*एक खतरनाक बीमारी टिनिटस, जिसका एलोपैथी में शायद उपचार नहीं है..*
*ऐसी तकलीफ का असली मददगार फल "नोनी" जूस*
टिनिटस एक व्यक्तिपरक विकार है जो पर्यावरणीय शोर के अभाव में कानों में पुरानी बजने, गर्जना, भनभनाहट, गुनगुनाते, चहकने या फुफकारने के रूप में विशेषता है। टिनिटस और चक्कर आने की स्थिति में नोनी के सकारात्मक परिणाम दिखाए गए हैं।
टिनिटस में नोनी के चिकित्सीय प्रभाव को वासोएक्टिव और फ्री रेडिकल स्कैवेंजिंग गुणों वाले कई सक्रिय घटकों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
यह उन रोगियों में दिखाया गया है जिनके पास सेरेब्रोवास्कुलर अपर्याप्तता (सामान्य उम्र बढ़ने से जुड़ी एक सामान्य स्थिति) है, नोनी चक्कर, टिनिटस, सिरदर्द और भूलने की बीमारी के लक्षणों में महत्वपूर्ण सुधार करती है।
*मेलाटोनिन और नोनी:*
एक अध्ययन में यह पाया गया है कि मेलाटोनिन के पूरक से टिनिटस के लक्षणों से राहत मिलती है। शोधकर्ताओं ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि द्विपक्षीय (दो तरफा) टिनिटस वाले रोगियों ने एकतरफा (एक तरफा) टिनिटस वाले लोगों पर महत्वपूर्ण सुधार दिखाया।
नोनी प्राकृतिक तरीके से पीनियल शरीर से अधिक मेलाटोनिन के स्राव को उत्तेजित करता है।
इसलिए टिनिटस के मामले में नोनी के नियमित उपयोग से बेहतर गुंजाइश होती है।
*विटामिन-बी:*
माइकल सीडमैन, एमडी (ब्लूमफील्ड, मिशिगन में टिनिटस सेंटर) के अनुसार, ऐसे विशिष्ट पोषक तत्व हैं जो टिनिटस वाले व्यक्तियों को लाभान्वित करने के लिए सुझाए गए हैं। बी-कॉम्प्लेक्स सप्लीमेंट्स इस श्रेणी का नेतृत्व करते हैं क्योंकि विटामिन-बी की कमी के परिणामस्वरूप टिनिटस होता है। विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स नसों को स्थिर करता है और कुछ टिनिटस रोगियों पर लाभकारी प्रभाव डालता है।
नोनी में सभी बी कॉम्प्लेक्स विटामिन भरपूर मात्रा में होते हैं।
*मैग्नीशियम:*
बड़े शहरों में लोग दैनिक आधार पर संभावित रूप से हानिकारक शोर के संपर्क में आते हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि शोर के संपर्क में आने से शरीर से मैग्नीशियम का उत्सर्जन होता है।
यह संभव है कि मैग्नीशियम के साथ पूरक शोर प्रेरित कान क्षति को कम कर सकता है और इस प्रकार नए शुरुआत टिनिटस की संभावना को कम कर सकता है। नोनी में मैग्नीशियम सहित कई ट्रेस खनिज होते हैं।
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2000mg नोनी
300mg अश्वगंधा
100mg गरसेनिया कम्बोजिया
मात्रा 400ml
एमआरपी ₹800/
ये सुना जाता है कि टिनिटस का एलोपैथी में कोई उपचार नहीं है लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा से सम्भव है।
*पार्किंसन रोग का 100% कुदरती इलाज...*
*पार्किंसन रोग Parkinson :*
*पार्किंसन रोग क्या है?*
पार्किंसन रोग तंत्रिका तंत्र का एक तेजी से फैलने वाला विकार है, जो आपकी गतिविधियों को प्रभावित करता है।
यह धीरे-धीरे विकसित होता है।
यह रोग कभी कभी केवल एक हाथ में होने वाले कम्पन के साथ शुरू होता है।
लेकिन, जब कंपकपी पार्किंसन रोग का सबसे मुख्य संकेत बन जाती है तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का कारण भी बनता है।
पार्किंसन रोग के शुरुआती चरणों में, आपके चेहरे के हाव भाव कम या खत्म हो सकते हैं या चलते समय आपकी बाजुएं हिलना बंद कर सकती हैं। आपकी आवाज़ धीमी या अस्पष्ट हो सकती है।
समय के साथ पार्किंसन बीमारी के बढ़ने के कारण लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
*पार्किंसन रोग के लक्षण :*
