*विश्विजेता सिकंदर को धूल चटाने वाली परम वीर अति रथी योद्धा वीरांगना कार्विका मालविका जिसे इतिहास से मिटाने का पूरा प्रयास कोंग्रेस वामपंथियों ने किया पर असफल रहे*
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#सिकंदर को हराने वाली #कठगणराज्य की #राजकुमारी #कार्विका के बारे में जानिये सच
#राजकुमारी #कार्विका #सिंधु #नदी के उत्तर में #कठगणराज्य #राज्य की #राजकुमारी थी । #राजकुमारी #कार्विका बहुत ही #कुशल #योद्धा थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी। इनका बचपन के खेल में भी शत्रुओं से देश को मुक्त करवाना और फिर शत्रुओं को दण्ड प्रदान करना यही सब होते थे। राजकुमारी में वीरता और देशभक्ति बचपन से ही थी। जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना इत्यादि खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका राजकुमारी को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे। राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुर्ण थी , तलवारबाजी जब करने उतरती थी दोनों हाथो में तलवार लिये लड़ती थी और एक तलवार कमर पे लटकी हुई रहती थी। अपने गुरु से जीत कर राजकुमारी कार्विका ने सबसे सुरवीर शिष्यों में अपना नामदर्ज करवा लिया था। दोनों हाथो में तलवार लिए जब अभ्यास करने उतरती थी साक्षात् माँ काली का स्वरुप लगती थी। भाला फेकने में अचूक निशानची थी , राजकुमारी कार्विका गुरुकुल शिक्षा पूर्ण कर के एक निर्भीक और शूरवीरों के शूरवीर बन कर लौटी अपने राज्य में।
कुछ साल बीतने के साथ साथ यह ख़बर मिला राजदरबार से सिकंदर लूटपाट करते हुए कठगणराज्य की और बढ़ रहा हैं भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए आगे बढ़ रही थी, इसी खबर के साथ वह अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि 8000 से 8500 नारियों की सेना थी। कठगणराज्य की यह इतिहास की पहली सेना रही जिसमे महज 8000 से 8500 विदुषी नारियाँ थी। कठगणराज्य जो की एक छोटी सा राज्य था। इसलिए अत्यधिक सैन्यबल की इस राज्य को कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ी थी।
325 (इ.पूर्व) में सिकन्दर के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहुत नुकसान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था। सिकन्दर की सेना लगभग 1,50,000 थी और कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका के साथ आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी यह एक ऐतिहासिक लड़ाई थी जिसमे कोई पुरुष नहीं था सेना में सिर्फ विदुषी वीरांगनाएँ थी। राजकुमारी और उनकी सेना अदम्य वीरता का परिचय देते हुए सिकंदर की सेना पर टूट पड़ी, युद्धनीति बनाने में जो कुशल होता हैं युद्ध में जीत उसी की होती हैं रण कौशल का परिचय देते हुए राजकुमारी ने सिकंदर से युद्ध की थी।
सिकंदर ने पहले सोचा "सिर्फ नारी की फ़ौज है मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले 25,000 की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया , और राजकुमारी कार्विका की सेना को मानो स्वयं माँ भवानी का वरदान प्राप्त हुआ हो बिना रुके देखते ही देखते सिकंदर की 25,000 सेना दस्ता को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी। राजकुमारी की सेना में 50 से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी। सिकंदर की सेना में शायद ही कोई ज़िन्दा वापस लौट पाया थे।
दूसरी युद्धनीति के अनुसार अब सिकंदर ने 40,000 का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया परंतु राजकुमारी सिकंदर जैसा कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया राजकुमारी के हाथों बुरी तरह से पस्त हो गयी सिकंदर की सेना।
