Friday, 17 October 2025

पर्वों का समूह ‌ प्रकाश का महापर्व दीपावली- डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि

पर्वों का समूह ‌ प्रकाश का महापर्व दीपावली- डॉ दिलीप कुमार सिंह मौसम विज्ञानी ज्योतिष शिरोमणि 

भारत देश पर्व उत्सव व्रत अनुष्ठान और यज्ञ हवन का देश है यहां पर हर एक उत्सव और महापर्व और व्रत प्रकृति पर्यावरण एवं मानवता के कल्याण से जुड़ा होता है भारत में विजयादशमी या दशहरा रक्षाबंधन दीपावली और होली चार सबसे बड़े महान पर होते हैं इसमें भी विजयादशमी या दशहरा क्षत्रियों का पर्व माना जाता है अर्थात देश की सुरक्षा रहेगी तभी देश आगे बढ़ेगा रक्षाबंधन ब्राह्मणों का पर्व माना जाता है जिसका अर्थ है यदि देश में बुद्धि और विज्ञान टेक्नोलॉजी का ज्ञान रहेगा तब देश तरक्की करेगा दीपावली महापर्व को वैश्यों का अर्थात व्यापारियों का महापर्व माना जाता है जब देश धन-धान्य से भरा रहेगा तभी देश खुशहाल होगा और सोने की चिड़िया बनेगा और होली को शूद्रों का महापर्व माना जाता है अर्थात जब देश सुरक्षित रहेगा धन-धान्य से भरा रहेगा ।‌18‌ ध्यान देने वाली बात है कि एक ही व्यक्ति के अंदर ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र विद्यमान रहता है जब वह ज्ञान का अर्जन करता है तो ब्राह्मण शस्त्रों का अध्ययन करता है तो क्षत्रिय व्यापार का कार्य करता है तो वैश्य और सेवा का काम करता है तो शूद्र कहा जाता है ‌ इसीलिए भारत में चारों महान पर्व सबके साथ समान भाव से खुशी और आनंद से मनाया जाता है और सबसे अधिक उत्साह उमंग से होली का त्यौहार मनाया जाता है जो भारत की अखंडता एकता का प्रतीक है।विज्ञान टेक्नोलॉजी और ज्ञान का प्रवाह उच्च शिखर पर होगा तभी लोग आमोद प्रमोद और खुशहाली में बसंत ऋतु में होली का महापर्व मना सकेंगे इसका यही वैज्ञानिक और धार्मिक अर्थ है ‌ सभी व्रत पर्व उत्सव यज्ञ अनुष्ठान हवन का एक ही लक्ष्य है अंधकार से प्रकाश अज्ञान से ज्ञान और धर्म से धर्म की ओर ले जाना जो भारतीय संस्कृति सभ्यता और सनातन धर्म की चरम उपलब्धि है।

दीपावली को संकुल महापर्व इसलिए माना जाता है कि इस महान पर्व में पांच बड़े-बड़े त्यौहार शामिल हैं सबसे पहले धनतेरस या धन्वंतरि पूजा आता है इसके बाद छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी की तिथि आती है इसके बाद बड़ी दीपावली अर्थात लक्ष्मी पूजा का मुख्य पर्व आता है तत्पश्चात गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा का महापर्व आता है और सबसे अंत में भैया दूज या यमद्वितीया का महापर्व आता है । इन पांच पर्व को मिलाकर दीपावली का महान संकुल पर्व बन जाता है इसी प्रकार नवरात्रि का महापर्व भी एक संकुल महापर्व माना जाता है।

इस वर्ष ‌ धन्वंतरि पूजा या धनतेरस का महापर्व 18 अक्टूबर को मनाया जाएगा क्योंकि त्रयोदशी की तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर में 12:18 से शुरू हो रही है और जो 19 अक्टूबर को दोपहर में 1:51 पर समाप्त हो रही है इसलिए ‌ धनवंतरी पूजा ‌ का शुद्ध समय सायं काल 5:48 से सायंकाल 8:20 तक है। यह बिल्कुल स्पष्ट रूप से बता देना चाहता हूं कि धन्वंतरि पूजा यह धनतेरस विशुद्ध रूप से स्वस्थ और दीर्घायु अर्थात चिकित्सा का महापर्व है इसका किसी भी खरीदारी से कोई संबंध नहीं है और ना 1763 के पहले कहीं पर किसी भी वेद पुराण धर्म ग्रंथो में खरीदारी का वर्णन है और ना किसी राजा महाराजा ने इस दिन खरीदारी किया था । इसी दिन दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाकर यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। खरीदारी का महापर्व व्यापारी लोगों ने धर्म के कुछ लोभी आचार्य और ज्योतिषी तथा पंडितों से मिलकर प्रचलित किया है अगर खरीदारी करना ही है तो इस दिन औषधीय गुण वाले पेड़ पौधों को खरीद कर अपने घर लगायें तो जीवन भर स्वस्थ रहेंगे।