इस रोग के लक्षण और संकेत हर व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं।
शुरुआती संकेत कम हो सकते हैं और आसानी से किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करते हैं।
इसके लक्षण अक्सर आपके शरीर के एक तरफ के हिस्से पर दिखने शुरू होते हैं और स्थिति बहुत खराब हो जाती है।
*▪कंपन :*
कंपकपाना या हिलना आमतौर पर आपके हाथ या उंगलियों से शुरू होता है।
इसके कारण आपका अंगूठा और तर्जनी उंगली के एक दूसरे से रगड़ने शुरू हो सकते हैं, जिसे "पिल-रोलिंग ट्रेमर" (Pill-Rolling Tremor) कहते हैं। पार्किंसन रोग का एक लक्षण है आराम की स्थिति में आपके हाथ में होने वाली कंपकपी है।
*▪धीमी गतिविधि (ब्रैडीकीनेसिया) :*
समय के साथ, यह बीमारी आपके हिलने डुलने और काम करने की क्षमता को कम कर सकती है, जिसके कारण एक आसान कार्य को करने में भी कठिनाई होती है और समय अधिक लगता है।
चलते समय आपकी गति धीमी हो सकती है या खड़े होने में कठिनाई हो सकती है। इसके अलावा आप पैरों को घसीट कर चलने की कोशिश करते हैं, जिससे चलना मुश्किल हो जाता है।
*▪कठोर मांसपेशियां :* आपके शरीर के किसी भी हिस्से में मांसपेशियों में अकड़न हो सकती है।
कठोर मांसपेशियां आपकी गति को सीमित कर सकती हैं और दर्द का कारण बन सकती हैं।
*▪बिगड़ी हुई मुद्रा और असंतुलन :* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप आपका शरीर झुक सकता है या असंतुलन की समस्या हो सकती है।
*■ स्वचालित गतिविधियों की हानि :*
पार्किंसन बीमारी में, अचेतन (Unconscious) कार्य करने की क्षमता में कमी आ सकती है, जिनमें पलकें झपकाना, मुस्कुराना या हाथों को हिलाते हुए चलना शामिल हैं।
बात करते समय आपके चेहरे पर ज़्यादा समय के लिए हाव भाव नहीं रह सकते।
*▪आवाज़ में परिवर्तन :* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप उच्चारण सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं।
आपका स्वर धीमा, तीव्र और अस्पष्ट हो सकता है या आपको बात करने से पहले हिचकिचाहट हो सकती है।
सामान्य संक्रमण की तुलना में आपकी आवाज़ और ज़्यादा खराब हो जाती है।
स्वर और भाषा के चिकित्सक आपकी उच्चारण समस्याओं का निवारण करने में मदद कर सकते हैं।
*▪लिखावट में परिवर्तन :* लिखावट छोटी हो सकती है और लिखने में तकलीफ हो सकती है।
दवाएं इनमें से कई लक्षणों को कम कर सकती हैं।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया "उपचार" का खंड देखें।
*डॉक्टर को कब दिखाएं?*
यदि आप पार्किंसन रोग से जुड़ा कोई भी लक्षण देखते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। अपनी स्थिति का परीक्षण करने और लक्षणों के अन्य कारणों को दूर करने के लिए भी चिकित्सक से परामर्श करें।
*पार्किंसन रोग के कारण और जोखिम कारक :*
पार्किंसन रोग में मस्तिष्क में उपस्थित कुछ तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं।
न्यूरॉन्स हमारे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन उत्पन्न करते हैं।
इन न्यूरॉन्स के नष्ट होने के कारण कई लक्षण उत्पन्न होते हैं।
डोपामाइन के स्तर में आने वाली कमी असामान्य मस्तिष्क गतिविधि का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप पार्किंसंस रोग के संकेत मिलते हैं।
*▪आपके जीन (Genes) :*
शोधकर्ताओं ने विशिष्ट जेनेटिक उत्परिवर्तनों (Genetic Mutations) की पहचान की है, जो पार्किंसन बीमारी का कारण बन सकते हैं। लेकिन, ये पार्किंसन रोग से प्रभावित परिवार के सदस्यों वाले दुर्लभ मामलों के अलावा असामान्य होते हैं।