तीसरी और अंतिम 85,000 दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया सिकंदर के सेना में मार काट मचा दिया नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया इतनी भयंकर तवाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर होगया। इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के 8500 में से 2750 साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया जिसमे से नाम कुछ ही मिलते हैं। इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौरायमिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं। इस युद्ध में जिन्होंने प्राणों की बलिदानी देकर सिकंदर को सिंध के पार खदेड़ दिया था। सिकंदर की 1,50,000 की सेना में से 25,000 के लगभग सेना शेष बची थी , हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधि पत्र दिया राजकुमारी कार्विका को ।
संदर्भ :-
१) कुछ दस्ताबेज से लिया गया हैं पुराणी लेख नामक दस्ताबेज
२) राय चौधरी- 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव एशेंट इंडिया'- पृ. 220)
३) ग्रीस के दस्ताबेज मसेडोनिया का इतिहास ,
Hellenistic Babylon नामक दस्ताबेज में इस युद्ध की जिक्र किया गया हैं।
राजकुमारी कार्विका की समूल इतिहास को नष्ठ कर दिया गया था। इस वीरांगना के इतिहास को बहुत ढूंढने पर केवल दो ही जगह पर दो ही पन्नों में ही खत्म कर दिया गया था। यह पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर को परास्त किया था 325(ई.पूर्व) में। समय के साथ साथ इन इतिहासों को नष्ट कर दिया गया था और भारत का इतिहास वामपंथी और इक्कसवीं सदी के नवीनतम इतिहासकार जैसे रोमिला थाप्पर और भी बहुत सारे इतिहासकार ने भारतीय वीरांगनाओं के नाम कोई दस्तावेज़ नहीं लिखा था।
यह भी कह सकते हैं भारतीय नारियों को राजनीति से दूर करने के लिए सनातन धर्म में नारियों को हमेशा घूँघट धारी और अबला दिखाया हैं। इतिहासकारों ने भारत को ऋषिमुनि का एवं सनातन धर्म को पुरुषप्रधान एवं नारी विरोधी संकुचित विचारधारा वाला धर्म साबित करने के लिये इन इतिहासो को मिटा दिया था। कुछ कतिपय इतिहासकारो का बस चलता तो रानी लक्ष्मीबाई का भी इतिहास गायब करवा देते पर ऐसा नहीं कर पाये क्यों की 1857 की ऐतिहासिक लड़ाई को हर कोई जानता हैं ।
लव जिहाद तब रुकेगा जब इतिहासकार ग़ुलामी और धर्मनिरपेक्षता का चादर फ़ेंक कर असली इतिहास रखेंगे। राजकुमारी कार्विका जैसी वीरांगनाओं ने सिर्फ सनातन धर्म में ही जन्म लिए हैं। ऐसी वीरांगनाओं का जन्म केवल सनातन धर्म में ही संभव हैं। जिस सदी में इन वीरांगनाओं ने देश पर राज करना शुरू किया था उस समय शायद ही किसी दूसरे मजहब या रिलिजन में नारियों को इतनी स्वतंत्रता होगी । सनातन धर्म का सर है नारी और धड़ पुरुष हैं। जिस प्रकार सर के बिना धड़ बेकार हैं उसी प्रकार सनातन धर्म नारी के बिना अपूर्ण है।
जितना भी हो पाया इस वीरांगना का खोया हुआ इतिहास आप सबके सामने प्रस्तुत है।
भारत सरकार से अनुरोध है महामान्य प्रधानमंत्री महोदय जी से की सच सामने लाने की अनुमति दें इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च को ।
वन्देमातरम्🙏🙏🇮🇳🇮🇳
जय माँ भवानी🙏🙏🚩🚩
News no2:
[6/16, 20:24] Dr. Dileep Singh: *"गांव के आम" एक प्रासंगिक कहानी लेखक डॉ दिलीप कुमार सिंह*
*जीवन में पहली बार वर्ष 2022 का जून महीना और विक्रम संवत 2079 ई का जेठ महीना बीत गया और गांव के आम खाना तो दूर दर्शन सुलभ नहीं हुआ ना तो आम के अमराइयों की सुंदर भीनी मादक दिव्य सुगंध प्राप्त करने का अवसर मिला तो आम के टिकोरा कच्चा आम या पका आम खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ना तो गांव जा सका और ना गांव के किसी इष्ट मित्र घर वालों को ही इस भागती दौड़ती जिंदगी में इतना मौका मिला कि कच्चा या पक्का लाकर दे सके कि कम से कम उस आम को खाकर गांव की मिट्टी उसकी सुगंध और गांव के लोगों का स्नेह प्रेम अनुभव किया जा सके*
