Sunday, 7 September 2025

हमारे धर्म ग्रंथ और पितृपक्ष हमारे धर्म ग्रंथो में भी पितृपक्ष के बारे में महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है विश्व के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद में 10/4/1 और श्रीमद् भागवत गीता के अध्याय 9 शोक 25 में इसके अलावा मार्कंडेय और ब्रह्म पुराण में पूर्वजों और पितृपक्ष की चर्चा की गई है गरुड़ पुराण तो पूरा का पूरा पितरों से और धार्मिक क्रिया कर्म से भरा पड़ा है

हमारे धर्म ग्रंथ और पितृपक्ष हमारे धर्म ग्रंथो में भी पितृपक्ष के बारे में महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है विश्व के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद में 10/4/1 और श्रीमद् भागवत गीता के अध्याय 9 शोक 25 में इसके अलावा मार्कंडेय और ब्रह्म पुराण में पूर्वजों और पितृपक्ष की चर्चा की गई है गरुड़ पुराण तो पूरा का पूरा पितरों से और धार्मिक क्रिया कर्म से भरा पड़ा है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि जो जिसको जिस भाव से पूजा करता है उसके अनुसार ही वह फल को प्राप्त करता है रामायण और लोक कथाओं में भगवती सीता जी के सम्राट दशरथ को पिंडदान करने का वर्णन मिलता है जब शुभ मुहूर्त निकालने पर उन्होंने मानसिक पिंडदान कर दिया और प्रमाण के रूप में फल्गु नदी गए कौवे और कुत्ते को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया और उनके झूठ बोलने पर उन्होंने श्राप दे दिया इसी प्रकार लगभग सभी ग्रंथो में तर्पण और पिंडदान और श्राद्ध का वर्णन मिलता है इस बारे में यह भी जान लेनाआवश्यक है तर्पण सरल क्रिया है जिसे हर कोई अपने घर पर पूर्वजों के लिए कर सकता है श्राद्ध बड़े पैमाने पर किया जाने वाला तर्पण का रूप है जिसमें पितरों को तर्पण और पिंडदान के साथ-साथ दान पुन और सुपात्र लोगों को भोजन भी कराना पड़ता है

तर्पण श्राद्ध और पिंडदान


अपने मृतक पूर्वजों अर्थात पितरों को झील सरोवर नदी या अपने आवास पर जलांजलि देने की क्रिया को श्रद्धा या तर्पण कहते हैं पिंडदान का अर्थ यहां भोजन से है जिसे पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया जाता है कुछ लोग कुतर्क करते हैं कि पितरों को चढ़ाया भोजन तो यही रह जाता है वह ग्रहण कैसे करते हैं तो उसका उत्तर है कि जिस तरह विभिन्न प्रकार के मेवा और मसाले का और जड़ी बूटियों का अर्क प्राप्त कर लिया जाता है और वह वैसे के वैसे रहते हैं वैसे ही भोजन के सूक्ष्म तत्व को खींचकर पितर ग्रहण कर लेते हैं इस बात में कोई भी संदेह नहीं है

पितरों को तर्पण का विधि विधान 

सामान्य रूप से सुबह उठकर नीति क्रिया करके स्नान करके शुद्ध चित्र से हल्के स्वच्छ वस्त्र पहन कर दक्षिण मुख करके दूध और जल मिश्रित करके सफेद कमल के फूल चंपा जूही रात रानी चांदनी या कनेर के फूल और कुश या दूब घास तथा काला तिल और बिना टूटा हुआ चावल अर्थात अक्षत हाथ में लेकर अंजलि में इन सब के साथ पानी भरकर अंगूठे की तरफ से गिराना चाहिए और **ओम पितृभ्य: स्वाहा** या ##ओम सर्व पितृ प्रसन्नो भव## मंत्र का जाप हर तर्पण के साथ करना चाहिए यही सामान्य विधि है तेज सुगंधित फूलों का प्रयोग या काले फूलों का प्रयोग नहीं करना चाहिए 

