Saturday 10 June 2023

मोदी जी !अजमेर तो आए मगर उनका चमत्कारी व्यक्तित्व नज़र नहीं आया??‼️*😟_*क्या कर्नाटक उनके दिलोदिमाग से अभी तक निकल नहीं पाया है?*_🤔 *(एक मनोवैज्ञानिक आंकलन)* *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*

 *‼️मोदी जी !अजमेर तो आए मगर उनका चमत्कारी व्यक्तित्व नज़र नहीं आया??‼️*😟

_*क्या कर्नाटक उनके दिलोदिमाग से अभी तक निकल नहीं पाया है?*_🤔
   *(एक मनोवैज्ञानिक आंकलन)*

              *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*

                        *मोदी जी अजमेर आए और चले गए। जी हाँ, आंधी की तरह आए तूफ़ान की रफ़्तार में चले गए। उनके जाने के बाद मैंने उनकी इस बार की यात्रा पर मनन किया।इस यात्रा से भाजपा को होने वाले लाभों का अध्ययन किया। मनोवैज्ञानिक तरीक़े से कई तथ्य और सत्य सामने आए।*🤷‍♂️
              *यह मेरा निजी आंकलन है इसे ज़ियादा गंभीरता से लेकर अपनी कंचन काया को क्लेश न दें। मैं जानता हूँ कि भाजपा के नेताओं के पेट में भी जल्दी गैस बनती है दिमाग़ में भी। गैस का निस्तारण जल्दी नहीं होने से जिस्म को परेशानी भी बड़ी होती है।*🤪
                      *ख़ैर! सबसे पहले तो मोदी जी की कायड़ जनसभा में जुटी भीड़ पर बात हो जाए। भाजपा के नेताओं ने शुरुआत में दावा किया था कि चार लाख लोग सभा में भाग लेंगे । फिर दावा दो लाख में सिमट गया। पंडाल तो चालीस हज़ार लोगों के लिए ही बनाए गए थे। मगर पंडाल में तो भीड़ सिर्फ़ सामने वाले हिस्से में सिमट कर रह गई। आस पास के पंडालों में लगी खाली कुर्सीयाँ लोगों को बुलाती रह गईं। ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है मगर ख़ाली कुर्सियां टैंट हाउस वालों का किराया होता है।*😇
             *...तो मोदी जी की सभा में ज़ियादा से ज़ियादा एक लाख लोग मौजूद रहे। ये ज़ियादा से ज्यादा हैं, वरना लोग तो पचास हज़ार ही बता रहे हैं । इनमें व्यवस्था संभालने वाले भी शामिल हैं।*🙋‍♂️
                *इस पर भी यदि भीड़ जुटाने की सुपारी लेने वाले नेता कहें कि भीड़ दस लाख थी तो भी मुझे उनकी गणना पर आश्चर्य नहीं होगा।*
                  *मोदी जी का भाषण इस बार उनके पूरे राजनीतिक जीवन का सबसे शीतल भाषण रहा। उनके चेहरे पर न तो कोई आत्मविश्वास था न आकर्षण। शीतल अंदाज़ जैसे बर्फ़बारी हो रही हो। वो जिस अंदाज़ के लिए मोदी जी जाने पहचाने जाते हैं वह कहीं किसी भी मुद्दे को उठाते नज़र नहीं आए। मुझे तो यहां तक लगा जैसे बड़े बेमन से उनको भाषण देना पड़ रहा हो।*😔
                  *नौ साल की उपलब्धियों पर बात करने आए थे और कांग्रेस की नों सौ कमियां गिनाने में ही उनका भाषण ख़त्म हो गया। लगा ही नहीं कि देश के प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हों। उनसे बेहतर भाषण तो उनके आने से पहले अन्य भड़ास पीड़ित नेताओं ने ही दे दिए।*🙄
