राधा अष्टमी*
*_बरसाना नहीं रावल गांव में जन्मी थीं राधा रानी_*
_(उपेन्द्र श्रीवास्तव_ )
देवी राधा और भगवान कृष्ण को एक दूसरे का पूरक माना जाता है।यद्यपि उनका विवाह नहीं हुआ था, फिर भी वे दुनिया भर में प्यार का प्रतीक माने जाते हैं। राधा रानी को श्रीकृष्ण की आत्मा कहा जाता है। राधा रानी को बरसाना की रहने वाली माना जाता है, जबकि वास्तव में इनका जन्म बरसाना से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित रावल गांव में हुआ था। भगवान कृष्ण की तरह वह भी अजन्मी थीं।
*राधा रानी से जुड़ी कुछ विशेष बातें*
कमल के फूल पर जन्मी थीं राधा रानी। बरसाना से 50 किलोमीटर दूर स्थित रावल गांव में राधा जी का जन्म हुआ था। वहाँ पर एक मंदिर भी स्थापित है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि आज से करीब पांच हजार साल पहले यमुना नदी रावल गांव को छूकर ही (बहती) जाती थीं। पौराणिक कथा अनुसार, उस समय राधा रानी की माँ कीर्ति देवी यमुना नदी में स्नान के दौरान आराधना करते हुए पुत्री की कामना करती थीं। एक दिन पूजा के समय नदी में कमल का फूल अवतरित हुआ। फूल में सोने की चमक जितना तेज प्रकाश था,उसमें एक छोटी बच्ची अपनी आंख बंद कर के विराजमान थी। उस स्थान पर आज मंदिर का गर्भगृह बना दिया गया है। कीर्ति देवी ने भगवत प्रेरणा से उसको उठा लिया और इस प्रकार वृषभानु और कीर्ति देवी को पुत्री की प्राप्ति हुई। लेकिन उस दौरान राधा रानी ने अपनी आँखें बंद ही रखी।
*ग्यारह महीने बाद भगवान कृष्ण का जन्म हुआ*
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी राधा के जन्म के ठीक ग्यारह महीने बाद मथुरा में कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म देवकी मां के गर्भ से हुआ।मथुरा, रावल से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तब कंस से बालरूप श्रीकृष्ण को बचाने के लिए वसुदेव ने टोकरी में श्रीकृष्ण को लिटाकर रात के समय गोकुल में अपने मित्र नन्द बाबा के घर छोड़ आये। पुत्र रूप में श्रीकृष्ण को पाकर नन्द बाबा ने कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया। उस समय उन्हें बधाई देने के लिए नन्दगांव में वृषभानु अपनी पत्नी कीर्ति और पुत्री देवी राधा के साथ आये थे। उस समय राधारानी अपने घुटने के बल चलकर बालकृष्ण के पास पहुंची और श्रीकृष्ण के पास बैठकर राधारानी ने अपने नेत्र खोले और अपना पहला दर्शन बालकृष्ण का ही किया था।
श्रीकृष्ण का जन्म होने के बाद गोकुल गांव में कंस का अत्याचार बढ़ने लगा था। ऐसे में लोग परेशान होकर नन्दबाबा के पास पहुँचे। तब नन्दराय जी ने सभी स्थानीय राजाओं को इकठ्ठा किया। उस समय वृषभानु बृज के सबसे बड़े राजा थे। उनके पास करीब ग्यारह लाख गायें थीं, तब उन्होंने मिलकर गोकुल और रावल छोड़ने का निर्णय लिया। गोकुल से नन्दबाबा और गांव की जनता जिस पहाड़ी पर पहुँचे, उसका नाम नन्दगाँव पड़ गया। दूसरी ओर वृषभानु,कीर्ति देवी, और राधारानी जिस पहाड़ी पर गए उसका नाम बरसाना पड़ गया।
*रावल में मंदिर के सामने बगीचे में पेड़ स्वरूप में हैं, राधा और कृष्ण*
राधारानी का जन्मस्थान रावल होने के कारण वहाँ पर राधारानी का मंदिर स्थापित है। मंदिर के सामने एक प्राचीन बाग भी बना हुआ है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी पेड़ के रूप में राधारानी और भगवान श्रीकृष्ण वहाँ पर विद्यमान हैं। बगीचे में एक साथ दो पेड़ बने हुए हैं, जिसमें एक का रंग श्वेत अर्थात सफेद और दूसरे का रंग श्याम अर्थात काला है। इसलिए यह पेड़ राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि आज भी राधा-कृष्ण पेड़ के रूप में मां यमुना को निहारते हैं। इन पेड़ों की भक्तों द्वारा पूजा भी की जाती है।
पूर्वांचल प्रभारी उपेंद्र कुमार श्रीवास्तव की रिपोर्ट
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