श्राद्ध और तर्पण कौन कर सकता है 

इस बारे में विस्तृत दिशा निर्देश हमारे धर्म ग्रंथो में किया गया है घर में पुत्र को पौत्र के बाद प्रपौत्र को प्रपौत्र के बाद पत्नी को बेटियों बहुओं को और नाती को नाना नानी को क्रम से श्राद्ध तर्पण करने का अधिकार है यदि इनमें से कोई भी ना हो तो घर की स्त्रियां या बेटियां मंत्र या पितृ पक्ष की श्रद्धा और तर्पण कर सकती हैं इसमें कोई संदेह नहीं है पति-पत्नी को एक साथ ही श्रद्धा और तर्पण करना चाहिए जैसा की प्राचीन काल में भगवान श्री राम और भगवती सीता तथा अन्य लोगों के द्वारा किया गया था जिन लोगों की मृत्यु का समय न ज्ञात हो या जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो या जिनकी मृत्यु अमावस्या के दिन हुई है उन्हें भादो महीने की पूर्णिमा को श्राद्ध तर्पण और पिंडदान दिया जाता है अज्ञात लोगों के लिए कोई भी यह कार्य पूर्णिमा तिथि को कर सकता है। अगर किसी की अकाल मृत्यु हुई है और उसकी लाश नहीं मिली है तो उसको नर्मदा नदी के किनारे पितृपक्ष में जाकर तर्पण करने से मुक्ति प्राप्त होती है। यह भी निराधार है कि अगर घर का कोई व्यक्ति गया हो आया है तो तर्पण और श्रद्धा नहीं करना चाहिए ऐसी कोई बात नहीं है इसी तरह स्त्रियों को भारतीय धर्म दर्शन में कुछ भी करने की मन ही नहीं है लेकिन स्त्रियों की प्रकृति और देशकाल पर स्थितियां देखते हुए उन्हें कुछ कार्य करने से मना किया गया था जैसे कि श्मशान घाट पर जाकर लाश जलाना यह उचित भी है क्योंकि अधिकांश महिलाएं जलती हुई लाश को देखकर मानसिक रूप से बहुत परेशान हो सकती हैं

कैसे पता करें कि हमारे पितर प्रसन्न हैं 

यह पता करना बहुत आसान है कि हमारे श्राद्ध तर्पण से पितर संतुष्ट और प्रसन्न है ऐसी स्थिति में घर में प्रसन्नता का वातावरण हो जाता है धन-धान्य यश कीर्ति बढ़ने लगती है लोगों के चेहरे खिल जाते हैं यहां तक की घर के पेड़ पौधे भी प्रफुल्लित और हरे भरे हो जाते हैं और पूरे घर में चमक और प्रसन्नता का वातावरण हो जाता है रात में सोते समय पितर सपने में दर्शन देते हैं और आशीर्वाद भी देने लगते हैं लेकिन यदि घर में विवाद हो नुकसान होने लगे लड़ाई झगड़ा हो पेड़ पौधे सूखने लगे लोग बीमार पड़ जाए तो समझ लेना चाहिए कि हमारे पितर संतुष्ट और प्रसन्न नहीं है और उनको दिया गया तर्पण और श्रद्धा फली भूत नहीं हो रहा है पितरों के प्रसन्न होने पर घर में संतान और पुत्र का जन्म भी होता है 

पितृपक्ष में न किए जाने वाले कुछ कार्य 

हमारे समाज में लंबी गुलामी और शिक्षा में व्यवधान तथा पश्चिमी शिक्षा के कारण बहुत से भ्रम शंका समाधान के बगैर सबके अंदर फैल गया है जिसका समाधान करना आवश्यक है इस समय कोई भी शुभ मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है इसलिए कि हम पितरों की पूजा करते हुए उन्हें याद करते हैं और वह इस धरती पर नहीं होते हैं इसीलिए धूमधाम से किए जाने वाले विवाह और अन्य मांगलिक कार्य कीर्तन भजन नहीं किया जाता है सादा भोजन करके उनको श्रद्धांजलि दी जाती है अधिक तेल मसाले का सेवन करने पर इस समय शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है प्राचीन काल में जब भयंकर वर्षा महीनों तक होती थी सब कुछ पानी में डूब जाता था और उसे समय अच्छी सड़क और यातायात के साधन भी नहीं थे इसलिए भी इस काल में शुभ और मांगलिक कार्यों का किया जाना मना किया गया था उसे समय प्रकृति इतनी शुद्ध थी कि केवल पानी में स्नान कर लेने से ही शरीर की सारी गंदगी दूर हो जाती थी आज की तरह भयानक प्रदूषण नहीं था इसलिए तेल साबुन इत्यादि लगाने से मना किया गया था लेकिन जिस तरह बहुत सी चीज देशकाल परिस्थितियों के अनुसार बदल गई हैं इस तरह अब हमें भी देशकाल परिस्थितियों के अनुकूल आचरण करना चाहिए कार्तिक महीने की एकादशी तक फैला हुआ पानी समाप्त हो जाता था भयंकर झाड़ झंकार वनस्पतियां सूख जाते थे फसलों का समय होने पर और यातायात सुगम हो जाने पर फिर से सारे शुभ और मांगलिक कार्य होने लगते थे इसका इतना ही अर्थ है । दान और भजन जरूरी नहीं है कि ब्राह्मण कोई कराया जाए कोई भी सदाचारी सुपात्र व्यक्ति दान और भोजन का पत्र होता है इतना अवश्य है कि पहले के ब्राह्मण इतने सात्विक तेजस्वी और सदाचारी होते थे कि दान पुन्य और भोजन का अर्थ ब्राह्मण से ही समझा जाता था और यह बिल्कुल ठीक भी था

