Saturday, 18 October 2025

01:अस्पताल से श्मशान तक का सफर---,*02मध्य प्रदेश और राजस्थान के सरकारी अस्पतालों मेंबांटी जा रही यह “कोल्डरिफ” कफ सिरप भ्रष्टाचार की बदबू दे रही थी।फिर भी इसे रोका नहीं गया,

अस्पताल से श्मशान तक का सफर
---

बच्चे तड़पते रहे, डॉक्टर देखते रहे,
बच्चे मरते गए, डॉक्टर देखते रहे।
जैसे-जैसे बच्चे मरते गए,
वैसे-वैसे भ्रष्ट अधिकारियों की जेबें नोटों से भरती गईं।

इन मासूम बच्चों की क्या गलती थी?
जिन्होंने अभी इस दुनिया को ठीक से देखा भी नहीं था।
कोई पाँच साल का था, कोई दो साल का।
मां-बाप अपने नन्हें बच्चों को देखकर खुश हुआ करते थे —
मां अपने बेटे को गोद में बैठाकर अपने हाथों से खाना खिलाती थी,
पिता उसके नन्हें हाथ पकड़कर चलना सिखाता था।

लेकिन सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार ने इन मासूम बच्चों की बलि चढ़ा दी।
न जाने इनमें से कोई बच्चा इंजीनियर बनता, डॉक्टर बनता, या कलेक्टर।
पर भ्रष्ट व्यवस्था ने उनकी जिंदगी को अधूरा छोड़ दिया।


---

अस्पताल से श्मशान तक का सफर

अभी कल की ही तो बात है —
ये बच्चे अपने आंगन में खेल रहे थे।
किसी को हल्का बुखार आया, किसी को सर्दी-खांसी।
गरीब मां-बाप, जिनके पास किसी बड़े अस्पताल का खर्च उठाने की क्षमता नहीं थी,
अपने नन्हें चिराग को लेकर सरकारी अस्पताल पहुंचे।

उन्हें भरोसा था कि सरकारी डॉक्टर उनकी मदद करेंगे,
और सरकारी दवाई से उनका बच्चा ठीक हो जाएगा।
पर अफसोस!
उन्हें यह नहीं मालूम था कि जिस अस्पताल में वे अपने बच्चे को लेकर जा रहे हैं,
वह रास्ता अस्पताल नहीं, बल्कि श्मशान की ओर जा रहा है।
---

 मां की गोद में मौत

अपने नन्हें बेटे की मौत के बाद,
एक मां अपने बच्चे के कपड़ों को सीने से लगाकर रोती रही।
कभी कपड़ों को चूमती, कभी सहलाती,
मानो वे कपड़े ही उसका बेटा बन गए हों।
यह दृश्य देखकर वहां मौजूद हर आंख नम हो गई।

क्या मिला इन भ्रष्ट अधिकारियों को?
जिन्होंने कुछ पैसों के लिए मासूमों की जिंदगी के साथ सौदा किया।
वे यह भूल गए कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती,
लेकिन जब पड़ती है, तो बहुत दर्द देती है।

---

 भ्रष्टाचार की बलि पर मासूम

मध्य प्रदेश और राजस्थान की यह घटना केवल स्वास्थ्य की विफलता नहीं,
बल्कि न्याय, जवाबदेही और मानवता की असफलता का प्रतीक है।

बच्चों की जान कोल्डरिफ (Coldrif) नामक कफ सिरप ने ले ली।
जांच में पाया गया कि इस दवाई में जहरीला रसायन “Diethylene Glycol” मौजूद था,
जो गुर्दे को नष्ट कर देता है।

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में इस सिरप से 14 बच्चों की मौत हो चुकी है।

राजस्थान के सीकर, भरतपुर, चूरू जिलों में भी कई बच्चों की मृत्यु और बीमारियां दर्ज हुई हैं।


इन बच्चों के शरीर ने धीरे-धीरे काम करना बंद कर दिया,
सांसें थम गईं, और मां-बाप सिर्फ रोते रह गए।


---

 सरकारी जवाब — वही पुराना राग

हर बार की तरह सरकार ने वही पुराना बयान दिया —

> “जांच होगी, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”



कुछ पैसों का मुआवज़ा घोषित कर दिया गया —
लाख, दो लाख या पांच लाख।

लेकिन सवाल यह है —
क्या इन पैसों से किसी मां का टूटा दिल जुड़ जाएगा?
क्या इन पैसों से वह आंखों का तारा वापस आ जाएगा,
जो हमेशा-हमेशा के लिए उनसे जुदा हो गया?

