कृष्ण प्रेमगीता
( भाग ५५ )
२७/४/२२
कृष्ण अपनी रानियों को कुटिला का कुटिलता भरा प्रसंग सुना रहे है..... सारी रानियां एकाग्रता से सुन रही है.... जामवंती बीच में ही बोलती है... पश्चात आपने क्या किया नाथ....?? उस कुटिला को अच्छे से सिख देनी चाहिए थी.... कुटिल कही की..... कृष्ण जामवंती के इस भोलेपन से प्रसन्न होते है.... कृष्ण हसते हुए कहते है.... सिख ही नही अच्छी तरह की सिख मिली थी और साथ ही साथ उसके अभिमान को चकनाचूर कर दिया था.... कैसे नाथ सुनाए जामवंती बोली..... कृष्ण कहते है उसकी सारी बातों को क्षमा कर दिया जाता पर इस बार अभिमान वश कुटिला ने हमारी प्राण प्यारी किशोरी के लिए कटु शब्द कहे थे.... अब तो वो क्षमा पात्र थी ही नहीं....एक बार मुझे बुराभाला कहती तो क्षमा मिल भी जाती पर उसने तो मेरे अस्तित्व को कलंकित करने की चेष्टा की थी.... अब उसे अपने कर्म का फल भुगतना ही था.... समय था लीला दिखाने का.... तो दूसरे ही दिन मुझे बुखार आ गया.... पूरा शरीर अंगार की तरह जल रहा था.... मैया व्याकुल परेशान हो गई.... वैद बुलाए दवाई दी पर कोई असर नहीं था.... अब मैया का धैर्य टूट गया मैया रोने लगी.... नंद बाबा मथुरा बड़े वैद को बुलाने स्वयम गए थे.... राहिनी मैया मेरे तन को ठंडे पानी से पोंछ रही थी की थोड़ा ताप काम हो जाए पर नही..... तन तो तपता ही जा रहा था... अब मुझे ग्लानि आ गई थी.... मेरी प्रकृति ठीक नही ये समाचार पूरे ब्रज में हवा की तरह फैल गया.... सारे व्रज वासी नंदभवन आ पहुंचे अपने कन्हैया को क्या हुवा देखने.... सब मेरी हालत देख दुखी व्याकुल हो रहे थे.... कोई गोपी भस्म लगा रही थी.... तो कोई गो मूत्र छिड़क रही थी.... कोई गोपी काला धागा बांध रही थी तो कोई नजर उतार रही थी.... कोई भगवान को प्रार्थना करने अनुष्ठान में बैठी ... तो कोई महर्षि के पास गई उपाय पूछने..... मैया तो बस रोई जा रही थी उनका हृदय तो कितनी पीड़ा सहे रहा था मुझे ऐसे देख कर.... मैया बोल रही थी कुछ भी करो मेरे कान्हा को ठीक करो... नारायण मेरे लाल को ठीक कर दो मैं हजारों गौ का दान करूंगी..... मैया का हृदय है.... बोलती जा रही थी मेरा सब कुछ लेलो पर मेरे कन्हैया को ठीक कर दो... गोपियां मैया को संभालने का प्रयास कर रही थी... मैया रोते हुए कहती मैं क्या करू कहा जाऊ... किससे सहायता मांगू.... कोन मेरी सहायता करेगा..... अब लीला का सूत्रधार तो मैं खुद ही था.... मैने मन ही मन नारद जी को कहा आइए मुनिवर अब आप का कार्य है.... नारद जी तुरंत प्रकट हुए व्रज में नारायण नारायण करते... मैने कहा अरे ऐसे नही साधु भेष बनाकर आइए.... तो नारद जी बोले जैसी आज्ञा प्रभु... उन्होंने तुरंत अपना भेष बदला और बड़ी सी दाढ़ी.... लंबी लंबी जटाये.... भगवे रंग के वस्त्र.... एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमण्डलु लिए हर हर महादेव कहते वो नंद भवन के आंगन में खड़े हो आवाज लगाने लगे.... सब की दृष्टि उन साधु पर पड़ते ही सब को लगा ये नारायण की कृपा है जो ये महात्मा यहां तक आए..... दो गोपो ने जाकर उनको नंदभवन में लाया..... उनका स्वागत किया मैया उनको प्रणाम कर रोने लगी महाराज मेरा नीलमणि....... कुछ बोल नही पाई मैया हिलकियो से रूदन करने लगी.... तभी वो साधु महाराज बोले आप के पुत्र को बड़ी जटिल कुटिल बाधा हो गई है..... कृष्ण मुस्कुराते है.... मैं तो मन ही मन हस रहा था.... मैया उनको बोली महाराज कृपा करे मेरे नीलमणि