*▪पर्यावरण से संबंधित कारण :*
कुछ विषाक्त पदार्थों या पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव अंतिम चरण के पार्किंसन रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है, लेकिन कुल मिलाकर इनसे पार्किंसंस रोग जोखिम कम ही होता है।
*▪बढ़ती आयु :*
पार्किंसन रोग युवाओं में बहुत ही कम पाया जाता है।
यह आमतौर पर जीवन के मध्य या आखिरी पड़ाव में शुरू होता है और उम्र के साथ जोखिम बढ़ता रहता है।
यह बीमारी सामान्य तौर पर 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों में विकसित होती है।
*■ आनुवंशिकता :*
आपके किसी करीबी रिश्तेदार के पार्किंसन रोग से ग्रसित होने के कारण आपको यह रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, जब तक आपके परिवार में कई सदस्यों को यह बीमारी नहीं होती है, तब तक आपका जोखिम कम है।
*▪पुरुषों को जोखिम अधिक :*
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में पार्किंसन रोग विकसित होने की अधिक संभावना है।
*▪विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना :* वनस्पतिनाशकों (Herbicides) और कीटनाशकों के निरंतर संपर्क में आने से आपके पार्किंसन रोग से ग्रसित होने का खतरा थोड़ा ज्यादा बढ़ सकता है।
*पार्किंसन रोग से बचाव :*
▪चूँकि इस बीमारी का कारण अज्ञात है, इसलिए इसकी रोकथाम के तरीके भी एक रहस्य ही हैं। हालांकि, कुछ शोधों से पता चला है कि कॉफी, चाय और कोका कोला में पायी जाने वाली कैफीन पार्किंसन रोग के विकास के जोखिम को कम कर सकती है। ग्रीन टी भी इसके खतरे को कम करने में सहायक हो सकती है।
▪कुछ शोध से पता चला है कि नियमित एरोबिक व्यायाम इस रोग के जोखिम को कम कर सकते हैं।
*इस पोस्ट को जनहित में अधिक से अधिक शेयर करें जिससे किसी रोगी को लाभ मिल सके।*
अगर फिर भी आराम न मिले तो तुरंत सम्पर्क करें....
नेचुरोपैथी से सब कुछ सम्भव है।
*पैरालिसिस अटैक आने पर तुरंत करे ये उपाय....*
● किसी को अगर पैरालिटिक अटैक आये तो तुरंत यह उपाय करने से काफी फायदा होगा और जल्दी ही ठीक हो जायेगे।
*उपाय*
पैरालिसिस के अटैक आने पर तुरंत ही काले तिल का तैल 20 से 25 ml पिला दें और लहसून की 3-4 कलियाँ खिला दें।
*ये घरेलू उपाय हैं.?*
पैरालिसिस आने पर तुरंत ही चिकित्सक से संपकँ करे।
ऐकांतवीर रस टेबलेट तीनो टाईम 1-1-1 गोली (आयुर्वेदाचार्य से पूंछ कर)
शुद्ध अलसी बीज का तैल सुबह - एक चम्मच या 10 ml
रोज रात को एक चम्मच ऐरंडबीज तैल लो।
हो सकता है कि पैरालिसिस की परेशानियों से एकदम बच जायें।
: *पेशाब करने में अगर ऐसा है या हो रहा है तो...???*
(1). यूरिन बूंद बूंद करके आता हो या फिर ना आ रहा हो तो 50 ग्राम प्याज एक लीटर पानी में डालें और उबाल कर ठंडा होने के बाद छान ले। अब इसमें थोड़ा सा शहद डालें और दिन में तीन बार पिए। पेशाब खुलकर न आना, पेशाब में दर्द और जलन जैसी परेशानियों में इस घरेलू नुस्खे से राहत मिलेगी।
(2). किडनी में संक्रमण या किसी अन्य रोग की वजह से अगर पेशाब आना बंद हो जाए या पेशाब में किसी प्रकार की रुकावट आ जाये तो इसके देसी इलाज के लिए मूली के रस का सेवन करे।
(3). पेशाब पीला आ रहा हो तो थोड़ी सी शक्कर शहतूत के रस में मिलाकर पियें, इससे पेशाब का रंग साफ़ होगा।
(4). पेशाब का रुक रुक कर आना हो या फिर पेशाब की कोई और समस्या हो इसके घरेलू ट्रीटमेंट के लिए हल्का गुनगुना पानी पीना सबसे अच्छा उपाय है।
(5). नींबू के बीज पीस कर इसे पेट की नाभि पर मलें और ऊपर से थोड़ा ठंडा पानी डाले। इस देसी तरीके से रुका हुआ पेशाब आने लगेगा।