                     *मुझे लगता है कर्नाटक की क़रारी हार ने मोदी जी का मनोबल तोड़ दिया है या उनके आत्मविश्वास में कोई कमी आ गई है। दर्शकों के दिल मे वह पहले जैसा असर नहीं छोड़ पाए। मोदी जी मंच पर हों तो मंच के नीचे उत्साही दर्शक नारे लगाते हैं तालियाँ बजाते हैं। मोदी जी जनता से सवाल पूछ कर वातावरण को जीवंत बना देते है मगर इस बार ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ। कांग्रेस को गालियाँ देने में ही उनका सारा आकर्षण समाप्त हो गया।*😴
                   *मंच पर नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ का क़ब्ज़ा रहा। उन्होंने जो चाहा किया और करवाया। राजस्थान प्रभारी अरुण सिंह तक उनके सामने अपने सम्मान को तरसते देखे गए। प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी की मौज़ूदगी तो नज़र आई मगर उनका राजनैतिक क़द कहीं नज़र नहीं आया। आगे पीछे दुम हिलाना जैसा मुहावरा ही नज़र आता रहा।*🤪
                   *मंच पर कौन कौन बैठेगा ❓️कहां बैठेगा❓️इसकी रूपरेखा आयोजकों के हाथ मे नहीं होती। इसे पी एम हाउस तय करता है ।यह भी अच्छा हुआ वरना प्रदेश स्तर पर तो जो सूची भेजी गई थी उनमें वसुंधरा राजे सहित कई शीर्ष नेता ही ग़ायब थे। मोदी कार्यालय से सुरक्षा एजेंसियों को मंच के लिए जो कुर्सियां सुरक्षित की गईं उनमें वसुंधरा जी को मोदी जी की बगल में जगह दी गयी।*👍
                      *भाषण देने वालों के नाम क्यों कि प्रदेश स्तर पर तय होने थे इसलिए मोदी जी के मंच पर आने के बाद किसी भी नेता को भाषण देने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। सिर्फ़ राजेन्द्र राठौड़ ने मंच पर बोलने का ठेका ले लिया। अलका गुर्जर जो मंच संचालन कर रहीं थीं से भी माइक छीन लिया गया।*😣
                       *मोदी जी के आने से पहले जिन बड़े नेताओं ने भाषण झाड़े , उनकी फेहरिस्त में नाम जोड़ने के लिए सामने बैठी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा जी को भी आमंत्रित किया गया। प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह स्वयं उनको आमंत्रण देने उनके पास आए।समझदारी दिखाई वसुंधरा जी ने कि उन्होंने भाषण देने से मना कर अपनी इज़्ज़त बचा ली। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री का यदि भाषण ही करवाना था तो बड़ी मर्यादा से मोदी जी से पहले करवाना था । उनको दुमछल्लो के साथ निबटाने की चाल तो किसी शैतान की ही हो सकती थी।साफ़ कहूँ तो थी भी। भाजपा के एक आर एस एस के पदाधिका द्वारा जान बूझ कर उनको मोदी जी के आने से पहले बुलवाया गया। वह नही  गईं यह उनकी अतिरिक्त समझदारी थी।*🙋‍♂️
                    *मोदी जी इस बार की अजमेर यात्रा में पूरी तरह ख़ामोश रहे। अपनी स्वाभाविक आदत के ख़िलाफ़।चुहलबाजी या मदारीपन उन्होंने कहीं नहीं दिखाया।*❌
