Wednesday, 1 March 2023

महाकाल पञ्चाङ्ग उज्जैन के निर्माता एवं ज्योतिर्विद *पं. आनन्दशंकर जी व्यास* के अनुसार धर्मग्रन्थों एवं मुहूर्त्त ग्रन्थों में लिखा है -*विपोशेरावती तीरे युतुद्रुयान्धु त्रिपुष्करे।**विवाहादि शुभ नेष्टं होलिका प्रारम्दिनाष्टकम्।।*👉 होलाष्टक दोष का प्रभाव विपाशा, व्यास

: *श्रीगणेश - पुराण अध्याय – २३६:--*

*(४. गजाननावतार का वर्णन – लोभासुर द्वारा राज्य-विस्तार वर्णन)*
 
*इस बीच लोभासुर ने असुरों की विशाल सेना एकत्र कर ली थी।* 

*अपनी अत्यन्त बढ़ी हुई शक्ति देखकर उसने देवलोक पर आक्रमण कर दिया । भीषण युद्ध हुआ और स्वर्ग पर भी असुर की विजय हुई । उसने स्वर्ग पर अधिकार कर वहाँ अपना एक अधिकारी नियुक्त कर दिया।*
 
*इन्द्र भागकर बैकुण्ठ पहुँचे ।* 

*उन्होंने लोभासुर की विजय और अपनी पराजय का समाचार सुनकर रमानाथ से उसे मारने की प्रार्थना की तो रमानाथ देवसेना के साथ असुर से युद्ध करने चल पड़े ।* 

*घोर युद्ध हुआ, किन्तु दैत्यराज को वर प्राप्त होने के कारण भगवान् श्रीहरि को भी उसके सामने से हटना पड़ा।*

*अब तो असुर का साहस और भी बढ़ा ।* 

*उसने सोचा - 'युद्धकाल में रुद्र अधिकतर चतुर हैं, इसलिए अपने इस उत्कर्ष काल में उन्हें भी वश में कर लेना चाहिए।'* 

*ऐसा निश्चय कर उसने असुरों की विशाल वाहिनी के साथ कैलास पर आक्रमण कर दिया ।*

*शिवजी को ध्यान आया कि 'यह वही लोभासुर है जिसने मुझसे त्रैलोक्य-विजय का वर प्राप्त किया था । इसलिए इससे युद्ध करने से कोई लाभ नहीं होगा।'* 

*इतने में उनके पास असुर का एक दूत आया, उन्हें प्रणाम कर कहा - 'उमानाथ ! लोभासुर ने सन्देश दिया है कि आप कैलास छोड़कर कहीं अन्यत्र चले जायें, अथवा युद्ध करें।'* 

*यह सुनकर उन्होंने कैलास छोड़ देना स्वीकार कर लिया और वे तुरन्त सुदूर वन-प्रान्त में चले गए।*

*अब लोभासुर पूर्ण रूप से स्वच्छन्द और निरंकुश था । उसे किसी का किंचित् भय नहीं था ।* 

*उसने तीनों लोकों में यह आदेश प्रसारित करा दिया कि कोई जप, तप, यज्ञ, दान, पुण्य, आदि कर्म न करे, अन्यथा दण्डित होगा।'* 

*फलस्वरूप सर्वत्र छल-कपट, चोरी, अपहरण आदि की घटनाएँ होने लगी।*
 
*देव, या ऋषि-मुनि, और विप्रगण सभी बहुत दुःखित थे । उन्होंने परस्पर में विचार किया कि असुर का वध किस प्रकार हो ?*

*तभी रैम्य मुनि ने कहा - 'असुर को मारने के लिए भगवान् गजानन की कृपा प्राप्त होना बहुत आवश्यक है । वे प्रभु उसे इच्छा मात्र से ही परास्त करने में समर्थ हैं।'*

जय श्री कृष्णा

*श्रीगणेश - पुराण अध्याय – २३७:--*

*(४. गजाननावतार का वर्णन – लोभासुर का गजानन के शरण में आना)*
 
*सभी को उनका परामर्श बहुत हितकर प्रतीत हुआ और तब वे अत्यन्त भक्तिपूर्वक गजमुख की उपासना करने लगे ।* 

*उस समय उन्होंने विधिपूर्वक उनका षोडशोपचार पूजन किया और मन्त्र-जप पूर्वक तपश्चर्या में रत हो गये ।* 

*उनकी भक्ति देखकर भगवान् गजानन ने कृपापूर्वक उन्हें अपना दर्शन दिया ।* 

*देवता आदि ने भगवान् को अपने समक्ष देखा तो सभी ने धरती में अपने-अपने मस्तक टेककर उन्हें प्रणाम किया और स्तवन के पश्चात् लोभासुर के अत्याचारों की बात सुनकर उनसे दया की प्रार्थना करने लगे।*
 
*भगवान् गजानन ने उन्हें आश्वासन दिया - 'देवगण ! मुनिगण ! एवं ब्राह्मणो ! घबराओ मत, मैं लोभासुर को हराकर तुम सबको सुख प्रदान करूँगा।'*
 