*यह बहुत बड़ी और हृदय की बात आधुनिक पीढ़ी को समझ में नहीं आएगी जो कहने को पढ़ा लिखा और वैज्ञानिक है लेकिन सारा काम विज्ञान धर्म और प्रकृति और पर्यावरण के विरुद्ध करता है उसके लिए बहुत छोटी और फालतू की बात है और कहेगा आम का क्या कहीं से ले कर खा लो लेकिन उसको क्या मालूम कि आपने गांव की रची बसी मिट्टी ग्राम का उसकी मिट्टी के फल फूल सब्जियों और अनाज का स्वाद उस पीढ़ी के लिए कितना महत्व रखता है जिनका खून और पसीना वहां की मिट्टी में मिला हुआ है*
[6/16, 22:47] Dr. Dileep Singh: *यह घटना हम लोगों के बचपन के उस कालखंड की हैं जो 1966 से 1950 ईस्वी के बीच आता है और जब गांव की हवा बिल्कुल साफ स्वच्छ ताजगी और ऑक्सीजन से भरी हुई होती थी जब नगरों की हवा आज के गांव से अच्छी थी जब लोग ताल पोखर बावली में नहाते भी थे और उसका पानी पीते भी थे जब अपवाद स्वरूप थोड़ी बहुत ड्राई यूरिया खेतों में डाली जाती थी वरना गोबर की खाद देसी खाद और हरी खाद सिर पर लादकर हम लोग खेतों में झउआ में भरकर ले जाते थे साल भर गोबर हरी और सूखी पत्तियां तथा अन्य सड़ने लायक चीजें सभी लोगों के घूर में सड़ाई जाती थी जब बड़े बड़े गांव में दो या तीन ट्यूबेल और इतने ही डीजल से चलने वाले पंप होते थे अधिकतर सिंचाई चरखी बेड़ी डेकुली रहट पुरसे इत्यादि से होती थी जब बरसात में भुट्टी टेंगना मांगुर बंजा सौरी चेंगा पलवट गोइंजा पहिना सधरी दरही कठियार डिन्डी गुलवा चेल्हवा अंधी मछली बाम सिंघी चेंगुट भाकुर नैना रोहू टेंगर खेशका जैसी मछलियों से खेत पोखर तालाब भरे रहते थे*
*या उसी कॉल खंड की बात है जब गांव में चारों तरफ आम जामुन इमली बैल अनार कैथ चिलबिल महुआ जंगल जलेबी मिठाई अमरूद गूलर पाकर लहतोरा बड़ाहल कटहल गूलर जैसे फल वाले और अनगिनत बिना फल वाले बबूल बरगद पीपल शीशम ढाक के पेड़ों से गांव के गांव ढके रहते थे और गर्मी में भी उनकी छांव में शीतलता प्राप्त होती थी गांव की और कहीं कहीं लगे हैंडपंप में जाड़े में गर्म और गर्मी में अत्यंत ठंडा जल मिलता था जिसको नहाते ही तरोताजा हो जाते थे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता इतनी प्रबल थी कि तपती हुई दोपहरी में नंगे पैर चलने का सभी को अभ्यास था खेत की खूंटी उबर खबर जगह और ठेले पर भी लोग आराम से चल लेते थे*
*घर मकान मंदिर विद्यालय छोटे-छोटे ज्यादातर मिट्टी और खपरैल के बने या फिर घास फूस के बने घर होते अवश्य थे लेकिन यह प्रकृति पर्यावरण के अनुकूल थे और लोग आराम से सांप बिच्छू अनेक प्रकार के कीड़े मकोड़े गोजर असंख्य कीट पतंगों जैसे टिड्डी मच्छर मच्छी और खटमल के बीच लंबी तान कर सो जाते थे दिनभर परिश्रम करके पढ़ाई फिर भोजन कर के किस्से कहानियां सुनते सुनते हैं जब सोते तो फिर सुबह ही आंखें खुलती थी क्या मजाल की छोटे लोग बड़े लोगों की बात डाल दे या काट दे और क्या मजाल जो बेटा या बेटी बाप के कहने पर भी उनके सामने बैठ जाएं और क्या मजाल जो औरतें पुरुषों के बीच जाकर शामिल हो या उनके सामने बराबर बैठ जाएं चारों ओर एक दूसरे के प्रति गहरा आदर सम्मान और स्नेह प्रेम की भावना थी बड़े भी छोटू के लिए जान दे देते थे लेकिन क्या मजाल जो उन पर खरोच आ जाए खुद भूखे पेट सो लेते पर बच्चों को किसी भी प्रकार खिलाते थे*
*सुबह रुखा सुखा खाकर बच्चे विद्यालय जाते थे और घर वापस आकर ही कुछ खाते पीते थे 20 का दिन पूरा वैसे ही बीत जाता था पानी पीकर चप्पल तो कक्षा 8 तक किसी के पैर में नहीं होती थी ज्यादातर लोग तो चड्डी या जांघिया और सामान्य से कमीज इत्यादि में जाते थे बहुत बड़े धनी लोगों के बच्चों के पैर में चप्पल था जूता तो बहुत बड़ा सपना था और साइकिल तो पूरे गांव में 12 होती थी मुझे याद है मेरे गांव में पहली मोटरसाइकिल 1985 के बाद आई थी कोई भी विद्यालय घर से 1 कोस से कम दूरी पर नहीं था चलते हुए रास्ते में खतरनाक जीव जंतु जानवर सांप अजगर या सियार भेड़िया हाथी मिलना आम बात थी कभी-कभी भूत प्रेत चुड़ैल डायन और बच्चे चुराने वाले तथा ढोकरकसवा साधु संत मिल जाते थे दूर-दूर तक कहीं मुस्लिम बस्ती दिखाई नहीं देती थी और मस्जिद कही थी ही नहीं बड़े-बड़े नगरों में भी लाउडस्पीकर से नमाज नहीं होती थी और मुसलमान ही पूरी सनातन धर्म के लोगों की तरह रहते हैं और जय राम जी की बोला करते थे*