                      *पुष्कर यात्रा और पूजा अर्चना के कार्यक्रम में भी उनका अंतर्मुखी व्यवहार पंडितों को आश्चर्यचकित करता रहा। सुरक्षा में जुटे अधिकारियों ने पूजा अर्चना करवाने वाले पुरोहितों को पहले से ही निर्देशित कर दिया कि आपको सिर्फ़ मंत्रोच्चारण करने हैं। मोदी जी से कोई भी अतिरिक्त बात नहीं करनी है न उनको कोई क्रिया करवाने के लिए कहना है। पण्डितों को आश्चर्य तो हुआ मगर जैसी जजमान की इच्छा!🤷‍♂️*
                *मोदी जी ने किसी भी नेता को ज़ियादा चिपकने नहीं दिया। यहां तक कि पुष्कर विधानसभा क्षेत्र जहाँ मोदी के सारे कार्यक्रम थे वहाँ के विधायक सुरेश सिंह रावत और पालिका अध्यक्ष कमल पाठक को भी भाव नहीं दिया गया।*😴
                  *दुखद बात यह रही कि पुष्कर के ब्रह्मामन्दिर में दर्शन करने के लिए मोदी जी को पिछले रास्ते (द्वार) से प्रवेश करवाया गया जो नितांत धर्म संगत नहीं। पिछले रास्ते तो चोर प्रवेश करते हैं। प्रधानमंत्री को भी यदि पिछवाड़े से मंदिर में प्रवेश करवाया जाए तो इससे बुरी बात कोई नहीं होती।मान्यता है कि मंदिर के मुख्य द्वार पर कुबेर जैसे द्वारपाल खड़े होते हैं। 👍*
                   *यहाँ एक और बात मेरे मन मे सवाल उठा रही है। जब प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में पहली बार प्रवेश किया तो उन्होंने दंडवत लेट कर साष्टांग प्रणाम किया मगर सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के मंदिर में बिना पहली सीढ़ी को नमन किए अंदर चले गए। ऐसा तो मोदी जी ने अब से पहले किसी मंदिर में नहीं किया था।*😳
                     *मंदिर के चोर रास्ते से मोदी जी को यदि नहीं ले जाया जाता तो आम लोग भी उनके दर्शन कर लेते। यहाँ तो यह हुआ कि किसी पुष्कर वासी ने मोदी जी को नहीं देखा। सबके मन की मन मे ही रह गई।😟*
                      *मज़ेदार बात तो यह रही कि सांसद भागीरथ चौधरी के साथ भी उन्होंने अपरिचित जैसा व्यवहार किया। मानो उनको पहचान नहीं पाए हों या पहली बार देखा हो।*🙄
                    *मोदी जी आए और चले गए मगर इस बार की उनकी अजमेर यात्रा यादगार नहीं रही। अजमेर पुष्कर के लिए उन्होंने कोई घोषणा भी नहीं की। ख़ास तौर से ब्रह्मा मंदिर को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकाल कर साधू सन्तों के हाथ में दिए जाने को लेकर।*💁‍♂️
                  *प्रसंगवश बता दूं कि यही स्थिति तब भी थी जब राजस्थान में भाजपा का राज्य था। तब नरसिम्हा राव तत्कालीन प्रधानमंत्री थे। उन्होंने पुष्कर यात्रा में सरकारी नियंत्रण से ब्रह्मामन्दिर को निकाल कर तत्काल संत परम्परा से मंदिर को जुड़वा दिया था। अब प्रधानमंत्री भाजपा के हैं। हिन्दू मानसिकता के भी हैं। सनातनी भी। फिर क्या हुआ कि उन्होंने इस दिशा में कोई पहल नहीं की।*😨
                  *मुझे तो लगता है कर्नाटक उनके दिलो दिमाग़ से अभी निकल नहीं पाया है।*😣