को ठीक करने का उपाय बताए मैं सब करूंगी..... तब गोपियां बोली हम सब करेंगे बस आप उपाय बताए महाराज.... वो साधु महाराज कुछ सोचते हुए बोले नही बहुत कठिन प्रतीत होता है.... मैया बोली आप बताए मैं अपने प्राण देकर भी मेरे लाला को स्वस्थ करूंगी..... तब साधु महाराज ने कहा आप उपाय नही कर सकती है व्रजरानी... आप मां है आप को नही करना है.... मैया दुखी हो कर बोली फिर कोन कर सकता है..... सारी व्रज गोपियां एक स्वर में बोली हम करेंगी... हम करेंगी आप बस बताए क्या करना है मुनिवर.... अपने प्राण देकर भी हम कन्हैया के प्राण बचाएंगी..... मैने मन ही मन कहा नारद जी अब बता ही दो .... नारद जी मन ही मन मुझे उत्तर देते है .... जी प्रभु जैसी आपकी आज्ञा..... वो साधु फिर जोर से हर हर महादेव कहते हुए अपनी आंखे बंद करके ध्यान में बैठ गए..... सब की दृष्टि उन्हीं पर टिकी हुई थी..... थोड़े समय बाद उन महात्मा ने अपनी आंखे धीरे से खोली .... फिर गंभीर स्वर में कहने लगे.... इस बालक तो जो बाधा हुए है ये बोहोत ही जटिल कुटिल है उससे छुड़ाने के लिए हमें बहुत बड़ी शक्ति की आवश्यकता है.... परम शक्ति... पवित्र शक्ति.... कुछ सोचते हुए रुकते है महात्मा फिर कहते है.... ऐसा कोई जिसमे अलौकिक शक्ति हो.... जैसे कोई पतिव्रता नारी ..... सब की और दृष्टि घूमाते है फिर कहते है .... है कोई पतिव्रता नारी व्रज में.... भोली भाली गोपियां तुरंत कहती है हा हा मुनीवर हमारे व्रज में कुटिला काकी है जो पतिव्रता है.... महात्मा प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहते है तो हो गया काम... जाओ उनको बुला कर लाओ... यशोदा मैया कहती है जाओ री जाओ शीघ्र करो... कुटिला काकी को बुला कर लाओ... मेरे लाला की हालत मुझसे देखी नही जाति.... फिर रोने लग जाती है..... रोहिणी मैया संभालती है... कुछ नही होगा हमारे कन्हैया को दीदी आप निश्चिंत रहे अब तो उपाय भी बता रहे है ना महात्मा जी... नारायण की कृपा है दीदी मत रोईए.......
( शेष भाग कल )
कृष्ण की दिवानी कृष्णदासी
: आज के विचार
( "श्रीकृष्णचरितामृतम्" - भाग 81 )
!! वत्सासुर का उद्धार !!
16, 6, 2021
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कन्हैया खेल रहे हैं वृन्दावन में .........."वत्सपाल" बनकर आये हैं आज .....बछड़े बछियों को चरानें के लिये लाये हैं ।
अब वृन्दावन में बछड़े चर रहे हैं ..........उनके गले में माला अभी भी है ......न तो इन्होनें उसे तोड़ी है ........न पुष्पों का खानें का प्रयास ही किया है .......कन्हैया नें पहनाई है क्यों हटायें ।
उधर कन्हैया खेल रहे हैं .........आँख मिचौली खेल रहे हैं ।
अब कन्हैया को छुपना है .............पर ये छुप सकता है क्या ?
इसका तेज इसे किसी से भी छुपनें देगा ?
ये जिधर छिपते हैं .......उधर ही पक्षी बोलना शुरू कर देते हैं ......कपि सब उधर ही प्रसन्नता से दौड़ पड़ते हैं......झेंप कर बाहर आना ही पड़ता है कन्हैया को ।
मनसुख नें कहा था......"मैं लाठी चलाना सिखाऊंगा".......ये बात एकाएक स्मरण हो आती है कन्हैया को ।
मनसुख ! लाठी चलाना सिखा ! कन्हैया को भी विविध खेल चाहियें .......एक से ये बहुत जल्दी बोर भी हो जाता है ।
"ठीक है...ये ले लाठी"......मनसुख नें अपनी लाठी कन्हैया को दी ।
अब ? लाठी पकड़कर कन्हाई नें पूछा ।
मुझें मार ! मनसुख बोला ..............
लाठी देखी कन्हैया नें ......फिर अपनें प्रिय सखा मनसुख को देखा ........