(6). रुका हुआ पेशाब खुलकर आये इसके लिए चीनी और जीरा बराबर मात्रा में पीस ले और इसके दो चम्मच ले।
(7). खरबूजा और ककड़ी के रस का सेवन करने से पेशाब ज्यादा बनती है। जिन लोगों को पेशाब ना बनने या कम बनने की समस्या हो उन्हें इनका सेवन जरूर करना चाहिए।
(8). पेशाब की रुकावट दूर करने के लिए गरम दूध में थोड़ा सा गुड मिलाकर पिए। परेशानी जादा होने की स्थिति में ये उपाय दिन में दो बार करे।
(9). मूली और शलगम खाने से भी रुक रुक कर पेशाब का आना ठीक होता है।
(10). केले के तने का रस चार चम्मच और दो चम्मच घी मिलाकर दिन में दो बार लेने से पेशाब खुल कर आने लगता है।
*पार्किंसन रोग का 100% कुदरती इलाज...*
*पार्किंसन रोग Parkinson :*
*पार्किंसन रोग क्या है?*
पार्किंसन रोग तंत्रिका तंत्र का एक तेजी से फैलने वाला विकार है, जो आपकी गतिविधियों को प्रभावित करता है।
यह धीरे-धीरे विकसित होता है।
यह रोग कभी कभी केवल एक हाथ में होने वाले कम्पन के साथ शुरू होता है।
लेकिन, जब कंपकपी पार्किंसन रोग का सबसे मुख्य संकेत बन जाती है तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का कारण भी बनता है।
पार्किंसन रोग के शुरुआती चरणों में, आपके चेहरे के हाव भाव कम या खत्म हो सकते हैं या चलते समय आपकी बाजुएं हिलना बंद कर सकती हैं। आपकी आवाज़ धीमी या अस्पष्ट हो सकती है।
समय के साथ पार्किंसन बीमारी के बढ़ने के कारण लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
*पार्किंसन रोग के लक्षण :*
इस रोग के लक्षण और संकेत हर व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं।
शुरुआती संकेत कम हो सकते हैं और आसानी से किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करते हैं।
इसके लक्षण अक्सर आपके शरीर के एक तरफ के हिस्से पर दिखने शुरू होते हैं और स्थिति बहुत खराब हो जाती है।
*▪कंपन :*
कंपकपाना या हिलना आमतौर पर आपके हाथ या उंगलियों से शुरू होता है।
इसके कारण आपका अंगूठा और तर्जनी उंगली के एक दूसरे से रगड़ने शुरू हो सकते हैं, जिसे "पिल-रोलिंग ट्रेमर" (Pill-Rolling Tremor) कहते हैं। पार्किंसन रोग का एक लक्षण है आराम की स्थिति में आपके हाथ में होने वाली कंपकपी है।
*▪धीमी गतिविधि (ब्रैडीकीनेसिया) :*
समय के साथ, यह बीमारी आपके हिलने डुलने और काम करने की क्षमता को कम कर सकती है, जिसके कारण एक आसान कार्य को करने में भी कठिनाई होती है और समय अधिक लगता है।
चलते समय आपकी गति धीमी हो सकती है या खड़े होने में कठिनाई हो सकती है। इसके अलावा आप पैरों को घसीट कर चलने की कोशिश करते हैं, जिससे चलना मुश्किल हो जाता है।
*▪कठोर मांसपेशियां :* आपके शरीर के किसी भी हिस्से में मांसपेशियों में अकड़न हो सकती है।
कठोर मांसपेशियां आपकी गति को सीमित कर सकती हैं और दर्द का कारण बन सकती हैं।
*▪बिगड़ी हुई मुद्रा और असंतुलन :* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप आपका शरीर झुक सकता है या असंतुलन की समस्या हो सकती है।
*■ स्वचालित गतिविधियों की हानि :*
पार्किंसन बीमारी में, अचेतन (Unconscious) कार्य करने की क्षमता में कमी आ सकती है, जिनमें पलकें झपकाना, मुस्कुराना या हाथों को हिलाते हुए चलना शामिल हैं।
बात करते समय आपके चेहरे पर ज़्यादा समय के लिए हाव भाव नहीं रह सकते।
*▪आवाज़ में परिवर्तन :* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप उच्चारण सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं।
आपका स्वर धीमा, तीव्र और अस्पष्ट हो सकता है या आपको बात करने से पहले हिचकिचाहट हो सकती है।
