"मैं नास्तिक क्यों हूँ"
---- भगत सिंह
मैं सर्वशक्तिमान परमात्मा के
अस्तित्व को मानने से इंकार करता हूं!....
मैं नास्तिक इसलिए नहीं बना!
कि मैं अभिमानी हूं!
पाखण्डी या निरर्थक हूं!
मैं न तो किसी का अवतार हूं!
न ईश्वर का दूत!
औऱ न ही खुद परमात्मा!
मैं अपना जीवन एक मक़सद के लिए
न्यौछावर करने जा रहा हूं!
औऱ इससे बड़ा आश्वासन
भला क्या हो सकता है!
ईश्वर में विश्वास रखने वाला
एक हिन्दू पुनर्जन्म में एक राजा
बनने की आशा कर सकता है!
एक मुसलमान एक ईसाई को स्वर्ग में
भोग बिलास की इच्छा हो सकती है!
अपने कष्ट औऱ कुर्बानियों के बदले
पुरुष्कृत होने की कामना हो सकती है!
लेकिन मुझे क्या आशा करनी चाहिए!
मैं जानता हूं!
कि जिस पल रस्सी का फंदा
मेरे गले में लगेगा!
औऱ मेरे पैरों के नीचे से तख्ता हटेगा!
वो मेरा अंतिम क्षण होगा!
किसी स्वार्थ भावना के बिना!
यहां या यहां के बाद
किसी पुरुष्कार की इच्छा किये बिना!
मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को
आजादी के नाम कर दिया है!
हमारे पूर्वजों को जरूर किसी
सर्वशक्तिमान में आस्था रही होगी!
कि उस विश्वास के सच या
उस परमात्मा के अस्तित्व को
जो भी चुनौती देता है!
उसे काफिऱ या पाखण्डी कहा जाता है!
चाहे उस व्यक्ति के तर्क इतने
मज़बूत क्यों न हो!
कि उसे ईश्वर के प्रकोप का डर
दिखाकर भी झुकाया नहीं जा सकता!
औऱ इसलिए ऐसे व्यक्ति को
अभिमानी कहकर उसकी निंदा की जाती है!
मैं घमण्ड की बजह से नास्तिक नहीं बना!
ईश्वर पर मेरे अविश्वास ने आज सभी
परिस्थितियों को मेरे प्रतिकूल बना दिया है!
औऱ ये स्थिति औऱ भी ज़्यादा
बिगड़ सकती है!
जऱा सा अध्यात्म इस स्थिति को
काव्यात्मक मोड़ दे सकता है!
लेकिन अपने अंत से मिलने के लिए
मैं कोई तर्क नहीं देना चाहता!
मैं यथार्थवादी व्यक्ति हूं!
अपने व्यवहार पर मैं सिर्फ
तर्कशील होकर विजय पाना चाहता हूं!
भले ही मैं हमेशा इन कोशिशों में
कामयाब नहीं रहा हूं!
लेकिन ये मनुष्य का कर्तव्य है!
कि वो कोशिश करता रहे!
क्योंकि सफलता तो
संयोग औऱ हालात पर निर्भर करती है!
आगे बढ़ते रहने वाले
प्रत्येक व्यक्ति के लिए जरूरी है कि
वो पुरानी आस्था के सभी
सिद्धांतों में दोष ढूंढ़े!
उसे एक एक कर पुरानी
मान्यताओं को चुनौती देनी चाहिए!
सभी बारीकियों को
परखना औऱ समझना चाहिए!
अगर कठोर तर्क वितर्क के बाद
वह किसी धारणा तक पहुंचता है!
तो उसके विश्वास को सराहना चाहिए!
उसके तर्कों को गलत या झूठा भी
समझा जा सकता है!
पर संभव है कि
उसे सही ठहराया जायेगा!
क्योंकि तर्क ही जीवन का मार्गदर्शक है!
लेकिन विश्वास!
बल्कि मुझे कहना चाहिए कि
अंधविश्वास बहुत घातक है!
वो एक व्यक्ति की सोच समझ की
शक्ति को मिटा देता है!
और उसे सुधार विरोधी बना देता है!
जो भी व्यक्ति खुद को
यथार्थवादी कहने का दावा करता है!
उसे पुरानी मान्यताओं के सच को
चुनौती देनी होगी!
और यदि आस्था तर्क के प्रहार को
सहन न कर पाये!
तो वो बिखऱ जाती है!
यहां अंग्रेज़ों का शासन इसलिए नहीं है!
क्योंकि ईश्वर ऐसा चाहता है!
बल्कि इसलिए है!
क्योंकि उनके पास ताकत है!
औऱ हममें उसका विरोध करने का
साहस नहीं है!
अंग्रेज़ ईश्वर की मदद से
हमें काबू में नहीं रख रहे हैं!
बल्कि वो बंदूकों पुलिस और सेना
के सहारे ऐसा कर रहे हैं!
और सबसे ज़्यादा!
हमारी बेपऱवाही की बजह से!
मेरे एक दोस्त ने मुझसे
प्रार्थना करने को कहा!
जब मैंने उससे अपने नास्तिक
होने की बात कही!
तो उसने कहा!
जब तुम्हारे आखिरी दिन नजदीक आयेंगे!
तब तुम भी यकीन करने लगोगे!
मैंने कहा!
नहीं मेरे प्यारे मित्र!
ऐसा कभी नहीं होगा!
मैं इसे अपने लिए अपमानजनक
और नैतिक पतन की बजह समझता हूं!
ऐसी स्वार्थी बजह से
मैं कभी प्रार्थना नहीं करूंगा!
#भगतसिंह की जेल डायरी से |
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