Friday, 5 September 2025

गड्ढे अब सिर्फ गड्ढे नहीं रहे, ये तो हमारे शहर के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं। मैंने जब भोपाल की सड़कें देखीं तो पुराने ज़माने की याद ताज़ा हो गई। अब तो हालत यह है कि गड्ढे गिनते–गिनते ही थकान हो जाती है।

गड्ढे चाहे सड़क पर हों या गाल पर,
कमबख़्त जान का खतरा दोनों में रहता है।

किसी शायर ने क्या खूब लिखा –
“एक गड्ढे में गिरा तो दिल टूटा,
दूसरे गड्ढे में गिरा तो दाँत शहीद हुआ।”

भोपाल की पहचान उसकी झीलों, प्राकृतिक सौंदर्य और हरियाली से होती आई है। लेकिन अब हमारे भोपाल की असली पहचान तो गड्ढों से है। जिस गली में जाइए, जिस सड़क पर निकल जाइए, हर जगह गड्ढों की कतार ऐसे मिल जाएगी, जैसे सरकार ने इन्हें मुफ्त में बाँट दिया हो।

गड्ढे अब सिर्फ गड्ढे नहीं रहे, ये तो हमारे शहर के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं। मैंने जब भोपाल की सड़कें देखीं तो पुराने ज़माने की याद ताज़ा हो गई। अब तो हालत यह है कि गड्ढे गिनते–गिनते ही थकान हो जाती है।

कभी मैंने ऊपर वाले से दुआ की थी –
“हे खुदा! मेरा शहर चाँद जैसा बना दे।”
लगता है दुआ क़बूल हो गई, मगर उल्टे तरीके से। भोपाल की सड़कें अब सचमुच चाँद की सतह जैसी हो गई हैं। चाँद के रहवासी भी अगर धरती पर नज़र डालें, तो भोपाल की सड़कों को देखकर हमें अपना भाई समझने लगें।

शहर में जगह–जगह होर्डिंग लगे हैं –
“झीलों की नगरी में आपका स्वागत है।”
मेरा सुझाव है कि इसके बगल में एक और बोर्ड लगना चाहिए –
“गड्ढों भरी सड़कों पर आपका हार्दिक स्वागत है।”

अब तो मेरे घर का पता बताना भी आसान हो गया है। किसी को रास्ता समझाना हो तो बस इतना कह दीजिए –
“भाई, बाएँ मुड़ते ही गड्ढों की लंबी कतार दिखेगी, उसके सामने ही मेरा घर है।”

एक दिन मैं छत पर बैठा गड्ढों को निहार रहा था। उनमें बारिश का पानी भरा था। तभी दिमाग़ की बत्ती जली। मैंने अपनी धर्मपत्नी को आवाज़ दी –

“सुनो जी! क्यों न हम किसान बन जाएँ?”

पत्नी मुस्कुराई और बोली –
“आपकी उम्र साठ की हो गई है। हमारे पास खेत कहाँ हैं, किसान कैसे बनेंगे?”

मैंने सड़क के गड्ढों की ओर इशारा किया और बोला –
“लो जी! खेत तो यही हैं। इन गड्ढों में धान बो देंगे। चावल की खेती करेंगे। चावल बेचकर खूब पैसा कमाएँगे। ऊपर से प्रधानमंत्री जी हर साल किसानों के खाते में पैसे भी डालते हैं। ऐसे एक तीर से दो निशाने हो जाएँगे।”

भोपाल के लोग अब गड्ढों को इतना चाहने लगे हैं कि उन पर शायरी और गाने भी बनने लगे हैं। एक शायर ने तो खूब लिखा है –

“तेरे गड्ढों में ऐसी गहराई है,
मेरे दिल की हालत पर छाई है।”
✍️ मोहम्मद जावेद खान

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