सामान्य संक्रमण की तुलना में आपकी आवाज़ और ज़्यादा खराब हो जाती है।
स्वर और भाषा के चिकित्सक आपकी उच्चारण समस्याओं का निवारण करने में मदद कर सकते हैं।
*▪लिखावट में परिवर्तन :* लिखावट छोटी हो सकती है और लिखने में तकलीफ हो सकती है।
दवाएं इनमें से कई लक्षणों को कम कर सकती हैं।
अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया "उपचार" का खंड देखें।
*डॉक्टर को कब दिखाएं?*
यदि आप पार्किंसन रोग से जुड़ा कोई भी लक्षण देखते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। अपनी स्थिति का परीक्षण करने और लक्षणों के अन्य कारणों को दूर करने के लिए भी चिकित्सक से परामर्श करें।
*पार्किंसन रोग के कारण और जोखिम कारक :*
पार्किंसन रोग में मस्तिष्क में उपस्थित कुछ तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं।
न्यूरॉन्स हमारे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन उत्पन्न करते हैं।
इन न्यूरॉन्स के नष्ट होने के कारण कई लक्षण उत्पन्न होते हैं।
डोपामाइन के स्तर में आने वाली कमी असामान्य मस्तिष्क गतिविधि का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप पार्किंसंस रोग के संकेत मिलते हैं।
*▪आपके जीन (Genes) :*
शोधकर्ताओं ने विशिष्ट जेनेटिक उत्परिवर्तनों (Genetic Mutations) की पहचान की है, जो पार्किंसन बीमारी का कारण बन सकते हैं। लेकिन, ये पार्किंसन रोग से प्रभावित परिवार के सदस्यों वाले दुर्लभ मामलों के अलावा असामान्य होते हैं।
*▪पर्यावरण से संबंधित कारण :*
कुछ विषाक्त पदार्थों या पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव अंतिम चरण के पार्किंसन रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है, लेकिन कुल मिलाकर इनसे पार्किंसंस रोग जोखिम कम ही होता है।
*▪बढ़ती आयु :*
पार्किंसन रोग युवाओं में बहुत ही कम पाया जाता है।
यह आमतौर पर जीवन के मध्य या आखिरी पड़ाव में शुरू होता है और उम्र के साथ जोखिम बढ़ता रहता है।
यह बीमारी सामान्य तौर पर 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों में विकसित होती है।
*■ आनुवंशिकता :*
आपके किसी करीबी रिश्तेदार के पार्किंसन रोग से ग्रसित होने के कारण आपको यह रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, जब तक आपके परिवार में कई सदस्यों को यह बीमारी नहीं होती है, तब तक आपका जोखिम कम है।
*▪पुरुषों को जोखिम अधिक :*
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में पार्किंसन रोग विकसित होने की अधिक संभावना है।
*▪विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना :* वनस्पतिनाशकों (Herbicides) और कीटनाशकों के निरंतर संपर्क में आने से आपके पार्किंसन रोग से ग्रसित होने का खतरा थोड़ा ज्यादा बढ़ सकता है।
*पार्किंसन रोग से बचाव :*
▪चूँकि इस बीमारी का कारण अज्ञात है, इसलिए इसकी रोकथाम के तरीके भी एक रहस्य ही हैं। हालांकि, कुछ शोधों से पता चला है कि कॉफी, चाय और कोका कोला में पायी जाने वाली कैफीन पार्किंसन रोग के विकास के जोखिम को कम कर सकती है। ग्रीन टी भी इसके खतरे को कम करने में सहायक हो सकती है।
▪कुछ शोध से पता चला है कि नियमित एरोबिक व्यायाम इस रोग के जोखिम को कम कर सकते हैं।
*इस पोस्ट को जनहित में अधिक से अधिक शेयर करें जिससे किसी रोगी को लाभ मिल सके।*
अगर फिर भी आराम न मिले तो तुरंत सम्पर्क करें....
नेचुरोपैथी से सब कुछ सम्भव है।
*रिफाईन्ड तेल का काला सच*
एक बार जरूर पढ़ें, आपके होश उड़ जाएंगे...