मां-बाप आसमान की ओर देखकर कहते हैं —

> “देखो, मेरा बेटा अब एक तारा बन गया है…
कितना ऊंचा, कितना चमकदार…”



पर दिल में एक टीस हमेशा रहती है —
कि यह चमक मौत की कीमत पर क्यों?


---

आज फिर याद आती हैं दादी के वो घरेलू नुस्खे।
जब हमें खांसी होती थी,
वह शहद में काली मिर्च मिलाकर चटा देती थीं —
और खांसी छूमंतर हो जाती थी।

लेकिन हमने तरक्की की दौड़ में वो परंपराएँ छोड़ दीं।
हमारा विश्वास अब अंग्रेज़ी दवाओं पर है —
जिन्हें हम “आधुनिक इलाज” समझते हैं।

हम भूल गए —
जो चीज़ जल्दी असर करती है,
वह जल्दी नुकसान भी पहुंचाती है।


---

मध्य प्रदेश और राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में
बांटी जा रही यह “कोल्डरिफ” कफ सिरप भ्रष्टाचार की बदबू दे रही थी।
फिर भी इसे रोका नहीं गया,
क्योंकि कुछ अधिकारियों की आंखों पर नोटों की पट्टी बंधी थी।

भारत की स्वास्थ्य सेवाओं को बार-बार संवेदनशील परीक्षा से गुजरना पड़ता है,
लेकिन इस बार की परीक्षा में पूरा तंत्र असफल हो गया।


---

यह केवल दवाई का ज़हर नहीं था,
यह व्यवस्था का ज़हर था —
जहां निगरानी कमजोर है,
और जिम्मेदारी सिर्फ बयान देने तक सीमित है।

अब देखना यह है कि इस भ्रष्टाचार के खेल में
कितने अधिकारी शामिल हैं,
और यह सिरप कितनी और मासूम जानें लेगा।

सरकार ने अब जाकर इस दवाई को प्रतिबंधित किया है,
और इसकी सभी खेप नष्ट करने के आदेश दिए गए हैं।
पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी —
कई घरों के दीपक बुझ चुके थे।

---

मध्य प्रदेश और राजस्थान की यह घटना
हम सबके लिए एक चेतावनी है।
यह सिर्फ एक मेडिकल गलती नहीं,
बल्कि इंसानियत की हार है।

सरकार को यह समझना होगा कि
“जांच” और “मुआवज़ा” मौत का इलाज नहीं हैं।
अब जवाबदेही, सख्ती और निगरानी का समय है।


---

नन्हीं हथेलियाँ अब ठंडी हो गईं,  
मां की गोद हमेशा के लिए खामोश हो गईं।  

*बस तू मुझे भी नेता बना दे* 
 
---

कभी-कभी मेरे मन में यह ख़्याल आता है कि स्कूल और कॉलेज नेताओं तथा उनके परिवारों के लिए नहीं बनाए गए —
क्योंकि नेतागीरी में पढ़ा-लिखा होना कोई मायने नहीं रखता।

एक पूर्व मुख्यमंत्री सिर्फ़ पाँचवीं तक पढ़ीं और फिर भी पूरे राज्य की कमान संभाली।
उनके चारों ओर पढ़े-लिखे आईएएस अधिकारी घूमते रहे —
कोई उनके घर का सामान उठाता रहा, कोई “मैडम” के लिए सत्तू-दही लेकर
मुख्यमंत्री निवास के चक्कर काटता रहा।

तो आप ही बताइए — पाँचवीं फेल ज़्यादा ताकतवर है या भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)?

बहुत से ऐसे नेता और मंत्री बीते हैं जो संसद में पढ़ा हुआ उत्तर भी सही से नहीं पढ़ पाए।
जहाँ करोड़ों के आँकड़े थे, वहाँ “करोड़” को “कागज़” बोल गए।
अगर इन नेताओं का मुकाबला पाँचवीं क्लास के बच्चों से करा दिया जाए,
तो मैं गारंटी देता हूँ — ये नेता उस बच्चे से भी हार जाएँगे।

अब ज़रा सोचिए —
जो इंसान पाँचवीं क्लास के छात्र जितना भी ज्ञान नहीं रखता,
वो देश और राज्य की कमान कैसे संभाल सकता है?

यह तो अच्छा है कि हमारे नेता “हस्ताक्षर” करना सीख गए हैं,
वरना ये अपनी फ़ाइलों पर अंगूठा लगाकर कहते —
“अ, आ, इ, ई, ऊ, ऊ… मेरा दिल न तोड़ो,
रूठ के न जाओ मेरी प्यारी जनता,
पास मेरे पास आओ… गलती हो गई मुझसे,
क्योंकि मैं अंगूठाछाप, पढ़ना-लिखना जानूँ न!”


