Wednesday, 17 July 2024

हर शयनी एकादशी ,

हर शयनी एकादशी ,
डॉ दिलीप कुमार सिंह

 हरि शयनी या देव शयनी एकादशी हर वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बढ़ता है और इस दिन से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी तक भगवान विष्णु शयन करते हैं इस  वर्ष  देव उठनी पर्व 17 जुलाई बुधवार के दिन पड़ रहा है और इस दिन सुबह 5:33 से शाम 5:56 तक भद्रा भी है जो सुबह से ही लग रहे हैं इन चार महीना में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है इस वर्ष हरि उठनी व्रत 12 नवंबर मंगलवार के दिन पड़ रहा है जिसको हरि या देव उठनी व्रत भी कहा जाता है इस दिन तुलसी विवाह होता है और प्रबोधिनी एकादशी व्रत भी होता है
[7/16, 9:02 PM] Dileep Singh Rajput Jounpur: 4 महीने सभी शुभ और मांगलिक काम बंद क्यों रहते हैं

धर्म और आध्यात्म की दृष्टि से धर्म ग्रंथो और विष्णु पुराण में यह कहा गया है कि एक समय सम्राट बली ने अपने तप बल से 100 महान अश्वमेध यज्ञ करके पृथ्वी आकाश पाताल हर जगह विजय प्राप्त कर लिया और इंद्र का स्वर्ग लोक खतरे में पड़ गया तब सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके बली से तीन पग धरती मांग कर विराट रूप धारण करते हुए तीन पग से उन्होंने आकाश पाताल और पृथ्वी को नाप लिया और पैर रखने की जगह नहीं बची तो सम्राट बाली ने अपना सिर भगवान को पैर रखने के लिए अर्पित कर दिया इस पर परम प्रसन्न भगवान विष्णु ने उनसे कोई वर मांगने को कहा तो सम्राट बली ने कहा 4 महीने आप पाताल में मेरे द्वार पर रहकर पाताल लोक की रक्षा करेंगे और सबको दर्शन देंगे तभी से 4 वर्ष 4 महीने भगवान विष्णु पाताल में रहते हैं और कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को उनके धरती पर लौटते ही सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं

जब की इसका एक कारण व्यवहारिक रूप से वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ है पहले भीषण वर्षा 4 महीने लगातार होती थी और आने-जाने के साधन और सड़क मार्ग नहीं थे चारों ओर जल भर जाने और घने जंगल घास पेड़ पौधे उग जाने के कारण सांप बिच्छू और खतरनाक जीव जंतु हर तरह हर जगह भर जाते थे आना जाना अत्यंत कठिन हो जाता था इसलिए लोग अपने घर पर रहकर चार महीने पूजा पाठ धर्म और अध्यात्म की चर्चा करते हुए शांति प्राप्त करने का प्रयास करते थे इसलिए इसको धर्म और अध्यात्म का रूप देकर ग्रहण नक्षत्र से जोड़ा गया जो बिल्कुल देशकाल परिस्थितियों के अनुकूल था 

भगवान विष्णु ही जगत के पालनहार है निर्माता है वही यज्ञ और पूजा पाठ के स्वरूप प्रमुख देवता हैं उनके बिना कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य संभव नहीं है इसलिए 4 महीने उनके धरती से पाताल में जाने के कारण कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य किया जाना संभव नहीं था व्यावहारिक रूप से वर्षा का समय होने से चारों ओर जल भरे रहने से शुभ और मांगलिक कार्य होना लगभग असंभव थाइसीलिए इन चार महीनों में शुभ नक्षत्रों के अस्त होने और व्यवहारइक कठिनाई होने से शुभ और मांगलिक कार्यों को बंद किया गया था
[7/16, 9:02 PM] Dileep Singh Rajput Jounpur: देव शयनी एकादशी का पूजा पाठ विधान जो लोग देव शयनी एकादशी की पूजा पाठ करना चाहते हैं वह ब्रह्म मुहूर्त में उठे पवित्र भाव से स्नान करें भगवान विष्णु के समक्ष शुभ कार्यों के लिए पूजा का संकल्प लें और बेदी स्थापित करके या भगवान विष्णु की मूर्ति और शालिग्राम रखकर पंचामृत और विधि विधान से उनके पूजा करना चाहिए सबसे पहले संकल्प करें फिर शालिग्राम का पंचामृत से अभिषेक फिर शुद्ध जल और गंगाजल से शालिग्राम का अभिषेक करते हुए पीले वस्त्र भगवान विष्णु को अर्पित करें उनका श्रृंगार करें और फल फूल धूप दीप नैवेद्य कपूर अमृत करें पंचामृत और पंजीरी का भोग लगाकर वैदिक मंत्र या ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें भगवान विष्णु की आरती के साथ व्रत का समापन करें इस समय तेल मसाला और तामसी चीजों से परहेज करें

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