: *जन्मपत्री वसुंधरा!सचिन!और गहलोत की!*

*कौन होगा किस पार्टी का चेहरा??*

*दावे के साथ भविष्यवाणी!*

         *सुरेन्द्र चतुर्वेदी*

*कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टी आने वाले  चुनावों में किसी भी क़ीमत पर जीतने के लिए संकल्पित नज़र आ रही हैं मगर बक़ौल मेरे शेर कुछ कहूँ तो मुझे यूँ कहना पड़ेगा :-*
    *दोस्तो की साथ हैं शुभकामनाएं,*
    *फिर भी हैं तूफ़ान की संभावनाएं!*
     *मित्रों!भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में हाईकमान की इज़्ज़त दांव पर लगी है।किस पार्टी का कौनसा चेहरा मुख्यमंत्री का होगा?इसकी घोषणा की जाएगी या  नहीं?क्या पार्टी का केंद्रीय चेहरा ही चुनाव के लिए पेश कर दिया जाएगा?*
     *इसी सवाल का उत्तर है मेरा आज का ब्लॉग।इसे में अपनी 40 साल की पत्रकारिता का निचोड़ भी कहूँगा।आप चाहें तो इसे अपने रिकॉर्ड में सुरक्षित रख सकते हैं।*
    *सबसे पहले आइए कांग्रेस पार्टी की तरफ।दो टूक बात यह है कि  राजस्थान में किसी भी हाल में  सोनिया ,राहुल ,प्रियंका या ऐसा कोई शीर्ष नेता अपना चेहरा सामने रख कर चुनाव नहीं लड़ेगा।मेरा दावा है कि भले ही सचिन पायलट पार्टी में रहें न रहें!नई पार्टी बना कर कांग्रेस को धर्म धक्का दे दें!पार्टी में रह कर  गहलोत की लुटिया डुबोने पर आमादा हो जाएं!मगर पार्टी अगला चुनाव अशोक गहलोत के ही चेहरे को आगे रख कर ही लड़ेगी।सिर्फ़ गुर्जर मतों को अपने क़ब्ज़े में रखने के लिए वह सचिन के नखरे उठा रही है वरना उनको कब का पवेलियन दिखा दिया गया होता !* 
     *सचिन भी अब बहुत ज़ियादा दिनों , छिपम छिपाई का खेल नहीं खेलेंगे।वह भली भांति जान गए हैं कि कांग्रेस में रह कर वह  कभी देदीप्यमान नहीं हो सकते।हमेशा बूढ़ा सूरज उनके सामने सूर्य ग्रहण बना रहेगा।*
     *बस!पिता जी के जन्मदिन तक उनका चेहरा ग्रहण से मुक्त हो जाएगा।जितना अपमान हाई कमान के झूंठे वादे पर सहा जा सकता उन्होंने सह लिया।अब बहुत जल्दी वह नकारा निकम्मे और सौदबाज़ नहीं रहेंगे।किसी पार्टी को वह जॉइन नहीं करेंगे।पार्टी तो उनको अपना वज़ूद क़ायम रखने के लिए बनानी ही पड़ेगी।*
      *गुर्जरों के वह सर्वमान्य प्रिय नेता हैं और इसका फ़ायदा वह कभी किसी अन्य पार्टी को नहीं देंगे।अब वह किसी पार्टी के लिए इस्तेमाल नहीं होंगे बल्कि इस्तेमाल करेंगे।और इस तरह सचिन का चैप्टर यहीं क्लोज़ होता है।*
       *अब आइए भाजपा पर!भाजपा का हाईमान नहीं चाहता कि राजस्थान में मोदी के अलावा कोई और चेहरा सामने रखा जाए!जो चेहरा सामने रखा जा सकता है उसे वह रखना नहीं चाहता! न चाहते हुए भी रखना पड़ेगा यह उसकी मजबूरी है।*
