Wednesday, 19 November 2025

रेजांगला की खूनी बर्फीली चोटी और महानायक शैतान सिंह का स्वर्णिम इतिहास- डॉ दिलीप कुमार सिंह

रेजांगला की खूनी बर्फीली चोटी और महानायक शैतान सिंह का स्वर्णिम इतिहास- डॉ दिलीप कुमार सिंह 


मेजर शैतान सिंह 

          डॉ दिलीप कुमार सिंह 



वर्ष 1962 का समय था चीन और भारत की शत्रुता चरम पर थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू की ‌ आत्म मुग्धता और तिब्बत के सर्वोच्च धर्म गुरु दलाई लामा को भारत में शरण देने के कारण हिंदी चीनी भाई-भाई नारा चकनाचूर हो चुका था और चिन्ह भारत को सबक सिखाने के लिए पूरी तरह तैयार था।‌ भारत के विदेशी मित्र देशों और गुप्तचर तंत्र ने इस भयानक खतरे का संकेत भी किया लेकिन नेहरू अपनी ही धुन में मस्त रहे और कहते रहे कि चीन ऐसा कभी नहीं कर सकता है। 

अंत में वही हुआ जिसका डर था नेपाल से लेकर लद्दाख तक चीन ने नवंबर 1962 में बहुत भयानक आक्रमण कर दिया पूरी तरह से निश्चित भारतीय सरकार और गोला बारूद की कमी से जूझ रही भारतीय सेनाएं दोनों ही चकरा गई। यह एक ऐसा रक्त रंजित युद्ध था जिसमें हजारों भारतीय सैनिकों को बिना किसी कारण के हथियारों और उचित नेतृत्व के अभाव में बलिदान होना पड़ा लेकिन अपना खून पर्वत शिखर पर बह कर उन्होंने देश की रक्षा किया अन्यथा चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश को पूरी तरह कब्जा कर लिया होता इस युद्ध की ऐसी-ऐसी गाथाएं हैं जो विश्व इतिहास में सुनहरे युद्ध कौशल के रूप में अंकित हैं जिसमें सबसे बड़ी ‌ महागाथा मेजर शैतान सिंह भाटी उनकी कुमाऊं बटालियन के सैनिकों और रेजांगला की चोटी की है।

17 नवंबर को गर्व से भरे चीन ने घोषणा किया कि वह तीन दिनों के अंदर की छोटी को पार कर अपनी चाय सुशील में पियेंगे जिस गति से भारत की हर हो रही थी और चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश और अक्षय चीन और लद्दाख पर कब्जा कर लिया था उससे यह असंभव भी नहीं लगता था। लेकिन चीन और त्रिशूल के बीच में परमवीर मेजर शैतान सिंह तैनात थे जिनको पर कर पाना चीन और चीनी सेवा के लिए असंभव था। 

18 नवंबर को 2000 से अधिक चीनी सैनिकों ने सुबह 5:00 बजे ही रेजांगला की छोटी सी भारती सेना की चौकी पर धावा बोल दिया उनका यह विचार था कि 10 15 मिनट में चौकी कब्जा करके हुए आगे कश्मीर की तरफ बढ़ जाएंगे। क्योंकि उसे चौकी पर केवल 120 भारतीय सैनिक 13 में तैनात थे जिनका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे और ब्रिगेडियर ‌ रैना का आदेश था की आखिरी गोली तक आखिरी जवान लड़ते रहे स्थिति बड़ी विषम थी क्योंकि भारत के सैनिकों के पास बहुत गिनी चुनी बंदूके और कारतूस थे खाने पीने की सामग्री भी नहीं थी।

ऐसे में महानायक परमवीर शैतान सिंह ने सभी सैनिकों को एकत्र कर एक निर्णय लिया और कहा जो भी लौटना चाहे वह लौट जाए और जो बचे वहां आखिरी गोली तक चीन के खूंखार सैनिकों का सामना करें‌ लेकिन एक भी सैनिक वापस जाने को तैयार नहीं हुआ। ‌ इस पर मेजर शैतान सिंह ने सूबेदार रामचंद्र यादव और पांच अन्य सैनिकों को पीछे जाकर उनकी कल्पना से परे रक्त रंजित महान युद्ध के इतिहास को बताने के का आदेश दिया बाकी 114 सैनिक अपने प्राण का मोह छोड़कर एक तरफा भयानक युद्ध में जी जान से जुट गए 

5:00 चीन की पहली टुकड़ी की जो सेना की बाढ़ आई उसकी पूरी तरह से धराशाई कर दिया गया‌ इस पर चीन की सेना आश्चर्यचकित हो गई की 2000 से अधिक सैनिकों से 120 सैनिक इतने बहादुरी से कैसे लड़ सकते हैं ।

इसके बाद सुबह 5:40 पर शून्य से 15 डिग्री नीचे तापमान में 16000 फीट से अधिक रेजांगला की चोटी पर मेजर शैतान सिंह ने सभी सैनिकों को फैलाकर अदभुत व्यूह की रचना की और चारों तरफ से गोली वर्षा करने का आदेश दिया और एक-एक गोली पर चीन के सैनिकों का नाम लिखने को कहा‌ इससे एक भी गोली बर्बाद ना हो और खुद वह एक खाईं है दूसरी खाई तक जाकर अद्भुत वीरता के साथ लड़ते रहे।