*डॉक्टर और क्लीनिक का नामोनिशान ही था ज्यादातर आयुर्वेदिक या देसी जड़ी बूटियों से इलाज हो जाता था और आमतौर पर 7 से 12 बच्चे होना आम बात थी या अभी बता दूं कि रात में चार्ज तक नहीं होने पर भी शायद ही कोई सांप इत्यादि के काटने से मरा हो जबकि आज हर सुविधाएं होने के बाद भी उस से अधिक लोग मर रहे हैं घर पर ही बच्चे हो जाते थे और उसका नार काटने के लिए अनुभवी हरिजन बस्ती की स्त्री आती और पूरा 12 दिन सौर में बिताती वही खाती पीती जो बच्चे वाली औरत खाती थी इसके बाद भी लोग कहते हैं कि भारत में छुआछूत जाति प्रथा जैसी चीजें थी वह एक अनुभवी लेडी डॉक्टर से बढ़कर थी लोग उसे दाई मां कहा करते थे आयुर्वेद की दुकान में गांव-गांव थे और वैदिक हर गांव में मिल जाते थे जो नारी देख कर ही रोक की पहचान कर लेते थे ऑपरेशन इत्यादि की नौबत आती ही नहीं थी*
*गांव में सबसे अधिक संख्या में आम के वृक्षों थे और लगभग सभी देसी आम थे कलमी या विलायती आम कहीं 12 दिख जाते थे और उनका महत्व इसीलिए था कि वह खाने में मीठे होते थे आबू कितनी किसमें हर गांव में लोग दूर-दूर से लाकर लगाते थे कि उनका नाम गिनना भी मुश्किल है जैसे दशहरी लंगड़ा खत्तहवा जहरांगवा चिनियाहवा लोढीयहवा कोहरहवा सेनुरहवा सवन्हवा भदौंवा गया वाला नेकुराहवा झोंपहवा कलमियावा रेशहवा दुधहवा तोतापुरी और न जाने कितने अनगिनत नाम जो अब भूल चुके हैं उस समय खिचड़ी अर्थात 14 जनवरी को ही आम के बौर दिख जाते थे और मार्च तक खाने लायक टिकोरा हो जाते थे जिसे लोग चटनी या नमक लगाकर खाते अप्रैल में चटनी कच्चे आम नमक के साथ और अचार न जाने कितने चीजें आम की बनती थी और जाली लगने तक लोग जमकर खाते थे कुछ पेड़ जैसे दशहरी 5 मई तक ही पकने शुरू हो जाते थे और 25 मई आते-आते अधिकांश पेड़ पक्का कर लाल हो जाते थे और जो 25 जुलाई तक प्राकृतिक रूप से पत्थर गिरते थे कुछ पेड़ तो इतने विशाल थे उसमें एक ट्रक से दो ट्रक आम फल तेथे जितना आज तो पेड़ कलमी नहीं फल सकते हैं आखरी बार 25 अगस्त तक आखिरी पेड़ भी पूरी तरह झड़ जाते थे हम लोग बिना टॉर्च के ही नंगे पैर सुबह 4:00 बजे उठकर ही प्राकृतिक रूप से पककर गिरे आमों को मिलने जाते थे 11 वो राम सभी लोग बिन कर लाते फिर एक-एक बाल्टी भर कर पानी में भिगोकर चूस कर खाया करते बचे हुएआमों का अमावट डाल दिया जाता था जो साल भर खाया जाता था आम जामुन बेल पपीता केला खाकर ही लोग मस्त रहते थे शाम को ही लोग भोजन करते थे उस समय गेहूं की रोटी मिलना मुश्किल था और हरी सब्जी भी जब कोई मेहमान आते हैं तब लोग खुश होते कि चलो आज अच्छी मसालेदार सब्जी हरी सब्जी और गेहूं की रोटी भी खाने को मिलेगी आज यह सपना जैसा लगता है लेकिन उस समय का सच यही था था विवाह में जिसे घड़ी साइकिल बाजा अर्थात रेडियो मिल जाता था उसे बहुत बड़ा आदमी और बहुत भाग्यवान समझाया था जिसकीकी चर्चा फिर कभी करेंगे*
