम्न वर्ग का पांच सदस्यों का संयुक्त परिवार इसमें माता पिता को छोड़कर बाकी सब पढ़ने लिखने वाले हैं ₹5000000 जीवन भर पाना तो दूर कल्पना भी नहीं कर सकता लेकिन भोजन वस्त्र और मकान हर व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकता है इसलिए वह कैसे भी करके यहां तक कि दुराचार और व्यभिचार के द्वारा भी एक मकान तो बनाएगा ही*
*अब 5 सदस्यों के मध्यम वर्ग का हाल सुन लीजिए वह निम्न आय वर्ग की तरह बिल्कुल पिछड़े और सुदूर इलाके में नगर में मकान नहीं लेगा बल्कि अच्छे खासे संभ्रांत लोगों के बीच में विधर्मी लोगों से हटकर जमीन लेना चाहेगा और वह जमीन किसी भी हालत में ₹5000000 या अधिक ही एक विश्वा अथवा 1000 स्क्वायर फीट से कम नहीं होगी और उस अस्त्र का मकान कटौती करके बनाने में भी 5000000 रुपए लगेंगे इस प्रकार 10000000 रुपए वह भी केवल मकान का पढ़ाई लिखाई भोजन वस्त्र दवा दारू इत्यादि की बात ही छोड़ दीजिए कहां से आएगा अगर वह अपनी आमदनी में से 10000 या 20000 भी प्रति महीने किसी तरह से बचत करें तो भी पूरे जिंदगी में वह 20 या 2500000 रुपए से अधिक की बचत नहीं कर इस प्रकार वह भी चोरी में मानी झूठ छल कपट दुराचार व्यभिचार चापलूसी 420 ई का सहारा लेगा*
*अब आते हैं तथाकथित फैशन और दिखावा पसंद वाले उच्च वर्ग की जो अपना मकान पास इलाके में बनाना चाहेगा और कम से कम 2 बिस्वा जमीन लेना चाहेगा और ऐसे इलाके में आजकल जमीन की कीमत ₹10000000 से कम नहीं होगी और दो करोड़ दो विश्वा का मकान बनाने के लिए भी कम से कम ₹20000000 चाहिए और इस चार चार करोड़ रुपए को कमाना सीधे रास्ते से असंभव है और जीवन भर में 4 करोड रुपए की बचत भी अच्छी से अच्छी नौकरी वाले नहीं कर सकते इस प्रकार हुए चाह कर भी चोरी बेईमानी भ्रष्टाचार या विचार दुराचार चोरी डकैती 420 चापलूसी से बच नहीं सकते*
*यह तो केवल मकान की बात हुई और लोगों ने विशेषकर और तूने इतना दिखावा और भौतिकता तथा फैशन बढ़ा दिया है कि एक सामान्य विवाह भी 2000000 रुपए से कम में नहीं हो सकता मध्यम वर्ग का 5000000 और उच्च वर्ग का एक करोड़ से 10 करोड़ के बीच सामान्य तौर पर होता है इसका पैसा कहां से आएगा यही हालत शिक्षा की भी है आजकल मध्यम और उच्च वर्ग को छोड़ो सामान्य वर्ग भी अपने बच्चों को प्राइमरी में शिक्षा नहीं देना चाहते जो सही भी है क्योंकि जब सरकारी अध्यापक और क्लर्क तथा चपरासी ही अपने बच्चों को वहां की बेहद दयनीय स्थिति के कारण पढ़ाना नहीं चाहते तो फिर अन्य अपने बच्चों को क्यों भेजें और आमतौर पर आजकल एक सामान्य विद्यालय का प्रति महीने का खर्च ₹2 और एडमिशन फीस ₹15000 हैं थोड़े अच्छे विद्यालयों में ढाई हजार रुपए महीने 1 बच्चे का और एडमिशन फीस 25000 से 30000 और अच्छे चुनिंदा विद्यालयों में ₹5000 प्रति माह और 50000 एकवर्ष की फीस एडमिशन की होती हैं तो वह पैसा कहां से आएगा*
*इसके अलावा अनगिनत खर्च है जिसमें बिजली का बिल पानी का बिल दूर का खर्चा टेलीविजन और फ्रिज का खर्चा मोबाइल का खर्चा कूलर का खर्चा निमंत्रण पत्र का खर्चा सबसे बढ़कर चिकित्सा का खर्च और अनेक खर्च जिससे लोग तबाह हैं और उसमें कोई नियंत्रण भी नहीं है केवल कुछ समझदार लोग जिनकी संख्या पूरे देश में और विश्व में 1% है वही सादा जीवन उच्च विचार अपनाकर बिल्कुल सामान्य जीवन बिता सकते हैं उदाहरण के लिए अगर घर में 5 लोग हैं और 5 मोबाइल चाहिए तो गिरी से गिरी दशा में ₹50000 मोबाइल खर्च का और ₹10000 1 साल के सभी के बिल का खर्चा ₹7000 1 साल ₹5000 महीना पड़ेगा इससे आप समझ लीजिए कि स्थिति कितनी गंभीर है और भारत देश में 90% लोगों की वास्तविक आमदनी ₹5000 या उससे कम है*
*इसलिए व्यर्थ में सच्चाई ईमानदारी सादगी पर भाषण देना सादा जीवन उच्च विचार का दिखावा करना बड़ी-बड़ी नैतिकता सदाचार की बातें करना पूरी तरह बकवास है इतना अवश्य है कि गांधी को आगे करके पीछे उनकी तस्वीर छाप कर गांधी छाप नोट कमाने के लिए 99% लोग किसी भी तरह से उतारू रहते हैं या तो मैंने बहुत साफ थोड़े और संक्षेप में लिख दिया और अब आप समझ सकते हैं कि इस देश में कभी भी किसी भी कीमत पर क्यों चोरी बेईमानी भ्रष्टाचार लूट डकैती दुराचार व्यभिचार अनैतिकता भ्रष्टाचार रुक नहीं सकता और कोई रोक भी नहीं सकता क्योंकि हमारे सांसद विधायक मंत्री और अन्य उच्चतम राजनेता बस भाषण बाजी करते हैं और सादा जीवन उच्च विचार का दिखावा करते हैं खुद भी सिर से पैर तक चोरी बेईमानी भ्रष्टाचार लालफीताशाही घूसखोरी से भरे हैं अगर किसी को यह पोस्ट बुरा लगे जो 101% सही है तो मैं उस से करबद्ध क्षमा प्रार्थी हूं डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह*
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