धन्वंतरी वैद्य हैं देवताओं के चिकित्सक हैं वह स्वस्थ और दीर्घायु के देवता हैं आयुर्वेद के प्रकांड पंडित ‌ हैं  वैद्यराज हैं ‌ समुद्र मंथन के दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश को लेकर देवी लक्ष्मी के साथ प्रकट हुए थे और उन्होंने ही आयुर्वेद का ज्ञान समस्त विश्व में प्रसारित किया आज भी भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में उन्हीं की शपथ ली जाती है ‌ इस दिन खरीदारी का कारण व्यापारी लोगों और लोभी ज्योतिषी पंडितों की साथ गांठ है और कुछ नहीं है पूरे भारत में ऐसा कोई नहीं होगा जो धनतेरस को कुछ ना कुछ खरीदारी करता हो लेकिन कोई भी आज तक टाटा बिरला अंबानी नहीं बना;बन भी नहीं सकता है क्योंकि यह विशुद्ध रूप से स्वास्थ्य चिकित्सा और दीर्घायु का महापर्व है।

छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी इस वर्ष 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी इसके पीछे यह कहानी है कि नरकासुर नाम के सम्राट ने जो पृथ्वी का पुत्र था असम में अपना एक छत्र राज स्थापित करके 16000 रानियों को अपने यहां बंदी बना कर रखा था यह उनकी इच्छा के विरुद्ध था । वह खुद को अजर अमर मानता था और कोई उसे हरा नहीं पता था ।कालांतर में भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध करके पृथ्वी को पाप मुक्त किया तभी से यह महापर्व मनाया जाता है इस दिन 19 अक्टूबर को सांय काल 5:13 से शाम को 6:25 तक बड़ा दीपक जलाने का शुभ समय है। 

बड़ी दीपावली या लक्ष्मी पूजा 

यह महान मुख्य पर्व है और ‌ इस वर्ष हम 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा इसकी कथा यह है कि जब भगवान श्री राम के रावण के वध करके अयोध्या आने के उपलक्ष में महान खुशी के रूप में अयोध्या के निवासी लोगों द्वारा मनाया गया था घर-घर में दीपक जले मिठाइयां बांटी गई थी तभी से यह महान पर्व चल रहा है ‌ एक और कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी के समुद्र से उत्पन्न होने की खुशी में भी यह महापर्व मनाया जाता है दक्षिण भारत में नरसिंह अवतार लेकर ‌ भक्त प्रहलाद की रक्षा और उसके पिता की वध के साथ यह घटना जुड़ी है इसी दिन सिखों के गुरु हरगोबिंद सिंह और 22 राजाओं को कैद से मुक्ति मिली थी इसलिए भी प्रकाश पर्व मनाया जाता है। कार्तिक की अमावस्या की रात सबसे काली और भयानक होती है उसको अंधकार से प्रकाश में बदलने के लिए  भीयह पर्व मनाया जाता है और कार्तिक की पूर्णिमा सबसे उजली होती है इसीलिए उसे प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है 

संकुल पर्व में अगला महान पर्व गोवर्धन पूजा या अन्य कुछ पूजा है दुराचारी और निरंकुश इंद्र को पाठ पढ़ने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा समाप्त करके गोवर्धन पहाड़ की पूजा करके उसी को अन्य समर्पित कराया क्रोधित होकर इंद्र ने प्रलय काल के बादलों के साथ ब्रजमंडल में घनघोर वर्षा की और एक दिन में ही 2500 मिलीलीटर की वर्षा से सारा ब्रजमंडल डूबने लगा तब उन्होंने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पहाड़ को जड़ सहित उखाड़ लिया और 7 दिन तक भयंकर वृष्टि से बृजवासियों की रक्षा की और अंत में दुराचारी इंद्रप्रस्थ हुआ और पैर पड़कर क्षमा याचना किया इस पर्व के दिनएन का ढेर अर्थात पहाड़ बनाकर उसे भगवान श्री कृष्णा और गोवर्धन को अर्पित किया जाता है इस वर्ष 22 अक्टूबर को सायंकाल 5:54 से 8:16 रात्रि में गोवर्धन पूजा का महान पर्व है 

संकुल महापर्व का अगला और अंतिम महापर्व भैया दूज या  यमद्वितीया का महापर्व है । इस वर्ष यह महान पर्व 23 अक्टूबर को‌ रात में 8:46 से 10:46 रात में मनाया जाएगा इसकी कहानी भाई बहन के अटूट और पवित्र प्रेम पर आधारित है सूर्य की पुत्री यमुना अपने भाई यमराज को हर वर्ष इस दिन बुलाकर उन्हें अच्छे-अच्छे व्यंजन खिला कर सत्कार करती थी बदले में यमराज प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित वरदान देते थे कहा जाता है कि इस दिन अगर बहन पवित्र मन से भाई को तिलक लगाकर उसकी आरती करे तो उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है अर्थात सच्चे प्रेम से मृत्यु को भी जीता जा सकता है यह इसका संदेश है