*बाहर के लोग कमा कर आते हैं किसी के सगे संबंधी नात रिश्तेदार आ जाते थे तो पूरा गांव उनका आदर सम्मान करता था आदर से घर बुलाता और जो भी रहता रुखा सुखा प्रेम से दे देता और बाहर के अतिथि और रिश्तेदार भी सबको अपना ही समझते थे पूरा गांव जानता था किस व्यक्ति का कौन सा रिश्तेदार हैं आज तो बगल का छोड़ो घर का ही व्यक्ति नहीं जानता कि किसके कौन से सगे संबंधी कहां से आए हैं बिजली आना शुरू ही हुई थी और माघ पूस कीहांड कंपाने वाली ठंड हो या जलती हुई गर्मी दोपहरी में लोग खेत की सिंचाई करते थे आधी रात को भी बिजली आने पर खेत की सिंचाई करते और कटाई मड़ाई दवाई करते थे मड़ाई उस समय बैल से किया जाता था और दिन भर दांवरी चलती थी जिसमें एक व्यक्ति बारी-बारी से बालों को पीछे से गोलाई में हांकता था 3 से 4 दिन लग जाते थे एक खेत के मड़ाई करने में रात को पुआल इतना ठंडा हो जाता था कि लोग बिना कुछ बिछाए उसी पर सो जाते थे मंजन और बरस का नामोनिशान नहीं था लोग नियम जामुन सिंगोर इत्यादि की दातुन करते थे*
*अगर गांव का कोई भी पढ़ने लिखने में आगे निकलता था तो पूरा घर उसके लिए जी जान एक कर देता था क्योंकि पैसों की बहुत कमी थी और पढ़ने के लिए लोगों को नगर जाना ही पड़ता था लेकिन पढ़कर नौकरी पाए जाने वाला व्यक्ति घर को ही नहीं गांव को भी अपना समझता था और पूरी मदद करता था आजकल की तरह नहीं की नौकरी पा गए पत्नी आ गई और सब से संबंध तोड़ कर जोरू का गुलाम हो गए और उसी तरह उसका मान सम्मान भी होता था रामायण महाभारत और किस्से कहानियां इतने ज्ञानवर्धक होते थे कि किस्से सुनने के लिए लोग बाकायदा हाथ पैर पीठ की जमकर मालिश कर दिया करते थे*
*कोई भी मौसम हो गांव का कोई भी व्यक्ति गांव में उत्पन्न हुई फसल फल फूल चना मटर गन्ना किसी न किसी बहाने पा ही जाता था और जो लोग बाहर रहते थे गांव के लोग उनको झोला या बुरा भरकर आम और खाने वाली समय की चीजें जरूर पहुंचाते थे यह लोग खुद ही उस समय गांव में पहुंच जाते थे पैदल ही लंबी लंबी दूरी चलने का रिवाज था खर्चे इतने कम थे कि 1990 तक मैं अपने पूरे परिवार का खर्च ₹500 में चला लेता था और उसी वर्ष मेरे विवाह में खून आना पाए जोड़कर ₹5000 में बहुत अच्छे ढंग से विवाह हो गया था यह सब बातें अब सपना लगती हैं लेकिन सच यही था और उस समय ₹4 किलो देसी घी और तीन रुपए किलो गोश्त बिकता था मेला देखने के लिए मुश्किल से दो पैसे पांच पैसे मिलते थे जिसमें लोग खाते भी तो झोला भरकर लाते हुए थे अगर किसी को 50 पैसे या ₹1 मिलता तो हाहाकार मच जाता था गरीबी और निर्धनता तो अवश्य थी लेकिन जो अपनापन प्रेम स्नेह और लगाओ था सारा घर एक दूसरे के लिए और समाज भी कर देता था वैसा तो आज कोई सोच भी नहीं सकता खैर यह सब बातें तो अब सपना हो गई अब से भयंकर जाड़ा गर्मी और वर्षा होती थी 15 15 दिनों तक जाड़े में धूप नहीं होती थी कपड़े सूखने मुश्किल हो जाते थे वही हाल वर्षा का था एक-एक सप्ताह लगातार पानी बरसता था और कहीं तक की पेशाब करने की जगह नहीं बचती थी उसी तरह प्रचंड गर्मी में वातावरण में की तरह दिखता था जिसे दोपहरी का जलजलाना कहते थे एक व्यक्ति की किताबें कम से कम 45 लोग तो बारी-बारी से पढ़ते ही थे और बड़ों के कपड़े छोटे लोग पहनते थे तब तक जब तक वह फट नहीं जाया करते थे प्रचंड और भयंकर बिजली गिरती थी लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति बिजली से मरा हो मुझे तो नहीं याद है कई बार तो करोड़ों वोल्ट की बिजली हम लोगों के बिल्कुल सामने गिरी परंतु ईश्वर का चमत्कार ही था जो हम लोग साफ साफ बच गए*
*धीरे धीरे प्रकृति पर्यावरण बदलता गया बड़े-बड़े विशाल देसी आम समाप्त होते गए लोग कलमी और विदेशी आम लगाने लगे जिनके पेड़ों के कितने आम हैं लोग आसानी से गिर लेते हैं और जिस तरह सूअर अपना पेट भरता है उसी तरह लोग चोरी से खाने-पीने में विश्वास रखने लगे हैं और वह भी समय था कि हम लोग जौनपुर में पिताजी के साथ रहते थे तो ऐसा पूरे साल में शायद ही कोई दिन आता हो जिस दिन कोई न कोई सगे संबंधी गांव का या पड़ोस का व्यक्ति ना आता हो और जब वह आता तो हम लोग आधे पेड़ खा कर भी उसे अपने हिस्से का खिलाकर बड़े प्रसन्न होते और उसको चारपाई देकर खुद जमीन पर सो जाया करते थे और यह क्रम कोई एक-दो वर्ष नहीं 25 या 30 वर्षों तक चलता रहा लेकिन जब ऐसे लोग जो यहां आकर खाए पिए हुए वह भी मुफ्त