1960 यह इससे आगे पीछे जन्मी पीढ़ी ने
1960 यह इससे आगे पीछे जन्मी पीढ़ी अब 65- से आगे की ओर बढ़ रही है।इस पीढ़ी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि इसने ज़िंदगी में बहुत बड़े बदलाव देखे और उन्हें आत्मसात भी किया है। इतने ढेर सारे आश्चर्यजनक बदलाव शायद पहले इस आयु की किसी पीढ़ी ने नहीं देखे होंगे।
1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे(सिक्के)देखने वाली यही पीढ़ी है। इस पीढ़ी के लोग बचपन में बिना झिझक मेहमानों से यह सिक्के ले लिया करते थे।इस समय उक्त सिक्कों का चलन खत्म हो चुका है।₹1 ₹2 के सिक्के चलन से बाहर होने के कगार पर हैं। अतिथि लोग₹1
50 से ₹500 तक की नोट से बच्चों का मान सम्मान कर रहे हैं।इस पीढ़ी ने पढ़ाई की शुरुआत स्याही–कलम/पेंसिल/पेन से की थी। भारत में स्याही और कलम का प्रयोग हजारों वर्षों तक चलता रहा।वैदिक और उत्तरवैदिक युग में लेखन मुख्यतः भोजपत्र और ताड़पत्र पर होता था। मध्यकाल जब कागज़ का आगमन हुआ (लगभग 11वीं–12वीं सदी), तब स्याही और कलम का महत्व और बढ़ गया।मुस्लिम शासकों के दरबारों में कागज़, दवात (स्याहीदान) और कलम का प्रयोग प्रचलित हुआ।
उन्नीसवीं सदी तक अदालतों, कचहरियों और शिक्षण संस्थानों में कलम-दवात का प्रयोग आम था।
धीरे-धीरे यूरोपीय प्रभाव से धातु की निब और बाद में फाउंटेन पेन का चलन बढ़ा और पारंपरिक बांस की कलम का प्रयोग कम हो गया।कलम, बांस या सरकंडे की डंडी यानी टांटल को चाकू से छीलकर उसका सिरा चौड़ा और धारदार काटा जाता था, जिससे अक्षर स्पष्ट लिखे जा सकें।
मिट्टी, पीतल या कांच की शीशियां के छोटे पात्रों में स्याही रखी जाती थी। जिसे दवात कहते थे।पारंपरिक कलम-दवात भारतीय लेखन संस्कृति की अमूल्य धरोहर मानी जाती है।
आज यह पीढ़ी स्मार्टफोन, लैपटॉप, पीसी को बखूबी चला रही है।जिसके बचपन में साइकिल भी एक विलासिता थी, हर किसी को साइकिल भी मयस्सर नहीं थी। वही पीढ़ी आज बखूबी स्कूटर और कार चलाती है। ट्रांजिस्टर ,टेप रिकॉर्डर, कभी बड़ी शान ओ शौकत का प्रतीक थे। टीवी के आने से जिनका बचपन बरबाद नहीं हुआ, वही आखिरी पीढ़ी है। टीवी और उससे आगे का दौर के साथ आपस में चंदा करके भाड़े पर वीसीआर लाकर 4–5 फिल्में एक साथ देखने वाली भी यही पीढ़ी है। इस पीढ़ी के लोग सीनेमा घरों की अपार भीड़ सिनेमा घर की टिकट की ब्लेकमैलिंग और अब उनका डाउनफॉल अभी देख रहे हैं। चौपाल और नाटक, सिनेमाघर, टीवी सीरियल व ओटीटी प्लेटफॉर्म तक का दौर देखा है।इस पीढ़ी ने ट्रांजिस्टर, ब्लैक-एंड-व्हाइट टीवी, रंगीन टीवी, वीसीआर, फिर कंप्यूटर और आज स्मार्टफोन, इंटरनेट, 5G तक की यात्रा तय कर ली है। दोस्त की माँ ने खाना खिला दिया,इसमें कोई उपकार का भाव नहीं, और दोस्त के पिताजी ने डांटा इसमें कोई ईर्ष्या भी नही थी।वो यही आखिरी पीढ़ी है।दो दिन अगर कोई दोस्त स्कूल न आया तो स्कूल छूटते ही बस्ता लेकर उसके घर पहुँच जाने वाली भी यही पीढ़ी है। घरेलू नुस्खों और झोलाछाप डॉक्टर से लेकर आधुनिक सुपरस्पेशलिटी अस्पताल और रोबोटिक सर्जरी तक की यात्रा,चेचक, पोलियो जैसी बीमारियों का लगभग ख़ात्मा और नई चुनौतियाँ जैसे डायबिटीज़, हार्ट डिज़ीज़, कैंसर तक सफर इस पीढ़ी ने तय कर लिया है।
मोहल्ले में किसी भी घर में कोई कार्यक्रम हो तो बिना संकोच, बिना विधिवत निमंत्रण काम में जुट जाती थी, यह वो ही पीढ़ी है।शिक्षक से पिटना कोई बुराई नहीं थी, बस डर यह रहता था कि घरवालों को न पता चले, वरना वहाँ भी पिटाई होगी।शिक्षक पर आवाज़ ऊँची न करने वाली पीढ़ी। किताब में कुछ विशेष पौधों की पत्तियाँ और मोरपंख रखकर पढ़ाई में तेज हो जाएँगे –यह इस पीढ़ी का दृढ़ विश्वास था।कपड़े की थैली में किताबें रखना,बाद में टिन के बक्से में किताबें सजाना –यह भी एक दौर था।आज की 45+ से 65+ आयु वर्ग ने सचमुच इतिहास के सबसे बड़े और तेज़ बदलावों को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। इसने पारंपरिक जीवनशैली से आधुनिक डिजिटल दुनिया तक की यात्रा देखी है।शायद यह पहली ऐसी पीढ़ी है जिसने हाथ से लिखी चिट्ठियों से लेकर AI चैटबॉट तक, बैलगाड़ी से लेकर बुलेट ट्रेन और इंटरनेट युग तक का सफर तय किया। इसीलिए इसे सबसे लचीली और अनुकूलनशील पीढ़ी कहा जा सकता है। इस पीढ़ी का अंतिम व्यक्ति और भविष्य में जितने बदलाव देख लेगा वह इतिहास के सुनहरे पन्नों पर दर्ज होगा और शायद कोई विश्व रिकॉर्ड भी बन जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
No comments:
Post a Comment