भारत की देसी कहावतें पश्चिम के विज्ञान और टेक्नोलॉजी और खगोल अंतरिक्ष विज्ञान से लाख गुना उत्तम और श्रेष्ठ हैं चाहे वह किसी भी क्षेत्र में कही गई है लड़के के लिए पश्चिम विज्ञान 22 जून से दिन छोटा होना प्रारंभ करते हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है बल्कि दिन पूरे जुलाई भर बढ़ता रहता है
इसी तरह पश्चिम विज्ञान और क्रिश्चियन सभ्यता 24 दिसंबर से दिन का बढ़ना बताती है जो पूरी तरह झूठ है 25 को उनका बड़ा दिन क्रिसमस भी इसीलिए बनाया जाता है यह भी पूरी तरह से छूट है क्योंकि 13 जनवरी तक दिन का मन स्थिर रहता है
अब जरा सनातनी भारतीय देसी कहावतें पर ध्यान दीजिए जिसमें कहा गया है रोट से दिन छोड़ खिचड़ी से दिन बड़ा
माघ तिलै तिर बाढ़ै
फागुन में गोड़ा काढ़ै
चैत्र में पांव पसारै
वैशाख मास में विस्तारै
जेठ में बाढ़त जाये
आषाढ़ में थाहे आये
सावन से दिन छोटा
भादो में दिन मोटा
कुवार चूल्ही के दुवार कार्तिक बात कहानी
बात में दिन बीत जाती
अगहन हांड़ी अदहन
पूस काना टूस।
माघ तिलै तिल बाढ़ै
फागुन में गोड़ा काढ़ै
अर्थात सावन महीने में जब रोट का त्यौहार अर्थात बड़ा मंगलवार या बुढ़वा मंगलवार पड़ता है उसी दिन से दिन छोटा होने लगता है और खिचड़ी अर्थात मकर संक्रांति से दिन बाद होने लगता है माघ महीने में धीरे-धीरे अर्थात तिल तिल करके बढ़ता है और फागुन में अपना पैर निकाल लेता है अर्थात और बड़ा हो जाता है
जिस तरह गहरी ठंड में लोग धीरे से अपना पर निकाल लेते हैं देखने के लिए की ठंडक कितनी है वही हाल फाल्गुन महीने में गर्मी और जाड़ा नापने के लिए किया जाता है जिस तरह लोग गर्मी बढ़ने पर अपना पर पूरी तरह रजाई में से बाहर निकाल लेते हैं इस तरह वैशाख महीने में गर्मी पूरी तरह से फैल जाती है अर्थात पसर जाती है
जेठ महीने में गर्मी का लंबा रूप बहुत भयानक होता है और दिन इतना बड़ा हो जाता है कि बीतने का नाम नहीं लेता लेकिन आषाढ़ महीना आते-आते यह अपनी औकात पर आ जाता है अर्थात इसकी वृद्धि रुक जातीहैं भादो महीना आते-आते गर्मी मोटी हो जाती है अर्थात सिकुड़ने लगती है और कौन महीना आते आते दिन इतना छोटा हो जाता है कि केवल रसोई और चूल्हे में ही सारा दिन बीत जाता है कार्तिक महीने में चार लोग बैठकर बातें करते-करते दिन बिता देते हैं
अगहन महीने में दिन इतना छोटा हो जाता है की हांडी में अदहन चढ़ते चढ़ते दिन बीत जाता है चावल यादव बनाने के लिए डाला गया पानी जब खोलना लगता है तब उसे अदहन कहा जाता है अर्थात ऊपरी कंडा आग जलाने से लेकर लड़ी लगाने और पानी गर्म होने तक में ही दिन बीत जाता है उसमें चावल बीनते बीनते किनकी और कंकड़ पत्थर निकालना और सूप से उसे पछोरने केराने मेंदिन बीत जाता है
इस प्रकार आपने देखा कि जो पश्चिम में बड़े-बड़े वैज्ञानिक नोबेल पुरस्कार विजेता ग्रह उपग्रह बड़े-बड़े यंत्रों की सहायता से नहीं कर पाए वह हमारे देश की गृहस्थ औरतों ने कर दिखाया अब आप खुद ही समझ जाइए की भारतीय पद्धति महान और श्रेष्ठ है या पश्चिमी पद्धति या आपके ऊपर छोड़ देता हूं अगले अंक में किस महीने में क्या खाना चाहिए और क्या करना चाहिए यह लिखेगा डॉ दिलीप कुमार सिंह
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