में उनके घर कोई चीज मांगना पड़ा तो उन्होंने अन्य की अपेक्षा ज्यादा पैसा ही लिया धीरे धीरे सब कुछ समाप्त हो गया ना वह महत्याम के भाग रहे फलदार वृक्ष रहे और सब अपने में सिमट गए जहां 2 तारीख से सारे घर का काम और एक टेलीविजन से पूरे गांव का काम चल जाता था वहां हर व्यक्ति के पास टच मोबाइल घड़ी और एक घर में 4455 टीवी सेट होने के बाद भी आधे लोग टेलीविजन देखने से वंचित रह जाते हैं क्योंकि सबका अपना अपना पसंद और अपना अपना कार्यक्रम हो गया है और किसी का हस्तक्षेप दूसरे को बर्दाश्त नहीं है*
*कुल मिलाकर सब कुछ बदल गया और कहीं अपनापन नहीं रहा स्वाभाविक स्नेह प्रेम और निश्चल भावना की जगह कुटिलता स्वार्थ और छल कपट ने ग्रहण कर लिया सबके चेहरों पर दिखावटी हंसी दिखने लगी अंदर अंदर सब खोखले हो गए हाथ में सोने की अंगूठी भले हो पर हृदय सभी का सुन्न हो गया और कुल मिलाकर परिणाम यही रहा कि इस वर्ष में गांव का एक भी टिकोरा कच्चा आम या पक्का आम नहीं खा सका*
न्यूज़ no 3
*प्रिय मित्रों आप सब से निवेदन है कि हमारे परम प्रिय घन घोर आलोचक गण और शत्रु तथा मित्र के वेश में छिपे शत्रु और आस्तीन के सांपों की बातों पर ध्यान न देते हुए हमारी भविष्यवाणियों पर अटल रहे क्योंकि हमारे केंद्र का हर सदस्य गणित विज्ञान भारतीय कहावत और मौसम के आधार पर गणना करता है थोड़ा बहुत अंतर भले आ जाए पर आज भी बहुत तेज हवा आंधी पानी के साथ जौनपुर मछली शहर वाराणसी मिर्जापुर चंदौली शाहगंज आजमगढ़ सैदपुर मिर्जापुर रावटसगंज प्रतापगढ़ सुल्तानपुर अकबरपुर अयोध्या में कहीं हल्की तो कहीं और भी यही स्थिति जारी रहेगी इसलिए आप बिल्कुल भी चिंतित परेशान ना हो बहुत तेज हवा आंधी और बवंडर के साथ आज भी वर्षा होनी निश्चित है*
*लेकिन जौनपुर के नगर क्षेत्र में बहुत हल्की वर्षा होगी जबकि इसके दक्षिण पूर्व में काफी अच्छी वर्षा विशेषकर मछली शहर और प्रतापगढ़ क्षेत्रों के आसपास होगी आप स्वस्थ रहें और जैसे ही भविष्यवाणी सच होंगी इन सब घनघोर भयंकर आलोचक गण शत्रु शत्रु के वेश में छिपे मित्रों आस्तीन के सांपों और निंदक लोगों का मुंह लटक जाएगा कल भी पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आसपास से लेकर सुजानगंज और काफी दूर-दूर वर्षा हुई थी परंतु उपर्युक्त लोग मानने को तैयार नहीं थे विशेषकर काशीनाथ सेठ एडवोकेट बिनय कुमार उपाध्याय तिवारी और श्रीवास्तव जी एंड कंपनी दिलीप कुमार सिंह*
**और अब जबकि उपर्युक्त भविष्यवाणी पूरी तरह सही हो चुकी है मौसम भी काफी सुहावना ठंडा सुंदर हो गया और जौनपुर नगर क्षेत्र में हल्की वर्षा तेज आंधी हवा बवंडर के साथ हो चुकी है तथा उपर्युक्त आसपास के जनपदों में कहीं हल्की कहीं मध्यम कहीं भारी वर्षा धूल भरी आंधी के साथ हुई है तब सारे परम आदरणीय शत्रु आलोचक गण आस्तीन के सांप मित्र के वेश में छिपे सत्र और निंदक लोग धीरे से भूमिगत हो चुके हैं क्योंकि अब उनको यह सब बहुत ही अच्छा है लग रहा है और अब कोई हाल पूछने भी नहीं आएगा कल दोपहर से आज दोपहर तक यह लोग बरसाती मेंढक की तरह बोलकर कोयल बनाने का सॉन्ग कर रहे थे अनेक लोग तो समाचार पत्रों में यह छाप कर धन्य हो रहे थे कि 23:24 के पहले उत्तर प्रदेश जौनपुर और आसपास ना तो बादल होंगे ना वर्षा होगी और ना मानसून आएगा बल्कि इसके बाद ही आएगा इन समाचार पत्रों में अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे स्वनामधन्य समाचार पत्र और उनके विश्वविख्यात मौसम वैज्ञानिक भी हैं अब भविष्यवाणी सच होने पर आप सब लोग सुहावने मौसम का आनंद लीजिए और छाती पर पत्थर रखकर लाइक कमेंट और शेयर से दूर रहिए जो भारतीय लोगों के एक बड़े वर्ग का सामान्य स्वभाव है और उसी के कारण मुट्ठी भर लोग हमें गुलाम बनाने में सफल हुए डॉ दिलीप कुमार सिंह* *
न्यूज़ no3*प्रिय मित्रों आप सब से निवेदन है कि हमारे परम प्रिय घन