*क्या आपने कभी विचार किया कि..*
- जिस रिफाइंड तेल से आप अपनी और अपने छोटे बच्चों की मालिश नहीं कर सकते,
- जिस रिफाइंड तेल को आप बालों मे नहीं लगा सकते,
उस हानिकारक रिफाइंड तेल को कैसे खा लेते हैं ??
*इसके लिये शायद हमारे हीरो और हीरोइन या सेलेब्रिटीज़ जिम्मेदार हैं।*
आज से 50 साल पहले तो कोई रिफाइण्ड तेल के बारे में जानता नहीं था, ये पिछले 20 -25 वर्षों से हमारे देश में आया है। कुछ विदेशी कंपनियों और भारतीय कंपनियाँ इस धंधे में लगी हुई हैं।
तेल को साफ़ करने के लिए जितने केमिकल इस्तेमाल किये जाते हैं सब इनऑर्गेनिक हैं और इनऑर्गेनिक केमिकल ही दुनिया में जहर बनाते हैं और उनका कॉम्बिनेशन जहर के तरफ ही ले जाता है।
इसलिए...
*रिफाइन्ड तेल, और विशेषकर डबल रिफाइन्ड तेल गलती से भी न खायें।*
*फिर आप पूछेंगे कि "क्या खाएँ...?"*
उसका सीधा सा उत्तर है कि आप शुद्ध तेल खाइए, चाहे...
●- सरसों का हो,
●- मूंगफली का हो,
●- तीसी या अलसी का हो,
●- नारियल का हो या
●- राइस ब्रान आयल हो।
फिर आप कहेंगे कि शुद्ध तेल में बास बहुत आती है और दूसरा कि शुद्ध तेल बहुत चिपचिपा होता है।
हांजी जब लोगों ने शुद्ध तेल पर काम किया या यूं कहें कि रिसर्च किया तो हमें पता चला कि तेल का चिपचिपापन उसका सबसे महत्वपूर्ण घटक है।
◆ तेल में से जैसे ही चिपचिपापन निकाला गया तो पता चला कि ये तो तेल ही नहीं रहा, फिर हमने देखा कि तेल में जो बास आ रही है वही उसका प्रोटीन कंटेंट है, शुद्ध तेल में प्रोटीन बहुत है, दालों में ईश्वर का दिया हुआ प्रोटीन सबसे ज्यादा है, दालों के बाद जो सबसे ज्यादा प्रोटीन है वो तेलों में ही है, तो तेलों में जो बास या महक आपको महसूस होती है वो कुछ और नहीं बल्कि उसका ऑर्गेनिक कंटेंट है प्रोटीन के लिए।
◆ 4-5 तरह के प्रोटीन होते हैं सभी तेलों में। आप जैसे ही तेल की बास निकालेंगे उसका प्रोटीन वाला घटक गायब हो जाता है और चिपचिपापन निकाल दिया तो उसका फैटी एसिड गायब।
◆ अब ये दोनों ही चीजें निकल गयी तो वो तेल नहीं पानी है, जहर मिला हुआ पानी।
जी हां, ऐसे रिफाइन्ड तेल के खाने से कई प्रकार की बीमारियाँ होती हैं...
●- घुटने दुखना,
●- कमर दुखना,
●- हड्डियों में दर्द, ये तो छोटी बीमारियाँ हैं,
लेकिन सबसे खतरनाक बीमारी है,
●- हृदयघात (Heart Attack),
●- पैरालिसिस,
●- ब्रेन का डैमेज हो जाना आदि आदि।
जिन जिन घरों में पूरे मनोयोग से और शिद्दत से ये जानलेवा रिफाइंड तेल खाया जाता है उन्ही घरों में ये समस्या आप पाएंगे।
मैंने तो यहां देखा है कि जिनके यहाँ रिफाइंड तेल इस्तेमाल हो रहा है उन्हीं के यहाँ हार्ट ब्लॉकेज, हार्ट अटैक, लकवा या पैरालिसिस जैसी बीमारियां या समस्याएं हो रही है।
जब सफोला का तेल लेबोरेटरी में टेस्ट किया, सूरजमुखी का तेल, अलग-अलग ब्रांड का टेस्ट किया तो AIIMS के भी कई डाक्टरों की रूचि इसमें पैदा हुई तो उन्होंने भी इस पर काम किया और उन डाक्टरों ने जो कुछ भी बताया उसको लाइन बाई लाइन समझिये क्योंकि वो रिपोर्ट काफी मोटी है और सब का जिक्र करना मुश्किल है।
निचोड़ में उन्होंने कहा-
“तेल में से जैसे ही आप चिपचिपापन निकालेंगे, बास या महक को निकालेंगे तो वो तेल ही नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइन में तो कुछ भी नहीं रहता, वो छूँछ बच जाता है, और उसी को हम खा रहे हैं तो तेल के माध्यम से जो कुछ पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए वो मिल नहीं रहा है।”
आप बोलेंगे कि तेल के माध्यम से हमें क्या मिल रहा ?