अरे अरे ! ये तो रोनें लगा ............मैं तुझे क्यों मारू ? तू तो मेरा सखा है ! हये ! कितना प्यार करता है ये अपनें लोगों से ।
तुझे सीखनी है या नही ? मनसुख को गुस्सा आरहा है अब ।
पर मैं तुझे लाठी नही मार सकता ।
आँसुओं को पोंछते हुये कन्हैया नें कह दिया ।
कन्हैया ! कन्हैया। ! उधर जोर से चिल्लाया सुबल सखा ।
हाँ ........सब सखाओं के साथ कन्हैया सुबल के पास पहुँचे। ।
देख तो ये बछड़ा ! कितना सुन्दर है ना ? सुबल नें उस बछड़े की पीठ में हाथ फेरते हुए कहा ।
पर सुबल ! ये हमारा बछड़ा नही है.......ये तो किसी और का है !
मनसुख नें आगे बढ़कर बछड़े को देखा .........हाँ ....इसके गले में कन्हैया की पहनाई माला भी नही है........ये आया कहाँ से ?
सब सखा सोच रहे हैं .............
तभी कन्हैया नें देखा........उस बछड़े की आँखों में देखा......सब समझ गए.।.......ये नही समझेंगें तो कौन समझेगा ।
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तात ! बात है त्रेता युग की ..............मुर नामक राक्षस का बेटा था प्रमिल, वशिष्ठ जी की गाय नन्दिनी को माँगनें चला था ये .......
उद्धव कहते हैं ........तात ! विश्वामित्र कहते रह गए "नन्दिनी गाय" मुझे दे दो ......पर वशिष्ठ जी नें दी नही ........क्यों की ये समस्त कामनाओं की दात्री है , और वशिष्ठ जी को लगा था कि सृष्टी में ब्रह्मा को ललकारनें वाले विश्वामित्र कहीं नन्दिनी गाय का दुरूपयोग न करें । ........फिर इस असुर को अपनी गाय वशिष्ठ जी कैसे दे देते ।
छल किया इसनें ..........ब्राह्मण का रूप धारण करके माँगनें चला गया वशिष्ठ जी की कुटिया में ............
मुझे नन्दिनी गाय दे दें.........इससे मेरा परिवार पल जाएगा और मैं तप साधना निश्चिन्त होकर कर सकूँगा !
वशिष्ठ जी कुछ बोलते उससे पहले ही नन्दिनी गाय बोल पडीं .........तात ! बोलीं नहीं ....सीधे श्राप ही दे दिया ........
दुष्ट ! तू असुर होकर भी ब्राह्मण का भेष धारण कर रहा है ...छल कर रहा है .....तू जा बछड़ा हो जा ।
नन्दिनी गाय के श्राप देते ही , वो तो उसी समय काला बछड़ा हो गया ।
ऋषि वशिष्ठ जी के चरणों में प्रणाम किया ......नेत्रों से अश्रु टप् टप् बह रहे थे.....नन्दिनी गाय को भी प्रणाम किया उस बछड़ा बनें असुर नें ।
जाओ ! गोपाल ही तेरा उद्धार करेंगें ..........वशिष्ठ जी के मुख से निकल गया .........गोपाल ? नन्दिनी नें वशिष्ठ जी की ओर देखा ।
हाँ .....मेरे राघव गोपाल बनकर आयेंगें द्वापर में ....वही इसका उद्धार करेंगे ।
उद्धव कहते हैं ........तात विदुर जी ! वही बछड़ा बना असुर पृथ्वी में घूमता रहा .......पर द्वापर में इस वत्सासुर को कंस मथुरा में ले आया था......और आज कन्हैया को मारने के लिये कंस नें इसे भेज दिया वृन्दावन. .......इस बात को कन्हैया समझ गए थे ।
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कन्हैया उस बछड़े को देख रहे हैं ..........पर ये क्या ! उसनें अपनी लात से कन्हैया को मारने का प्रयास किया ...... कन्हैया नें तुरन्त पूँछ समेत उसके पैरों को पकड़ा .......और जोर से घुमानें लगे .......स्वयं भी घूमनें लगे तीव्रता से ।
"ये तो दैत्य है" ........सब बालक चिल्लाये ।
पर कन्हैया उसे घुमा रहे हैं.............और स्वयं भी विद्युत गति से घूम रहे हैं ।.........पर ऐसे कब तक घुमाएगा हमारा कन्हैया ?
सखाओं को कष्ट होनें लगा ......"छोटा है हमारा कन्हैया " ।
किन्तु कन्हैया नें भी कुछ समय बाद ही उसे घुमाकर दूर फेंक दिया था .........एक विशाल बरगद के पेड़ से वो असुर टकराया और वर्षों पुराना वो पेड़ टूटकर गिर गया - और..........
तात ! वत्सासुर का ये शरीर शान्त हो गया.....उसका उद्धार हो गया ।
वशिष्ठ जी स्वयं आकाश में उपस्थित थे उस समय ..अपनी नन्दिनी गाय के साथ........उन्होंने नन्दनन्दन के ऊपर पुष्प बरसाते हुये आनन्द से यही कहा था ......
नन्दनन्दन ! आपकी जय हो ! जय हो !
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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