चीन की दूसरी टुकड़ी को भी भारत वालों ने मार गिराया लेकिन इसी बीच लगभग सारे भारतीय सैनिक मारे जा चुके थे तीन-चार सैनिक बचे थे जिनका नेतृत्व परमवीर मेजर शैतान सिंह कर रहे थे । मेजर शैतान सिंह हर खंदक में जाकर गोलियां चलाकर ऐसा अद्भुत कारनामा किया  कि चीन की सेना चक्कर में पड़ गई। उनको यह समझ में आया कि हमने या तो गलत संख्या का आकलन किया या पीछे से भारत की टुकड़ियां और भी आ गई हैं और वह डर गए ।


इसी बीच एक खाई से दूसरी खाई में जाते समय दुर्भाग्य से मशीन गन की पूरी की पूरी वर्स्ट फायर मेजर शैतान सिंह के पेट में लगी उनका पेट फट गया और आंते बाहर निकल गई यह देखकर बच्चे हुए तीन-चार सैनिक हाहाकार कर उन्हें बचाने दौड़े तो मेजर ने उन्हें खाई में छिपकर लड़ने का आदेश दिया। फिर भी सूबेदार रामचंद्र यादव उन्हें खाईं के अंदर खींच कर ले गए जहां उन्होंने बाहर निकल चुकी आंतों को कपड़े से बांधा और लड़ने लगे। इसी बीच सूबेदार रामचंद्र ने देखा कि उनका सारा शरीर गोलियों से छलनी हो गया था और एक हाथ भी ना काम हो गया था उन्होंने तत्काल रामचंद्र यादव को वापस जाकर सारी स्थिति ब्रिगेडियर को बचाने का आदेश दिया और अपने पैरों से मशीन गन चलाने लगे। अपने मेजर को इस हालत में छोड़कर आने का मन रामचंद्र यादव को नहीं हुआ लेकिन आदेश का पालन भयंकर कष्ट के साथ उन्हें करना ही पड़ा। 


इधर गोली बरसा बंद नहीं होने पर चीन की सी बुरी तरह निराश हो चुकी थी और पूरे कश्मीर को जीतने और त्रिशूल में चाय पीने का अपना इरादत बीच में ही छोड़कर भयभीत होकर भी आप वापस चले गए उनके भी 1300 से अधिक सैनिक मारे गए थे जो पूरी भारतीय सीमा में चीन भारत युद्ध में नहीं मारे गए थे उन्हें लगा कि यदि आगे बढ़ेंगे तो बचे हुए लोग भी मार डाले जाएंगे  ‌ इस प्रकार भारत के भूभाग त्रिशूल में चाय पीने का चीन की सेवा का सपना धरा का धरा ही रह गया ।इधर चीनी सैनिक पीछे मुड़े उधर अंतिम सैनिक के रूप में ट्रिगर पर पर दाबे मेजर शैतान सिंह की अंतिम सांसें थम चुकी थी ‌ मेजर की परम वीरता अद्भुत युद्ध कौशल और रणनीति देखकर एक-एक सैनिक ने उनका अनुकरण किया और अपना बलिदान देकर संपूर्ण कश्मीर भारत के हाथ से जाने से बचा लिया। 

सरकार और उसके तंत्र के द्वारा 13 कुमाऊं बटालियन जिसका नाम चार्ली कंपनी था के ऊपर तरह-तरह के आरोप लगाए गए समाचार पत्रों में भी ऐसे ऐसे समाचार पत्र  लिखे गए जिनका लिखना भी इन महान वीर सैनिकों का अपमान है। कितने लोगों ने तो यहां तक लिख डाला कि मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी डर के कारण भाग गई और कहीं छुप गई है। पूरे 3 महीने के बाद कुछ चरवाहे उधर अपनी भेद लेकर निकले तो उन्होंने बर्फ में 114 कंकाल देखे किसी के हाथ में ग्रेनेड रखा हुआ था तो किसी की उंगली ट्रिगर पर थी तो कोई गोला फेंक रहा था जबकि मेजर शैतान सिंह के पैर की उंगली उनकी मशीनगन पर जम गई थी‌ इसके पहले जब बच्चे हुए रामचंद्र यादव और पांच सैनिकों ने कल्पना के परे रोमांचकारी इस महान भीषण युद्ध का वर्णन किया तो लोगों ने उसको काल्पनिक कहानी मान लिया था‌ और सोच रहे थे कि खुद को पाक साफ बनाने के लिए उन्होंने एक झूठी युद्ध की कहानी का निर्माण किया है। जैसा होना वास्तव में संभव है। 

बाद में चीन के युद्ध को लेकर बहुत बवाल मचा‌ और नेहरू की अनगिनत भूलों और गलतियों की तरह इस युद्ध का भी खामी आज भारत को भुगतना पड़ा अरुणाचल प्रदेश जिसे नेफा कहते थे और लद्दाख जो आज जम्मू कश्मीर है का लाखों वर्ग किलोमीटर भाग चीन ने जबरदस्ती कब्जा कर लिया और भारत के हाथ से कैलाश मानसरोवर सहित काफी भूभाग निकल गया। बाद में असली कहानी आने पर मेजर शैतान सिंह को कृतज्ञ देश में याद किया और उन्हें दिवस होकर नेहरू सरकार को परमवीर चक्र देना पड़ा बाकी महान अन्य सैनिकों को भी महावीर और वीर चक्र दिया गया मेजर शैतान सिंह के बलिदान दिवस 18 नवंबर को सत्ता पक्ष और विपक्ष के किसी भी राजनेता द्वारा उनको याद ना किया जाना उनको श्रद्धांजलि ना देना और पाठ्य पुस्तकों में उनको न पढ़ाना केवल मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी का नहीं संपूर्ण देश और सैनिकों का अपमान करने से अधिक है। जीवित ही इतिहास बन चुके परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह भाटी और उनकी संपूर्ण कुमाऊं बटालियन को हम संपूर्ण भारतवासी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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