Friday, 6 December 2024

श्रीअरविन्द ने अपनी मृत्यु से मृत्यु को ललकारा था..!

श्रीअरविन्द ने अपनी मृत्यु से मृत्यु को ललकारा था..!
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आज 5 दिसम्बर है।आज ही के दिन महायोगी और परम पुरुष श्रीअरविन्द ने अपनी देह साधना को पूरा कर.. उसे पुनः शून्य को अर्पित कर दिया था।देह के दर्पित स्वभाव को तिरोहित कर उसे महाआनंद का दर्पण प्रदान कर दिया था।आज के दिन ही श्रीअरविन्द ने मनुष्य की अमरता के लिए खुद के शरीर का आध्यात्मिक बलिदान कर दिया था।वर्ष 1950 को आज के दिन जब  हवाओं ने यह खबर सुनी तो वो तीन दिनों तक उस कमरे के बाहर खड़ी रही,जिस कमरे के भीतर वो आकाशपुरुष एक अमर नींद में सो रहा था..वे अपने शरीर की एक-एक कोशिका में भरे हुए अतिमानस को पृथ्वी की नाभि में Inject कर रहे थे।वो पहला नवमानव पृथ्वी को अपना पहला आध्यात्मिक और बायोलॉजिकल पत्र भी उस वक्त लिख रहा था।जिस वक्त भारत अपनी आजादी चौथा स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा था।हवाएं श्रीअरविन्द के पार्थिव अवसान की खबरे अपनी नासिक से पूरी पृथ्वी पर सूंघ रही थी।वे फिजाओं में गुंजित श्रीअरविन्द की अमर कविताओं के पाठ पक्षियों के एकाकी कलरव में सुन रही थी।नदी का किनारा पानी की लहरों में देवताओं ,संतों,ऋषियों,राजाओं और यहां तक की दानवों के श्रद्धा पत्र पढ़ रहा था.. कमरे में जल रही कुछ अगरबत्तियों ने चिन्हित विशेष अमर संदेशों को उनके शरीर से उठाकर पृथ्वी के core में  inject करना शुरू कर दिया था।यह  महाघटना 1950 के 5 दिसम्बर यानी आज के भारत के पांडुचेरी आश्रम में घटित हो रही थी..                                                                  महायोगी-महामानव ने देश की आजादी में जिस तरह अपनी केंद्रीय भूमिका का निर्वाह किया था..ठीक उसी तरह मनुष्य को मृत्यु नामक बीमारी से मुक्त करने का अपना केंद्रीय कर्म भी अपने मृत्यु दिवस पर ही उन्होंने शुरू कर दिया था..अपनी मौत की गर्दन मोड़कर उन्होंने उसे Evolution की chemistry का उपदेश और आदेश दिया था।उन्होंने पृथ्वी के पांचों तत्वों को यह आदेश दिया था कि वे मनुष्य को छठे तत्व  यानी प्रकाश के लिए तैयार करे।यह एक तथ्य है कि आश्रम की श्रीमाँ को पहले देह का त्याग करना था पर श्रीअरविन्द ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और उनके स्थान पर खुद पहले सूक्ष्म लोक की ओर प्रस्थान कर गए...!     अतिमानस(supermind)को धरती पर रोके रखने लिए माताजी का शरीर ही उपयुक्त आवास था !
आश्रम के पेड़ों पर कई काले कौवे उस दिन बिल्कुल चुप बैठे थे।उदास थे।फूलों की खुशबू विधवा हो गयी थी।मिट्टी के ढेले लुढ़कते हुए आश्रम के मुख्य द्वार पर जमा हो गए थे।हवाओं ने उस अमर मृत्यु का संदेश पृथ्वी के वायुमंडल में आलेखित कर दिया था।जिसे आकाश में सभी पक्षी पढ़ रहे थे।नदियाँ बहती हुई किनारों पर आकर रुक गयी थी।नदियों का पानी किनारों पर उतरकर पांडुचेरी आश्रम का पता मिट्टी से पूछ रहा था..!!
इधर पांडुचेरी का समुद्र अपनी लहरों पर देवताओं के श्रंद्धांजलि संदेशों को उठाए जोर -जोर से अपने  ही तट से टकरा रहा था।हां.. इस दौरान श्रीअरविन्द अपनी नई देह से इन सभी घटनाओं को देख रहे थे..और मुस्कुराते हुए हम सभी के अगले विकसित जन्मों के हस्ताक्षर स्वीकार कर रहे थे...!!

यह आज का ही दिवस था ,जब आकाश के तारों ने पंक्तिबद्ध खड़े होकर श्रीअरविन्द को अपने प्रणाम भेजे थे।सूर्य और चन्द्रमा ने अपने प्रकाश के गुलदस्तों में श्रीअरविन्द की अमर कहानी पर अपने हस्ताक्षर करके पृथ्वी को भेजे थे...ये सभी घटनाएं मानव देह की चमड़ी के उस पार स्थित उस महाआकाश में घटित हो रही थी ..जिसे समझना और देखना चर्म चक्षु मानव की साधरण बुद्धि से परे की बातें थी..!
इसीलिए आज हम उस परमपुरुष को धन्यवाद देना चाहते हैं ,जिन्होंने मानवजाति के कल्याण के लिए अपनी मृत्यु के हस्ताक्षर से धरतीं पर अमरता को स्थापित किया।आने वाला समय इसकी पुष्टि करेगा..!
हमारे कोटिशः नमन..
-रविदत्त मोहता
भारत

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