Thursday 4 May 2023

उम्र देने लगी रोज इशारे कुछ न कुछ*!*अब दुसरे सफर के लिए सामान समेटा जाए* ?

*सम्पादकीय*
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*उम्र देने लगी रोज इशारे कुछ न कुछ*!
*अब दुसरे सफर के लिए सामान समेटा जाए* ??
 आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर! उम्र  निरन्तर अपने आखरी पड़ाव के तरफ जीवन की तमाम विसंगतियों को समेटे शनै: शनै: आगे बढ़ती रहती है।उसका कहीं नही ठहराव ! वो वहीं रूकती है जहां आखरी है पड़ाव ? प्रकृति ने जिस मानवी आकृति को जीवन्त बनाकर इस नश्वर संसार में रहने की स्वीकृति दिया वहीं मानव उसी प्रकृति के परिधान को विकृत कर अपने उत्थान का साधन बनाने लगा! नतीजा सामने है बे मौत रहा है आदमी!कभी भयानक जलजला तो कभी भयानक ताप ! हर जगह पाप ही पाप!फिर कैसे कोई सोच रहा है जीवन कट जायेगा बिना अभिषाप!बदलाव की बहती सुरसरी में ठहराव आ गया है! धरणी धरा से हरियाली गायब है! कंक्रीट के जंगलों की बहुतायत है!जलीय संसाधनो पर इन्सानी कब्जा है!प्रकृति की धरोहरों का लगातार क्षरण हो रहा है।गजब की हो गयी है सोच इन्सानी! आज खत्म हो रहा धरती से जीवन के लिए अमूल्यवान पानी!कभी इसी धरती पर लोग सौ साल‌ का सफर प्रकृति के मुस्कराते वातावरण में गुजार देते थे!आज बियाबान उदास मंजर में आधी उम्र का सफर भी लग रहा है जहर! आचार ,बिचार ,संस्कार सब बदल गया! खेत खलिहान घर मकान के साथ ही बदल गया गांव और शहर!परिवर्तन के इस आवरण में सभ्यता का चीर हरण हो रहा है। सम्बन्ध अब अनुबन्ध पर चल रहा है!रीस्तो का तिजारत हो रहा है!लाज लिहाज खत्म होने का परिणाम है हर घर में ‌महाभारत हो रहा है!अधर्म के राह पर बिना परवाह अथाह उम्मीदों के संयोजन के साथ जिज्ञासा को लिए स्वप्नों की उड़ान में योजन योजन कोस की छलांग लगाते इन्सान इतना बेईमान बन रहा है की उसको यह भी नहीं पता है जो आज बो रहा है उसकी फसल  पुष्पित पल्लवित होकर एक दिन उसको उसी तरह उसकी नसीब का हिस्सा बनेगी! वातावरण में अजीब किस्म का बदलाव है! हर आदमी के दिल में दर्द है! मतलबी रिश्तों का लगातार रिस रहा घाव है! बेरहम जमाने में मरहम की उम्मीद बे मानी हो गया है! स्वार्थ में हर आदमी बे पानी हो गया है!मतलब भर साथ है! फिर जरूरत पूरा होते ही कदम कदम पर कर रहा उत्पात है।गुजरे जमाने में जिस ताना बाना के शानिध्य में सम्वृध संयोजन को सम्हालते परिपक्व सोच के साथ एक बृहद संयुक्त परिवार को समेटे समाज में प्रतिष्ठा की पराकाष्ठा को पार करते आखरी सफर तक सम्हाल का रखने वाले मुखिया का वजूद आज के परिवेश मे खत्म हो गया!   अब  खत्म हो गया संयुक्त परिवार,है!स्वार्थी आवरण में हर सुबह शाम हो रहा आपस मे तकरार!मतलब परस्ती का यह आलम है कि जिस औलाद को  खून पसीना से सींचकर समाज में रहने लायक मां बाप ने बनाया वहीं जब कामयाबी की मन्जिल पर पहुंचा तब अपनों से बेगाना बना उस कठिन राह के पथिक को ही ठुकरा दिया जिसने जीवन भर अपना सुख त्याग औलाद के अनुराग में ब्यथित रहकर भविष्य का सपना संजोता रहा!मगर विकृत समाज में एकाकी परम्परा का सम्वर्रधन जिस तरह का परिवर्तन दिखा रहा है उसका शानिध्य पाकर अब केवल घुटन में जीवन जीने का चलन परम्परा में शामिल हो गया है! वक्त है साहब बदलता जरुर है!यह सदियों से किस्सा मशहूर है।यह तो माया लोक है!यहां सबकुछ जान समझ कर भी वह करना पड़ता है! जिसका परिणाम कभी सुखद नहीं होता? फर्ज के कर्ज में दबा आदमी सारा दर्द सहता है अपनों के लिए दिन-रात सोचता है! लेकिन हकीकत को देखकर मन ही मन उपेक्षा के टीसते दर्द से कराहता है? आहत मन से उस वक्त बहुत टूट जाता है जब जिन्दगी का ख्वाब तिरस्कार की हवा में भरभरा कर गिर जाता हैं। सोच के समन्दर में जब चाहत की डूबती कश्ती पर लदा ज़िन्दगी का अरमान मतलब की उठती लहरों के बीच गर्त होता है तब साहिल पर बैठा मजबूर मालिक केवल आहें भर दिल मसोस कर अफसोस कर पश्चाताप का आंसू रोता है?उसके आंख के सामने ही सब कुछ खत्म हो जाता है मगर कुछ नहीं कर पाता! आज हालात बहुत बदल गया है! इस जहां में कोई नहीं सगा है! जिसको अपना समझा उसी ने ठगा है? कभी कहावत थी की बिच्छू की मौत अपनों की बेवफाई से होती है! आज ठीक वही हालत इन्सानी बस्ती में हो गया है!भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश में कहा भी है कर्म करो परिणाम की चिन्ता न करो! कोई न अपना है न पराया है?जो आज अपना है वह कल दुसरे का था! फिर कैसा मोह! लेकिन विछोह के इस मतलबी संसार में माया की घनघोर छाया मृग तृष्णा की तरह 
दृष्य़ उपस्थित कर अपनों के लिए 
समर्पित हो जाने को मजबूर कर देती है।जो इससे परे रहे वो तो परमधाम के अनूभागी बनकर परम सत्ता के अनुरागी बन गये! जो नहीं समझे वे इस नश्वर संसार के चराचर जगत में अनगिनत कष्ट का सहभागी बन आखरी सफर में जब आशक्ती के वशीभूत होते हैं तब मन वैरागी सोच के साथ आंसु बहाता है!लेकिन उस दौर में कोई साथ निभाने वाला नहीं होता।कोई नहीं अपना है! खुद का कर्म ही भोगना है। जरूरत भर का ही सम्बन्ध है फिर सब कुछ सपना है! धर्म के राह पर चलकर मानव कल्याण के लिए जब तक सांसें चल रही है समर्पण के साथ मन को श्री के चरण में अर्पण करें। जनकल्याण का सह भागी बने कुछ साथ नहीं जायेगा! 

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