    *कर्नाटक में मोदी जी को अपना चेहरा सामने रख कर क़रारी हार का सामना करना पड़ा।उनकी हनुमान चालीसा भी हनुमान जी को ख़ुश नहीं कर पाई।अब मध्यप्रदेश ! राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में उनका चेहरा  परीक्षा में झौंका गया तो पार्टी किसी भी विपरीत ख़तरे को झेल नहीं पाएगी।*
      *लिहाज़ा तय है कि किसी भी क़ीमत में भाजपा उड़ता तीर नहीं लेगी।ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को नाराज़ रख कर चुनावी मैदान में उतरने की हिम्मत उनमें शेष नहीं बची है।*
     *यहाँ आपको बता दूं कि मोदी जी और उनके सियासती जुड़वां भाई अमित शाह!  सिर्फ़ सचिन पायलट के फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे हैं।जैसे ही पायलट ने पार्टी  छोड़ी या न भी छोड़ी तो भाजपा फ्रंट पर आ जाएगी।*
      *सचिन यदि कांग्रेस  को टाटा बाय बाय करते हैं तो कर्नाटक का करंट खाए मोदी और शाह किसी स्थानीय चेहरे को ही सामने रख कर चुनाव लड़ेंगे।चेहरा अंत समय में घोषित किया जाएगा।यूँ संकेत अब भी मिल रहे हैं।*
        *सतीश पूनिया को अचानक हटाना,ज़ाहिर करता है कि वह किसी की आंखों में खटक रहे थे और उनको निकालना ज़रूरी हो गया था।उनको निकालने की सबसे बड़ी वजह वसुंधरा ही थीं।*
     *इसके बाद सी पी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया जिनको वसुंधरा अपना विरोधी  नहीं मानती।हालांकि ताज़ पोशी के बाद उन्होंने अभी तक वसुंधरा को किसी भी तरह से निहाल नहीं किया है।बस सम्मान बनाए रखा है।*
      *यहाँ एक और बात! कि गुलाब चन्द कटारिया को अचानक प्रदेश राजनीति से क्यों हटाया गया?क्यों उनको राज्यपाल बना कर राजनीतिक  रूप से अलहदा कर दिया गया?*
       *दुनिया जानती है कि वह भी वसुंधरा के ध्रुव विरोधी थे!ज़ाहिर है कि यह कांटा भी किसी फूल की सुरक्षा के लिए निकाला गया!*
       *अब आईये राजेंद्र राठौड़ पर!कभी वसुंधरा राजे के सिपहसालार बन कर महारानी की जयजयकार करने वाले राठौड़ ! किसी कारणवश वसुंधरा के ख़िलाफ़ हो गए!दिल्ली को उनकी तरफ आँखें तरेरते देख, वह भी वसुंधरा को टेडी निगाह से देखने लगे।अपने गले से वसुंधरा का नामज़द पट्टा उतारने के लिए उन्होंने पूनिया जी के गले में बाहें डाल कर, वसुंधरा को हिक़ारत से देखना शुरू कर दिया।उनकी यह नाटकीयता इसलिए भी बढ़ती रही क्यों कि उनको अपने नम्बर बढ़ाने थे!*