मैं बता दूँ कि हमको शुद्ध तेल से मिलता है HDL (High Density Lipoprotein), ये तेलों से ही आता है हमारे शरीर में, वैसे तो ये लीवर में बनता है लेकिन शुद्ध तेल खाएं तब।
जब आप शुद्ध तेल खाएं तो आपका HDL अच्छा रहेगा और जीवन भर ह्रदय रोगों की सम्भावना से आप दूर रहेंगे।
अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है।
मलेशिया नाम का एक छोटा सा देश है हमारे पड़ोस में, वहां का एक तेल है जिसे *पामोलिन तेल* या *पाम आयल* कहा जाता है, हम उसे पाम आयल के नाम से जानते हैं, वो अभी भारत के बाजार में सबसे ज्यादा बिक रहा है, एक-दो टन नहीं, लाखो-करोड़ों टन भारत आ रहा है और अन्य तेलों में मिलावट कर के भारत के बाजार में बेचा जा रहा है।
● 7-8 वर्ष पहले भारत में ऐसा कानून था कि पाम तेल किसी दूसरे तेल में मिला के नहीं बेचा जा सकता था लेकिन GATT समझौता और WTO के दबाव में अब कानून ऐसा है कि पाम तेल किसी भी तेल में मिला के बेचा जा सकता है।
भारत के बाजार से आप किसी भी नाम का डब्बा बंद तेल ले आइये, रिफाइन्ड तेल और डबल रिफाइन तेल के नाम से जो भी तेल बाजार में मिल रहा है वो पामोलिन तेल है।
और-
जो पाम तेल खायेगा, मैं स्टाम्प पेपर पर लिख कर देने को तैयार हूँ कि वो ह्रदय सम्बन्धी बिमारियों से मरेगा ही..
क्योंकि-
पाम तेल के बारे में सारी दुनिया के रिसर्च बताते हैं कि पाम तेल में सबसे ज्यादा ट्रांस-फैट है...
और...
ट्रांस-फैट वो फैट हैं जो शरीर में कभी भी डिसॉल्व नहीं होते हैं या घुलते नही हैं, किसी भी तापमान पर घुलता नहीं।
ट्रांस फैट जब शरीर में नहीं घुलता है या डिसॉल्व नही होता है तो वो धीरे धीरे बढ़ता जाता है और तभी हृदयघात होता है, ब्रेन हैमरेज होता है और इंसान पैरालिसिस का शिकार हो जाता है, डाईबिटिज हो जाता है, ब्लड प्रेशर की शिकायत शुरू हो जाती है।
आदरणीय राजीव दीक्षित के व्याख्यानों से।
अब फैसला आपका कि आपने क्या खाना है.?
*पुरुषों को अधेड़ उम्र में सावधान रहने की आवश्यकता है...*
*जैसे जैसे पुरूष 35 को पार करता है, उसके मानसिक और शारिरिक बदलाव उसके जीवन में उथल पुथल या भूचाल ले आते हैं...*
*जानिये संक्षेप में..*
जैसे-जैसे पुरुषों की उम्र बढ़ती है, वैसे वैसे पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन (सेक्स हार्मोन) का स्तर कम होने लग जाता है।
ऐसी स्थिति में पुरुषों में कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जो दिखने लग जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि टेस्टोस्टेरोन अर्थात सेक्स हार्मोन की कमी से पुरुषों पर क्या असर पड़ता है?
ऐसे कौन से लक्षण हैं जो पुरुषों में सेक्स हार्मोन की कमी की वजह से दिखने लगते हैं?
