Sunday, 25 December 2022

असली मदद*

🥬 *असली मदद* 🥬    
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*🕉️🌄🌅शुभ प्रभात🌅🌄🕉️*

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*प्रतिदिन सुबह और रात्रि मे सुविचार कहानी प्राप्त करने के लिए*

                            *मैं कईं दिनों से बेरोजगार था , एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ों लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए।*

*आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम दो सौ रुपयों की जरूरत थी।*

*अपने इकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो, पड़ोसी की प्रेस माँग के तैयार कर पहन, अपने योग्यताओं की मोटी फाइल बगल में दबाकर, दो बिस्कुट खा के निकला।*

*लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस ! इस उम्मीद में स्टेंड पर पहुँचा कि शायद कोई पहचान वाला मिल जाए, जिससे सहायता लेकर इन्टरव्यू के स्थान तक पहुँच सकूँ।*

*काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई नहीं दिखा। मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूँगा अब कैसे पँहुचूगा ?*

*पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था।*

*मेरे पास में ही एक भिखारी बैठा था, उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थे।*

*मेरी नजरें और हालात समझ के बोला, "कुछ मदद चाहिए क्या ?" मैं बनावटी मुस्कुराहट के साथ बोला, "आप क्या मदद करोगे ?"*

*"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो" वो मुस्कुराता बोला, मैं चौंक गया !! उसे कैसे पता मेरी जरूरत !*

*मैनें कहा "क्यों"...?*

*"शायद आपको जरूरत है" वो गंभीरता से बोला।*

*"हाँ है तो, पर तुम्हारा क्या, तुम तो दिन भर माँग के कमाते हो?" मैने उस का पक्ष रखते हुए कहा।*

*वो हँसता हुआ बोला, "मैं नहीं माँगता साहब ! लोग डाल जाते हैं मेरे कटोरे में, पुण्य कमाने के लिए !*

*मैं तो भिखारी हूँ, मुझे इनका कोई मोह नहीं। मुझे सिर्फ भूख लगती है, वो भी एक टाइम और कुछ दवाइयाँ। बस !*

*"मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूँ।" वो सहज था कहते कहते।*

*मैनें हैरानी से पूछा, "फिर यहाँ बैठते क्यों हो..?"*

*"जरूरतमंदों की मदद करने !!" कहते हुए वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था।*

*मैं उसका मुँह देखता रह गया!! उसने दो सौ रुपये मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, "जब हो तब लौटा देना।"*

*मैं उसका धन्यवाद जताता हुआ वहाँ से अपने गंतव्य तक पँहुचा। मेरा इंटरव्यू हुआ और सलेक्शन भी।*

*मैं खुशी खुशी वापस आया, सोचा उस भिखारी को धन्यवाद दे दूँ।*

*मैं मंदिर पँहुचा, बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ लगी थी, मैं घुस के अंदर पँहुचा, देखा वही भिखारी मरा पड़ा था।*

*मैं भौंचक्का रह गया ! मैने दूसरों से पूछा यह कैसे हुआ ?*

*पता चला, वो किसी बीमारी से परेशान था। सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था। आज उसके पास दवाइयाँ नहीं थी और न उन्हें खरीदने के पैसे !*

*मैं अवाक सा उस भिखारी को देख रहा था ! अपनी दवाईयों के पैसे वो मुझे दे गया था। जिन पैसों पे उसकी जिंदगी का दारोमदार था, उन पैसों से मेरी ज़िंदगी बना दी थी....!*

*भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया। ये भिखारी भी साले बोझ होते हैं, कोई काम के नहीं....!*

*मेरी आँखें डबडबा आयी !*

*वो भिखारी कहाँ था, वो तो मेरे लिए भगवान ही था। नेकी का फरिश्ता। मेरा भगवान !*

*मित्रों, हममें से कोई नहीं जानता कि भगवान कौन हैं और कहाँ हैं ? किसने देखा है भगवान को?*
*बस इसी तरह मिल जाते हैं*                                            *🎯भगवान देता,देता है और भूल जाता है, आदमी लेता, लेता है और भूल जाता है।

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