      *पूनिया  और कटारिया के हटाए जाने के बाद मौक़ा आया विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने का। राजेन्द्र राठौड़ जानते थे कि ऊँट फिर पहाड़ के नीचे आ गया है।वह उम्र के उतार पर यह मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते थे।जुगाड़ ज़रूरी था।*
    *प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह वसुंधरा से मिले।उनको मनाया।आख़िर नेता प्रतिपक्ष राठौड़ को बनाए जाने का प्रस्ताव वसुंधरा से रखवाया गया।नेता बनने के बाद राठौड़ वसुंधरा का आभार प्रदर्शन करने उनके निवास पर भी गए।*
     *बाद में फिर उनके संस्कारों ने पलटी खा ली।सिरोही की उस घटना का यहाँ ज़िक्र ज़रूरी है जब मोदी जी वहाँ गए और मंच पर राठौड़ ने वसुंधरा के आगे आकर उनको नेपथ्य में लाना चाहा।तब वसुंधरा ने उनको कोहनी से हटाकर एक तरफ कर दिया।यही नाटक अजमेर में भी हुआ।यहाँ भी सिरोही की तर्ज़ पर वसुंधरा ने उनको हाथ से धकिया कर सामने से हटा दिया।*
    *ख़ैर!यह तो बस प्रसंग वश है वरना मूल बात तो यह है कि दिल्ली क्या वसुंधरा को बर्फ़ में लगा कर चुनाव लड़ने के मूड में है?*
      *मेरा आंकलन है कि यह आत्मघाती निर्णय इतनी बड़ी चुनौती के सामने नामुमकिन है।वसुंधरा में लाख कमियाँ आप गिना सकते हैं!उन पर कई तरह के आरोप लगा सकते हैं!उनके कार्यकाल में हुए कथित घोटालों पर भी उंगलियां उठा सकते हैं!मगर उनके पब्लिक फ़ीगर होने पर शक़ नहीं कर सकते।बात कड़वी ज़रूर है मगर सच्ची है कि जितनी भीड़ अजमेर में मोदी जी की सभा में सारी मशक़्क़त के बाद इकठ्ठी नहीं हुई उतनी तो वसुंधरा के जन्म दिनों पर ही होती रही है।सालासर के लोगों से तस्दीक़ कर लीजिए।*
       *मेरी बातों से आपको लग सकता है कि मैं वसुंधरा चालीसा का पाठन कर रहा हूँ मगर आने वाले कुछ ही महीनों में जब मोदी जी और अमित शाह ख़ुद उनकी सराहना करेंगे तो आप मेरी दूरदर्शिता को सम्मान देंगे।*
      *मोदी जी की अजमेर वाली आमसभा में प्रदेश वाले कई नेताओं ने  कहां चाहा  था कि मंच के पीछे लगे बैकड्रॉप पर वसुंधरा की तस्वीर लगाई जाए!,यदि उनका वश चलता तो किसी हाल में तस्वीर नहीं लगती मगर दिल्ली से जो डिज़ाइन आई उसमें उनकी तस्वीर थी।मेरी बात पर यक़ीन न हो तो आप भाजपा के स्वयम्भू नेताओं से पूछ सकते हैं।राठौड़ और चन्द्र शेखर शर्मा  भी आपको बता सकते हैं।*
   *मित्रों!भाजपा को राजस्थान में अपनी सत्त्ता हर हाल में लानी है और इसके लिए यदि ख़ून का घूंट भी उसको पीना पड़ा तो पिया जाएगा।*
 *‼️नगर पालिका पुष्कर में किस तरह हुआ लंका दहन?‼️*😴

