Saturday 15 July 2023

सफर कल भी था! सफर आज भी जारी है*!*माना कुछ उम्मीदें टूटी है* *लेकिन कुछ ख्वाहिशें अभी भी बाकी है*!!

*सम्पादकीय*
✍️
*सफर कल भी था! सफर आज भी जारी है*!
*माना कुछ उम्मीदें टूटी है* *लेकिन कुछ ख्वाहिशें अभी भी बाकी है*!!
मौसम के तरह बदलते लोगों के बीच ज़िन्दगी आखरी मुकाम के तरफ लगातार बढ़ती जा रही है। उम्मीदों के रस्सीके सहारे ख़्वाहिशों की दरिया को पार करना आसान नहीं होता!मगर मानव स्वभाव है हर ख्वाहिश पूरा कर लेने के जुनून में सारी उमर यूं ही गंवा देता है।उम्मीदों के भंवर जाल में फंसा आदमी ख्वाबों की चाहत में जब बार बार आहत होता तब भी उसको यह नहीं पता होता हैआखिर वह ख्वाहिश किस काम की जिसकी चाहत मे जीवन भर राहत नहीं मिली! मगर इसका ज्ञान तो तब होता है जब ज़िन्दगी का सूरज ढलने लगता है!अन्धेरा दस्तक देने लगता विरानी चहलकदमी करती घूरने लगती है! तबाही कदम कदम कदम पर बेदम करने लगती! हर तरफ उदासी का मंजर कहीं कोई नहीं दिखता  अपना रहबर!अश्कों की वारिश में कमजर्फो का कारनामा बार बार सोचने पर विवस कर देता है। कोई अपना नहीं,! यहां सब मृणतृष्णा! सब दिखावा! इस मतलबी संसार में दौलत का अंहकार लिए गुजरा हर लम्हा आखरी सफर के तन्हा राहों में धिक्कारता है! पूछता है रे मूढ़ मानव आखिर तुम्हें क्या मिला!तन्हा आये थे तन्हा जाना है!यह जग तो केवल मुसाफिर खाना है!मालिक का विधान देखो खाली हाथ भेजता है!खाली हाथ ही वापस बुला लेता है! मगर आदमी धर्म कर्म के आवरण में निर्धारित उम्र के हर पल को प्रतिपल प्रतिस्पर्धा के प्रतिशोध में पुरस्कृत होने के लिए अहम का वहम पाले गुजार‌ देता है! आखिर में नतीजा केवल सीफर ही होता है।कितना डरावना वह पल होता है जब न धन काम आता! न दौलत! न इज्जत काम आती न शोहरत! न अपने करीब दिखते न कुछ कहने सुनने की मिलती मोहलत!,जुबां खामोश, आंखों में आंसुओ कि धार!अन्तर आत्मा की बार बार पुकार! माया के वसीभूत अपनो के विछोह का कसक लिए विवसता के जाल में उलझा शनै: शनै;उस अनन्त पथ का अनुगामी बनने लगता है आदमी जहां से फिर कभी वापसी सम्भव नहीं है।कितनी बड़ी विडम्बना है गजब की मानवी संकल्पना है! जाना कुछ भी नहीं साथ फिर भी सब कुछ अपना है! समय के सागर में जाने कितने सिकन्दर गर्त हो गये! जिनका कोई वजूद मौजूद नहीं है!मगर हम आप बस वर्तमान भले कष्टदाई हो भविष्य सजाने संवारने में दिग भ्रमित होकर संयमित जीवन छोड़ देते हैं?।नतीजा ज़िन्दगी के आखरी सफर के विरान राहों में दर्द का सौगात लिए मिलता है!यह जीवन मूल्यवान हैऔर इसी का शानिध्य पाकर कोई ज्ञानी कोई हो जाता  कोई हो जाता धनवान है!मगर वही महान है! जिसने जज़्बात को काबू में रखकर अपनी औकात को हमेशा याद रखा परम धाम का अनुभागी बन गया। जो माया के महा जाल में फंसकर उलझा अनुरागी बन गया!जीवन मरण के तारतम्य मे अनुगमन करता रहा,!चौरासी लाख योनियों में भगवान ने सबसे बुद्धिमान इन्सान को बनाया,विशेष सन्देश के साथ मृत्युलोक में निश्चित अवधि के लिए भेज दिया! मगर माया के वशीभूत जिम्मेदारियो तथा कर्मों के खेल में उलझ कर सारी उम्र गुजर जाती! सांसों का तारतम्य जब टूटने लगता है तब ज्ञान होता है!जब तक जीवन है सत्कर्म के राह पर चल कर प्रारब्ध में मिले हर पल को  इन्सानियत के राह पर चलकर जीएं साथ कुछ नहीं जायेगा।

 🙏🙏🕉️🙏🙏

No comments:

Post a Comment