अनेक भ्रम शंकाएं संदेह और उसका निराकरण 

मैं आप सबको बहुत स्पष्ट तौर पर बता देना चाहता हूं कि क्या मना किया गया है और क्या करना चाहिए इस चीज के लिए इंटरनेट मोबाइल टीवी चैनल और अखबारों पर निर्भर न रहकर स्वयं मूल पुस्तक पढ़ा कीजिए या मान्यता प्राप्त विद्वान द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन कीजिए और संपूर्ण अध्ययन के बाद कई चीजों का बिल्कुल सही सटीक उत्तर दे रहा हूं जो प्राय: पूछा जाता है जैसे कि क्या 15 दिनों तक हमें ईश्वर का पूजा पाठ नहीं करना चाहिए इसका उत्तर है कि हमें मन से सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए लेकिन धूप दीप अगरबत्ती सुगंध नहीं जलाना चाहिए क्योंकि पितर मरने के बाद प्रेत योनि में हो जाते हैं और अगर हम धूप दीप सुगंध करेंगे मंत्रों का उच्चारण करेंगे तो वह घर के दरवाजे से लौट जाएंगे और प्रवेश नहीं कर पाएंगे दूसरी शंका यदि आपने कोई व्रत लगातार उठाया है और कर रहे हैं तो पितृपक्ष में भी उस व्रत को सादे ढंग से करते रहिए और पितरों से प्रार्थना कीजिए कि उनका पूजा पाठ व्रत सफल हो उसे छोड़ने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है अगली बात सुबह उठकर ईश्वर का ध्यान करने और सूर्य देव को अलग अर्थात जल देने की मनाही नहीं है यह काम आप आसानी से और हमेशा करते रहे अगला काम तेल साबुन लगाने से मनाही और श्रृंगार की मनाही है यह भी अनुचित है क्योंकि वर्तमान समय में अगर 15 दिन कोई तेल साबुन के बिना रहेगा और कपड़े पहनेगा तो वह इतना गंदा और मैला कुचैला हो जाएगा कि हमारे पितर कभी भी गंदे मैले कुचैले वस्त्र पहने हुए गंदे व्यक्ति को पसंद नहीं करेंगे उन्हें भी साफ स्वच्छ घर और वातावरण तथा साफ सुथरा व्यक्ति ही चाहिए इसलिए इस मूर्खतापूर्ण बातों को मन से निकाल दीजिए और अगर 15 दिन आप नाखून नहीं काटेंगे तो उसमें अनगिनत रोगाणु जीवाणु कीटाणु विषाणु फैल कर आपको बीमार कर देंगे इतना अवश्य है कि बहुत अधिक श्रृंगार सजने संवरने से बचना चाहिए इसका अर्थ यह होगा कि आप अपने पितरों के प्रति गंभीर नहीं है शोक और गंभीरता के वातावरण में वैसे भी श्रृंगार नहीं करना चाहिए।इस समय वातावरण और जलवायु को देखकर ही सादा भोजन और तेल मसाले से बचने की सलाह दी गई है जो विज्ञान के अनुसार भी बिल्कुल उचित है। रंगा पुताई से इसलिए मना किया गया है कि इस काल में दीवारें गीली रहती हैं और रंगा पुताई गहरी नहीं हो पाती याद रखें कि अपने शुभ और मांगलिक कार्यों में हम लोगों ने जो गलत चीज अपना रखी हैं उनको छोड़ना चाहिए जैसे कि गंदे और भद्दे गीत पश्चिमी रंग के नाच गाने और अश्लीलता जैसी चीज इन सबसे बचना चाहिए गंदगी पाप बुराई और गलत कर्मों से बचना चाहिए धर्म विरुद्ध कामों से बचना चाहिए।इन सब चीजों को गहराई से अध्ययन करके जबरदस्ती फैलाई गई भ्रांतियां से आप सबको बचना चाहिए

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