*फिर उन्होंने शिवजी से कहा - “कामारि ! आप लोभासुर के पास जाकर कह दीजिए कि देवता आदि के छीने राज्यों को लौटा दे तथा अधर्म का त्याग कर दे, अन्यथा संग्रामभूमि में मैं उसका वध कर डालूंगा।'*
 
*शिवजी लोभासुर के पास पहुँचे और उन्होंने उसे भगवान् गजानन का सन्देश यथावत् सुना दिया और परामर्श दिया कि उनकी आज्ञा पालन में ही उसकी भलाई है । इसलिए तुरन्त उनकी शरण में चला जाय ।*

*उस समय दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने भी भगवान् शंकर के परामर्श का अनुमोदन किया और उसे समझाया - 'राजन् !*

*श्रीगजानन समस्त लोकों के स्वामी, सभी प्राणियों के ईश्वर एवं समर्थ परात्पर ब्रह्म हैं । वही परमेश्वर ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर के भी उत्पन्न कर्ता हैं, अथवा यह तीनों महान् देव उन्हीं के तीन रूप हैं, जिनका कार्य सर्ग, पालन, और लय करना है । इसलिए तुरन्त ही उनकी शरण में जाकर अपने जीवन को धन्य बना लो ।'*
 
*'लोभासुर समझ गया कि परम प्रभु गजानन भगवान् की शरण लेने में ही हमारा कल्याण है।'* 

*इसलिए वह तुरन्त ही शिवजी के साथ उनकी शरण में गया और उनके चरणों में पड़कर अपने कुकृत्यों की क्षमा माँगने लगा ।* 

*यह देखकर भगवान् ने उन्हें क्षमा कर दिया ।* 

*समस्त देवता, ऋषि-मुनि, एवं ब्राह्मणों के समाज उसके सुमार्ग पर आने से बहुत प्रसन्न हुए । सर्वत्र भगवान् गजानन का जयजयकार गूंज उठा और संसार में सुख-शान्ति छा गयी ।*

जय श्री कृष्णा
 *श्रीरामचरितमानस*

*कहब सँदेसु भरत के आएँ ।*
*नीति न तजिअ राजपदु पाएँ*
*पालेहु प्रजहि करम मन बानी ।*
*सेएहु मातु सकल सम जानी ।।*
_(अयोध्याकाण्ड 151/2)_

    _राम राम बंधुओं, सुमंत्र जी राम जी के बिना वापस अयोध्या लौट आए हैं। दशरथ जी सबका हाल पूछते हैं। राम जी का संदेश सुनाते हुए वे दशरथ जी से कहते हैं कि भरत के वापस लौटने पर भरत से मेरा संदेश कहिएगा कि राजपद मिलने पर नीति न छोड़ देना, प्रजा का हर प्रकार से पालन करना तथा सभी माताओं को समान मानकर उनकी सेवा करना।_

     मित्रों! जिसे राम पद मिल जाए अथवा जिसका मन राम पद में लग जाता है फिर उसे कोई पद मिले या न मिले वही नीति का पालन करता है, सबमें सम भाव रखता है। अस्तु राम पद पाने की प्रार्थना करें, लालसा रखें अथ 
🙏🏻जय जय राम, 
जय जय जय राम🙏🏻🚩🚩
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👉 महाकाल पञ्चाङ्ग उज्जैन के निर्माता एवं ज्योतिर्विद *पं. आनन्दशंकर जी व्यास* के अनुसार धर्मग्रन्थों एवं मुहूर्त्त ग्रन्थों में लिखा है -
*विपोशेरावती तीरे युतुद्रुयान्धु त्रिपुष्करे।*
*विवाहादि शुभ नेष्टं होलिका प्रारम्दिनाष्टकम्।।*
👉 होलाष्टक दोष का प्रभाव विपाशा, व्यास नदी, इरावती, सतलज नदियों के तटस्थ नगरों, पुष्कर क्षेत्र (अजमेर) आदि नगरों में होलाष्टक दोष माना जाता है।
👉 उक्त नदियॉं पंजाब प्रान्त की है। यानि धवलपुर, लुधियाना, फिरोजपुर, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला, कांगड़ा, शिमला आदि नगरों में विवाह आदि मांगलिक कर्म निषेध है।
👉 *निर्धारित क्षेत्र के अतिरिक्त शेष भारत में होलाष्टक का कोई प्रभाव नहीं होता है। _होलाष्टक दोष का कुछ क्षेत्र निश्चित है, सर्वत्र नहीं है।_*
👉 होली का दिन शत्रुता खोने का दिन होता है। यानि सबसे प्रेम पूर्वक मिलने का दिन होता है।
👉 जहॉं प्रेम होता है, वहॉं कोई अन्तर नहीं होता है। किसी प्रकार के भेदभाव की कल्पना तक नहीं की जाती है।
👉 रंग, रोली, अबीर - यह सब वस्तुएं इनके स्पर्श मात्र से शुद्ध प्रेमरूप हो जाती है।
👉 इसीलिए होली पर्व की लीला का आध्यात्मिक रहस्य है।
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