घोर आलोचक गण और शत्रु तथा मित्र के वेश में छिपे शत्रु और आस्तीन के सांपों की बातों पर ध्यान न देते हुए हमारी भविष्यवाणियों पर अटल रहे क्योंकि हमारे केंद्र का हर सदस्य गणित विज्ञान बकरा भारतीय कहावत और मौसम के आधार पर गणना करता है थोड़ा बहुत अंतर भले आ जाए पर आज भी बहुत तेज हवा आंधी पानी के साथ जौनपुर मछली शहर वाराणसी मिर्जापुर चंदौली शाहगंज आजमगढ़ सैदपुर मिर्जापुर रावटसगंज में कहीं हल्की तो कहीं और भी यही स्थिति जारी रहेगी इसलिए आप बिल्कुल भी चिंतित परेशान ना हो बहुत तेज हवा आंधी और बवंडर के साथ आज भी वर्षा होनी निश्चित है लेकिन जौनपुर के नगर क्षेत्र में बहुत हल्की वर्षा होगी जबकि इसके दक्षिण पूर्व में काफी अच्छी वर्षा विशेषकर मछली शहर और प्रतापगढ़ क्षेत्रों के आसपास होगी आप स्वस्थ रहें और जैसे ही भविष्यवाणी सहयोगी इन सब का मुंह लटक जाएगा कल भी पूर्वांचल विश्वविद्यालय के आसपास से लेकर सुजानगंज और काफी दूर-दूर वर्षा हुई थी दिलीप कुमार सिंह*
News no 4
[6/16, 6:52 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: *मानसून और प्री मानसून की हमारे केंद्र की भविष्यवाणी ईश्वर की कृपा और लाखों करोड़ों लोगों के स्नेह आशीर्वाद से सही हुई कल अनेका स्थानों पर बूंदाबांदी और अन्य स्थानों पर हल्की से मध्यमवर्षा भी हुई और इस तरह से तमाम गैंग वालों के चेहरे उदास हो गए जो कल दीवानी न्यायालय में एक गुप्त स्थान पर बहुत बड़ी मीटिंग करके यह तय किया कि अगर शाम तक मौसम नहीं बदला और आंधी पानी के साथ मौसम सुहावना नहीं रहा तो हमारे केंद्र के विरुद्ध दुष्प्रचार और खूब आलोचना करेंगेअब आगे 1 सप्ताह तक क्या होगा इस बात की भविष्यवाणी सुन लीजिए*
*आने वाले 1 सप्ताह में अर्थात आज 16 जून से 24 जून तक लगभग रोज ही वर्षा होगी और आज जौनपुर और आसपास के क्षेत्रों में दोपहर के बाद से रात के बीच में कहीं हल्की कहीं मध्यम तो कहीं जोरदार वर्षा होगी विशेषकर वाराणसी आजमगढ़ गाजीपुर मऊ के कई क्षेत्रों में भारी वर्षा होने की प्रबल संभावना है आज जौनपुर और आसपास तापमान भी 47 डिग्री सेल्सियस से घटकर अधिकतम 41 पर और न्यूनतम 30 डिग्री सेंटीग्रेड पर आ जाएगा शरीर जलाने और झूलने वाली प्रलय कालीन गर्मी उमस और पसीना से तो कल शाम को ही सब को काफी राहत मिल गए थे आज दोपहर को छोड़ दिया जाए तो मौसम काफी सुहावना सुंदर बना रहेगा इसी बीच हवा की गुणवत्ता भी 300 से घटकर 50 से 70 के बीच आ जाएगी जो इस परिस्थितियों में बहुत अच्छी मानी जाती है फिलहाल दोपहर को गर्मी उमस पसीना जारी रहेगा*
*हमारे केंद्र के ज्योतिषी लोगों विद्वानों और भारती कहा तो तथा मौसम की गणना विशेषज्ञ के अनुसार आज से लगातार 1 सप्ताह तक वर्षा जारी रहेगी और आगे भी अंतराल देकर जारी रहेगी इसलिए किसान और पेड़ पौधे लगाने वाले लोग तथा अन्य इसके अनुसार कार्य कर सकते हैं मैंने इस बात को बार-बार कहा कि इस वर्ष का मानसून अनियमित अनिश्चित और कई जगह रुक कर भी लंबित होगा कहीं-कहीं मूसलाधार वर्षा तो कहीं-कहीं सूखे जैसी स्थिति आएगा इसलिए फिर से ही निवेदन और चेतावनी है कि किसान लोग मिलीजुली खेती करें*
*आज आज वायुदाब बढ़कर 1001 हो जाएगा और सापेक्षिक आर्द्रता बढ़कर 35% से 90% के बीच पहुंच जाएगी और दोनों ही परिस्थितियों वर्षा को सूचित करती हैं हवा की गति 15 से 25 किलोमीटर और इसके झोंकों की गति 35 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है और दिशा दक्षिणी पश्चिमी या पश्चिमी रहेगी जो मानसूनी दिशा की ओर संकेत करती है*
