Thursday, 18 July 2024

गाँवो से हारे लगभग खत्म हो चुके हैं। हारे के दूध की सुगंध और उसका स्वाद लाजवाब होता है। उसकी मलाई भी शानदार स्वाद लिए होती है। जो मलाई ना खाता हो वो भी हारे के दूध की मलाई को गपागप खा जाते हैं। उसकी छाय (मठ्ठा) भी सुर्ख रंग की होती है। और मक्खन(नूनी घी) भी शानदार फ्लेवर लिए होता है। धीमी आँच और उपलों के धुएं की खशबू ये फ्लेवर और स्वाद बनाते हैं।

गाँवो से हारे लगभग खत्म हो चुके हैं। हारे के दूध की सुगंध और उसका स्वाद लाजवाब होता है। उसकी मलाई भी शानदार स्वाद लिए होती है। जो मलाई ना खाता हो वो भी हारे के दूध की मलाई को गपागप खा जाते हैं। उसकी छाय (मठ्ठा) भी सुर्ख रंग की होती है। और मक्खन(नूनी घी) भी शानदार फ्लेवर लिए होता है। धीमी आँच और उपलों के धुएं की खशबू ये फ्लेवर और स्वाद बनाते हैं। 
हुक्का गाँवो की चौपाल से गायब हुआ तो हुक्का बार बन गए। अब देख रहा हूँ खाण्ड का उपयोग कुछ हलवाई दूध और मिठाइयों में दुबारा कर रहें हैं। इसके वो अच्छे पैसे लेते हैं, और स्वाद के दीवाने देते हैं। शुरू में जो खाण्ड के बताशे या खाण्ड की बुरा बाज़ार में आ रही थी वो चीनी और गुड़ के मिश्रण से बनाई जा रही थी। लेकिन अब कुछ क्रेशर हैं जो पुरानी विधि से ही खाण्ड बना रहे हैं। इसकी मांग भी बहुत है। खाण्ड में शर्करा प्रतिशत भी कम होता है और मिनरल भी होते हैं। तो स्वास्थ्य के लिए इसे चीनी से बेहतर माना जाता है। मधुमेह वालो के लिए तो ये मीठे का बढ़िया विकल्प है।
विदेशों में भारत से गुड़, शक्कर और खाण्ड का निर्यात भी हो रहा है। 
मुझे लग रहा है कि भविष्य में 5 सितारा होटलों और रेस्टॉरेंट में हारे बने दिखाई देंगे और वो उसके दूध, छाय और मक्खन का स्वाद लोगो को बढ़िया रकम में बेचेंगे। 
ये हारे का फोटो तो इंटरनेट से लिया। पहले घरों में मिट्टी के ही बनाये जाते थे। घर की महिलाएं ही बनाती थी। एक से एक डिजाइनर हारे देखे हैं मैंने। उनको देखकर ही पता चलता था कि सामान्य महिलाओं में भी कला और कौशल कूट-कूट कर भरा था।
 मेरे घर मे तो हारा नही था, लेकिन मेरी नानी और बुआ जी के घर मे था। मेरे कुछ परिचित हैं जिनके यहाँ आज भी हारा है। उनके यहाँ मैं कभी भी चला जाता हूँ। हमारे क्षेत्र में तो अब ये शौकीन लोगो के यहाँ ही देखने को मिलता है।
Satish Bhardwaj

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