Sunday, 25 December 2022

द्यूत क्रीड़ा में अपना सर्वस्व गवां देने के बाद पांडवों को हस्तिनापुर छोड़ कर वन जाना था। जिसकी तमाम शर्तें राजभवन के द्यूतसभा मे ही महाराज धृतराष्ट्र, पितामह, कृपाचार्य, गुरु द्रोण और विदुर की तथा अन्य पदाधिकारियों की उपस्थिति में ही तय हुई थी। पांडवो के वन जाने के समय पर कुन्ती ने उनके साथ आने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा"युधिष्ठिर..! मैं तुम्हारे साथ वन नही जाऊँगी।"

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द्यूत क्रीड़ा में अपना सर्वस्व गवां देने के बाद पांडवों को हस्तिनापुर छोड़ कर वन जाना था। जिसकी तमाम शर्तें राजभवन के द्यूतसभा मे ही महाराज धृतराष्ट्र, पितामह, कृपाचार्य, गुरु द्रोण और विदुर की तथा अन्य पदाधिकारियों की उपस्थिति में ही तय हुई थी। पांडवो के वन जाने के समय पर कुन्ती ने उनके साथ आने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा
"युधिष्ठिर..! मैं तुम्हारे साथ वन नही जाऊँगी।"

युधिष्ठिर ने जान लिया कि माँ ने मेरे मन का द्वंद जान लिया है। मैं कब से इसी विचार में उलझा था कि इस अवस्था मे माँ को लेकर वन जाना कदाचित उचित भी नही है। लेकिन इस बात को कैसे माँ से कहा जाय कैसे उन्हें समझाया जाय मैं कब से इसी धर्मसंकठ में पड़ा था। किंतु यह तो बहुत अच्छा हुआ कि माँ ने स्वयं आने से मना कर दिया।
हम सब भी नही चाहते कि तुम हमारे साथ इतने वर्षों तक वन में दर दर भटको। पुत्रों की इस बात को सुनकर कुन्ती ने मुस्कुरा कर कहा क्या मैं कभी वन नही गई हूं क्या ..? जब जब पत्नी धर्म ने आवाज दिया था मुझे, मैं तब तब गयी तुम्हारे पिता जी के साथ श्रितशृंग पर रही, हिंडिव वन में भी रही हूं। लेकिन याद रखना भगवान राम के साथ उनकी पत्नी वन गई थी उनकी माता नही। जब मेरा धर्म था तब मैं वन गई अब जिनका धर्म है वे वन जाएं।

तब ठीक है माँ तुम कहा रहोगी। भोजपुर चली जाओ आखिर वह मायका है आप का। है तो मायका ही मेरा..!  पर  स्त्री का विवाह के बाद मायके से क्या संबंध और जब अपने विवाह के इतने वर्षों में भी मैं एक बार भी भोजपुर नही गयी तो अब क्यों जाऊँ। लोग यही कहेंगे कि ससुराल में जब दुर्गति होने लगी तो अब मायके की याद आयी है।

माँ तब तुम द्वारिका चली जाओ मातुल वासुदेव तो तुम्हे अतिप्रिय है न ..! अर्जुन के इस प्रस्ताव को सुनकर माता कुंती ने फिर मुस्कुरा दिया और कहा पुत्र अब द्वारका मेरा मायका नही रहा, तुम्हारे और  सुभद्रा के विवाहोपरांत। अब वह मेरा समधियाना हो गया है, और समधी के घर उसके आश्रय में रहना उचित नही होता।

तब तुम हमारे साथ वन चलो माँ। तुम सोचोगी की कैसा दुष्ट पुत्र है यह मेरा भीम..!  जो मुझे इस अवस्था मे वन ले जाने की बात कर रहा है। पर हम सब यह जानते है कि तुम हमारे बिना कही चैन से नही रह सकती हो। और हम सब तुम्हे वन में कोई भी असुविधा नही होने देंगे। तुम चल नही पाओगी तो गोंद में उठा कर चलेंगे , कंधे पर बिठा कर ले चलेंगे, तुम्हारा भार ही कितना है। और "माँ का कितना भी भार हो पुत्र के लिए कभी बोझ नही होता।" तुम्हे भूख लगेगी तो धरती चीड़ दूँगा, आकाश नोच लूँगा, अपनी बांहों की तकिया लगाऊंगा माँ तुम्हे कष्ट नही होगा।

मैंने कब कहा कि मेरे पुत्रों के रहते मुझे किसी तरह का कष्ट हो सकता है। किंतु मैं अपने ससुराल में ही रहूंगी!  कुंती ने दृढ़ स्वर में कहा। मैं यहीं तुम्हारे काका विदुर के घर रहूँगी और यह राज भवन के  प्रसाद का हिस्सा भी नही है। और यहाँ मुझे दुर्योधन से भी तनिक भय नही है। मुझे भय है तो अपने पुत्र धर्मराज से है ..! 

सब ने चकित होकर माता के आशय को समझने हेतु माँ की तरफ देखने लगे। कुंती ने चिंतित मुद्रा में कहा उसका स्वभाव बहुत सात्विक है। उसमें तनिक भी क्रूरता नही है। वह शत्रु को भी क्षमा कर देता है। अपनी क्षति होते देखकर भी वह दूसरों की क्षति नही कर सकता। मुझे भय है कि वह वन में भी संतुष्ट होकर रह लेगा, और तुम लोग भी रह लोगे इसमें कोई शक नहीं। कुछ समय बाद युधिष्ठर भूल भी जाएगा कि उसका भी अपना कोई राज्य था। जिसे उससे छीन लिया गया है, और उसे उसको पुनः प्राप्त करना है।

जो कि मैं होने नही दूँगी।  हॉं पुत्र..! यदि तुम भूल भी जाओ अपनी राज्य लक्ष्मी को तो मैं यह कदापि न भुलनें दूँगी की तुम्हारी माँ यहां बैठी है, हस्तिनापुर में। जिन लोगो ने तुम से तुम्हारी राजलक्ष्मी ,धन, वैभव, प्रजा और धरती से वंचित किया है। उन्हीं के नगर में बैठी है तुम्हारी माँ तुम्हारे इंतजार में।

"धरती और माता में बहुत अन्तर नही है पुत्र!" अपनी धरती जीत कर उसे स्वाधीन कराने आना होगा,  उस पर उत्सव की हरियाली बिछाने आना होगा, अपनी माता को हस्तिनापुर से मुक्त करा कर ले जाने आना होगा। मेरे पुत्रो! तुम्हे मेरे बंधन काटने के लिए हस्तिनापुर आना ही होगा। 

मैं तुम्हें अन्याय के विरुद्ध बिना लड़े वनवास से सीधे आवागमन के लिए उन पर्वतों पर नही जाने दूँगी जहां से स्वर्ग सीधे दिखता है। मैं तुम्हे इसके विरुद्ध लड़े विना जन्मांतरों से मोक्ष नही पाने दूँगी।

"अब समझे मैं युधिष्ठिर से क्यों भयभीत हूँ ...!"

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