---

अब तो एक नया गाना बनना चाहिए —

> “ना तू इंजीनियर बनेगा, ना डॉक्टर,
तू अंगूठाछाप नेता की औलाद है,
तू भी अंगूठाछाप नेता बनेगा।
नेताजी का बेटा कहता है — ‘पापा, बड़ा काम करूँगा।’
बड़े होकर मैं भी नेता बनूँगा,
मेरे पीछे भी आईएएस अधिकारी घूमेंगे,
मेरा जूता पॉलिश करेंगे,
मेरे बच्चों को गोद में उठाकर टॉफ़ी दिलाएँगे!”




---

कुछ लोग ऊपरवाले से अपनी तक़दीर सोने की कलम से लिखवा कर लाए हैं —
पढ़ाई-लिखाई शून्य, मगर ताक़त और पैसा भरपूर।
जो चाहे, वो कानून बना देता है; जो चाहे, वो काम करवा देता है।
देश की दिशा और दशा अब योग्यता से नहीं, जुगाड़ और जाति से तय होती है।


---

अब असली मुद्दे पर आइए —

क्या आप चाहेंगे कि आपके पढ़े-लिखे बच्चे गड्ढे खोदकर मज़दूरी करें
और अंगूठाछाप नेता इस देश की बागडोर संभालें?

अब तो नया कानून बनना चाहिए —
विधायक और सांसद बनने के लिए शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।
जब एक आईएएस अधिकारी वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद
सिर्फ़ एक विभाग का अधिकारी बनता है,
तो एक अशिक्षित नेता पूरे देश की किस्मत का फ़ैसला कैसे कर सकता है?

सोचिए, अगर चौथी पास व्यक्ति शिक्षा मंत्री बन जाए —
तो देश की शिक्षा कैसी होगी?
अगर कोई जुआरी वित्त मंत्री बन जाए —
तो देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा?

अब तो नेताओं ने जनता की नस पकड़ ली है —
वे हमें मुफ़्त की रेवड़ियाँ बाँटते हैं,
हमारी माँ-बहनों के खातों में कुछ पैसे डालते हैं,
और जब इससे भी बात नहीं बनती, तो धर्म को बीच में घुमा देते हैं।


---

कभी आपने सोचा है —
आपकी माँ-बहनों के खातों में जो ₹1000 या ₹1500 आते हैं,
या आपके परिवार को जो 5 किलो अनाज मुफ़्त में मिलता है,
वो सब आपके ही टैक्स का पैसा है!
वही पैसा जो इन नेताओं की गाड़ियों के पेट्रोल,
उनके बंगले के बिजली बिल,
और उनके बच्चों की विदेश पढ़ाई पर खर्च होता है।

नेता और उनके परिवार न कोई नौकरी करते हैं,
न कोई कारोबार — फिर भी अरबों में खेलते हैं।
एक बार नेता बन जाए तो उसकी पाँच पीढ़ियाँ ऐशो-आराम में जीती हैं।

---

और अंत में…

> “ऊपरवाले, तूने कैसे-कैसों को दिया है!
मुझे भी लिफ़्ट करा दे, मुझे भी नेता बना दे,
मुझे भी बंगला दिला दे, मोटरकार दिला दे —
बस तू मुझे भी नेता बना दे!”

---



मेरी आने वाली पुस्तक “संकल्प” के विषय में प्रदेश टुडे ने स्थान दिया — इसके लिए प्रदेश टुडे का हृदय से धन्यवाद।
इसका विमोचन शीघ्र ही होने वाला है, और संकल्प जल्द ही बाजार में उपलब्ध होगी।
आप सभी से निवेदन है कि मेरी पुस्तक को एक बार अवश्य पढ़ें।

मैंने संकल्प लिया है कि समाज में फैली कुरीतियों, महिलाओं और बेटियों पर बढ़ते अत्याचार, बेरोजगारी तथा आम जनजीवन की रोज़मर्रा की परेशानियों को अपनी लेखनी के माध्यम से उजागर करूँ।
मेरी पुस्तक संकल्प केवल व्यंग्य नहीं, बल्कि समाज की सच्चाइयों और उसकी पीड़ा का आईना है।

मेरा उद्देश्य है कि बेटियाँ आत्मविश्वास से आगे बढ़ें, महिलाएँ सशक्त बनें, और युवा अपने हौसले से नई दिशा दें।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मेरे संकल्प को समझेंगे, सराहेंगे और मेरा उत्साह बढ़ाएँगे।

संकल्प है मेरा अंधेरों को मिटाने का,
हर पीड़ित दिल में उजियारा जगाने का।
— मोहम्मद जावेद खान

No comments:

Post a Comment