_*नसीम अख़्तर! राठौड़ बाबा!के होते लंका दहन किया गहलोत! रन्धावा! अमृता धवन और धारीवाल ने!*_🙋‍♂️

_*कौन बनेगा अब सभापति?डोलिया या दामोदर?या फिर कोई और?*_🤔

*शिव महर्षि सबसे मजबूत दावेदार!*

              *✒️सुरेन्द्र चतुर्वेदी*

                  *नगर पालिका पुष्कर के अध्यक्ष कमल पाठक को उनके पद से हटाकर सरकार ने नया पाठ पढ़ा दिया है। अदालत से स्टे लेने की भले ही पाठक कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन उनके कारनामों की लंबी फेहरिस्त से उनको मुक्ति के उपाय तो ढूंढने ही पड़ेंगे। तीन साल से जिन आरोपों की जांच के लिए कांग्रेसी नेता ओम डोलिया और उनकी मज़बूत टीम एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा चुकी थी उन पर कार्यवाही कैसे हुई? यह सवाल भी बड़ा शानदार है।*🤪
                   *कमल पाठक बहुत चतुर नेता हैं। भाजपा ही नहीं कांग्रेस के ताक़तवर कहे जाने वाले नेताओं से भी सामंजस्य बना कर चलते हैं।यही वज़ह रही कि गम्भीर आरोपों के बावज़ूद उन पर अब तक जांच परिणाम नहीं निकले।*💁‍♂️
                             *ओम डोलिया को कुछ स्थानीय कोंग्रेसी नेता सहारा देते रहे। और तो और राठौड़ बाबा तक पर उनका जादुई प्रभाव बना रहा। डोलिया जो जड़ों से जुड़े नेता माने जाते हैं ने राठौड जैसे कथित ताक़तवर नेता पर यक़ीन किया और उनसे उम्मीद करी कि वह ही पाठक पर लगे आरोपों की जांच को परिणाम तक पहुंचाएं मगर उन्होंने जिस तरह की बातें कीं उससे डोलिया को लग गया कि यह काम राठौड़ बाबा के वश में नहीं । वह पूरी तरह से पाठक महिमा के शिकार बन चुके हैं।*😟
                  *डोलिया ने अब अपनी गेंद राठौड़ के पाले से निकाल कर मुख्यमंत्री के पाले में डाल दी। उन्होंने राज्य प्रभारी रन्धावा से संपर्क किया। अमृता धवन को मामले की जानकारी दी। उनको लिखित में सारी शिक़ायत दी। भला हो अमृता धवन का कि वह पाठक जी की महिमा के प्रभाव में नहीं आई।उन्होंने इस मामले में राठौड़ बाबा से भी सलाह नहीं ली।सीधे मुख्यमंत्री से बात की।गहलोत ने मामले में रुचि लेते हुए मंत्री शांति धारीवाल से बात की। उनके माध्यम से फ़ाइल मंगवाई और अंततः पाठक साहब को पद मुक्ति के आदेश दे दिए।*🤷‍♂️
                     *जांच में जो आरोप पाठक पर लगाए हैं उनकी गम्भीरता को सरकार ने अब तक अभयदान क्यों दिए रखा यह भी जांच का मुद्दा है।जाँच को बर्फ़ में लगाना भी क्या आर्थिक प्रबन्धन का हिस्सा रहा❓️🤔*
                *दोस्तों! मेरे पास पाठक साहब की कुछ और सबूत सहित शिकायतें आई हैं जिन पर यदि सरकार कार्यवाही करे तो नौबत हथकड़ी तक की आ सकती है।इन शिकायतों पर फिर फुर्सत में बात करूँगा । फ़िलहाल तो इसी बात पर चर्चा कर ली जाए कि जाँच रिपोर्ट को इतने दिनों तक किस वज़ह से दबाए रखा गया❓️❓️😴*
                   *पूर्व मंत्री और कांग्रेस की भावी उम्मीदवार नसीम अख़्तर ने क्यों भाजपा बोर्ड के सभापति को अभयदान दिए रखा❓️क्या उनको ओम डोलिया ने शिकायत की प्रति नहीं दी थी❓️🤨*
                       *क्या नसीम अख़्तर इतनी कमज़ोर थीं कि मामले की जांच को परिणाम तक पहुंचा पातीं❓️🫢*
                         *पुष्कर से अपने आपको भावी उम्मीदवार मानकर सक्रिय हुए राठौड़ बाबा ने इस मामले में डोलिया का साथ क्यों नहीं दिया❓️😨*
                       *क्या इसलिए कि उनको किसी मज़बूत बंदे ने कमल पाठक से मिलवा दिया था❓️🤪*
                      *क्या राठौड़ बाबा ने इस पंगे से अपनी इज़्ज़त दांव पर लगाना उचित नहीं समझा❓️😣*
                     *क्या राठौड़ बाबा ने पुष्कर की राजनीति से अपना पीछा छुड़ा लिया है❓️😴*
                 *क्या अब राठौड़ बाबा अजमेर उत्तर से चुनाव लड़ने का फ़ैसला कर चुके हैं❓️😇*
                    *क्या राठौड़ बाबा जाट नेता रामचन्द्र चन्द्र चौधरी,डॉ श्रीगोपाल बाहेती, राजकुमार जयपाल और नौरत गुर्जर को बेताल की तरह अपनी पीठ पर लाद चुके हैं❓️😉*
                 *ओम डोलिया ने निश्चित रूप से इन सारे सवालों को सांप सूंघा दिया है। उन्होंने सारे समीकरणों को बदल कर यह सिखा दिया है कि लंका दहन कैसे होता है❓️*🤪
                  *अब सभापति कौन होगा❓️इसके लिए सारे चिल्गोज़े सामने आएंगे! जो राठौड़ बाबा अब तक पाठक को हटवाने में कोई रुचि नहीं ले रहे थे,अब अपना मोहरा फिट करने में भयंकर रुचि लेंगे!ओम डोलिया! पाठक मुक्त नगर पालिका बनाने में तो क़ामयाब हो गए मगर राठौड़ मुक्त पालिका करने में किस तरह क़ामयाब होंगे यह देखना पड़ेगा।कांग्रेसी यद्यपि येन केन प्रकारेण अपना सभापति बनाना चाहते हैं मगर लगता नहीं कि ऐसा हो पाएगा।सभापति तो भाजपा का ही होगा और वह भी शिव महर्षि ही।*

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