 दीपावली में सबके लिए पूजा की सरल एवं संपूर्ण विधि 

दीपावली की पूजा हमेशा स्थिर लग्न में प्रदोष काल और निशीथ बेला में किया जाता है। स्त्री लग्न में पूजा करने से देवी लक्ष्मी अधिक समय तक वहां पर निवास करती हैं अन्यथा देवी लक्ष्मी चंचल स्वभाव की होती हैं एक स्थान पर अधिक समय नहीं रह पाती हैं इस बार ‌ दीपावली पूजा का स्थिर लग्न ‌ ‌ 20 अक्टूबर 2025 को सायंकाल 7:08 से रात में 8:18 तक है जो कुल मिलाकर 1 घंटे 11 मिनट का समय है इसी समय में संपूर्ण पूजा पाठ आरती कर लेना चाहिए जिसकी विधि निम्नलिखित है । वैसे तो उदया तिथि के अनुसार दीपावली 21 अक्टूबर को मनाना चाहिए लेकिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी और दीपावली दो ऐसे पर्व है जो स्थिर लग्न में ही मनाया जाते हैं इसमें उदया तिथि का अधिक महत्व नहीं होता है।‌ इसीलिए निश्चित रूप से दीपावली 20 अक्टूबर को शाम 7:08 से रात 8:18 तक पूजा के साथ मनाई जाएगी

सर्वप्रथम पूजा स्थल की साफ सफाई करके कच्ची जमीन है तो गाय के गोबर से लीपा जाना चाहिए यदि यह पक्का फर्श है तो उसको पानी से धोकर गंगाजल छिड़क लेना चाहिए। गंगाजल सभी वस्तुओं पर और अपने ऊपर भी और अगर अन्य लोग हैं तो सबके ऊपर छिड़क लेना चाहिए।इसके पश्चात एक चौकी पर लाल वस्त्र बेचकर लक्ष्मी मां की स्थापना करें मूर्ति के भाई और श्री हरि विष्णु और दाहिनी और गणेश जी को रखें साथ-साथ कुबेर देवता सरस्वती मां काली देवी की मूर्ति रखें अगर ना मिले तो मन ही मन उनका संकल्प करें।

 इसके पश्चात दीपक जलाकर ‌ सबसे पहले श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी गणेश जी का आवाहन करें इसके साथ-साथ धनराज कुबेर सरस्वती मां और काली देवी का भी आवाहन करें इसके पश्चात शुद्ध मन से ओम केशवाय नमः ओम माधवाय नमः ओम नारायणय नमः का मंत्र पढ़ने के बाद ओम महालक्ष्मी प्रसीद प्रसीद इति स्वाहा और गं गणपतए नमः ओम धनराजाय कुबेराय नमः का मंत्र पढ़े इतना सामान्य लोगों के लिए पर्याप्त है। इसके पश्चात धूप दीप फल मिठाई फूल सब कुछ उपर्युक्त देवी देवताओं को अर्पित करें और मिष्ठान और पकवान पर तुलसी का एक पत्ता अवश्य रखना चाहिए। मिष्ठान में बताशा और खील( धानका लावा)होना चाहिए। इसके पश्चात लक्ष्मी चालीसा या लक्ष्मी स्त्रोत करते हुए आरती करें और आरती करने के बाद सभी देवी देवताओं से यह प्रार्थना करें कि अगर पूजा में कोई भूल हो गए हो तो उसे क्षमा करें ।

यही सामान्य गृहस्थ और सामान्य लोगों के लिए संपूर्ण पूजा पाठ का विधान है अधिक जटिल और कर्मकांडी पूजा धर्म आचार्य और पंडा पुरोहित लोगों को ही करना चाहिए। इसके पश्चात सूप से दीपक जलाकर उसे धीरे-धीरे हवा देना चाहिए। यही संपूर्ण विधि विधान है और ऐसा बिना किसी तनाव और क्रोध के स्थिर चित्त करके करना चाहिए‌ ऐसा करने पर निश्चित रूप से महादेवी लक्ष्मी और अन्य सभी देवी देवताओं की कृपा प्राप्त होती हैं‌ इसके उपरांत भगवान शिव और मां पार्वती ब्रह्मदेव और सरस्वती मां की कृपा अपने आप प्राप्त हो जाती है क्योंकि तीनों ही महान देवता अंततः एक ही होते हैं।

No comments:

Post a Comment