*Baharhal sharir jalane aur gulsane wali aur मार्च से लेकर 15 जून दोपहर तक शरीर जलाने और झुलसा ने वाली गर्मी पसीने से तरबतर कर देने वाली उम्र से छुटकारा मिलने पर और हमारे केंद्र की भविष्यवाणी ईश्वर की कृपा से पूरी तरह सत्य होने पर हम सभी को बधाई और शुभकामनाएं देते हैं आशा है की कागजी और हवाई कार्यवाही से बचते हुए सभी लोग प्रकृति से खिलवाड़ नहीं करेंगे बल्कि प्रकृति पर्यावरण से जहां तक संभव होगा तादात्म्य स्थापित करते हुए आने वाले समय में हर व्यक्ति कम से कम एक छायादार बड़ा पौधा और चार पांच छोटे पौधे गमलों में ही जरूर लगाएंगे और सरकारी घपला घोटाले के चक्कर में ना पढ़ते हुए अपना कार्य जारी रखेंगे जौनपुर में सरकारी विभागों ने पिछले 10 वर्षों में 2 करोड़ से लेकर 5 करोड़ पौधे लगाए कहां लगा कैसे लगा क्या हुआ कुछ पता नहीं है पैसों का भुगतान तो सबको हो गया उन सभी लोगों को बधाई जिन्होंने हमारे ऊपर विश्वास किया 45 वर्षों से और उनकी भविष्यवाणी सच हुई और विश्वास फलित हुआ*
*जितना ही आप सब लोग अंदर से बाहर से स्वच्छ रहेंगे ईश्वर और प्रकृति पर्यावरण के निकट रहेंगे उतना ही मानसिक शारीरिक आत्मिक सुख प्राप्त करेंगे केवल धन और पैसो के पीछे दौड़ेंगे तो प्रकृति विरुद्ध होगी पर्यावरण असंतुलित होगा और हर कीर्तिमान तोड़ने वाली ठंडी गर्मी वर्षा का सामना तो करना ही होगा प्रकृति के भयंकर क्रोध के रूप में बड़े-बड़े भूकंप सुनामी लहरों ज्वालामुखी विस्फोट अंतरिक्ष से गिरने वाले उनका खंडों विषम परिस्थितियों इत्यादि का सामना करना ही पड़ेगा और लाखों करोड़ों वर्षों से अपने पूर्वजों की जीवन शैली रहन-सहन मिट्टी और छप्पर के घर याद कीजिए कि किस तरह प्रकृति के साथ अनुकूलन बनाकर रहते थे और कल फूल जड़ी बूटियों आयुर्वेद के विशेषज्ञ थे और थोड़े में बहुत खुश थे डॉ दिलीप कुमार सिंह निदेशक मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि अलका शिप्रा वैष्णवी बाल गोपाल शिवानी ज्योतिष मौसम और विज्ञान अनुसंधान केंद्र साथ में सभी परम विद्वान सदस्य गण भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के सुरेश कुमार वर्मा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के राजकुमार मौर्य डॉ मानवेंद्र डॉक्टर श्वेता पद्मा सिंह एसके उपाध्याय केएन राय कन्हैयालाल एवं मनीष कुमार पांडे और अन्य सदस्य गण*
[6/17, 5:45 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: *आज 17 जून है और दिसंबर 2021 में हमारे केंद्र के महानतम भविष्यवाणियों में से एक आज जनपद जौनपुर के ग्रामीण और नगर क्षेत्रों के साथ-साथ सुबह से ही अन्य जिलों में भी मानसून की वर्षा होने निश्चित है इसके पहले हमारे केंद्र की भविष्यवाणी के अनुसार 15 और 16 को मौसम भी बदला आंधी भी आई और कहीं-कहीं हल्की परी मानसूनी वर्षा भी हो गई आज 6:00 बजे वह सुबह के आस पास कभी भी मानसूनी वर्षा शुरू हो सकती है डॉ दिलीप कुमार सिंह निदेशक मौसम विज्ञानी एवं ज्योतिष शिरोमणि अलका शिप्रा वैष्णवी बाल गोपाल शिवानी ज्योतिष मौसम एवं विज्ञान अनुसंधान केंद्र साथ में सभी विद्वान सदस्य गण*
[6/17, 7:19 AM] Dileep Singh Rajput Jounpur: *देशके और सनातन धर्म के हित में अग्नि वीर योजना से अच्छी कोई आयोजन कोई नहीं सकते बस इसमें हरे रंग के विषय ले साफ और आतंक के फरिश्तों को किसी भी प्रकार सम्मिलित ना होने दिया जाए और इसको 4 वर्ष से बढ़कर 5 वर्ष कर दिया जाए वैसे भी किसी जीत राष्ट्र के लिए देश के लिए पांच वर्ष देना अत्यंत ही आवश्यक और पुनीत कर्तव्य है दुनिया के लगभग हर देश में ऐसी योजना है जिसमे इजराइल और कोरिया सबसे आगे है मैं इस काम के लिए भारत सरकार और मोदी जी के मुक्त कंठ से भूरी भूरी प्रशंसा करता हूं बल्कि यों कहा जाए कि इसके लिए मेरे पास अच्छे अच्छे शब्दों का अभाव है यह दूर दृष्टि में रखकर की गई अब तक की सबसे सुंदर घोषणा है और इस की अत्यधिक आवश्यकता भविष्य में पड़ने वाली है जब भारत का सामना पाकिस्तान और चीन से होगा क्योंकि सीधे-सीधे तो यह भारत के कब्जा किए 200000 वर्ग किलोमीटर देने वाले नहीं हैं*
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