आज हम आपको इन्हीं लक्षणों के बारे में बताएंगे।
सबसे पहले तो आपको बता दें कि जैसे-जैसे पुरुषों की उम्र बढ़ती है, वैसे वैसे पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन या सेक्स हार्मोन का स्तर कम होने लग जाता है।
ऐसी स्थिति में पुरुषों में कुछ ऐसे लक्षण होते हैं जो दिखने लग जाते हैं लेकिन खुद पुरुषों को इस बारे में पता तक नहीं लग पाता।
*आइए, सबसे पहले जानते हैं कि आखिर यह टेस्टोस्टेरोन हार्मोन क्या होता है...?*
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन एक सेक्स हार्मोन कहलाया जाता है, इसका निर्माण पुरुषों के शरीर में होता है।
इसी हार्मोन के कारण पुरुषों में सेक्स ड्राइव बढ़ती और घटती है।
ऐसे में जब पुरुषों के टेस्टोस्टेरोन हार्मोन में कमी लगती है तो इससे शरीर पर भी असर पड़ने लग जाता है।
पुरुषों को कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
अगर आपके शरीर में भी इस सेक्स हार्मोन की कमी है तो आप में भी कई लक्षण दिखने लग जाएंगे जैसे...
*(1). बार-बार मूड बदल जाना...*
जब पुरुषों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन की कमी होने लगती है तो इससे उनका मूड बार-बार बदलने लगता है।
इस हार्मोन की कमी के कारण पुरुषों में भावनात्मक बदलाव भी आने लग जाते हैं।
मूड का बदलना भी एक भावनात्मक बदलाव है।
जब पुरुषों के शरीर से यह हार्मोन कम होने लगता है तो पुरुषों के शरीर पर इसका बुरा असर पड़ता है।
इसकी कमी से पुरुष चिड़चिड़ा रहने लगता है, तनावग्रस्त रहने रखता है और हमेशा बेचैनी में रहता है।
लेकिन अगर पुरुष का टेस्टोस्टेरोन हार्मोन ठीक है तो पुरुष सामान्य रहता है।
अपने मूड को देखकर भी आप पता लगा सकते हैं कि आपका टेस्टोस्टेरोन लेवल ठीक है या नहीं।
*(2). ताकत महसूस ना करना...*
जब पुरुषों को अपने शरीर में ताकत महसूस नहीं होती है, तो भी हो सकता है कि उस पुरुष में टेस्टोस्टेरोन की कमी है।
ऐसी स्थिति में पुरुषों की मांसपेशियों पर बड़ा असर पड़ता है।
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की कमी के कारण पुरुषों को मांसपेशियों में ताकत महसूस नहीं होती है।
जो पुरुष सामान्य स्थिति में बेहतर महसूस कर रहे होते हैं, वह टेस्टोस्टेरोन लेवल के कम होने पर ताकत महसूस नहीं करते।
ऐसी स्थिति में पुरुषों की मांसपेशियां कमजोर होने लग जाती हैं।
*(3). सहवास की इच्छा की कमी होना..*
पुरुषों में जब टेस्टोस्टेरोन की कमी होती है तो उनको सहवास करने की इच्छा नहीं होती।
इस हार्मोन की कमी के कारण पुरुष इस क्रिया से लगभग दूर होने लगते हैं। जिससे उनके रिश्ते पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
सहवास की इच्छा की कमी में पुरुष सहवास करने से दूर भागने लगता है और वह उत्तेजित भी नहीं हो पाता।
*(4). ज्यादा तनाव लेना...*
टेस्टोस्टेरोन की कमी के कारण पुरुष ज्यादा तनावग्रस्त रहने लग जाते हैं।
तनाव लेने से सहवास की इच्छा भी कम होती है और वो बेहतर परफॉर्म भी नहीं कर पाते हैं।
इससे स्पर्म काउंट भी घटता है और शरीर पर भी इसका बहुत बुरा असर होता है।
*(5). याददाश्त कम होना...*
जब पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन की कमी होती है तो इससे उनकी याददाश्त पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
पुरुषों की याददाश्त भी कम होने लग जाती है।
जैसे जैसे उम्र बढ़ती है तो इससे ज्यादातर पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन की कमी होने लगती है और इससे उनकी याददाश्त पर भी प्रभाव पड़ता है।
*बहुत सारे मित्र मेरे नुस्खे आजमा कर टेस्टोस्टेरोन मानिया से उभर चुके हैं और आप भी संपर्क कर सकते हैं।*
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